इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट्स की जिस्ट


भारतीय अर्थव्यवस्था

नीति आयोग : डिजिटल भुगतान प्रवृत्ति, मुद्दे तथा अवसर

  • 30 Apr 2019
  • 38 min read

डिजिटल भुगतान को लेकर आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त मंत्रालय द्वारा अगस्त 2016 में रतन पी वाटल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था, जिसके द्वारा अन्य उपायों के साथ-साथ देश में डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये मध्यम अवधि के उपायों की सिफारिश की गई थी। इसने दिसंबर 2016 में वित्त मंत्री को अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की।

डिजिटल भुगतान

भुगतान और निपटान अधिनियम, 2007 डिजिटल भुगतानों को परिभाषित करता है, जिसमें कहा गया है कि ‘इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर’ निधियों का ऐसा अंतरण है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा अनुदेश, प्राधिकार या आदेश के माध्यम से किसी बैंक में रखे गए खाते से रकम निकालने या उसमें जमा करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग किया जाता है और उसके अंतर्गत विक्रय अंतरण के बिंदु (Point of Sale Transfers); स्वचालित टेलर मशीन (ATM) से लेन-देन, प्रत्यक्ष जमा या निधियों का निकाला जाना, टेलीफोन, इंटरनेट और कार्ड से भुगतान (Card Payment) द्वारा किये गए अंतरण सम्मिलित हैं।

भुगतान प्रणालियों के खंड

भुगतान प्रणाली को दो मुख्य खंडों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. वे उपकरण जो व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय बाज़ार अवसंरचना (SIFMIs) के अंतर्गत आते हैं।
  2. खुदरा भुगतान।

प्रणालीबद्ध महत्त्वपूर्ण वित्तीय बाज़ार अवसंरचना (Systemically Important Financial Market Infrastructure SI-FMI)

वित्तीय बाज़ार अवसंरचना (FMI): इसे सहभागी संस्थानों के बीच एक बहुपक्षीय प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें भुगतान, प्रतिभूतियों, डेरिवेटिव या अन्य वित्तीय लेनदेन का निपटान (setting) या उन्हें दर्ज़ करने (Recording) के प्रयोजन से उपयोग की जाने वाली प्रणाली में संचालन को भी शामिल किया जाता है।

SIFMI के तहत नए मानकों (सिद्धांत) को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है कि वैश्विक वित्तीय बाज़ारों का समर्थन करने वाला आवश्यक वित्तीय बाज़ार बुनियादी ढाँचा (FMI) और भी मज़बूत हो तथा इस तरह वर्तमान में भी वित्तीय झटके झेलने के लिये बेहतर अवस्था में बना रहे।

इस सेगमेंट (SIFMI) के तहत भुगतान के चार साधन हैं:

  1. RTGS: तत्काल सकल निपटान (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट) को फंड के निरंतर (तत्काल) निपटान के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो प्रत्येक आदेश (निकासी के बिना) के आधार पर व्यक्तिगत रूप से ट्रांसफर होता है। 'रियल टाइम’ का अर्थ है निर्देशों के पालन की प्र​क्रिया उसी समय शुरू हो जाती है जब वे प्राप्त होते हैं, न कि बाद में। 'सकल निपटान' का अर्थ है कि निधि हस्तांतरण निर्देशों का निपटान व्यक्तिगत रूप से (निर्देश के आधार पर प्रत्येक निर्देश पर) होता है। यह प्रणाली मुख्य रूप से बड़े मूल्य के लेनदेन के लिये है। RTGS के माध्यम से प्रेषित की जाने वाली न्यूनतम राशि 2 लाख रुपए है। अंतर-बैंक निधि हस्तांतरण के लिये कोई सीमा नहीं है।
  2. CBLO: Collateralized Borrowing and Lending Obligation एक मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट है जिसे Clearing Corporation of India Ltd. (CCIL) द्वारा विकसित किया गया है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2003 में की गई थी। यह उधारकर्त्ता एवं ऋणदाता के बीच ऋण के नियमों एवं शर्तों के दायित्व को दर्शाता है। यह उधारकर्त्ता से ऋणदाता या इसके विपरीत संबंधित प्रतिभूतियों का भौतिक हस्तांतरण नहीं करता है।
  3. सरकारी प्रतिभूतियाँ: सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Sec) केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला एक व्यापार योग्य साधन (Instrument) है।
  4. विदेशी मुद्रा समाशोधन : यहाँ 'फोरेक्स' शब्द का अर्थ विदेशी विनिमय से है। सरल शब्दों में यह विभिन्न देशों की मुद्राओं में एक-दूसरे के मध्य किया जाने वाला व्यापार है। भारत में विदेशी मुद्रा लेनदेन का निपटान CCIL द्वारा किया जाता है जिसे 2002 में शुरू किया गया था।

खुदरा भुगतान

खुदरा भुगतान सेगमेंट जिसके पास बड़ा यूज़र बेस है, इसमें तीन व्यापक श्रेणी के साधन (Instrument) हैं। वे हैं- (1) पेपर क्लियरिंग (2) रिटेल इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग (3) कार्ड पेमेंट इन तीन श्रेणियों के तहत साधनों की चर्चा नीचे की गई है:

  • Cheque Truncation System (CTS): CTS या ऑनलाइन इमेज-आधारित चेक क्लियरिंग सिस्टम, चेकों की तेज़ी से क्लियरिंग के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा शुरू किया गया एक चेक क्लियरिंग सिस्टम है। यह चेक के प्रत्यक्ष संचालन से संबद्ध लागत को समाप्त करता है।
  • गैर-एमआईसीआर (Non-MICR): Non-MICR समाशोधन चेक के मैनुअल क्लियरिंग की प्रक्रिया को संदर्भित करता है जहाँ चेक को भौतिक रूप से बैंक शाखाओं / बैंकों के बीच क्लियरिंग के लिये ले जाया जाता है। MICR (मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकग्निशन) एक तकनीक है जो कागज़ी दस्तावेज़ों की वैधता या मौलिकता, विशेष रूप से चेक को सत्यापित करने के लिये उपयोग की जाती है।
  • ECS DR / CR: ECS (इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सिस्टम) लेनदेन के लिये भुगतान / प्राप्ति की एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो पुनरावृत्तीय एवं आवधिक प्रकृति की है। DR / CR डेबिट रिकॉर्ड या क्रेडिट रिकॉर्ड कहलाता है। ECS एक बैंक खाते से कई बैंक खातों या इसके विपरीत पैसे के थोक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है। ECS में राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित राष्ट्रीय स्वचालित क्लियरिंग हाउस (NACH) के तहत संसाधित लेनदेन शामिल हैं।
  • NEFT: राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण (NEFT) एक राष्ट्रव्यापी भुगतान प्रणाली है, जिसमें एक से दूसरे तक निधि हस्तांतरण की सुविधा दी जाती है। इस योजना के तहत व्यक्ति, फर्म या कॉर्पोरेट किसी भी बैंक शाखा से किसी भी व्यक्ति फर्म या कॉर्पोरेट को जिनका खाता इस योजना में शमिल, देश के किसी भी बैंक शाखा में है, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से धनराशि स्थानांतरित कर सकते हैं।
  • IMPS: तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service) मोबाइल फोन के माध्यम से तत्काल 24X7 इंटरबैंक इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण सेवा प्रदान करती है। IMPS मोबाइल, इंटरनेट और एटीएम के माध्यम से पूरे भारत के बैंकों में तुरंत धन हस्तांतरित करने का एक सशक्त उपकरण है। यह सेवा नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा मुहैया कराई जाती है।
  • यूपीआई (UPI): यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लीकेशन (किसी भी भाग लेने वाले बैंक) में कई बैंकिंग सुविधाओं का विलय करने, निर्बाध निधि अनुमार्गण (Seamless Fund Routing) तथा मर्चेंट भुगतान को एक ही जगह में जोड़ने की शक्ति देती है।
  • *99#: NPCI की USSD आधारित मोबाइल बैंकिंग सेवा को नवंबर 2012 में शुरू किया गया था। इस सेवा की सीमित पहुँच थी तथा केवल दो TSPs (टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर) यानी MTNL एवं BSNL ही इस सेवा को मुहैया करा रहे थे। वित्तीय समावेशन में मोबाइल बैंकिंग के महत्त्व को समझते हुए *99# सेवा को 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' के भाग के रूप में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 28 अगस्त, 2014 को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
  • USSD: 'अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डेटा' मोबाइल (GSM) संचार प्रौद्योगिकी की एक वैश्विक प्रणाली है जिसका उपयोग मोबाइल फोन तथा नेटवर्क में एप्लीकेशन प्रोग्राम के बीच संदेश भेजने के लिये किया जाता है।
  • NACH: 'नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) ' NPCI द्वारा बैंकों को दी जाने वाली एक सेवा है, जिसका उद्देश्य इंटरबैंक हाई वॉल्यूम, कम वैल्यू के डेबिट / क्रेडिट ट्रांज़ेक्शन की सुविधा देना है, जो पुनरावर्ती एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रकृति की है। यह भाग लेने वाले बैंकों को आवक (Inward) डेबिट / क्रेडिट लेनदेन की केंद्रीकृत प्रविष्टियों के लिये अनुमति देता है तथा इसे NPCI द्वारा चलाया जाता है।
  • क्रेडिट कार्ड: क्रेडिट कार्ड एक वित्तीय कंपनी द्वारा जारी किया गया कार्ड होता है जो कार्डधारक को धन उधार लेने में सक्षम बनाता है। जारीकर्त्ता, उधार की पूर्व-सीमा निर्धारित करता है, जो व्यक्ति की क्रेडिट रेटिंग के आधार पर तय होती है। इन कार्डों का उपयोग घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जा सकता है तथा इसका उपयोग देश में एटीएम से नकदी निकालने एवं बैंक खातों, डेबिट कार्डों और प्रीपेड कार्डों में धन हस्तांतरित करने के लिये भी किया जा सकता है।
  • डेबिट कार्ड: डेबिट कार्ड एक भुगतान कार्ड है जो खरीदारी के भुगतान के लिये सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते से पैसे काटता है तथा खरीदारी करने हेतु नकदी या चेक रखने की आवश्यकता को समाप्त करता है। इसके अलावा छोटे ऋणात्मक शेष के लिये क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान करता है, अगर खाताधारक ने ओवरड्राफ्ट कवरेज के लिये साइन अप किया हो। हालाँकि डेबिट कार्ड की आमतौर पर दैनिक खरीद सीमा होती है।
  • प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट्स (PPIs): PPIs भुगतान उपकरण हैं जो ऐसे उपकरणों पर संग्रहीत मूल्य के हिसाब से वित्तीय सेवाओं, प्रेषण सुविधाओं आदि सहित वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करते हैं। PPIs को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
  • क्लोज़्ड सिस्टम तंत्र PPIs: ये PPIs केवल किसी इकाई से वस्तु एवं सेवाओं की खरीद की सुविधा के लिये उस इकाई द्वारा जारी किये जाते हैं तथा नकद निकासी की अनुमति नहीं देते हैं।
  • सेमी-क्लोज़्ड सिस्टम PPIs: इन PPIs का उपयोग वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद के लिये किया जाता है, जिसमें वित्तीय सेवाओं, प्रेषण सुविधाओं आदि को स्पष्ट रूप से पहचाने गए व्यापारिक स्थानों / प्रतिष्ठानों के समूह में जारी किया जाता है, जिनका जारीकर्त्ता के साथ (या भुगतान एग्रीगेटर / भुगतान गेटवे के माध्यम से अनुबंध द्वारा) PPIs को भुगतान उपकरण के रूप में स्वीकार करने हेतु एक विशिष्ट अनुबंध होता है। ये उपकरण नकद निकासी की अनुमति नहीं देते हैं।
  • ओपन सिस्टम PPIs: ये PPIs केवल बैंकों द्वारा जारी किये जाते हैं तथा किसी भी व्यापारी द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद के लिये उपयोग किये जाते हैं, जिसमें वित्तीय सेवाएँ , प्रेषण सुविधाएँ आदि शामिल हैं। ऐसे PPIs जारी करने वाले बैंक एटीएम/प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) / बिज़नेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स नकद निकासी की सुविधा भी प्रदान करेंगे।

भारत में डिजिटल भुगतान का विकास

  • भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली पिछले कई वर्षों से मज़बूती के सा​थ विकसित हो रही है, जो सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास से प्रेरित है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रस्तावित कार्यप्रणाली के अनुरूप है।
  • नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) की स्थापना वर्ष 2008 में की गई थी, जो खुदरा भुगतान प्रणाली के विकास को गति प्रदान कर रहा है।
  • भुगतान प्रणाली के विकास की प्रक्रिया में प्राप्त महत्त्वपूर्ण मील के पत्थरों में शामिल हैं:
  • 1980 के दशक के आरंभ में MICR समाशोधन की शुरुआत हुई। यह ऑनलाइन इमेज-आधारित चेक समाशोधन प्रणाली है जहाँ चेक-इमेज एवं मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकग्निशन (MICR) डेटा को एकत्र कर बैंक शाखा में अभिलिखित किया जाता है तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रसारित किया जाता है।
  • 1990 में इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा तथा इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण।
  • 1990 के दशक में बैंकों द्वारा क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड जारी करना।
  • वर्ष 2003 में नेशनल फाइनेंशियल स्विच की शुरुआत जिसने पूरे देश में ATMs को आपस में जोड़ने की शुरुआत की।
  • वर्ष 2004 में RTGS एवं NEFT सेवा की शुरुआत।
  • वर्ष 2008 में चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) की शुरुआत। चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) या इमेज-आधारित क्लियरिंग सिस्टम (ICS) चेकों के तेज़ी से समाशोधन के लिये प्रणाली है। चेक ट्रंकेशन का अर्थ है अदाकर्त्ता शाखा को आदेशक बैंक शाखा द्वारा जारी किये गए चेकों के भौतिक प्रवाह को रोकना।
  • वर्ष 2009 में 'बिना कार्ड पेश किये' लेनदेन। इसका उपयोग आमतौर पर इंटरनेट पर किये गए भुगतानों के लिये किया जाता है, लेकिन e-मेल या फैक्स द्वारा या टेलीफोन पर मेल-ऑर्डर लेनदेन में भी किया जा सकता है।
  • वर्ष 2013 में नई सुविधाओं के साथ नए RTGS की शुरुआत की गई जिसमें बैंकों को ISO 20022 मानक संदेश प्रारूप अपनाने की आवश्यकता थी। भुगतान प्रणाली के लिये ISO 20022 मानक संदेश प्रारूप शुरू करने का उद्देश्य देश में विभिन्न भुगतान प्रणालियों के मानकीकरण तथा उनका अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप किया जाता है।
  • गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट (PPI) जारी करने की शुरुआत की गई, जिसमें मोबाइल और डिजिटल वॉलेट शामिल हैं। BHIM (Bharat Interface for Money) यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) पर आधारित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित एक मोबाइल भुगतान एप है।
  • ये प्रगतियाँ देश में डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के विकास का मूल्यांकन करती हैं। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2016 में श्री रतन पी. वाटल, प्रमुख सलाहकार, NITI Aayog की अध्यक्षता में डिजिटल भुगतान पर समिति की स्थापना की गई।

वर्ष 2016-17 तथा वर्ष 2017-18 के दौरान प्रवृ​त्ति

नवंबर 2016 की शुरुआत में विमुद्रीकरण तथा सरकार एवं RBI द्वारा लेनदेन के नकदी से गैर-नकदी तरीकों को बढ़ावा देने के लिये घोषित उपायों की अन्य शृंखलाओं ने भुगतान प्रणालियों की मात्रा एवं मूल्य को प्रभावित किया है।

परिमाण (Volume): इंस्ट्रूमेंट-वाइज़ ग्रोथ ट्रेंड्स (डेटा स्रोत - RBI)

  • IMPS, PPI तथा डेबिट कार्ड से संबंधित लेनदेन ने वर्ष 2016-17 में तीन अंकों में वृद्धि दर दर्ज़ की थी। यह वृद्धि की प्रवृत्ति हालाँकि वर्ष 2017-18 में धीमी हो गई तथा इन सभी उपकरणों ने दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज़ की।
  • UPI ने वर्ष 2017-18 में कई गुना वृद्धि दर्ज की है तथा इसने वर्ष 2017-18 के दौरान 915.2 मिलियन लेनदेन का आँकड़ा छुआ है। इस उपकरण की वर्ष 2016-17 में न्यूनतम उपस्थिति थी।
  • वर्ष 2016-17 की सकारात्मक वृद्धि की तुलना में वर्ष 2017-18 में कागज़ी समाशोधन की मात्रा में लगातार नकारात्मक वृद्धि देखी गई।
  • NEFT संस्करणों ने वर्ष 2016-17 में प्रभावशाली वृद्धि दर्ज़ की थी। तथापि यह वर्ष 2017-18 में धीमी गति के साथ बढ़ती रही।

डिजिटल भुगतान के नए तरीके

UPI जिसे हाल ही में शुरू किया गया था के अलावा NPCI द्वारा कई अन्य तरीके भी शुरू किये गए हैं।

  • भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS): भारत बिल भुगतान प्रणाली, एकीकृत बिल भुगतान प्रणाली के संचालन हेतु एक स्तरीयकृत संरचना है। NPCI अधिकृत भारत बिल भुगतान केंद्रीय इकाई (BBPCU) के रूप में कार्य करता है, जो सभी प्रतिभागियों के लिये तकनीकी एवं व्यावसायिक आवश्यकताओं, व्यावसायिक मानकों, नियमों तथा प्रक्रियाओं की स्थापना हेतु ​ज़िम्मेदार है। BBPS के तहत भारत बिल भुगतान परिचालन इकाइयाँ (BBPOUs) रोजमर्रा की उपयोगी सेवाओं, जैसे- बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन तथा डायरेक्ट-टू-होम (DTH) के लिये बार-बार किये जाने वाले भुगतानों की सुविधा प्रदान करने वाली संस्थाओं के रूप में कार्य करेंगी।
  • भारत इंटरफेस फॉर मनी (BHIM): भारत इंटरफेस फॉर मनी एक मोबाइल एप्लीकेशन है जो एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) का उपयोग करके सरल, आसान तथा त्वरित भुगतान लेनदेन को सक्षम बनाता है। त्वरित बैंक-से-बैंक भुगतान तथा पे एंड कलेक्ट ऑप्शंस को सिर्फ मोबाइल नंबर तथा वर्चुअल पेमेंट एड्रेस (VPA) का उपयोग करके सुविधाजनक बनाया जाता है। यह एप्लीकेशन NPCI द्वारा शुरू किया गया था।
  • भारत क्विक रिस्पांस कोड सॉल्यूशन (Bharat QR): NPCI, मास्टरकार्ड तथा वीज़ा द्वारा विकसित QR कोड के लिये एक अंतःप्रचालनीय समाधान है। व्यापारी इन QR कोडों को अपने परिसर में प्रदर्शित कर सकते हैं तथा ग्राहक अंतःप्रचालनीय वातावरण में भारत-QR सक्षम एप्लीकेशन के माध्यम से इन QR कोड‍स को स्कैन करके लिंक किये गए खाते के माध्यम से भुगतान कर सकते हैं।

डिजिटल भुगतान को बढ़ाने वाले कारक (Growth Drivers for Digital Payments)

  • वर्ष 2017-18 में डिजिटल भुगतानों के मात्रात्मक खंड में डेबिट कार्ड्स, PPIs तथा IMPS का वर्चस्व रहा है। इनके द्वारा किया लेनदेन डिजिटल भुगतान की कुल मात्रा के 50% के करीब है। वर्ष 2011-12 में उनका संयुक्त हिस्सा लगभग 14% था।
  • वर्ष 2017-18 में RTGS एवं NEFT का मात्रात्मक खंड में बोलबाला रहा है। इनके माध्यम से किया गया लेनदेन संयुक्त रूप से डिजिटल भुगतान के कुल मूल्य का लगभग 53% है, जो वर्ष 2011-12 के लगभग समान है।

अधिकृत भुगतान सेवा प्रदाता

  • भारतीय रिज़र्व बैंक भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत भारत में भुगतान प्रणाली की स्थापना तथा संचालन के लिये प्राधिकार प्रमाण पत्र जारी करता है।
  • प्राधिकार प्रक्रिया के लिये नियम:
  • भुगतान और निपटान प्रणाली विनियम, 2008 के विनियमन एवं पर्यवेक्षण के लिये बोर्ड।
  • भुगतान और निपटान प्रणाली विनियम, 2008।
  • 58 बैंकों ने 22 जून, 2018 को भारत में प्री-पेड कार्ड जारी करने की अनुमति दी।

डिजिटल भुगतान सेवा शुल्क

  • RTGS सेवा शुल्क: इन शुल्कों में प्रत्येक लेनदेन में मासिक सदस्यता शुल्क तथा प्रसंस्करण शुल्क शामिल होंगे।
  • NEFT सेवा शुल्क:
  • निर्दिष्ट बैंक शाखाओं में आवक (Inward) लेनदेन (लाभार्थी खातों में जमा करने के लिये) - नि:शुल्क, लाभार्थियों पर कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा।
  • प्रवर्तक बैंक शाखाओं के लिये बाहरी (जावक) (Inward) लेनदेन - विप्रेषक (Cremitter) के लिये शुल्क लागू। प्रवर्तक बैंकों को क्लियरिंग हाउस के साथ-साथ प्रत्येक बैंक को सेवा शुल्क के रूप में प्रत्येक लेनदेन पर 25 पैसे का मामूली शुल्क देना पड़ता है। हालाँकि बैंकों द्वारा यह शुल्क ग्राहकों के ऊपर नहीं लगाया जा सकता है।
  • PPI / मोबाइल बैंकिंग / IMPS / USSD: RBI द्वारा कोई शुल्क निर्धारित नहीं किया गया है। शुल्क इकाई द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। एक अस्थायी उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया कि सभी भागीदार बैंक तथा प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट (PPI) जारीकर्त्ता ग्राहकों पर तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) के तहत किये गए 1000 रुपए तक के लेनदेन पर कोई शुल्क नहीं लेंगे। इसके अलावा USSD- आधारित *99# तथा यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) सिस्टम पर कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

नीति उपक्रम (Policy Initiatives)

केंद्रीय बजट 2017-18 में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये वित्त मंत्री द्वारा प्रमुख नीतिगत घोषणाएँ की गईं।

  • भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में संरचनात्मक सुधारों के लिये भुगतान और निपटान प्रणाली (PSS) अधिनियम, 2007 में संशोधन की प्रक्रिया चल रही है।
  • BHIM:
  • BHIM एप के प्रचार के लिये सरकार ने दो प्रचार योजनाओं को मंज़ूरी दी है, जैसे- 'व्यक्तियों के लिये रेफरल बोनस योजना' तथा 'व्यापारियों के लिये कैश-बैक योजना'।
  • BHIM आधार के प्रचार के लिये, 'DIGIDHAN MISSION' के तहत 395 रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक प्रचार योजना की शुरुआत की गई है।
  • BHIM आधार पे (Aadhaar Pay) भारत सरकार द्वारा 14 अप्रैल, 2017 को ग्राहकों से भुगतान स्वीकार करने के लिये एक व्यापारी आधारित मोबाइल एप्लीकेशन के रूप में शुरू किया गया था।
  • वित्तीय समावेशन निधि:
  • 3 BHIM योजनाएँ यानी, BHIM रेफरल बोनस स्कीम व्यक्तियों के लिये ’, BHIM कैशबैक योजना व्यापारियों के लिये तथा BHIM आधार व्यापारी प्रोत्साहन योजना’।
  • नाबार्ड के वित्तीय समावेशन निधि को 439.202 करोड़ रुपए के साथ संव​र्द्धित करने का प्रस्ताव है।

RBI द्वारा प्रमुख नीतिगत पहलें की गई हैं

  • NEFT प्रणाली - सभी कार्य दिवसों में प्रतिदिन सुबह 8:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक, 1 घंटे के बजाय आधे घंटे का अंतराल पर सहमति।
  • प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (PPIs) पर प्रमुख दिशा-निर्देश:
  • RBI ने वर्ष 2009 में प्रीपेड भुगतान उपकरणों (PPIs) को जारी करने तथा संचालन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये थे ताकि PPIs पारिस्थितिकी तंत्र के क्रमबद्ध विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
  • पिछले अनुभव के आधार पर इस विषय पर प्रमुख निर्देश 20 मार्च, 2017 को टिप्पणियों के लिये सार्वजनिक डोमेन में रखे गए थे तथा प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये परिचालन दिशा-निर्देशों को युक्तिसंगत बनाने तथा परिचालन एवं सुरक्षा को मज़बूत करने के अलावा ग्राहक शिकायत निवारण तंत्र में सुधार करने का निर्णय लिया गया।
  • संशोधित ढाँचा, KYC अनुपालन PPIs के मध्य अंतर-सक्रियता (Inter-Operability) क्षमता लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • व्यापारी छूट दर (Merchant Discount Rate) (MDR) का युक्तिकरण:
  • डेबिट कार्ड लेनदेन पर लागू MDR को व्यापारियों की श्रेणी के आधार पर युक्तिसंगत बनाया गया है जो जुलाई 2011 से प्रभावी हो गया।
  • छोटे व्यापा​रियों (पिछले वित्तीय वर्ष में 20 लाख रूपए तक के टर्नओवर वाले) पर MDR 0.40% से अधिक नहीं (प्रति लेनदेन पर 200 रुपए का MDR कैप)।
  • अन्य व्यापारियों (पिछले वित्तीय वर्ष में 20 लाख रुपए से अधिक टर्नओवर वाले) पर MDR 0.90% से अधिक नहीं (MDR कैप प्रति लेनदेन 1000 रुपए)।
  • संशोधित MDR का उद्देश्य डेबिट कार्ड के बढ़ते उपयोग तथा इसमें शामिल संस्थाओं के लिये व्यवसाय की स्थिरता सुनिश्चित जैसे दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करना है।
  • भुगतान प्रणाली डेटा का भंडारण: भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि तथा तकनीकी पर अत्यधिक निर्भरता के साथ-साथ सुरक्षा एवं सुरक्षा उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • सभी सिस्टम प्रदाता यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके द्वारा संचालित भुगतान प्रणालियों से संबंधित संपूर्ण डेटा एक सिस्टम में केवल भारत में ही संग्रहीत हो।
  • सिस्टम प्रदाता CERT-IN (भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम) द्वारा आयोजित सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट (SAR) RBI को प्रस्तुत करेंगे।

उभरती वैश्विक प्रवत्तियाँ (Emerging Global Trends)

कैपजेमिनी की रिपोर्ट ’भुगतान की प्रवृतियाँ 2018’ के अनुसार दुनिया भर में डिजिटल भुगतान की शीर्ष 5 प्रवृ​त्तियाँ इस प्रकार हैं:

  • वैकल्पिक भुगतान माध्यम जैसे संपर्क रहित भुगतान सुविधा एवं गति के लिये ग्राहकों की मांगों को पूरा करते हैं तथा जल्द ही प्रमुख माध्यम बन सकते हैं।
  • संपर्क रहित भुगतान उपभोक्ताओं को रोज़मर्रा की खरीदारी जल्दी एवं सुरक्षित रूप से करने में सक्षम बनाता है, विशेषकर कम मूल्य के लेनदेन के लिये। संपर्क रहित भुगतान उपभोक्ताओं के लिये डेबिट, क्रेडिट या स्मार्टकार्ड (जिसे चिप कार्ड भी कहा जाता है) के माध्यम से उत्पादों या सेवाओं की खरीद का एक सुरक्षित माध्यम है। संपर्क रहित भुगतान के लिये एक व्यक्ति को बस एक पॉइंट-ऑफ-सेल टर्मिनल के पास अपने कार्ड को टैप करने की आवश्यकता होती है तथा हस्ताक्षर या पिन की आवश्यकता नहीं है, कार्ड पर लेनदेन की सीमा निर्धारित रहती है।
  • संवर्द्धित वास्तविकता (Augmented Relity) (AR) – संयोजित (Integrated) अनुरक्षित भुगतान गेटवे एक बेहतर ग्राहक अनुभव प्रदान करता है। मास्टरकार्ड अब ग्राहकों को उनकी आईरिस (चेहरे की पहचान के सबसे सुरक्षित साधनों में से एक) को स्कैन करके मोबाइल भुगतान एप मास्टरपास में प्रवेश करने की अनुमति देता है।
  • बैंकों तथा फिन-टेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी) कंपनियों ने सीमा पार से भुगतान में सुधार के लिये वितरित लेखा-बही प्रौद्योगिकी (Distributed Ledger Technology) की खोज की है।
  • वर्तमान सीमा पार भुगतान मॉडल में एक अंतर्राष्ट्रीय समाशोधन गृह (Clearinghouse) का अभाव है तथा यह संपर्ककर्त्ता बैंकों पर निर्भर करता है, जो अक्षमता, धीमी गति एवं उच्च लागत का कारण बनता है। परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट ग्राहक परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
  • एक वितरित खाता-आधारित क्रॉस-बॉर्डर भुगतान मॉडल से बेहतर दक्षता, उच्चतम सुरक्षा तथा कम लागत आदि परिणामों की उम्मीद है।
  • कॉर्पोरेट कोषाध्यक्षों, उद्योगों के लिये त्वरित भुगतान के 'नए मानदंड': बैंक बेहतर डिजिटल ग्राहक अनुभव प्रदान करने तथा खुदरा एवं कॉर्पोरेट ग्राहक दोनों के लिये नवीन उत्पादों और सेवाओं को प्रदान करने हेतु तीसरे पक्ष से जुड़ने हेतु तत्काल भुगतान प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठा रहे हैं।
  • वैश्विक साइबर हमलों के बढ़ने के साथ ही नियामक संस्थाएँ डेटा गोपनीयता कानून अनुपालन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
  • अनुमानों के आधार पर साइबर हमलों की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर लागत वार्षिक जीडीपी का 1% है।
  • वर्ष 2016 में प्रत्यक्ष लिखित प्रीमियम के संदर्भ में साइबर बीमा उद्योग 35% बढ़कर 1.35 बिलियन डॉलर हो गया, जिससे पता चलता है कि कॉरर्पोरेट, साइबर सुरक्षा कानूनों से संबंधित देनदारियों से खुद को बचाते हुए दिख रहे हैं।
  • विभिन्न देशों के मध्य साइबर सुरक्षा कानूनों में सामंजस्य का अभाव दुनिया भर में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये एक चुनौती है।
  • दुनिया भर के नियामक नए साइबर सुरक्षा नियमों एवं मानकों को ला रहे हैं, जो डेटा के दुरुपयोग को लेकर फर्मों पर भारी जुर्माना, निषेधाज्ञा, ऑडिट, यहाँ तक ​​कि आपराधिक देयता भी लगा सकते हैं।
  • भुगतान फर्मों की पहुँच का विस्तार, बदलती ग्राहक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये उनके बहुमूल्य प्रस्ताव में वृद्धि तथा अनुकूलित समाधान भुगतान अवसंरचना तर्कसंगतता विलय एवं अधिग्रहण के माध्यम से संभव है।

(कैपजेमिनी: परामर्श, प्रौद्योगिकी सेवाओं और डिजिटल रूपांतरण में एक वैश्विक नेता, कैपजेमिनी, क्लाउड, डिजिटल एवं प्लेटफॉर्मों की विकसित दुनिया में ग्राहकों के लिये अवसरों के संपूर्ण विस्तार हेतु नवाचारों में सबसे आगे है।)

अवसर

  • मोबाइल द्वारा भुगतान वित्त वर्ष 2018 के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में 190 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • भारत में डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र Google के भुगतान एप (Goole's Payment app) जैसे वैश्विक तकनीकी दिग्गजों के प्रवेश के साथ एक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है जो खुदरा लेनदेन के लिये समूहिक (Aggregators) रूप से कार्य कर रहे हैं।
  • पेटीएम - जिसके 7 मिलियन ग्राहक हैं, अब एक बैंक बन गया है तथा Google Tez और PhonePe जो कि मर्चेंट भुगतान पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, की शुरुआत के बाद, डिजिटल भुगतानों में तेज़ी से वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है।
  • विमुद्रीकरण के बाद से PoS (Point of Sale) टर्मिनलों की संख्या दोगुनी हो गई है, जबकि भारत में मर्चेंट एक्विज़िशन इंफास्ट्रक्चर (कार्ड के माध्यम से खरीदी जाने वाली वस्तु एवं सेवाओं के लिये आवश्यक ढाँचा प्रदान करने तथा भुगतान की सुविधा प्रदान करने का एक तंत्र) कमज़ोर बना हुआ है, क्योंकि बैंक अभिग्रहण (Adoption) को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। यह क्षेत्र डिजिटल सेवा प्रदाताओं के लिये अपार अवसर प्रस्तुत करता है।

आगे की राह

डिजिटल भुगतान के विभिन्न घटकों का वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के संबंध में व्यापक रूप से अध्ययन किया जाना चाहिये तथा संकेतकों की सूची जो कि वर्तमान संदर्भ में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य एवं प्रासंगिक है, पर RBI द्वारा विचार किया जा सकता है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow