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महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट्स की जिस्ट

जैव विविधता और पर्यावरण

लिविंग प्लानेट रिपोर्ट्-2018

  • 25 Apr 2019
  • 67 min read

अध्याय 1: जैव-विविधता क्यों महत्त्वपूर्ण है? (Why bio-diversity is important?)

हमारे जीवन में प्रकृति का महत्त्व

  • मनुष्य प्रकृति में उत्पन्न, विकसित तथा समृद्ध हुआ है। मानव समाज को विकसित होने व संवृद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। यह धारणा कि प्रकृति 'जानने के लिये अच्छी है' तथा आर्थिक विकास को बढ़ाने, नौकरियों के सृजन, औद्यो​गिक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने आदि महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये इसका संरक्षण द्वितीयक है, स्वाभाविक रूप से गलत है।
  • हालाँकि यह धारणा धीरे-धीरे बदल रही है, वैश्विक स्तर पर सरकारें एवं कंपनियाँ प्रकृति के संरक्षण के संबंध में अब अधिक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने पर बल दे रही हैं।

प्रकृति हमारे स्वास्थ्य, धन एवं सुरक्षा के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण

  • दर्द निवारक से लेकर हृदय रोगों के उपचार तथा कैंसर के इलाज से लेकर उच्च रक्तचाप तक सभी चिकित्सकीय उपचार वनस्प​तियों एवं वन्यजीवों से प्राप्त स्रोतों से प्रेरित हैं।
  • हमारी पोषण संबंधी आवश्यकताएँ किसी-न-किसी प्रकार से प्राकृतिक प्रणाली पर निर्भर करती हैं।
  • मीठे जल की आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रकृति महत्त्वपूर्ण है, जो सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियों को मज़बूत बनाती है।
  • हालाँकि यह मान लेना कभी-कभी आसान होता है कि जल सुरक्षा मुख्य रूप से बांधों, जलाशयों, दूषित जल के उपचार कार्यों (Treatment works) तथा वितरण तंत्रों के माध्यम से सुनिश्चित होती है तथा यह प्रकृति के सानिध्य में ही संभव है जो कि ताज़े जल की भरपाई कर सभी आर्थिक गतिविधियों को मज़बूती प्रदान करती है।
  • बढ़ते वैश्विक तापमान के अपरिहार्य परिणामों से निपटने और मानव समाज की मदद करने में प्रकृति आवश्यक भूमिका निभाती है।
  • जैव नकल (Bio-Mimicry) के लिये वन्यजीवों का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है, इंजीनियरों एवं डिज़ाइनरों द्वारा मानव जगत में विद्यमान चुनौतियों का सामना करने के लिये उसी प्राकृतिक प्र​क्रिया का उपयोग किया जा रहा है जिसके माध्यम से प्रकृ​ति का संचालन होता है।

दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के लिये प्रकृति का महत्त्व

प्रकृति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह कच्चा माल, पानी, भोजन, औषधियों की उपलब्धता एवं ऊर्जा से लेकर फसलों के परागण, मिट्टी का निर्माण आदि व्यवस्था के सा​थ बाढ़, तूफान एवं कटाव से सुरक्षा प्रदान करती है।

  • ग्रह की प्राकृतिक प्रणाली कई महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती है जो हर देश में उत्पादन, व्यापार, आजीविका एवं उपभोग को बढ़ावा देती है।
  • हालाँकि प्रकृति को केवल कच्चे माल के आपूर्तिकर्त्ता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इसके सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक तथा धार्मिक महत्त्व को भी मान्यता दी जानी चाहिये।
  • IPBES (जैव-विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच) जैव-विविधता की स्थिति तथा समाज को प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का आकलन करने के लिये वर्ष 2018 में स्थापित एक संगठन है।
  • जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (IPBES) पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच द्वारा किये गए कई आकलनों के अनुसार, संस्कृति लोगों एवं प्रकृति के बीच सभी संबंधों को परिभाषित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
  • IPBES वैचारिक ढाँचा - यह सभी आकलनों तथा संश्लेषणों को मज़बूती प्रदान करता है, इस व्यापक धारणा को लोगों के लिये प्रकृति का योगदान (NCP) नाम दिया गया है।
  • हमारे भोजन के सभी स्रोत किसी-न-किसी तरह से प्राकृतिक प्रणालियों पर निर्भर करते हैं, जिनमें जटिल पारिस्थितिक संबंध होता है जो पौधों के विकास के लिये मिट्टी को मज़बूत​ बनाते हैं।
  • पृथ्वी पर पाई जाने वाली फूलों की लगभग 87% प्रजातियाँ जानवरों द्वारा परागित होती हैं तथा वे फसलें जो आंशिक रूप से पशुओं द्वारा परागित होती हैं, वे वैश्विक स्तर पर 35% उत्पादन के लिये उत्तरदायी हैं।
  • विश्व स्तर पर यह अनुमान लगाया जाता है कि प्रकृति सालाना लगभग 25 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की सेवाएँ प्रदान करती है।
  • हर क्षेत्र में मानव विकास के लिये आवश्यक योगदान के चलते जैव-विविधता एवं प्रकृति की क्षमता में कई सामान्य दबावों के कारण कमी देखने को मिली है -
  • आवसीय तनाव
  • प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक एवं अरक्षणीय (Unsustainable) उपयोग
  • वायु, भूमि तथा जल प्रदूषण
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों की बढ़ती संख्या तथा प्रभाव
  • जलवायु परिवर्तन
  • यहाँ इस बात पर विशेष रूप से गौर करने की अवश्यकता है कि बदलती भूमंडलीय स्थिति मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक व्यवधानों से भी जुड़ी हुई है जिसका प्रभाव हमारी भावी पीढ़ियों की वृद्धि, विकास व समृद्धि पर पड़ेगा।

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द ग्रेट एक्सेलरेशन (The Great Acceleration)

  • ग्रेट एक्सेलरेशन ऊर्जा, भूमि तथा पानी की बढ़ती मांग द्वारा मानव आबादी एवं आर्थिक विकास में अभूतपूर्व भूमंडलीय परिवर्तन के साथ हो रही अद्वितीय घटना है।
  • इस मानवीय परिवर्तन को एक नए भूवैज्ञानिक युग के रूप में देखा जा रहा है, जिसे एन्थ्रोपोसीन (Anthropocene) कहा जाता है।
  • स्वास्थ्य, ज्ञान तथा जीवन-स्तर सुधार तेज़ी से वृद्धि हुई है, लेकिन इन सब के लिये प्राकृतिक प्रणालियों की स्थिरता को एक बड़ी लागत चुकानी पड़ी है।
  • ग्रेट एक्सेलरेशन अब पृथ्वी के वातावरण, बर्फ की चादर, महासागर, जंगलों, भूमि तथा जैव-विविधता पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • इसके कारण पृथ्वी की जैव-विविधता में ह्रास देखा जा रहा है।

अध्याय 2: खतरे एवं दबाव जो हमारी दुनिया को नष्ट कर रहे हैं

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पुरानी एवं नई चुनौतियाँ

  • जैव-विविधता में गिरावट के मुख्य कारकों में प्रजातियों का अत्यधिक दोहन, कृषि एवं भूमि रूपांतरण आदि शमिल हैं।
  • आक्रामक प्रजातियाँ भी जैव-विविधता के लिये निरंतर खतरा बनी हुई हैं, उनका प्रसार व्यापार से संबंधित गतिविधियों (जैसे शिपिंग) पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • प्रदूषण तथा अशांति, जैसे- कृषि प्रदूषण, बांध, आग एवं खनन जैव-विविधता पर दबाव के अतिरिक्त स्रोत हैं।
  • हमारी दुनिया को नष्ट करने में जलवायु परिवर्तन बड़ी भूमिका निभा रहा है तथा इसका पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों एवं उनके आनुवंशिक स्तर पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • वर्ष 1970 के बाद से हमारे पारिस्थितिक पदचिन्ह, जो कि प्राकृतिक संसाधनों के उपभोग का मापक हैं, में लगभग 190 की वृद्धि हुई है।

अनियंत्रित उपभोग

  • पारिस्थितिक तंत्र के स्वयं को नवीनीकृत करने के कौशल को जैव-क्षमता कहा जाता है।
  • जैव सुरक्षा तथा पारिस्थितिक पदचिन्ह संयुक्त रूप से यह निर्धारित करने के लिये आधार प्रदान करते हैं कि पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व है या नहीं।
  • प्रौद्योगिकियों एवं भूमि प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव के कारण जैव-क्षमता में 27% की वृद्धि हुई है।

उपभोग के पारिस्थितिक पदचिन्ह (The Ecological Footprint of consumption)

  • 20वीं सदी की विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि से पहले मानव की उपभोग दर पृथ्वी की पुनःस्थापना (Renewal) दर से बहुत कम थी।
  • प्रचलित आर्थिक मॉडल विकास पर आधारित है, जो बहुत कम संसाधनों की सीमा को ध्यान में रखते हैं लेकिन यह सरलीकरण अब व्यावहारिक नहीं है।
  • पारिस्थितिक पदचिन्ह लेखांकन खाद्य पदार्थों, ईंधन, आवास एवं यातायात मार्ग के निर्माण हेतु आवश्यक साम​​ग्रियों, जीवाश्म ईंधनों आदि के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड सहित अन्य बुनियादी तथा प्रतिस्पर्द्धी मांगों की पूर्ति के लिये प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और मांग को चि​न्हित करता है अर्थात् एक निश्चित समय-सीमा में मानव जाति द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकताओं की पूर्ति और मांग को चिन्हित करने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता है।

इन मांगों में छह क्षेत्र शामिल हैं:-


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उपभोक्ताओं का पर्यावरण पर प्रभाव

  • पर्यावरण पर उत्पादन-संबंधी प्रभावों को गहराई से समझने के लिये आपूर्ति शृंखलाओं (Supply Chains) का मानचित्रण एवं उनकी निगरानी इसलिये की जाती है कि यह पता किया जा सके कि वैश्विक उपभोग पर्यावरणीय प्रभावों को कैसे संचालित करता है।
  • आपूर्ति शृंखला पर्यावरणीय परिवर्तन के प्रेरक बलों के बीच एक कड़ी है, जैसे उपभोग गतिविधियाँ तथा इनके द्वारा डाले गए दबाव (जैसे भूमि उपयोग परिवर्तन), पर्यावरण की स्थिति एवं उस पर पड़े प्रभाव (उदाहरण के लिये प्रजाति हानि)।

तथ्य एवं शर्तें

  • यूरोपीय आयोग के कोपरनिकस सैटेलाइट प्रोग्राम में निहित हाई स्पेशल एंड विशेषता विश्व स्तर पर भूमि आच्छादन में आए बदलाव की निगरानी के लिये अभूतपूर्व क्षमता प्रदान करती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 एवं 2017 में प्रक्षेपित दो Sentinel -2 उपग्रह, 10 मीटर एवं 60 मीटर के बीच के रिज़ॉल्यूशन पर हर पाँच दिन में पृथ्वी की समस्त भू-सतह (ध्रुवों को छोड़कर) का सर्वेक्षण करते हैं।
  • ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है जो वास्तविक समय (Real Time) की जानकारी प्रदान करता है। इसके अंतर्गत दुनिया भर में जंगल कैसे बदल रहे हैं तथा क्या इसमें कंपनियों के लिये आवश्यक क्षमताओं को शामिल किया गया है, ताकि वे अपने उत्पादों में शामिल वस्तुओं के उत्पादन से जुड़े प्रभावों का आकलन कर सकें आदि के विषय में जानकारी प्रदान की जाती है।
  • रॉटरडैम प्रभाव: कुछ सामग्रियों को एक देश में आयात किया जाता है तथा फिर संसाधित या एक जहाज़ से दूसरे में स्थानांतरित किया जाता है, और बाद में निर्यात किया जाता है। यूरोप में रॉटरडैम सबसे व्यस्त बंदरगाह होने के कारण इसे 'रॉटरडैम प्रभाव' के रूप में जाना जाता है, इससे वस्तुओं को उनके वास्तविक मूल स्थान से सही तरीके से जोड़ने में त्रुटियाँ हो सकती हैं।
  • मल्टी-रीजनल इनपुट-आउटपुट (MRIO) मॉडल प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सामग्रियों पर उपभोक्ता निर्भरता का अनुमान लगाने के लिये एक दृष्टिकोण प्रदान करता है। MRIO डेटा-सेट सेक्टरों एवं अर्थव्यवस्थाओं तथा अंतिम उपभोक्ताओं द्वारा किये गए खर्च के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

पसंद एवं परिवर्तन: खपत का प्रभाव

  • जिस तरह से हमारी आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण किया जाता है, निर्माण में जिस सामग्री का उपयोग करते हैं, उन्हें निकाला जाता है या निर्मित किया जाता है तथा हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले उपभोग विकल्पों का हमारे आसपास की दुनिया पर प्रभाव पड़ता है। विभिन्न डेटा सेटों का उपयोग करने से हमें इनका मैप तैयार करने तथा हमारी पसंद के परिणामों को समझने में मदद मिलती है।

नोट

  • भोजन, फाइबर तथा ऊर्जा के उत्पादन या फसल कटाई से जुड़ी मानवीय गतिविधियों का जैव-विविधता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • विभिन्न प्रकार से भूमि उपयोग जंगली एवं पालतू प्रजातियों, निवासों के आकार एवं गुणवत्ता तथा पर्यावरण के निर्जीव (Non-Living) रासायनिक एवं भौतिक भागों के बीच संतुलन को प्रभावित करता है, जो जीवों तथा पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज को प्रभावित करता है।
  • प्रत्यक्ष जैव-विविधता हानि
  • वन भूमि के रूपांतरण में सबसे बड़ा हिस्सा कृषि का है।
  • वन क्षेत्र एवं वनों की गुणवत्ता में कमी पौधों तथा उन क्षेत्रों में निवास करने वाले जानवरों के जीवन को प्रभावित करती है।
  • आवासों का विघटन
  • वन विखंडन के विभिन्न चरण जैव-विविधता संरक्षण तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रावधान के लिये एक बड़ा खतरा है।
  • यह अनुमान है कि दुनिया के 70% वन समूहों में 1 किमी से कम की औसत दूरी के भीतर एक वन किनारा (Forest Edge) पाया जाता है।

नोट:

  • कोर प्रभाव (Edge Effect) जनसंख्या या सामुदायिक संरचनाओं में परिवर्तन को दर्शाता है जो दो या अधिक आवासों की सीमा पर होते हैं।
  • छोटे निवास स्थान वाले क्षेत्र विशेष रूप से स्पष्ट कोर प्रभाव (Edge effect) प्रदर्शित करते हैं जो पूरे क्षेत्र में विस्तारित हो सकते हैं।
  • निवास स्थान की संरचना एवं गुणवत्ता; वन क्षेत्र में पुन: बसाव एवं वन्यजीवों के फैलाव के लिये गलियारों का विघटन; वन सूक्ष्म जलवायु एवं जल विज्ञान आदि के संदर्भ में इसके गहरे निहितार्थ हैं।
  • विखंडन भी लोगों के लिये वनों को अधिक सुलभ बना सकता है, जिससे वन संसाधनों पर दबाव बढ़ सकता है।
  • पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण
  • कीटनाशक, एंटीबायोटिक्स, हार्मोन तथा उर्वरक जैसे संश्लिष्ट कृषि निवेशों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी एवं जलीय जैव-विविधता में गिरावट के साथ जुड़ा हुआ है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों में व्यवधान
  • पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे कि वन, जलवायु परिवर्तन के सबसे तीव्र प्रभावों में से कुछ को कम करने तथा आपदा जोखिमों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जब इस तरह की प्राकृतिक संरचनाएँ विलुप्त हो जाती हैं, तो लोग प्राकृतिक खतरों जैसे-बाढ़, तूफान एवं भूस्खलन से प्रभावित होते हैं तथा नए क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं एवं अन्य क्षेत्रों में बसने लगते हैं जिससे प्रकृति तथा जैव-विविधता को नुकसान होता है।
  • कीटनाशकों का उपयोग करने से परागण की संख्या एवं कार्य-निष्पादन में अत्यधिक गिरावट आती है, जो कृषि उत्पादकता को कम करता है।
  • पृथ्वी पर पाई जाने वाली फूलों की लगभग 87% प्रजातियाँ जानवरों द्वारा परागित होती हैं तथा वे फसलें जो आंशिक रूप से पशुओं द्वारा परागित होती हैं, वैश्विक स्तर पर 35% उत्पादन के लिये उत्तरदायी हैं।
  • मिट्टी में जीवों की प्रचुरता और / या जीवों की समृद्धि पर मानव गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से भूमि-उपयोग परिवर्तन और कृषि गहनता के नकारात्मक प्रभावों के माध्यम से।
  • मृदा जैव-विविधता खाद्य उत्पादन को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रदूषित मिट्टी में से रासायनिक तत्त्वों के असर को कम करती है, मिट्टी जनित बीमारियों को समाप्त करती है तथा भोजन की पोषण गुणवत्ता में योगदान देती है।

भूमि अवक्रमण (Degradation)

  • जैव-विविधता एवं मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करने के कारण भूमि की क्षमता में लगातार कमी को भूमि अवक्रमण कहते हैं।
  • इसमें मिट्टी की क्षति; निवास स्थान एवं जल विज्ञान संबंधी कार्यों की हानि; वनों की कटाई; अत्यधिक चराई एवं झाड़ियों का अतिक्रमण तथा आर्द्रभूमि में जल निकासी एवं सुपोषण (Eutrophication) शामिल हैं।
  • मार्च 2018 में IPBES ने अपने नवीनतम भूमि अवक्रमण एवं पुनर्स्थापन मूल्यांकन (LDRA) जारी किया जिसमें कहा गया कि पृथ्वी पर केवल एक-चौथाई भूमि मानव गतिविधियों के प्रभाव से कुछ हद तक मुक्त है।
  • वर्ष 2050 तक यह अंश घटकर महज दसवें भाग तक आने का अनुमान है। आर्द्रभूमियाँ सबसे अधिक प्रभावित श्रेणी में हैं, इन्होंने आधुनिक युग में अपने क्षेत्र का 87% हिस्सा खो दिया है।
  • भूमि क्षरण के तात्कालिक कारण आमतौर पर स्थानीय होते हैं लेकिन प्रमुख कारक पारिस्थितिकी तंत्र से प्राप्त होने वाले उत्पादों की बढ़ती मांग है।
  • भूमि क्षरण का गरीबी, संघर्ष एवं लोगों के प्रवास के साथ एक जटिल संबंध है।
  • निवास स्थान की हानि दुनिया भर में ह्रासोन्मुख स्थलीय जैव-विविधता का प्रमुख कारक है तथा वैश्विक जलवायु परिवर्तन में भूमि क्षरण का बड़ा योगदान है।

भूमि अवक्रमण (Degradation) को रोकना लंबे समय तक इसकी अनुमति देने तथा फिर बाद में प्रभावों एवं पुनःस्थापन के लिये भुगतान करने की तुलना में बहुत सस्ता है।

परागणकारी (Pollinators)

  • अधिकांश पौधों के फूल कीटों एवं अन्य जानवरों द्वारा परागित होते हैं।
  • परागणक के विविध समूह हैं, जिनमें मधुमक्खियों की 20,000 से अधिक प्रजातियाँ, कई अन्य प्रकार के कीट (जैसे मक्खियाँ, तितलियाँ, पतंगे, ततैया एवं भृंग) तथा यहाँ तक कि कुछ पक्षी एवं चमगादड़ जैसे कशेरुकी भी शामिल हैं।
  • प्रमुख वैश्विक खाद्य फसलों का 75% से अधिक भाग परागण से लाभान्वित होता है। इनमें से कुछ मानव पोषण के प्रमुख स्रोत हैं।
  • कृषि गहनता (Intensification) एवं शहरी विस्तार के कारण भूमि उपयोग में परिवर्तन परागण हानि के प्रमुख कारकों में से एक है।
  • परिदृश्य के भीतर आवास विविधता में सुधार तथा भूमि प्रबंधन योजनाओं के भीतर गैर-कृषि आवासों को शामिल करने, परागणक नुकसान को कम करने, परागण संख्या को बढ़ावा देने तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
  • परागणकों का इनकी बहुतायत, विविधता एवं स्वास्थ्य पर कई अन्य कारकों जैसे कि जलवायु, आक्रामक प्रजातियों तथा उभरती बीमारियों एवं रोगजनकों से भी खतरा है।

मिट्टी में क्या खास है?

  • मृदा जैव-विविधता सूक्ष्मजीवों (जो केवल सूक्ष्मदर्शी से दिखाई देते हैं, जैसे- कवक एवं बैक्टीरिया) को शामिल करती है।
  • ये जीव मृदा की भौतिक एवं रासायनिक संरचना को प्रभावित करते हैं।
  • वे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र प्रक्रियाओं जैसे- कार्बन प्रच्छादन (Sequestration), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा पौधों में पोषक तत्त्वों की वृद्धि एवं उन्हें विनियमित करने के लिये आवश्यक हैं।
  • वे संभावित चिकित्सा अनुप्रयोगों (Applications) के साथ-साथ रोगजनकों एवं कीटों पर जैविक नियंत्रण के लिये एक भंडार की तरह कार्य करते हैं।
  • वैश्विक मृदा जैव-विविधता एटलस (Global Soil Biodiversity Atlas)
  • हाल ही में प्रकाशित वैश्विक मृदा जैव-विविधता एटलस ने दुनिया भर में पहली बार मिट्टी की जैव-विविधता के लिये संभावित खतरों को रेखांकित किया है।
  • इसने मिट्टी में जीवों के आठ संभावित दबावों को मिलाकर एक जोखिम सूचकांक तैयार किया, ये हैं- ऊपरी ज़मीनी विविधता, प्रदूषण एवं पोषक तत्त्वों का अतिभार, अत्यधिक चराई, गहन कृषि, आग, भू-क्षरण, मरुस्थलीकरण तथा जलवायु परिवर्तन के नुकसान।

लोगों एवं प्रकृति के लिये जंगलों का महत्त्व

वन सबसे समृद्ध पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। उष्णकटिबंधीय, समशीतोष्ण और बोरियल वन पृथ्वी के लगभग 30% भूमि क्षेत्र को आच्छादित करते हैं और वे सभी जानवरों, पौधों एवं कीड़ों की 80% से अधिक प्रजातियों के लिये निवास स्थान उपलब्ध करते हैं।

  • पुनर्वनीकरण तथा नए जंगलों की स्थापना, साथ-ही-साथ वन रूपांतरण को कम करने के लिये नीति एवं नियामक प्रयासों के कारण वन क्षेत्र की शुद्ध हानि दर में कमी आई है।
  • हालाँकि वन क्षेत्र की हानि उष्णकटिबंधीय जंगलों में बहुत अधिक होती है, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका, उप-सहारा अफ्रीका एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में। यहाँ कृषि, निर्वाह खेती (Subsistence Farming) तथा शहरी विकास के लिये जंगलों की कटाई की जाती है।
  • वनों की सुभेद्यता को मापने के एक तरीके के रूप में वन किनारों के साथ निकटता का उपयोग करना दर्शाता है कि दुनिया के 60-70% जंगलों में मानव गतिविधियों, परिवर्तित सूक्ष्म जलवायु तथा आक्रामक प्रजातियों के नकारात्मक प्रभावों का खतरा बना रहता है।
  • छोटे एवं बड़े पैमाने पर की जाने वाली कृषि, फाइबर एवं ईंधन के साथ-साथ भोजन की बढ़ती मांग के कारण, वनों पर दबाव जारी रहने की संभावना है।
  • चूँकि बढ़ी हुई खाद्य आपूर्ति का एक हिस्सा मौजूदा कृषि भूमि में बढ़ती पैदावार से प्राप्त होगा, फिर भी अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होगी।
  • इससे उष्णकटिबंधीय वनों पर दबाव और बढ़ेगा, इस प्रकार जैव-विविधता संरक्षण के लिये प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर भी तब तक खतरा बना रहेगा, जब तक कि उन लाभों को प्रदान करने के लिये जंगलों को कैसे मूल्यवान बनाया जाए, इस संबंध में कोई मौलिक बदलाव नहीं किया जाता है।
  • उदाहरण के लिये जानवरों हेतु आवास एवं लोगों को आजीविका प्रदान करने के अलावा, जंगल जलसंभरण संरक्षण (Watershed Protection) भी प्रदान करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं तथा जलवायु परिवर्तन में कमी करते हैं।

सजीव-वन रिपोर्ट शृंखला (Living Forests Report Series)

पाँच सजीव-वन रिपोर्टों की एक शृंखला में WWF ने वर्ष 2010 एवं वर्ष 2030 के बीच वनों की कटाई के लिये सबसे कमज़ोर वन क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है; रिपोर्ट में 11 वन-कटाई क्षेत्रों की पहचान की गई है।

  • सजीव-वन रिपोर्ट भागीदारों, नीति निर्माताओं और व्यवसायों के साथ चल रहे संवाद का हिस्सा है, जो 21वीं सदी में दुनिया के वनों की रक्षा, संरक्षण, निरंतर उपयोग करने तथा उन्हें संचालित करने के तरीके के बारे में बताती है।
  • इसे WWF द्वारा तैयार किया गया है।

ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्ष 2010 एवं वर्ष 2030 के बीच समान-व्यापार परिदृश्यों एवं नुकसान को रोकने के लिये बिना किसी हस्तक्षेप के वन हानि या गंभीर क्षरण पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

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मानवता के लिये महत्त्वपूर्ण महासागर पर्यावासों का तीव्र पतन (Ocean habitats vital to humanity in steep decline)

  • समुद्र के सबसे अधिक उत्पादक एवं प्रजाति-समृद्ध निवास स्थान जैसे- प्रवाल भित्ति, मैंग्रोव तथा समुद्री घास के कुछ हिस्सों का तेज़ी से हो रहा क्षय करोड़ों लोगों के स्वास्थ के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण भी एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है। प्लास्टिक मलबा दुनिया के सभी प्रमुख समुद्रों में पाया गया है, यह समुद्र के सबसे गहरे हिस्सों में तटरेखा एवं सतह के जल से लेकर मारियाना ट्रेंच के तल पर भी पाया जाता है।
  • लाखों लोग आजीविका, नौकरी एवं भोजन तथा तटीय एवं समुद्री वातावरण से प्राप्त होने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये महासागरों पर निर्भर हैं। लगभग 200 मिलियन लोग तूफानी लहरों तथा समुद्री लहरों से बचने के लिये प्रवाल भित्तियों पर निर्भर हैं।

समुद्री स्वास्थ्य एवं उत्पादकता को मज़बूत करने वाले प्रमुख निवासों (Habitats) का तीव्रता से पतन हो रहा है:

  • प्रवाल भित्ति एक-चौथाई से अधिक समुद्री जीवन का भरण-पोषण करती है, लेकिन दुनिया ने केवल 30 वर्षों में ही छिछले पानी की प्रवाल भित्तियों के लगभग आधे हिस्से को समाप्त कर दिया है। यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है तो दुनिया की 90% प्रवाल भित्तियाँ मध्य शताब्दी तक विलुप्त हो सकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हो रहे ऊष्णकटिबंधीय समुद्र अभूतपूर्व स्तर तक प्रवाल भित्तियों का विरंजन (Bleached), उन्हें क्षतिग्रस्त तथा समाप्त कर रहे हैं। लंबे समय से बढ़ती गर्मी के कारण तेज़ी से बढ़ने वाली प्रवाल प्रजातियाँ समाप्त हो रही हैं तथा इनकी जगह धीमी गति से बढ़ने वाले समूहों ने ले ली है, जो समुद्री जीवों को आश्रय देने में सक्षम नहीं है।
  • प्रवाल भित्तियों के लिये अन्य खतरों में अत्यधिक मछली पकड़ना, कुछ विशेष प्रकार की चिन्हित मछलियों को पकड़ना तथा मछली पकड़ने की विनाशकारी प्रथाएँ शामिल हैं, साथ ही अपवाहित प्रदूषण जो कि जल को दूषित करता है, प्रवाल के स्वास्थ्य को संकट में डालता है।
  • मैंग्रोव कई उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संपदा है, जो कई लाख तटीय क्षेत्र के परिवारों को आजीविका प्रदान करते हैं तथा उन्हें हिंसक तूफानों एवं तटीय कटाव से बचाते हैं।
  • वे उष्णकटिबंधीय जंगलों की तुलना में लगभग पाँच गुना अधिक कार्बन प्रच्छादन (Sequestration) करते हैं तथा असंख्य छोटी मछली प्रजातियों का संवर्द्धन करते हैं जो वहाँ बढ़ने के बाद व्यापक महासागर पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं।
  • विकास के लिये वनों की कटाई के साथ-साथ उनका अत्यधिक दोहन (Over Exploitation) एवं मत्स्य पालन के कारण पिछले 50 वर्षों में मैंग्रोव की मात्रा में 30% से 50% तक की गिरावट आई है।
  • समुद्री घासें महत्त्वपूर्ण तटीय पारिस्थितिक तंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं जो आवास सुविधा सहित वाणिज्यिक एवं निर्वाह हेतु मत्स्य पालन, पोषक चक्रण, तलछट स्थिरीकरण तथा कार्बन की वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण क्रमबद्धता का समर्थन करने जैसे लाभ प्रदान करती हैं।
  • उन्हें प्रत्यक्ष रूप से मछली पकड़ने की हानिकारक प्रथाओं, नाव के प्रोपेलरों, तटीय इंजीनियरिंग, चक्रवात, सूनामी एवं जलवायु परिवर्तन तथा अप्रत्यक्ष रूप से भूमि बहाव की वज़ह से जल की गुणवत्ता में बदलाव के कारण खतरा है। वर्ष 1980 के बाद से 110 किलोमीटर2 प्रतिवर्ष की दर से समुद्री घास गायब हो रही है।

समुद्र में प्लास्टिक

  • समुद्री मलबे में प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़ों से लेकर बड़े अपशिष्ट पदार्थ जिसमें बैग, सिगरेट फिल्टर आदि शामिल हैं, प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे अधिक दिखाई देने वाला रूप है।
  • दुनिया भर के सभी प्रमुख समुद्रों में प्लास्टिक मलबा पाया जाता है, यह तटरेखा एवं सतह के जल के नीचे से लेकर समुद्र के गहरे भागों तक, यहाँ तक कि मारियाना ट्रेंच के तल में भी पाए जाता है।
  • वर्ष 1960 के केवल 5% की तुलना में आज विश्व में 90% समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं।
  • इसका प्रभाव हिन्द, प्रशांत एवं अटलांटिक महासागरों की दक्षिणी सीमा पर सबसे अधिक पाया गया है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो अपेक्षाकृत सबसे पुराना माना जाता है।

हमारे जीवन के स्रोतों पर खतरा एवं दबाव

ताज़े पानी के पारिस्थितिक तंत्र में समुद्री एवं स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र में अनुपातिक रूप से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यद्यपि वे पृथ्वी की सतह का 1% से कम क्षेत्र आच्छादित करती हैं लेकिन ताज़े पानी के आवास 10% से अधिक ज्ञात जानवरों तथा लगभग सभी ज्ञात कशेरुकी प्रजातियों के एक-तिहाई संख्या के लिये निवास स्थान के रूप में हैं।

  • ताज़े पानी के निवास स्थान जैसे- झीलें, नदियाँ एवं आर्द्रभूमि आदि सभी मनुष्यों के लिये जीवन का स्रोत हैं तथा उच्च आर्थिक मूल्य दर्शाते हैं।
  • वे निवास स्थान रूपांतरण, विखंडन एवं विनाश; आक्रमणकारी प्रजातियों; अत्यधिक मत्स्यन; प्रदूषण; वानिकी प्रथाओं; रोग तथा जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं।
  • कई मामलों में इन खतरों के कारण ताज़े पानी की जैव-विविधता में तेज़ी से गिरावट आ रही है।
  • विश्व स्तर पर आर्द्रभूमि सीमा क्षेत्र वर्ष 1900 के बाद 50% से अधिक घटने का अनुमान है।

स्वस्थ ताज़े पानी की पारिस्थितिकी प्रणालियों का महत्त्व (The Importance of Healthy Freshwater Ecosystem)

  • ताज़े पानी के पारिस्थितिकी तंत्र खतरे के बढ़ते स्तर को दर्शाते हैं तथा मीठे पानी की प्रजातियों के लिये यह बदलाव चिंताजनक है।
  • ताज़े पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वास्थ्य के लिये पानी की गुणवत्ता एवं मात्रा, प्रणाली के अन्य भागों से संपर्क एवं परिदृश्य, निवास स्थान की स्थिति तथा पौधे एवं पशु प्रजातियों की विविधता के आधार पर परिभाषित किया गया है।
  • सुपोषण (पानी में पोषक तत्वों की अधिकता या वृद्धि) तथा विषाक्त प्रदूषण जल की गुणवत्ता में गिरावट के प्रमुख स्रोत हैं।
  • जलवायु परिवर्तन मौजूदा तनावों को बढ़ा रहा है तथा यह जल की समय पर उपलब्धता एवं तापमान में परिवर्तन के कारण ताज़े पानी के आवासों तथा ताज़े पानी की प्रजातियों के जीवन को प्रभावित करता है।

संबद्ध होकर बहने वाली नदियाँ: (Connected, Flowing Rivers:) ताज़े पानी के पारिस्थितिक तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण

  • नदी प्रणाली, बाढ़ के मैदान एवं डेल्टा, पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव-विविधता वाले तथा उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं।
  • वे दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रोटीन का प्राथमिक स्रोत प्रदान करते हैं। इन आर्थिक और पारिस्थितिकीय लाभों को बनाए रखने के लिये नदियों की प्रमुख विशेषताओं तथा प्रक्रियाओं को बनाए रखना आवश्यक है।
  • जब नदी प्राकृतिक संपर्क एवं प्रवाह को बनाए रखती है तो उसे नदी का 'मुक्त-प्रवाह' (Free Flowing) कहा जाता है।
  • बुनियादी ढाँचों का विकास - विशेष रूप से बांधों के निर्माण के कारण मुक्त प्रवाह वाली नदियों की संख्या में नाटकीय ढंग से गिरावट आई है।
  • यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जो भी बांध बनाए जाते हैं वे यथासंभव पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये स्थापित एवं डिज़ाइन किये गए हों।
  • नदी संरक्षण विभिन्न कानूनी एवं नीति तंत्रों के माध्यम से भी हो सकता है।
  • वर्ष 2018 में प्रकाशित ब्रिसबेन डिक्लेरेशन एंड ग्लोबल एक्शन एजेंडा ऑन एन्वायरनमेंटल फ्लो, कानून एवं विनियमन, जल प्रबंधन कार्यक्रमों तथा अनुसंधान के माध्यम से पर्यावरणीय प्रवाह के व्यापक कार्यान्वयन के माध्यम से सरकारों एवं हितधारकों के लिये एक स्पष्ट आह्वान है, जो विभिन्न हितधारकों को शामिल करने वाली साझेदारी व्यवस्था से जुड़ा हुआ है।

लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) के अनुसार खतरे

LPI - जैव-विविधता के लिये खतरा

  • आवास की हानि और क्षरण
  • यह पर्यावरण में परिवर्तन को संदर्भित करता है जहाँ एक प्रजाति, प्रमुख निवास स्थान की गुणवत्ता में पूर्णतः गिरावट, विखंडन के बाद भी उसमें निवास करती है। इसके सामान्य कारण हैं- अस्थिर कृषि, लॉगिंग (Logging), परिवहन, नदियों के प्रवाह में परिवर्तन आदि।
  • प्रजातियों का अत्यधिक दोहन: अत्यधिक दोहन के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप होते हैं-
  • प्रत्यक्ष अत्यधिक दोहन अरक्षणीय (Unsustainable) शिकार एवं अवैध शिकार या दोहन को संदर्भित करता है।
  • अप्रत्यक्ष अत्यधिक दोहन तब होता है जब गैर-लक्षित प्रजातियों को अनायास ही मार दिया जाता है, उदाहरण के लिये मछली पकड़ने के दौरान अन्य प्रजातियों का जाल में फँसना।
  • प्रदूषण
  • प्रदूषण, पर्यावरण में किसी प्रजाति के अस्तित्व को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर सकता है। यह खाद्य उपलब्धता या प्रजनन निष्पादन को प्रभावित करके अप्रत्यक्ष रूप से भी किसी प्रजाति को प्रभावित कर सकता है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ एवं बीमारी
  • आक्रामक प्रजातियाँ स्थान, भोजन तथा अन्य संसाधनों के लिये देशी प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, वे ऐसे शिकारी हो सकते हैं या बीमारियाँ फैला सकते हैं जो पहले इस पर्यावरण में मौजूद नहीं थीं।
  • जलवायु परिवर्तन
  • प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अक्सर अप्रत्यक्ष होता है। तापमान में परिवर्तन उन संकेतों को उलझा सकता है जो मौसमी घटनाओं जैसे प्रवास एवं प्रजनन को बढ़ावा देते हैं, जिसके कारण ये घटनाएँ गलत समय पर होती हैं।

दुनिया भर में LPI आबादी के लिये खतरा

  • वैश्विक LPI में सभी ताज़े पानी एवं स्थलीय आबादी को पाँच प्रमुख बायोग्राफिक क्षेत्रों में से एक में रखा गया है, जो विभिन्न प्रजातियों के समूहों से बना विशेषता वाला क्षेत्र है।

biogeographic

  • इससे हम बेहतर ढंग से समझ सकते है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जैव-विविधता कैसे बदल रही है तथा हमें यह जानने में मदद मिलती है कि क्या विभिन्न स्थानीय खतरे इन परिवर्तनों के वाहक हैं।

प्रत्येक क्षेत्र की आबादी तीन अलग-अलग खतरों से जुड़ी हो सकती है। पर्यावास, क्षरण एवं लगातार हानि ये सभी स्थानों में सबसे बड़े खतरे हैं; लेकिन स्थानों एवं वर्गीकृत समूहों के बीच कुछ भिन्नताएँ हैं।

भूमंडलीय सीमाएँ

  • क्षेत्र अध्ययन (Field Studies) मॉडल्स, पृथ्वी का अवलोकन तथा भूवैज्ञानिक साक्ष्यों का उपयोग; वैश्विक परिवर्तन, परिवर्तन के लिये अनुकूल जीवों की क्षमता तथा अनुकूलन विफल होने पर प्रणालीगत (Systemic) जोखिमों को समझने के लिये किया गया है।
  • भूमंडलीय सीमाओं की अवधारणा मानव-चालित परिवर्तनों की जानकारी देने के लिये पृथ्वी प्रणाली के परिप्रेक्ष्य का उपयोग करने का एक प्रयास है। यह अवधारणा बताती है कि दुनिया के समाजों को पृथ्वी प्रणाली प्रक्रियाओं से दृढ़ता से जुडी हुई मानव जनित गड़बड़ियों की सीमाएँ निर्धारित करने की आवश्यकता है।
  • यह पहले से ही हमारे उपभोग एवं उत्पादन के पैटर्न के माध्यम से पृथ्वी प्रणाली के साथ मानव हस्तक्षेप के जोखिमों को दर्शाने के लिये एक उपयोगी एकीकृत ढाँचा है। यह संकटमय पृथ्वी प्रणाली प्रक्रियाओं के लिये एक सुरक्षित क्षेत्र का विचार प्रस्तुत करता है।
  • भूमंडलीय सीमाओं की रूपरेखा नौ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालती है जहाँ मानव गतिविधियाँ सुरक्षित परिचालन स्थानों को कम कर रही हैं:
  • जैव-मंडल अखंडता की हानि (पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव-विविधता का विनाश)
  • जलवायु परिवर्तन
  • महासागर अम्लीकरण
  • भूमि व्यवस्था परिवर्तन
  • ताज़े पानी का विवेकपूर्ण उपयोग
  • जैव रासायनिक प्रवाह (जैवमंडल में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस का निवेश) की गड़बड़ी
  • वायुमंडलीय एरोसोल का परिवर्तन
  • नई संस्थाओं द्वारा प्रदूषण
  • समतापमंडलीय ओज़ोन का अवक्षय (Depletion)
  • लोगों ने पहले से ही कम-से-कम चार प्रणालियों को सु​रक्षित कार्य करने की सीमा से परे धकेल दिया है जैव-मंडल अखंडता, भूमि प्रणाली परिवर्तन, जैव भू-रासायनिक प्रवाह एवं ताज़े पानी का उपयोग।
  • जैवमंडल अखंडता, पृथ्वी प्रणाली की स्थिति के निर्धारण, संसाधनों के प्रवाह को विनयमित करने, ऊर्जा संतुलन तथा जलवायु में अचानक एवं क्रमिक परिवर्तन की प्रतिक्रियाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल अन्य ग्रहों की सीमा श्रेणियों के साथ अंत:क्रिया करती है, बल्कि पृथ्वी प्रणाली के समग्र लचीलेपन को भी बनाए रखती है।

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  • हमारी बदलती हुई जलवायु पृथ्वी प्रणाली को कई तरह से प्रभावित करेगी क्योंकि जलवायु उन तरीकों को प्रभावित करती है जो भूमि एवं जल के नीचे के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं तथा एक-दूसरे से अंत:क्रिया करते हैं।

अध्याय 3: बदलती दुनिया में जैव-विविधता

जनसंख्या संकेतक: लिविंग प्लैनेट इंडेक्स

  • लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) वैश्विक जैव-विविधता की स्थिति तथा हमारे ग्रह के स्वास्थ्य का एक संकेतक है।
  • वर्ष 1998 से प्रकाशित यह दुनिया भर में हज़ारों स्तनधारियों, पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों तथा उभयचरों की आबादी की बहुलता पर नज़र रखता है।
  • प्रजातियों की जनसंख्या का एक​​​त्रित किया जाने वाला डेटा वैश्विक सूचकांक में उपयोग किया जाता है। साथ ही प्रजातियों के अलग-अलग समूहों के आधार पर अधिक विशिष्ट जैव-भौगोलिक क्षेत्रों के लिये सूचकांकों को स्थानों के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • 2018 के सूचकांकों में वर्ष 1970 से वर्ष 2014 तक के आँकड़े शामिल हैं।
  • वैश्विक सूचकांक की गणना सभी प्रजातियों एवं क्षेत्रों के उपलब्ध आँकड़ों का उपयोग करके की जाती है, जो वर्ष 1970 एवं वर्ष 2014 के बीच कशेरुकी आबादी की संख्या में 60% की गिरावट को दर्शाता है, दूसरे शब्दों में 50 से कम वर्षों में आधे से अधिक की औसत गिरावट।
  • लिविंग प्लैनेट इंडिसेस - चाहे ग्लोबल इंडेक्स हो या एक विशिष्ट क्षेत्र या प्रजाति समूह के लिये इंडेक्स, यह प्रजाति की आबादी के एक समूह में समय के साथ परिवर्तन की औसत दर को दर्शाता है।

रेल्म लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Realm Living Planet Index)

  • सभी क्षेत्रों की आबादी में गिरावट आ रही है, लेकिन यह गिरावट तीन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में विशेष रूप से दर्ज़ की गई है। LPI यह दर्शाता है कि दक्षिण एवं मध्य अमेरिका तथा कैरिबियन को आच्छादित करने वाले नवोष्ण-कटिबंधीय (Neotropical) क्षेत्र को वर्ष1970 की तुलना में वर्ष 2018 में 89% गिरावट का सामना करना पड़ा है। 23% एवं 31% की गिरावट के साथ निआर्कटिक तथा पैलिआर्क​टिक आबादी की स्थिति थोड़ी बेहतर है।

फ्रेशवॉटर लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Freshwater Living Planet Index)

  • मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की सतह के 1% से कम क्षेत्र को आच्छादित करते है, इसके बावजूद मछलियों, मोलस्क, सरीसृप, कीटों, पौधों एवं स्तनधारियों की लगभग 10 ज्ञात प्रजातियों में से 1 जो यहाँ पाई जाती है को आवास प्रदान करते हैं।
  • ये पारिस्थितिकी तंत्र आवासीय संशोधन, विखंडन एवं विनाश; आक्रमणकारी प्रजातियाँ; अत्यधिक मत्स्यन; प्रदूषण; वानिकी प्रथाओं; रोगों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

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  • ताज़े पानी के LPI में वर्ष 1970 के बाद से प्रतिवर्ष 4% की दर के बराबर यानी 83% की गिरावट देखी गई है। सबसे बड़ी गिरावट निओट्रोपिक्स (-94%), इंडो-पैसिफिक (-82%) और एफ्रोट्रोपिक्स (-75%) में देखी गई है, विशेष रूप से सरीसृप एवं उभयचर तथा मछलियों में।

विभिन्न जैव-विविधता संकेतक, एक ही कहानी

  • जैव-विविधता को अक्सर 'जीवन की वेब' (Web of Life) के रूप में उल्लिखित किया जाता है। यह सभी जीवित जीवों की विविधता जैसे - पौधों, जानवरों एवं सूक्ष्म जीवों तथा पारिस्थितिक तंत्र का एक हिस्सा है।
  • यह प्रजातियों के भीतर एवं प्रजातियों के बीच विविधता को शामिल करती है तथा किसी भी भौगोलिक पैमाने का उल्लेख कर सकती है - एक छोटे अध्ययन क्षेत्र से पूरे ग्रह तक।
  • जैव-विविधता वर्तमान समय में प्राकृतिक प्रक्रियाओं की तुलना में मनुष्यों की गतिविधियों के कारण देखी जा रही है।
  • प्रजातियाँ और हमारे आस-पास की प्राकृतिक प्रणालियाँ, विभिन्न प्रकार के मानवीय दबावों और संरक्षण हस्तक्षेपों पर प्रतिक्रियाएँ देती हैं तथा इन सभी परिवर्तनों को समझने के लिये कोई एक उपाय नहीं है।
  • इसलिये जैव-विविधता परिवर्तन को समझने एवं जैव-विविधता लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को रेखांकित करने तथा प्रभावी संरक्षण कार्यक्रमों को तैयार करने के लिये विभिन्न मैट्रिक्स एवं संकेतकों की आवश्यकता है।

जनसंख्या-आधारित लिविंग प्लैनेट इंडेक्स को बेहतर करने तथा उन रुझानों, जो कि इसे व्यापक संदर्भ में मापते हैं, को शामिल करने के लिये रिपोर्ट में तीन अन्य जैव-विविधता संकेतकों का अवलोकन शामिल है: प्रजाति निवास स्थान सूचकांक, IUCN रेड लिस्ट इंडेक्स तथा बायोडायवर्सिटी इंटेक्टनेस इंडेक्स।

वितरण: प्रजाति आवास सूचकांक (The Species Habitat Index)

  • प्रजाति निवास स्थान सूचकांक, प्रत्येक प्रजाति के लिये उपलब्ध उपयुक्त निवास स्थान के मापन का एक समग्र पैमाना है, जो अतीत एवं संभावित भविष्य की जैव-विविधता परिवर्तन की एक समृद्ध तस्वीर तैयार करने में मदद करता है।
  • यह सूचकांक प्रजातियों की श्रेणियों में परिवर्तन को दर्शाता है तथा प्रजातियों के लिये आवास की प्राथमिकता, आवासों के विखंडन एवं जलवायु परिवर्तन के बारे में जानकारी को इकट्ठा करता है।
  • जब प्रजातियों के वितरण एवं निवास स्थान के उपयुक्त मॉडल का एक साथ उपयोग किया जाता है तो अतीत तथा भविष्य दोनों में प्रजातियों के निवास स्थान के नुकसान एवं जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव का अनुमान लगा सकते हैं।
  • प्रजाति हैबिटैट इंडेक्स में स्तनधा​रियों के समग्र रुझान में वर्ष 1970 से वर्ष 2010 तक 22% की गिरावट आई है, कैरिबियन में सबसे बड़ी गिरावट (> 60%) के साथ।
  • 25% से अधिक की गिरावट वाले अन्य क्षेत्रों में मध्य अमेरिका, उत्तर-पूर्व एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका शामिल थे।

विलुप्ति का खतरा: संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट (Extinction Risk: The IUCN Red list of Threatened Species)

  • जीवन-काल से मौजूद लक्षणों, जनसंख्या का आकार एवं वितरण तथा संरचना की जानकारी और समय के साथ उनमें आने वाले परिवर्तनों का उपयोग कर संबंधित आँकड़ों का संग्रहण किया जाता है, जिनका उपयोग रेड लिस्ट आकलनकर्त्ताओं द्वारा प्रजातियों को आठ श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिये किया जाता है।
  • ये हैं- विलुप्त; जंगलों में विलुप्त; गंभीर रूप से विलुप्तप्राय; विलुप्तप्राय; अतिसंवेदनशील; लगभग संकट में, कम-से-कम चिंता या डेटा की कमी। (Extinct, Extinct in the wild. Critically Endangered, Endanngered, Vulnerable, Near threatened. Least concern or Data Deficient)

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  • एक (1-0) लाल सूची सूचकांक मूल्य, कम-से-कम चिंता वाले प्रजातियों (Least concern) के रूप में अहर्ता प्राप्त करने वाले समूह के भीतर सभी प्रजातियों के बराबर है। 0 सूचकांक मूल्य विलुप्त (Extinct) होने वाली सभी प्रजातियों के बराबर है।
  • वर्तमान में लाल सूची सूचकांक पाँच वर्ग समूहों के लिये उपलब्ध है जिसमें सभी प्रजातियों का कम-से-कम दो बार मूल्यांकन किया जाता है: पक्षी, स्तनधारी, उभयचर, प्रवाल भित्ति एवं साइकैड (Cycads)।
  • सभी समूहों के लिये वर्तमान सूचकांक मूल्य गिरावट प्रदर्शित करता है, जो यह दर्शाता है कि प्रजातियाँ अधिक तेज़ी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं।

संरचना: जैव-विविधता अखंडता सूचकांक (The Biodiversity Intactness Index: BII)

  • जैव-विविधता अखंडता सूचकांक (BII) यह अनुमान प्रदान करता है कि किसी क्षेत्र में मूल रूप से वर्तमान में जैव-विविधता का कितना हिस्सा बचा हुआ है, अगर यह सापेक्ष क्षेत्र अभी भी प्राथमिक वनस्पति से आच्छादित है तो क्या न्यूनतम मानव दबाव का सामना कर रहा है।
  • यह सूचकांक 100-0% के बीच होता है, अगर 100 होता है तो यह कम या बिना किसी मानव पदचिह्न (Human Footprint) के अबाधित या प्राचीन प्राकृतिक वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है।
  • हालिया वैश्विक अनुमान बताते हैं कि BII वर्ष 1970 में 81.6% से गिरकर वर्ष 2014 में 78.6% हो गया है।
  • प्रतिरूप (मॉडल) जो उष्णकटिबंधीय (Tropical) तथा उपोष्णकटिबंधीय (Subtropical) वन बायोम पर ध्यान केंद्रित करते हैं, Finer-Scale भूमि-उपयोग डेटा का उपयोग करते हैं, जो दर्शाता है कि उनका BII कम है एवं तेज़ी से घट रहा है जैसे- वर्ष 2001 के 57.3% से घटकर वर्ष 2012 में 54.9%।

अध्याय 4: उच्चतर लक्ष्य: हम क्या भविष्य चाहते हैं?

जैव-विविधता हानि के वक्र को मोड़ना

  • जैव-विविधता को 'अवसंरचना' के रूप में वर्णित किया गया है जो पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन को समर्थन देती है।
  • प्राकृतिक प्रणालियाँ एवं जैव रासायनिक चक्र जो कि जैविक विविधता उत्पन्न करते हैं, वे हमारे वातावरण, महासागरों, जंगलों, परिेदृश्यों (Landscapes) तथा जलमार्गों के स्थिर कार्यकलाप की अनुमति देते हैं।
  • वर्ष 1992 में वैश्विक समुदाय एक साथ आया तथा प्राकृतिक दुनिया के महत्त्व को देखते हुए सामूहिक रूप से उसकी रक्षा की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने पर सहमत हुआ।

जैविक विविधता पर सम्मेलन (CBD) तथा आइची लक्ष्य [The Convention on Biological Diversity (CBD) and the Aichi Targets]

  • इसकी शुरुआत वर्ष 1992 रियो पृथ्वी सम्मेलन से हुई।
  • जैविक विविधता के संरक्षण एवं वहनीय (Sustainable) उपयोग पर पहला वैश्विक समझौता।
  • यह वर्ष 1993 में लागू हुआ।
  • CBD सामान्य दायित्वों के साथ समग्र लक्ष्य एवं नीतियाँ निर्धारित करता है, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की ज़िम्मेदारी काफी हद तक देशों की स्वयं की है।

दीर्घकालिक विज़न: “वर्ष 2050 तक जैव-विविधता का महत्त्व, संरक्षण, पुनर्स्थापना एवं बुद्धिमानी से उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं एवं एक स्वस्थ ग्रह को बनाए रखना तथा सभी लोगों को आवश्यक लाभ पहुँचाना।

CBD के इस दृष्टिकोण को पूरा करने के लिये 20 लक्ष्यों के साथ पाँच मध्यावधि के रणनीतिक लक्ष्यों का एक समूह है – जिसे आईची टार्गेट्स कहा जाता है।

लक्ष्य समूह C- "पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियों एवं आनुवंशिक विविधता की रक्षा करके जैव-विविधता की स्थिति में सुधार करना" इसमें तीन लक्ष्य शामिल हैं।

  • लक्ष्य 11- संरक्षित क्षेत्रों के वैश्विक आच्छादन (Global Coverage) से संबंधित है।
  • लक्ष्य 12- प्रजातियों के संरक्षण के लिये निर्देशित है।
  • लक्ष्य 13- उपयोगी पौधों की खेती, कृ​षि कार्य हेतु और पालतू जानवरों तथा जंगली जानवरों संबंधियों की आनुवंशिक विविधता के संरक्षण से संबंधित है।
  • हालाँकि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रजातियों में निरंतर गिरावट के कारण हम जैव-विविधता की रक्षा करने में विफल रहे हैं।
  • ये परिवर्तन हमारी खपत में उत्तरोत्तर वृद्धि (Spiral Increase) के कारण हो रहे हैं जो जैव-विविधता तथा अन्य सभी प्राकृतिक प्रणालियों के साथ गहन अभिक्रिया करते हैं।
  • आज दुनिया को प्रकृति के उत्कृष्ट स्तर को बहाल करने के लिये साहसिक तथा सुपरिभाषित लक्ष्यों एवं कार्यों के विश्वसनीय समूह की आवश्यकता है जो लोगों एवं प्रकृति दोनों के विकास में सक्षम हों।
  • इन परिवर्तनों के बिना SDG 2030 के लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव है और इसके लिये जलवायु परिवर्तन को कम करना, जलवायु प्रभावों के अनुकूल होना, मिट्टी, हवा एवं जल की गुणवत्ता को बनाए रखना तथा भोजन, ईंधन आदि के लिये एक लचीले आधार का समर्थन करना ज़रूरी है।

2020 से 2050 तक के लिये रोडमैप

वर्ष 2020 के बाद के एजेंडे (Post-2020 Agenda) के लिये रोडमैप में तीन आवश्यक कदम बताए गए हैं:

  • जैव-विविधता की पुनः प्राप्ति के लिये स्पष्ट रूप से लक्ष्य निधार्रित करें।
  • प्रगति को मापने योग्य तथा प्रासंगिक संकेतकों का एक समूह विकसित करें।
  • उन क्रियाओं का एक समूह तैयार करें जो सामूहिक रूप से आवश्यक समय-सीमा में लक्ष्य को प्राप्त कर सकता हो।

आकांक्षी विज़न को एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य में परिणत करें (The aspirational vision to an ambitious goal)

  • सीबीडी उद्देश्यों का वर्तमान लक्ष्य वर्ष 2050 है तथा ये आकांक्षात्मक (Aspirational) प्रकृति के हैं लेकिन यह विज़न ठोस है तथा जैव-विविधता पर 2020 के बाद के समझौते के लक्ष्य का आधार बनने के लिये पर्याप्त है।
  • इसके लिये उन लक्ष्यों के एक नए सेट की आवश्यकता होगी जिनका उच्चतम उद्देश्य हो तथा जो वर्ष 2020 से परे भी प्रभावी हों।

लक्ष्य की दिशा में प्रगति को मापने के तरीकों की पहचान

  • चूँकि वर्तमान लक्ष्य लगभग एक दशक पहले निर्धारित किये गए थे, इसलिये दूसरा चरण सबसे अच्छे मैट्रिक्स की पहचान करना है जो चुने गए लक्ष्यों की प्रगति को मापता है।
  • जैव-विविधता लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति को मापना बहुत जटिल है। जैव-विविधता के आकलन के लिये विभिन्न स्थानिक पैमानों (Spatial Scales) पर तथा विभिन्न पारिस्थितिक आयामों पर कई परिमाणों की आवश्यकता होती है।
  • ऐसे संकेतकों की आवश्यकता है जो विज़न तथा वर्णित लक्ष्यों के लिये आवश्यक जैव-विविधता के तीन प्रमुख आयामों को रेखांकित कर सकते हों।
  • जनसंख्या बहुलता (Abundance) में परिवर्तन - लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI)।
  • वैश्विक स्तर पर विलुप्त होने की दर - रेड लिस्ट इंडेक्स (RLI)।
  • जैव-विविधता अखंडता सूचकांक (Biodiversity Intactness Index-BII) जैसे संकेतकों का उपयोग करके स्थानीय जैव-विविधता में परिवर्तन।

यदि इनका उपयोग ठोस वैश्विक कार्रवाई का समर्थन करने के लिये किया जाना है, तो वर्गीकरण विज्ञान संबंधी प्रतिनिधित्व, एकीकरण तथा डेटा क्षेत्र में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

नि:संदेह यह सत्य है कि मानवता का अस्तित्व हमारी प्राकृतिक प्रणालियों पर निर्भर करता है, फिर भी हम एक खतरनाक दर से प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं।

  • यह महत्त्वपूर्ण है कि प्रकृति एवं लोगों को ध्यान में रखते हुए जैव-विविधता हानि के वक्र (Curve) को मोड़ने के लिये एक नया वैश्विक समझौता किया जाना चाहिये।
  • यह महत्त्वपूर्ण है कि राजनीतिक रूप से प्रकृति की प्रासंगिकता बढ़े तथा राज्य एवं गैर-राज्य भागीदारों द्वारा एकजुट होकर आंदोलन को बढ़ावा दिया जाए।

प्रकृति और लोगों के लिये एक वैश्विक समझौता

  • वर्ष 2017 में वैज्ञानिकों ने पेरिस जलवायु समझौते के एक भाग के रूप में 'प्रकृति के लिये एक नए वैश्विक समझौते' का प्रस्ताव पेश करते हुए एक लेख प्रकाशित किया।
  • इसने आवास (Habitat) संरक्षण एवं पुनर्स्थापना, राष्ट्रीय और ईको-क्षेत्र पैमाने के आधार पर संरक्षण रणनीतियों को बढ़ावा देने तथा अपनी संप्रभु भूमि की रक्षा के लिये स्थानीय लोगों के सशक्तीकरण के बारे में बात की।
  • सतत् विकास एवं जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के 2030 के एजेंडे को प्राप्त करने के लिये प्राकृतिक प्रणालियों में गिरावट के मद्देनज़र ऐसा समझौता आवश्यक है।

भविष्य की कल्पना: भविष्य के लिये परिदृश्य एवं नेतृत्व जो हम चाहते हैं

  • World Wide Fund जैव-विविधता के नुकसान की वक्रता (Bending the curve of Biodiversity Loss) से निपटने हेतु अनुसंधान पहल शुरू करने के लिये लगभग 40 विश्वविद्यालयों, संरक्षक संगठनों तथा अंतर-सरकारी संगठनों के संघ के साथ सहयोग कर रहा है।
  • यह पहल प्रकृति और लोगों दोनों के लिये चुनौतियों के उचित समधान हेतु क्षमता की पहचान में मदद करेगी।
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