भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के लिये उच्च विकास दर का लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक , महिला श्रम शक्ति भागीदारी , सकल घरेलू उत्पाद मध्यम आय संजाल , भारत का आर्थिक विकास परिदृश्य, भारत की अर्थव्यवस्था मेन्स के लिये:भारत की उच्च GDP वृद्धि में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ, उच्च विकास दर के लिये रणनीति, उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने का भारत का मार्ग, मध्यम आय का जाल और भारत के लिये इसके निहितार्थ |
स्रोत: बी.एस
चर्चा में क्यों?
भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर वर्ष 2000 से वर्ष 2025 तक मुख्य तौर पर 6% के आसपास रही है, वर्ष 2006 और वर्ष 2010 के बीच 8% की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर, जिसे अक्सर "6% GDP वृद्धि जाल" के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- इस सीमा को तोड़ने के लिये संरचनात्मक सुधार, तकनीकी निवेश, मानव पूंजी विकास और स्थिरता की आवश्यकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति क्या है?
- GDP वृद्धि: IMF ने भारत की GDP वृद्धि वर्ष 2025 में 6.2% और वर्ष 2026 में 6.3% रहने का अनुमान लगाया है, जिससे यह सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
- विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार: मई 2025 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 688.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो सितंबर 2024 के सर्वकालिक उच्च स्तर के करीब है।
- बुनियादी ढाँचा: परिचालन हवाई अड्डों की संख्या 74 (वर्ष 2014) से बढ़कर 159 (वर्ष 2025) हो गई है, वर्ष 2030 तक 50 नए हवाई अड्डा परियोजनाओं की योजना बनाई गई है। भारत विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ते नागरिक विमानन बाज़ारों में से एक है।
- विनिर्माण : वर्ष 2025 में क्षमता उपयोग 75.3% तक पहुँच गया, जो मज़बूत औद्योगिक गतिविधि का संकेत देता है। इससे पता चलता है कि कारखाने क्षमता के करीब कार्य कर रहे हैं, जो मज़बूत मांग को दर्शाता है और संभवतः निजी निवेश को प्रोत्साहित करता है।
- रोज़गार : वर्ष 2024 में, भारत की कुल बेरोज़गारी दर थोड़ी कम होकर 4.9% (वर्ष 2023 में 5.0% से) हो जाएगी, ग्रामीण बेरोज़गारी 4.2% तक कम हो जाएगी और शहरी बेरोज़गारी 6.7% पर स्थिर रहेगी। यह रोज़गार की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार को दर्शाता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
भारत में उच्च GDP विकास दर में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- कम निवेश और रोज़गार सृजन: पिछले 25 वर्षों (2000-2025) में भारत का निवेश-GDP अनुपात 39-42% (वर्ष 2006 और वर्ष 2010 के बीच) से कम हो कर 33% (वर्ष 2023) हो गया है, जबकि निजी निवेश 18% से कम हो कर 9.8% हो गया है। इससे आर्थिक विकास, क्षमता विस्तार और रोज़गार सृजन धीमा हो गया है।
- इसके अलावा निवेश की रोज़गार लोच (अर्थात् निवेश की प्रत्येक इकाई के लिये कम रोज़गार सृजित होता हैं) में भी गिरावट आई है, जो वर्ष 2000 के दशक में 0.44 से घटकर वर्ष 2023 में 0.21 हो गई है।
- इसका कारण यह है कि बुनियादी ढाँचे और स्वचालन जैसे पूंजी-गहन क्षेत्र अधिकांश निवेश को अवशोषित कर लेते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन सीमित हो जाता है।
- इसके अलावा निवेश की रोज़गार लोच (अर्थात् निवेश की प्रत्येक इकाई के लिये कम रोज़गार सृजित होता हैं) में भी गिरावट आई है, जो वर्ष 2000 के दशक में 0.44 से घटकर वर्ष 2023 में 0.21 हो गई है।
- राजकोषीय बाधाएँ और अकुशल सार्वजनिक व्यय: सरकार के राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 25% ) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज भुगतान में चला जाता है, जिससे शिक्षा और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश हेतु राजकोषीय स्थान सीमित हो जाता है।
- भारत का कर-GDP अनुपात 11.7% पर बना हुआ है, जबकि ब्रिटेन, फ्राँस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में यह 24% से अधिक है, जिससे संसाधन सृजन पर प्रतिबंध लगता है।
- इसके अलावा, अनुचित संसाधन आवंटन और प्रशासनिक विलंब के कारण होने वाला गैर-लाभकारी सार्वजनिक व्यय, विकास के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नीतियों की प्रभावशीलता को कम कर देता है।
- भारत का कर-GDP अनुपात 11.7% पर बना हुआ है, जबकि ब्रिटेन, फ्राँस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में यह 24% से अधिक है, जिससे संसाधन सृजन पर प्रतिबंध लगता है।
- बुनियादी अवसरंचना की कमी और व्यापारिक बाधाएँ: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अनुमानित 14-18% है (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23), जबकि वैश्विक मानक लगभग 8% है। इसका मुख्य कारण खराब सड़कों की कनेक्टिविटी, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ और खंडित आपूर्ति शृंखलाएँ हैं।
- निर्यात-GDP अनुपात (19.5%) भी कम है, जिसका कारण उच्च शुल्क और व्यापारिक बाधाएँ हैं। साथ ही, व्यापार समझौतों की धीमी गति के कारण भारतीय उत्पादों, विशेषकर छोटे व्यवसायों, की वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- सामाजिक और संस्थागत कमज़ोरियाँ: आर्थिक विकास शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र, विशेष रूप से कृषि, पीछे छूट गए हैं। उदाहरण के लिये, शीर्ष 10% के पास 77% संपत्ति है, जबकि निचले 50% के पास राष्ट्रीय आय का केवल 13% हिस्सा है।
- भ्रष्टाचार और संस्थागत अकुशलताएँ इन असमानताओं में योगदान करती हैं, जिसके कारण भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (2024) में 96वें स्थान पर है।
- वैश्विक और बाह्य कारक: भारत की वृद्धि वैश्विक अनिश्चितताओं से प्रभावित होती है, जिसमें भू-राजनीतिक तनाव (जैसे, रूस-यूक्रेन संघर्ष), प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक मंदी (जैसे, अमेरिका, चीन) और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव शामिल हैं।
- विदेशी निवेश पर इसकी निर्भरता इसे बाह्य संघर्षों के प्रति संवेदनशील बनाती है, जैसा कि वैश्विक वित्तीय संकट और महामारी संबंधी व्यवधानों के दौरान देखा गया।
भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि के प्रमुख प्रेरक तत्त्व क्या हैं?
- घरेलू मांग और खपत: भारत का बड़ा उपभोक्ता आधार और शहरीकरण विशेष रूप से FMCG, ई-कॉमर्स और ऑटोमोबाइल में मांग को बढ़ाता है। कृषि उत्पादन और सरकारी योजनाओं से ग्रामीण खपत को बढ़ावा मिलता है।
- वित्त वर्ष 2024-2025 की तीसरी तिमाही में निजी खपत में 6.9% की वृद्धि हुई, जबकि अप्रैल-जून 2024 में ग्रामीण FMCG की बिक्री में 4% की वृद्धि हुई।
- अवसंरचना एवं पूंजीगत व्यय: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), गति शक्ति और भारतमाला के अंतर्गत अवसंरचना परियोजनाएँ आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रही हैं।
- वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में पूंजीगत व्यय, लॉजिस्टिक्स और शहरी अवसंरचना को बढ़ाने के लिये 11.21 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए। वित्त वर्ष 20-24 (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25) के दौरान पूंजीगत व्यय 38.8% सीएजीआर की दर से बढ़ा।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और फिनटेक: भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का 11.74% हिस्सा थी। जनवरी 2025 में UPI लेनदेन रिकॉर्ड 23.48 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया। ये सभी व्यावसायिक दक्षता और कर अनुपालन को बढ़ावा दे रही हैं।
- विनिर्माण वृद्धि और आपूर्ति शृंखला: PLI योजनाएँ और उच्च मूल्य विनिर्माण (इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, EV) पर ध्यान केंद्रित करने से इस क्षेत्र को बढ़ावा मिल रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 23.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था, जिसमें मोबाइल फोन का हिस्सा 43% रहा।
- लाल सागर और स्वेज नहर में भू-राजनीतिक तनाव व्यापार मार्गों को बाधित कर रहे हैं, जिससे कंपनियाँ चीन+1 रणनीति अपनाने और आपूर्ति शृंखलाओं को भारत की ओर स्थानांतरित करने के लिये प्रेरित हो रही हैं।
- सेवा क्षेत्र: IT और फिनटेक के नेतृत्व में भारत का सेवा क्षेत्र विकास का प्रमुख तत्त्व बना हुआ है। वित्त वर्ष 2024-2025 में सेवा निर्यात में 12.8% की वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 2023-2024 में 5.7% थी, जिससे वैश्विक आउटसोर्सिंग में भारत की स्थिति मज़बूत हुई है।
- ऊर्जा परिवर्तन: भारत अक्षय ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। अक्तूबर 2024 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता 203.18 गीगावाट तक पहुँच गई, जो कुल स्थापित क्षमता का 46.3% है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हरित हाइड्रोजन बाज़ार बनाना है।
- राजकोषीय और मौद्रिक स्थिरता: विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियाँ और स्थिर मौद्रिक उपाय व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
- वित्त वर्ष 2024-2025 में राजकोषीय घाटा घटकर सकल घरेलू उत्पाद का 4.9% रहने की उम्मीद है, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति 8.4% रहने के बावजूद खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 4.9% रह जाएगी।
उच्च GDP वृद्धि प्राप्त करने के लिये कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिये?
- निजी निवेश को बढ़ावा देना और रोजगार-सृजन वाली वृद्धि को प्रोत्साहित करना: वस्त्र एवं परिधान, चमड़ा एवं जूते-चप्पल, खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- घरेलू विनिर्माताओं के लिये लागत घटाने हेतु प्रमुख कच्चे माल पर शून्य आयात शुल्क के माध्यम से निवेश को प्रोत्साहित करना, गैर-शुल्क बाधाओं को हटाना, और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना चाहिये।
- खाद्य प्रसंस्करण में स्विट्ज़रलैंड तथा चमड़ा क्षेत्र में जर्मनी/ताइवान जैसे देशों से क्षेत्र-विशिष्ट प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा दना चाहिये, ताकि घरेलू निवेश और रोज़गार सृजन को प्रोत्साहन मिल सके।
- राजकोषीय नीति में सुधार करना: कर दरों को सरल बनाकर, छूटों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करके और कर आधार को व्यापक बनाकर कर-से-GDP अनुपात को 15% तक बढ़ाना चाहिये।
- रणनीतिक विनिवेश प्रारंभ करना चाहिये ताकि ऋण और ब्याज भुगतान (जो वर्तमान में राजस्व का लगभग 25% है) को कम किया जा सके, और इन निधियों को बुनियादी ढाँचा, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विकासोन्मुख सामाजिक क्षेत्रों की ओर पुनः निर्देशित किया जा सके।
- निर्यात और व्यापारिक पहुँच का विस्तार करना: यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौतों को मज़बूत करना चाहिये, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) जैसे गैर-शुल्कीय अवरोधों को समाप्त करना चाहिये और मानकों को वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप बनाना चाहिये।
- निर्यात-उन्मुख FDI को प्रोत्साहित करना चाहिये (जैसे वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण और ऑटोमोबाइल घटकों में), ताकि प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाई जा सके, प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता में सुधार हो सके, और भारत के निर्यात-से-GDP अनुपात को कम-से-कम 25% तक पहुँचाया जा सके।
भारत वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच स्थिर और अनुकूलित आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये कौन-से उपाय अपना सकता है?
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: भारत के लिये स्थिर और अनुकूलित आर्थिक विकास बनाए रखने के उपाय
निष्कर्ष
निश्चित निवेश प्रोत्साहनों, व्यापार और कर सुधारों, और सतर्क राजकोषीय प्रबंधन की नीति मिश्रण भारत को 6% विकास दर के जाल से बाहर निकलने में मदद कर सकता है। निरंतर 8% से अधिक की वृद्धि प्राप्त करना न केवल गरीबी उन्मूलन के लिये आवश्यक है, बल्कि बड़े वर्गों को मध्य वर्ग में शामिल करने के लिये भी आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की आर्थिक वृद्धि में रुकावट डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, और निरंतर उच्च वृद्धि दर प्राप्त करने के लिये कौन-से रणनीतिक उपाय अपनाए जाने चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न: 'व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease of Doing Business Index)' में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016) (a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) उत्तर: C प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: C प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। (b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। (c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। (d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: B मेन्सप्रश्न. "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न. आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |


भारतीय समाज
युवाओं पर सोशल मीडिया का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:डीपफेक, राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम, DPDP अधिनियम 2023, गिग वर्कर्स, डिजिटल अर्थव्यवस्था। मेन्स के लिये:सोशल मीडिया और इसके प्रभाव, चिंताएँ और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने युवाओं की पहचान और मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर किया है। जैसे-जैसे युवाओं की आत्म-छवि ऑनलाइन स्वीकृति से अधिक जुड़ती जा रही है, वैसे-वैसे दुश्चिंता, तनाव और विकृत आत्म-छवि जैसी समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। यह स्थिति जीवन को आकार देने में सोशल मीडिया की भूमिका पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता को दर्शाती है।
सोशल मीडिया का महत्त्व क्या है?
- भारतीय समाज पर प्रभाव: सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया के एकाधिकार को चुनौती देता है क्योंकि यह नागरिकों को वास्तविक समय में समाचार और विचार साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे ज़िम्मेदार संस्थाओं की जवाबदेही तय होती है, जैसा कि कोविड-19 के दौरान देखा गया, जब डॉक्टरों ने ऑक्सीजन की कमी को उजागर करने के लिये ट्विटर का उपयोग किया था।
- सरकारें और राजनेता प्रत्यक्ष सार्वजनिक जुड़ाव, नीति घोषणाओं, शिकायत निवारण और राजनीतिक प्रचार के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, जैसा कि भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान देखा गया था।
- सोशल मीडिया हाशिये पर पड़ी आवाज़ों को बुलंद करता है, जैसा कि मी टू (2018) अभियान में देखा गया, जहाँ महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में हुए उत्पीड़न का खुलासा किया।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है, छोटे व्यवसायों, स्टार्टअप्स, गिग वर्कर्स और प्रभावशाली लोगों का समर्थन करता है। उदाहरण के लिये, होम शेफ, कारीगर और प्रभावशाली लोग उत्पादों को बेचने के लिये व्हाट्सएप कैटलॉग जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं।
- यूट्यूब और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स के नेतृत्व में क्रिएटर इकोनॉमी वर्ष 2020 में 962,000 से बढ़कर वर्ष 2024 में 4.06 मिलियन हो गई, जो अब 8% कार्यबल का समर्थन करती है।
- भारत की क्रिएटिव इकोनॉमी का मूल्य वर्ष 2024 में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और इसने सकल घरेलू उत्पाद में 2.5% का योगदान दिया।
- WAVES 2025 के बाद, सरकार ने पूंजी, कौशल विकास और वैश्विक पहुँच के साथ रचनाकारों का समर्थन करने के लिये 1 बिलियन अमरीकी डॉलर का कोष शुरू किया।
- सोशल मीडिया स्टार्टअप्स, क्राउडफंडिंग और आर्थिक विविधीकरण का समर्थन करती है, जिससे ई-कॉमर्स में तेज़ी आई है।
- उदाहरण के लिये, पतंजलि और boAt ने रणनीतिक विपणन के माध्यम से वैश्विक दृश्यता प्राप्त की।
- यह डिजिटल भुगतान और अर्थव्यवस्था की औपचारिकता को भी बढ़ावा देता है, जैसा कि WhatsApp Pay द्वारा लेनदेन को सरल बनाने से देखा जा सकता है।
भारत में सोशल मीडिया को किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
- भारत में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानून:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह सोशल मीडिया सहित इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस और संचार के लिये प्रमुख कानून है।
- धारा 79(1) मध्यस्थों (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) कोथर्ड पार्टी कंटेंट के लिये दायित्व से छूट देती है, बशर्ते वे केवल एक्सेस प्रदान करते हैं और कंटेंट को नियंत्रित या परिवर्तित नहीं करते हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: यह सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग करता है, जिसमें अनुपयुक्त कंटेंट को हटाना और उपयोगकर्त्ताओं को गोपनीयता, कॉपीराइट, मानहानि और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में शिक्षा देना शामिल है।
- वर्ष 2023 के संशोधन के तहत फेसबुक जैसे ऑनलाइन मध्यस्थों को भारत सरकार के बारे में गलत सामग्री हटाने की आवश्यकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह सोशल मीडिया सहित इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस और संचार के लिये प्रमुख कानून है।
- न्यायिक दृष्टिकोण:
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्पष्ट होने के कारण रद्द कर दिया गया। इस निर्णय में सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखा गया और यह स्पष्ट किया गया कि आलोचना, व्यंग्य या असहमति को भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिये तब तक आपराधिक नहीं माना जा सकता जब तक कि वह अनुच्छेद 19(2) में सूचीबद्ध उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत न आए।
- के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में निजता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मूल अधिकार घोषित किया गया। इस निर्णय ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP अधिनियम) जैसे डेटा संरक्षण कानूनों को आगे बढ़ाने, साथ ही व्हाट्सएप की गोपनीयता नीतियों और आधार से संबंधित मानकों को प्रभावित किया।
सोशल मीडिया से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट: सोशल मीडिया से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों में चिंता, अवसाद और अकेलापन शामिल हैं, जो निरंतर मान्यता के दबाव, कुछ छूट जाने का डर (FOMO) और आदर्श जीवन से तुलना के कारण उत्पन्न होते हैं।
- प्रदर्शन-प्रधान संस्कृति वास्तविक भावनाओं को दबा देती है, जिससे युवाओं के लिये अपनी कमज़ोरी व्यक्त करना और सहायता माँगना और भी कठिन हो जाता है।
- नैतिक चिंताएँ: सोशल मीडिया सार्वजनिक स्वीकृति के लिये मनगढ़ंत आत्म-प्रस्तुति को प्रोत्साहित करके, विशेष रूप से युवाओं के बीच, पहचान को विकृत करती है।
- स्वयं की प्रामाणिक पहचान को एकांत में विकसित करने के बजाय, युवा उपयोगकर्त्ता अक्सर अपनी पहचान इस आधार पर गढ़ते हैं कि कौन-सी चीज़ें उन्हें अधिक लाइक्स और फॉलोअर्स दिला सकती हैं। यह निरंतर मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता उनके वास्तविक व्यक्तित्व और स्वयं को जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं के बीच की रेखा को धुंधला कर देती है, जिससे भ्रम, चिंता और भावनात्मक तनाव उत्पन्न होता है।
- इसके साथ ही, 'फिल्टर बबल्स' की स्थिति उपयोगकर्त्ताओं को अधिक चरम विचारों के संपर्क में लाती है, जिससे नकारात्मक व्यवहार को बल मिलता है और विविध दृष्टिकोणों की समझ सीमित हो जाती है।
- फिल्टर बबल्स तब उत्पन्न होते हैं जब एल्गोरिदम उपयोगकर्त्ता की पसंद के आधार पर सामग्री दिखाते हैं, जिससे विभिन्न दृष्टिकोणों के संपर्क की संभावना कम हो जाती है और पहले से मौजूद विश्वास एवं विचार और अधिक मज़बूत हो जाते हैं।
- माता-पिता का अलगाव: अधिकांश वयस्कों के पास अपने बच्चों के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिये उपकरण या जागरूकता का अभाव होता है।
- किशोर अपने माता-पिता से अपनी गतिविधियाँ छुपाने के लिए फर्ज़ी इंस्टाग्राम अकाउंट्स बनाते हैं, जिससे वे और अधिक गुप्त व अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।
- बाल शोषण: बच्चों (चाइल्ड इन्फ्लुएंसर्स) का उपयोग वयस्कों द्वारा कंटेंट और आय उत्पन्न करने के लिये किया जा रहा है, जिससे वे बाह्य अनुमोदन, वयस्कों की निगरानी, प्रदर्शन का दबाव और पहचान बनाने के भ्रम का सामना कर रहे हैं, जबकि वे मानसिक परिपक्वता तक नहीं पहुँचे हैं।
- साइबर धमकी या ट्रोलिंग: साइबर बुलिंग और शोषण में गुमनाम उत्पीड़न, घृणास्पद टिप्पणियाँ (hate Comments), डीपफेक दुर्व्यवहार एवं बाल शोषण शामिल हैं, जहाँ प्रिडेटर युवाओं को निशाना बनाते हैं।
युवाओं के लिये सोशल मीडिया की चुनौतियों से निपटने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- युवा सुरक्षा के लिये सोशल मीडिया नीति: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को 18 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्ताओं के लिये शैक्षिक, कौशल-आधारित और सकारात्मक कंटेंट को प्राथमिकता देने हेतु अनुशंसा एल्गोरिदम को संशोधित करना होगा।
- लक्षित विज्ञापनों के लिये नाबालिगों के व्यवहार संबंधी प्रोफाइलिंग पर रोक (उदाहरण के लिये, 18 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्त्ताओं के लिये विज्ञापन लक्ष्यीकरण पर मेटा का प्रतिबंध) लगाने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, उपयोगकर्ताओं को प्राप्त होने वाली एल्गोरिथम कंटेंट को संशोधित करने की क्षमता प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वे गोपनीयता और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के लिये अपने सोशल मीडिया अनुभव को अनुकूलित कर सकें।
- नैतिक डिज़ाइन मानकों को लागू करना: प्लेटफॉर्मों को हानिकारक कंटेंट, जैसे यौन, हिंसक या वयस्क कंटेंट , जिसमें जुआ, अपमानजनक या शोषणकारी कंटेंट शामिल है, को बढ़ावा देने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये तथा इसके बजाय नैतिक मानवीय शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- डिजिटल साक्षरता: राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम को स्कूल पाठ्यक्रम (NEP 2020 संरेखण) में साइबर सुरक्षा पाठ्यक्रमों को एकीकृत करना चाहिये।
- ऑनलाइन जोखिमों की पहचान करने के लिये शिक्षकों और अभिभावकों को प्रशिक्षित करना
- शासन और जवाबदेही को सुदृढ़ करना: बच्चों के डेटा का दुरुपयोग करने वाले प्लेटफॉर्मों को दंडित करने हेतु DPDP अधिनियम, 2023 को लागू किया जाना चाहिये, साथ ही युवा सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की समीक्षा के लिये तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट भी कराया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, साइबर धमकी और उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिये त्वरित समाधान तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- माता-पिता और समाज को सशक्त बनाना: गूगल फैमिली लिंक और एप्पल स्क्रीन टाइम जैसे अभिभावकीय नियंत्रण उपकरणों को बढ़ावा देना और स्वस्थ सोशल मीडिया उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु गैर सरकारी संगठनों एवं स्कूलों के साथ सहयोग करना।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टीन अकाउंट्स जैसी सुविधाएँ भी पेश कर सकते हैं, जो सुरक्षा बढ़ाने और 16 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्त्ताओं के लिये अधिक आयु-उपयुक्त अनुभव प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किये गए हैं ।
- इसके अतिरिक्त, ऑफलाइन सहभागिता को प्रोत्साहित करने के लिये स्कूलों में खेल, कला और बाहरी गतिविधियों को पुनर्जीवित करना।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देना: फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्क्रीन टाइम रिमाइंडर, कंटेंट फिल्टर एवं स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों जैसे उपकरणों को लागू कर सकते हैं, साथ ही अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये किरण हेल्पलाइन व मानस मोबाइल ऐप जैसी पहलों को बढ़ावा दे सकते हैं तथा उनका प्रचार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
युवाओं पर सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव तत्काल विनियमन, डिजिटल साक्षरता और नैतिक प्लेटफॉर्म डिज़ाइन की मांग करता है। जबकि यह अभिव्यक्ति और नवाचार के अवसर प्रदान करता है, अनियंत्रित उपयोग मानसिक स्वास्थ्य और पहचान को नुकसान पहुँचाता है। सुरक्षित और सार्थक डिजिटल अनुभव सुनिश्चित करने हेतु नीति, शिक्षा और माता-पिता की भागीदारी को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न : सोशल मीडिया सशक्तीकरण का साधन भी है और मानसिक स्वास्थ्य के लिये खतरा भी। परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:मेन्सQ. सोशल नेटवर्किंग साइट क्या हैं और इन साइट से क्या सुरक्षा निहितार्थ सामने आते हैं? (2013) Q. बच्चों को दुलारने की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। बच्चों के समाजीकरण पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2023) |


भारतीय अर्थव्यवस्था
डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स: प्रगति और चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU), वित्तीय समावेशन, प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), अटल पेंशन योजना (APY), पेमेंट्स बैंक, लघु वित्त बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मेन्स के लिये:समावेशी विकास और सुभेद्य वर्गों के उत्थान के लिये वित्तीय समावेशन का महत्त्व, डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) से संबंधित चुनौतियाँ, DBU को और अधिक प्रभावी बनाने के उपाय। |
स्रोत: बीएल
चर्चा में क्यों?
डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU), जिन्हें वर्ष 2022 में देश के सबसे सुदूर क्षेत्रों तक डिजिटल वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, का उच्च परिचालन लागत एवं सीमित डिजिटलीकरण जैसी चुनौतियों के कारण सीमित विस्तार हुआ है। इससे इनकी प्रभावशीलता और दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं।
डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) क्या है?
- DBU: डिजिटल बैंकिंग यूनिट (DBU) एक विशेषीकृत स्थायी व्यवसायिक इकाई या हब होती है, जिसमें ऐसी न्यूनतम डिजिटल अवसंरचना उपलब्ध होती है ताकि डिजिटल बैंकिंग उत्पादों को पूर्णतः स्व-सेवा के माध्यम से, किसी भी समय प्रदान किया जा सके।
- इन्हें भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में वर्ष 2022 में भारत के 75 सुदूर ज़िलों में लॉन्च किया गया था।
- DBU ऐसीअनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) द्वारा स्थापित की जाती हैं (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, पेमेंट्स बैंक और स्थानीय क्षेत्रीय बैंक को छोड़कर), जिन्हें डिजिटल बैंकिंग का अनुभव होता है। इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की पूर्व स्वीकृति के बिना टियर 1 से टियर 6 केंद्रों में स्थापित किया जा सकता है, सिवाय उन स्थानों के जहाँ विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया गया हो।
- लाभ: इसका उद्देश्य बैंक सुविधा से वंचित आबादी के लिये डिजिटल बैंकिंग तक पहुँच बढ़ाकर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
- प्रदान की जाने वाली सेवाएँ: ATM, नकद जमा मशीनें, पासबुक और इंटरनेट कियोस्क, बिल भुगतान, और e- KYC (अपने ग्राहक को जानें) के माध्यम से खाता खोलना।
- DBU के लिये RBI का निर्देश: RBI का निर्देश है कि डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) मौजूदा शाखाओं से भौतिक रूप से अलग हों और उनके लिये अलग प्रवेश एवं निकास बिंदु हों।
- इन्हें डिजिटल उपयोगकर्त्ताओं की सेवा के लिये इस प्रकार डिज़ाइन किया जाना चाहिये कि इनमें इंटरएक्टिव टेलर मशीनें, सर्विस टर्मिनल्स और कैश रीसाइक्लर जैसी उन्नत तकनीकों की सुविधा हो।
- इसके अतिरिक्त, प्रत्येक DBU की देखरेख एक वरिष्ठ अनुभवी कार्यकारी द्वारा की जानी चाहिये।
डिजिटल बैंकों और DBU के बीच अंतर
- डिजिटल बैंकों को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त होता है और उनके पास अपनी बैलेंस शीट तथा विधिक पहचान होती है, जिससे नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
- DBU पारंपरिक बैंकों का विस्तार हैं, जो बैंक के नियमों के अंतर्गत डिजिटल सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिनमें प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार की सीमित संभावनाएँ होती हैं।
- डिजिटल बैंक जमा, ऋण और अन्य वित्तीय उत्पादों सहित बैंकिंग सेवाओं की एक व्यापक शृंखला डिजिटल रूप से प्रदान करते हैं।
- DBU एक विशिष्ट स्थान पर डिजिटल बैंकिंग उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन डिजिटल बैंकों की तरह पूर्ण बैंकिंग सेवाएँ प्रदान नहीं करते हैं।
डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- अप्रभावी योजना: DBU के कार्यान्वयन के समय, बैंकों को स्थानीय आवश्यकताओं, डिजिटल तत्परता या मांग और बैंकिंग प्रक्रियाओं में क्षेत्रीय अंतर पर विचार किये बिना, केंद्रीय रूप से चुने गए स्थानों पर उन्हें स्थापित करने के लिये सिर्फ 45 दिन का समय दिया गया, जिससे इस पहल की प्रभावशीलता प्रभावित हुई।
- उच्च परिचालन लागत: RBI के अनुसार DBU को शाखाओं से अलग होना चाहिये, क्योंकि इसमें इंटरेक्टिव टेलर मशीन और वीडियो KYC जैसी महंगी अवसंरचना होती है। कम ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में, उच्च लागत बैंकों को DBU का विस्तार करने से रोकती है।
- सीमित डिजिटल और वित्तीय साक्षरता: सीमित डिजिटल कौशल, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के बीच और टियर-II, टियर-III शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कैश काउंटरों की कमी DBU की प्रभावशीलता में बाधा डालती है, जिससे वित्तीय समावेशन सीमित हो जाता है।
- कनेक्टिविटी और रणनीतिक एकीकरण के मुद्दे: दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थिर इंटरनेट और विद्युत की कमी है, जिससे DBU का संचालन बाधित हो रहा है।
वित्तीय समावेशन के लिये सरकार की पहल क्या हैं?
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY)
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY)
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY)
- भारत इंटरफेस फॉर मनी (BHIM)
- एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)
- आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AEPS)
- प्रत्यक्ष अंतरण
डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?
- विकेंद्रीकृत, मांग-आधारित विस्तार: शीर्ष-स्तरीय रोलआउट के बजाय, स्थानीय मांग, डिजिटल साक्षरता स्तर और बैंकिंग पहुँच के आधार पर DBU की स्थापना की जानी चाहिये।
- एक विकेंद्रीकृत, डेटा-संचालित मॉडल स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।
- डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाना: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) का लाभ उठाना, जिसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना है, ताकि कम सहभागिता वाले क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता में सुधार हो सके।
- बैंकों को स्थानीय सरकारों और सामुदायिक संगठनों के साथ मिलकर नागरिकों, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं के लिये डिजिटल सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के संबंध में प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे का समर्थन: बेहतर कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये, विशेष रूप से दूरदराज़ और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में।
- भारतनेट परियोजना दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थिर इंटरनेट पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- DBU परिचालन को प्रभावित करने वाली बार-बार होने वाली विद्युत कटौती को कम करने के लिये सौर ऊर्जा जैसे बैकअप विद्युत समाधान स्थापित करने चाहिये।
- ग्राहक सहायता में वृद्धि: DBU को ग्राहक सहभागिता बढ़ाने के लिये डिजिटल ऑनबोर्डिंग, समस्या समाधान और वित्तीय सलाह के क्रम में मानवीय सहायता शामिल करनी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, बहुभाषी इंटरफेस और स्थानीय भाषा सहायता प्रदान करने से विविध क्षेत्रों में सुविधा एवं पहुँच में सुधार हो सकता है।
- वित्तीय उत्पादों और सेवाओं पर ध्यान: DBU को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और अटल पेंशन योजना (APY), तक आसान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ बीमा की पहुँच कम है।
- पीएम मुद्रा योजना, ई-मुद्रा और अन्य MSME योजनाओं के तहत डिजिटल ऋणों तक त्वरित पहुँच की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: डिजिटल बैंकिंग इकाइयाँ (DBU) क्या हैं? उन्हें लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी प्रभावशीलता को अनुकूलित करने के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये। (2010)
उपर्युक्त में से किसे भारत में "वित्तीय समावेशन" प्राप्त करने के लिये उठाए गए कदमों के रूप में माना जा सकता है? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (D) मेन्स:प्रश्न. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016) |

