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डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स: प्रगति और चुनौतियाँ

  • 14 May 2025
  • 12 min read

 प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU), वित्तीय समावेशन, प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), अटल पेंशन योजना (APY), पेमेंट्स बैंक, लघु वित्त बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

मेन्स के लिये:

समावेशी विकास और सुभेद्य वर्गों के उत्थान के लिये वित्तीय समावेशन का महत्त्व, डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) से संबंधित चुनौतियाँ, DBU को और अधिक प्रभावी बनाने के उपाय।

स्रोत: बीएल

चर्चा में क्यों?

डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU), जिन्हें वर्ष 2022 में देश के सबसे सुदूर क्षेत्रों तक डिजिटल वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, का उच्च परिचालन लागत एवं सीमित डिजिटलीकरण जैसी चुनौतियों के कारण सीमित विस्तार हुआ है। इससे इनकी प्रभावशीलता और दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं।

डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) क्या है?

  • DBU: डिजिटल बैंकिंग यूनिट (DBU) एक विशेषीकृत स्थायी व्यवसायिक इकाई या हब होती है, जिसमें ऐसी न्यूनतम डिजिटल अवसंरचना उपलब्ध होती है ताकि डिजिटल बैंकिंग उत्पादों को पूर्णतः स्व-सेवा के माध्यम से, किसी भी समय प्रदान किया जा सके।
    • इन्हें भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में वर्ष 2022 में भारत के 75 सुदूर ज़िलों में लॉन्च किया गया था।
    • DBU अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) द्वारा स्थापित की जाती हैं (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, पेमेंट्स बैंक और स्थानीय क्षेत्रीय बैंक को छोड़कर), जिन्हें डिजिटल बैंकिंग का अनुभव होता है। इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की पूर्व स्वीकृति के बिना टियर 1 से टियर 6 केंद्रों में स्थापित किया जा सकता है, सिवाय उन स्थानों के जहाँ विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया गया हो।
  • लाभ: इसका उद्देश्य बैंक सुविधा से वंचित आबादी के लिये डिजिटल बैंकिंग तक पहुँच बढ़ाकर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
  • प्रदान की जाने वाली सेवाएँ: ATM, नकद जमा मशीनें, पासबुक और इंटरनेट कियोस्क, बिल भुगतान, और e- KYC (अपने ग्राहक को जानें) के माध्यम से खाता खोलना।
  • DBU के लिये RBI का निर्देश: RBI का निर्देश है कि डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) मौजूदा शाखाओं से भौतिक रूप से अलग हों और उनके लिये अलग प्रवेश एवं निकास बिंदु हों।
    • इन्हें डिजिटल उपयोगकर्त्ताओं की सेवा के लिये इस प्रकार डिज़ाइन किया जाना चाहिये कि इनमें इंटरएक्टिव टेलर मशीनें, सर्विस टर्मिनल्स और कैश रीसाइक्लर जैसी उन्नत तकनीकों की सुविधा हो।
    • इसके अतिरिक्त, प्रत्येक DBU की देखरेख एक वरिष्ठ अनुभवी कार्यकारी द्वारा की जानी चाहिये।

डिजिटल बैंकों और DBU के बीच अंतर

  • डिजिटल बैंकों को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त होता है और उनके पास अपनी बैलेंस शीट तथा विधिक पहचान होती है, जिससे नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
    • DBU पारंपरिक बैंकों का विस्तार हैं, जो बैंक के नियमों के अंतर्गत डिजिटल सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिनमें प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार की सीमित संभावनाएँ होती हैं।
  • डिजिटल बैंक जमा, ऋण और अन्य वित्तीय उत्पादों सहित बैंकिंग सेवाओं की एक व्यापक शृंखला डिजिटल रूप से प्रदान करते हैं।
    • DBU एक विशिष्ट स्थान पर डिजिटल बैंकिंग उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन डिजिटल बैंकों की तरह पूर्ण बैंकिंग सेवाएँ प्रदान नहीं करते हैं।

डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स (DBU) के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • अप्रभावी योजना: DBU के कार्यान्वयन के समय, बैंकों को स्थानीय आवश्यकताओं, डिजिटल तत्परता या मांग और बैंकिंग प्रक्रियाओं में क्षेत्रीय अंतर पर विचार किये बिना, केंद्रीय रूप से चुने गए स्थानों पर उन्हें स्थापित करने के लिये सिर्फ 45 दिन का समय दिया गया, जिससे इस पहल की प्रभावशीलता प्रभावित हुई।
  • उच्च परिचालन लागत: RBI के अनुसार DBU को शाखाओं से अलग होना चाहिये, क्योंकि इसमें इंटरेक्टिव टेलर मशीन और वीडियो KYC जैसी महंगी अवसंरचना होती है। कम ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में, उच्च लागत बैंकों को DBU का विस्तार करने से रोकती है।
  • सीमित डिजिटल और वित्तीय साक्षरता: सीमित डिजिटल कौशल, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के बीच और टियर-II, टियर-III शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कैश काउंटरों की कमी DBU की प्रभावशीलता में बाधा डालती है, जिससे वित्तीय समावेशन सीमित हो जाता है।
  • कनेक्टिविटी और रणनीतिक एकीकरण के मुद्दे: दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थिर इंटरनेट और विद्युत  की कमी है, जिससे DBU का संचालन बाधित हो रहा है। 

वित्तीय समावेशन के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

डिजिटल बैंकिंग यूनिट्स की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  • विकेंद्रीकृत, मांग-आधारित विस्तार: शीर्ष-स्तरीय रोलआउट के बजाय, स्थानीय मांग, डिजिटल साक्षरता स्तर और बैंकिंग पहुँच के आधार पर DBU की स्थापना की जानी चाहिये। 
    • एक विकेंद्रीकृत, डेटा-संचालित मॉडल स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है
  • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाना: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) का लाभ उठाना, जिसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना है, ताकि कम सहभागिता वाले क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता में सुधार हो सके।
    • बैंकों को स्थानीय सरकारों और सामुदायिक संगठनों के साथ मिलकर नागरिकों, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं के लिये डिजिटल सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के संबंध में प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे का समर्थन: बेहतर कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये, विशेष रूप से दूरदराज़ और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में। 
    • भारतनेट परियोजना दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थिर इंटरनेट पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • DBU परिचालन को प्रभावित करने वाली बार-बार होने वाली विद्युत कटौती को कम करने के लिये सौर ऊर्जा जैसे बैकअप विद्युत समाधान स्थापित करने चाहिये।
  • ग्राहक सहायता में वृद्धि: DBU को ग्राहक सहभागिता बढ़ाने के लिये डिजिटल ऑनबोर्डिंग, समस्या समाधान और वित्तीय सलाह के क्रम में मानवीय सहायता शामिल करनी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, बहुभाषी इंटरफेस और स्थानीय भाषा सहायता प्रदान करने से विविध क्षेत्रों में सुविधा एवं पहुँच में सुधार हो सकता है।
  • वित्तीय उत्पादों और सेवाओं पर ध्यान: DBU को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और अटल पेंशन योजना (APY), तक आसान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ बीमा की पहुँच कम है।
    • पीएम मुद्रा योजना, ई-मुद्रा और अन्य MSME योजनाओं के तहत डिजिटल ऋणों तक त्वरित पहुँच की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: डिजिटल बैंकिंग इकाइयाँ (DBU) क्या हैं? उन्हें लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी प्रभावशीलता को अनुकूलित करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये। (2010)

  1. बैंकों का राष्ट्रीयकरण
  2.  क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन
  3.  बैंक शाखाओं द्वारा ग्रामों को गोद लेना

उपर्युक्त में से किसे भारत में "वित्तीय समावेशन" प्राप्त करने के लिये उठाए गए कदमों के रूप में माना जा सकता है?

 (A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 3
(D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (D)


मेन्स:

प्रश्न. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016)

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