भारतीय समाज
युवाओं पर सोशल मीडिया का प्रभाव
- 14 May 2025
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:डीपफेक, राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम, DPDP अधिनियम 2023, गिग वर्कर्स, डिजिटल अर्थव्यवस्था। मेन्स के लिये:सोशल मीडिया और इसके प्रभाव, चिंताएँ और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने युवाओं की पहचान और मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर किया है। जैसे-जैसे युवाओं की आत्म-छवि ऑनलाइन स्वीकृति से अधिक जुड़ती जा रही है, वैसे-वैसे दुश्चिंता, तनाव और विकृत आत्म-छवि जैसी समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। यह स्थिति जीवन को आकार देने में सोशल मीडिया की भूमिका पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता को दर्शाती है।
सोशल मीडिया का महत्त्व क्या है?
- भारतीय समाज पर प्रभाव: सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया के एकाधिकार को चुनौती देता है क्योंकि यह नागरिकों को वास्तविक समय में समाचार और विचार साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे ज़िम्मेदार संस्थाओं की जवाबदेही तय होती है, जैसा कि कोविड-19 के दौरान देखा गया, जब डॉक्टरों ने ऑक्सीजन की कमी को उजागर करने के लिये ट्विटर का उपयोग किया था।
- सरकारें और राजनेता प्रत्यक्ष सार्वजनिक जुड़ाव, नीति घोषणाओं, शिकायत निवारण और राजनीतिक प्रचार के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, जैसा कि भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान देखा गया था।
- सोशल मीडिया हाशिये पर पड़ी आवाज़ों को बुलंद करता है, जैसा कि मी टू (2018) अभियान में देखा गया, जहाँ महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में हुए उत्पीड़न का खुलासा किया।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है, छोटे व्यवसायों, स्टार्टअप्स, गिग वर्कर्स और प्रभावशाली लोगों का समर्थन करता है। उदाहरण के लिये, होम शेफ, कारीगर और प्रभावशाली लोग उत्पादों को बेचने के लिये व्हाट्सएप कैटलॉग जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं।
- यूट्यूब और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स के नेतृत्व में क्रिएटर इकोनॉमी वर्ष 2020 में 962,000 से बढ़कर वर्ष 2024 में 4.06 मिलियन हो गई, जो अब 8% कार्यबल का समर्थन करती है।
- भारत की क्रिएटिव इकोनॉमी का मूल्य वर्ष 2024 में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और इसने सकल घरेलू उत्पाद में 2.5% का योगदान दिया।
- WAVES 2025 के बाद, सरकार ने पूंजी, कौशल विकास और वैश्विक पहुँच के साथ रचनाकारों का समर्थन करने के लिये 1 बिलियन अमरीकी डॉलर का कोष शुरू किया।
- सोशल मीडिया स्टार्टअप्स, क्राउडफंडिंग और आर्थिक विविधीकरण का समर्थन करती है, जिससे ई-कॉमर्स में तेज़ी आई है।
- उदाहरण के लिये, पतंजलि और boAt ने रणनीतिक विपणन के माध्यम से वैश्विक दृश्यता प्राप्त की।
- यह डिजिटल भुगतान और अर्थव्यवस्था की औपचारिकता को भी बढ़ावा देता है, जैसा कि WhatsApp Pay द्वारा लेनदेन को सरल बनाने से देखा जा सकता है।
भारत में सोशल मीडिया को किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
- भारत में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानून:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह सोशल मीडिया सहित इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस और संचार के लिये प्रमुख कानून है।
- धारा 79(1) मध्यस्थों (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) कोथर्ड पार्टी कंटेंट के लिये दायित्व से छूट देती है, बशर्ते वे केवल एक्सेस प्रदान करते हैं और कंटेंट को नियंत्रित या परिवर्तित नहीं करते हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: यह सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग करता है, जिसमें अनुपयुक्त कंटेंट को हटाना और उपयोगकर्त्ताओं को गोपनीयता, कॉपीराइट, मानहानि और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में शिक्षा देना शामिल है।
- वर्ष 2023 के संशोधन के तहत फेसबुक जैसे ऑनलाइन मध्यस्थों को भारत सरकार के बारे में गलत सामग्री हटाने की आवश्यकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह सोशल मीडिया सहित इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस और संचार के लिये प्रमुख कानून है।
- न्यायिक दृष्टिकोण:
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्पष्ट होने के कारण रद्द कर दिया गया। इस निर्णय में सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखा गया और यह स्पष्ट किया गया कि आलोचना, व्यंग्य या असहमति को भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिये तब तक आपराधिक नहीं माना जा सकता जब तक कि वह अनुच्छेद 19(2) में सूचीबद्ध उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत न आए।
- के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में निजता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मूल अधिकार घोषित किया गया। इस निर्णय ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP अधिनियम) जैसे डेटा संरक्षण कानूनों को आगे बढ़ाने, साथ ही व्हाट्सएप की गोपनीयता नीतियों और आधार से संबंधित मानकों को प्रभावित किया।
सोशल मीडिया से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट: सोशल मीडिया से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों में चिंता, अवसाद और अकेलापन शामिल हैं, जो निरंतर मान्यता के दबाव, कुछ छूट जाने का डर (FOMO) और आदर्श जीवन से तुलना के कारण उत्पन्न होते हैं।
- प्रदर्शन-प्रधान संस्कृति वास्तविक भावनाओं को दबा देती है, जिससे युवाओं के लिये अपनी कमज़ोरी व्यक्त करना और सहायता माँगना और भी कठिन हो जाता है।
- नैतिक चिंताएँ: सोशल मीडिया सार्वजनिक स्वीकृति के लिये मनगढ़ंत आत्म-प्रस्तुति को प्रोत्साहित करके, विशेष रूप से युवाओं के बीच, पहचान को विकृत करती है।
- स्वयं की प्रामाणिक पहचान को एकांत में विकसित करने के बजाय, युवा उपयोगकर्त्ता अक्सर अपनी पहचान इस आधार पर गढ़ते हैं कि कौन-सी चीज़ें उन्हें अधिक लाइक्स और फॉलोअर्स दिला सकती हैं। यह निरंतर मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता उनके वास्तविक व्यक्तित्व और स्वयं को जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं के बीच की रेखा को धुंधला कर देती है, जिससे भ्रम, चिंता और भावनात्मक तनाव उत्पन्न होता है।
- इसके साथ ही, 'फिल्टर बबल्स' की स्थिति उपयोगकर्त्ताओं को अधिक चरम विचारों के संपर्क में लाती है, जिससे नकारात्मक व्यवहार को बल मिलता है और विविध दृष्टिकोणों की समझ सीमित हो जाती है।
- फिल्टर बबल्स तब उत्पन्न होते हैं जब एल्गोरिदम उपयोगकर्त्ता की पसंद के आधार पर सामग्री दिखाते हैं, जिससे विभिन्न दृष्टिकोणों के संपर्क की संभावना कम हो जाती है और पहले से मौजूद विश्वास एवं विचार और अधिक मज़बूत हो जाते हैं।
- माता-पिता का अलगाव: अधिकांश वयस्कों के पास अपने बच्चों के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिये उपकरण या जागरूकता का अभाव होता है।
- किशोर अपने माता-पिता से अपनी गतिविधियाँ छुपाने के लिए फर्ज़ी इंस्टाग्राम अकाउंट्स बनाते हैं, जिससे वे और अधिक गुप्त व अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।
- बाल शोषण: बच्चों (चाइल्ड इन्फ्लुएंसर्स) का उपयोग वयस्कों द्वारा कंटेंट और आय उत्पन्न करने के लिये किया जा रहा है, जिससे वे बाह्य अनुमोदन, वयस्कों की निगरानी, प्रदर्शन का दबाव और पहचान बनाने के भ्रम का सामना कर रहे हैं, जबकि वे मानसिक परिपक्वता तक नहीं पहुँचे हैं।
- साइबर धमकी या ट्रोलिंग: साइबर बुलिंग और शोषण में गुमनाम उत्पीड़न, घृणास्पद टिप्पणियाँ (hate Comments), डीपफेक दुर्व्यवहार एवं बाल शोषण शामिल हैं, जहाँ प्रिडेटर युवाओं को निशाना बनाते हैं।
युवाओं के लिये सोशल मीडिया की चुनौतियों से निपटने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- युवा सुरक्षा के लिये सोशल मीडिया नीति: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को 18 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्ताओं के लिये शैक्षिक, कौशल-आधारित और सकारात्मक कंटेंट को प्राथमिकता देने हेतु अनुशंसा एल्गोरिदम को संशोधित करना होगा।
- लक्षित विज्ञापनों के लिये नाबालिगों के व्यवहार संबंधी प्रोफाइलिंग पर रोक (उदाहरण के लिये, 18 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्त्ताओं के लिये विज्ञापन लक्ष्यीकरण पर मेटा का प्रतिबंध) लगाने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, उपयोगकर्ताओं को प्राप्त होने वाली एल्गोरिथम कंटेंट को संशोधित करने की क्षमता प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वे गोपनीयता और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के लिये अपने सोशल मीडिया अनुभव को अनुकूलित कर सकें।
- नैतिक डिज़ाइन मानकों को लागू करना: प्लेटफॉर्मों को हानिकारक कंटेंट, जैसे यौन, हिंसक या वयस्क कंटेंट , जिसमें जुआ, अपमानजनक या शोषणकारी कंटेंट शामिल है, को बढ़ावा देने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये तथा इसके बजाय नैतिक मानवीय शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- डिजिटल साक्षरता: राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम को स्कूल पाठ्यक्रम (NEP 2020 संरेखण) में साइबर सुरक्षा पाठ्यक्रमों को एकीकृत करना चाहिये।
- ऑनलाइन जोखिमों की पहचान करने के लिये शिक्षकों और अभिभावकों को प्रशिक्षित करना
- शासन और जवाबदेही को सुदृढ़ करना: बच्चों के डेटा का दुरुपयोग करने वाले प्लेटफॉर्मों को दंडित करने हेतु DPDP अधिनियम, 2023 को लागू किया जाना चाहिये, साथ ही युवा सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की समीक्षा के लिये तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट भी कराया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, साइबर धमकी और उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिये त्वरित समाधान तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- माता-पिता और समाज को सशक्त बनाना: गूगल फैमिली लिंक और एप्पल स्क्रीन टाइम जैसे अभिभावकीय नियंत्रण उपकरणों को बढ़ावा देना और स्वस्थ सोशल मीडिया उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु गैर सरकारी संगठनों एवं स्कूलों के साथ सहयोग करना।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टीन अकाउंट्स जैसी सुविधाएँ भी पेश कर सकते हैं, जो सुरक्षा बढ़ाने और 16 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्त्ताओं के लिये अधिक आयु-उपयुक्त अनुभव प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किये गए हैं ।
- इसके अतिरिक्त, ऑफलाइन सहभागिता को प्रोत्साहित करने के लिये स्कूलों में खेल, कला और बाहरी गतिविधियों को पुनर्जीवित करना।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देना: फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्क्रीन टाइम रिमाइंडर, कंटेंट फिल्टर एवं स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों जैसे उपकरणों को लागू कर सकते हैं, साथ ही अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये किरण हेल्पलाइन व मानस मोबाइल ऐप जैसी पहलों को बढ़ावा दे सकते हैं तथा उनका प्रचार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
युवाओं पर सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव तत्काल विनियमन, डिजिटल साक्षरता और नैतिक प्लेटफॉर्म डिज़ाइन की मांग करता है। जबकि यह अभिव्यक्ति और नवाचार के अवसर प्रदान करता है, अनियंत्रित उपयोग मानसिक स्वास्थ्य और पहचान को नुकसान पहुँचाता है। सुरक्षित और सार्थक डिजिटल अनुभव सुनिश्चित करने हेतु नीति, शिक्षा और माता-पिता की भागीदारी को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न : सोशल मीडिया सशक्तीकरण का साधन भी है और मानसिक स्वास्थ्य के लिये खतरा भी। परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:मेन्सQ. सोशल नेटवर्किंग साइट क्या हैं और इन साइट से क्या सुरक्षा निहितार्थ सामने आते हैं? (2013) Q. बच्चों को दुलारने की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। बच्चों के समाजीकरण पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2023) |