भूगोल
ला नीना: प्रभाव, तंत्र और पूर्वानुमान
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना, प्रशांत महासागर, एल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO), व्यापारिक पवनें, मानसून, पाम ऑयल उत्पादन, महासागरीय नीनो सूचकांक। मुख्य परीक्षा के लिये:एल नीनो और ला नीना, मौसम की स्थिति पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
दीर्घ काल से हो रही ला नीना प्रतीक्षा अब समाप्त हो चुकी है, जबकि प्रशांत महासागर में शीतलता अभी भी कम है, हालाँकि इससे अधिक जलवायु समस्याएँ उत्पन्न होने की संभावना नहीं है।
- इसका विलंब से आगमन संभवतः इसलिये हुआ है क्योंकि विश्व के महासागर पिछले कुछ वर्षों की तुलना में अत्यधिक उष्ण हो गए हैं।
- दिसंबर में उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में ला नीना की स्थिति उत्पन्न होती है।
ला नीना क्या है?
- परिचय: ला नीना, जिसका स्पेनिश में अर्थ है "छोटी लड़की", एल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) का एक शीतल चरण है।
- पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक शीतल होना इसकी विशेषता है।
- ला नीना, एल नीनो (उष्ण चरण) और तटस्थ चरण के साथ ENSO के तीन चरणों में से एक है।
- क्रियाविधि: ला नीना में व्यापारिक पवनें प्रबल हो जाती हैं, तथा उष्ण जल को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की ओर प्रवाहित करती हैं।
- पूर्वी प्रशांत महासागर में नीचे से शीतल जल का प्रवाह होता है, जिससे उस क्षेत्र में तापमान में गिरावट आती है।
- चक्र: ला नीना अनियमित चक्रों में घटित होती है, जो आमतौर पर दो से सात वर्षों तक चलती है, तथा प्रायः अल नीनो घटना के बाद घटित होता है।
- हाल की घटनाएँ: सबसे हालिया ला नीना चरण वर्ष 2020 से वर्ष 2023 तक चला, जो वर्ष 2023 के मध्य में एल नीनो चरण में परिवर्तित हो गया।
- जलवायु परिवर्तन: ला नीना के प्रभावों की तीव्रता, जैसे अत्यधिक तापमान और असामान्य मौसम पैटर्न, मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण और भी बढ़ जाती है।
ला नीना के संभावित क्षेत्रीय प्रभाव क्या हैं?
- एशिया: भारत में, ला नीना के कारण जुलाई से सितंबर तक औसत से अधिक मानसूनी वर्षा होने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप सिंधु-गंगा के मैदानों में दालों के उत्पादन में कमी हो सकती है, लेकिन चावल के उत्पादन में वृद्धि देखी जा सकती है।
- इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस सहित दक्षिण-पूर्व एशिया में ला नीना के कारण औसत से अधिक वर्षा होती है, जिससे बाढ़ आती है, लेकिन चावल और पाम ऑयल के उत्पादन में वृद्धि होती है।
- दक्षिण अमेरिका: दक्षिणी ब्राजील, उरुग्वे, उत्तरी अर्जेंटीना और दक्षिणी बोलीविया में ला नीना के कारण औसत से कम वर्षा होती है, जिससे सूखा पड़ता है और सोयाबीन और मक्का की फसल प्रभावित होती हैं।
- इसके विपरीत, उत्तरी ब्राजील, कोलंबिया, वेनेज़ुएला तथा इक्वाडोर और पेरू के कुछ हिस्सों में अधिक वर्षा होती है, जिससे बाढ़ आने की संभावना रहती है।
- अफ्रीका: पूर्वी अफ्रीका में ला नीना से दिसंबर और जनवरी में शुष्क परिस्थितियाँ बनती हैं जिसका नकारात्मक प्रभाव फरवरी और मार्च में काटी जाने वाली फसलों पर पड़ता है।
- दक्षिणी अफ्रीका में ला नीना के कारण गर्मियों में औसत से अधिक वर्षा होती है जिससे मक्का, ज्वार, गेहूँ और सोयाबीन की अधिक पैदावार के साथ कृषि को लाभ होता है।
- ओशिनिया: ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में औसत से अधिक वर्षा होती है जिसके कारण अक्सर तीव्र बाढ़ आती है।
- उत्तरी अमेरिका: अमेरिका में ला नीना के कारण दक्षिण में शुष्क स्थिति तथा उत्तर में आर्द्र, तूफानी मौसम की स्थिति बनती है, जिसमें अलास्का और कनाडा भी शामिल हैं।.
अल नीनो-दक्षिणी दोलन क्या है?
- परिचय: ENSO एक आवर्ती जलवायु पैटर्न है जिसमें मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में जल के तापमान में आवधिक परिवर्तन होने से वैश्विक मौसम पैटर्न प्रभावित होता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: अल नीनो शब्द का प्रयोग दक्षिण अमेरिकी मछुआरों द्वारा क्रिसमस के गर्म जल के लिये किया जाता था।
- सर गिल्बर्ट वॉकर ने 1960 के दशक में समुद्री दाब में परिवर्तन को वायुमंडलीय स्थितियों से जोड़ते हुए दक्षिणी दोलन की खोज की, जिसके परिणामस्वरूप ENSO शब्द की उत्पत्ति हुई।
- 1980 के दशक में ला नीना और न्यूट्रल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा।
- ENSO के चरण:
- अल नीनो: मध्य/पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में महासागर का तापमान बढ़ने से पूर्वी पवनें कमज़ोर होने से इंडोनेशिया में वर्षा कम हो जाती है तथा मध्य/पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में वर्षा बढ़ जाती है।
- ला नीना: मध्य/पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में महासागर का तापमान कम होने के साथ पूर्वी पवनें मज़बूत हो जाती हैं जिससे इंडोनेशिया में वर्षा बढ़ जाती है तथा मध्य/पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में वर्षा कम हो जाती है।
- न्यूट्रल: उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह का तापमान औसत रहता है तथा वायुमंडलीय स्थितियाँ अल नीनो या ला नीना का संकेत देती हैं।
- ENSO चक्र: ENSO चक्र का प्रत्येक 3 से 7 वर्ष में दोलन होता है जिसमें समुद्र की सतह का तापमान औसत से 1°C से 3°C अधिक या कम हो जाता है।
ला नीना और अल नीनो की भविष्यवाणी कैसे की जाती है?
- जलवायु और अवलोकन संबंधी डेटा: वैज्ञानिक ENSO घटनाओं (अल नीनो और ला नीना) की शुरुआत की भविष्यवाणी करने के लिये अवलोकन संबंधी डेटा (जैसे समुद्र की सतह का तापमान, पवनों की स्थिति और उपग्रहों तथा महासागर में स्थापित उपकरणों से प्राप्त डेटा ) के साथ-साथ जलवायु मॉडल का उपयोग करते हैं।
- महासागरीय उपकरणों को विभिन्न प्रयोजनों के लिये रखा जाता है, जिनमें पर्यावरण निगरानी, डेटा संग्रहण तथा नेविगेशन शामिल हैं।
- महासागरीय नीनो सूचकांक: ONI यह पूर्व-मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में 3 माह के औसत सागरीय सतह के तापमान की तुलना 30 वर्ष के औसत से करता है।
- जब दोनों के बीच का अंतर 0.5º सेल्सियस या इससे अधिक होता है तो इसे एल नीनो कहा जाता है, तथा जब यह -0.5º सेल्सियस या इससे कम होता है तो इसे ला नीना कहा जाता है।
- नीनो-3.4 सूचकांक: यह सूचकांक एल नीनो और ला नीना परिघटनाओं को परिभाषित करने वाली सीमाओं की पहचान करने में मदद करता है।
- 0.5°C या इससे अधिक का मान परिघटना के आरंभ का सूचक है, जबकि प्रबल परिघटना के लिये 1.5°C या इससे अधिक तापमान विसंगति की आवश्यकता होती है।
- पूर्वानुमान के लिये अग्रणी समय: यदि ला नीना परिघटना प्रबल अल नीनो के बाद घटित होती हैं, तो उनका पूर्वानुमान दो वर्ष पूर्व तक लगाया जा सकता है।
निष्कर्ष
ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) की शीतल अवस्था, वैश्विक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करता है, जिससे वर्षा, कृषि एवं जलवायु चरम सीमाएँ प्रभावित होती हैं। ONI और नीनो-3.4 जैसे मॉडल तथा सूचकांकों के माध्यम से सटीक पूर्वानुमान इसके प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, मूलतः जब मानवजनित जलवायु परिवर्तन इसकी तीव्रता और अप्रत्याशितता को बढ़ाता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) विश्व के जलवायु पैटर्न को कैसे प्रभावित करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न 1. ला नीना के ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में बाढ़ आने का संदेह है। ला नीना अल नीनो से कैसे अलग है? (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न : सूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारंभ और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीयआपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के सितंबर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभाव से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिये? (2014) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट, 2025
प्रिलिम्स के लिये:विश्व आर्थिक मंच (WEF), फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट, ग्रीन ट्रांजिशन, AI, नवीकरणीय ऊर्जा, कम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ, हितधारक पूंजीवाद, विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मक सूचकांक, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, ऊर्जा संक्रमण सूचकांक, वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, वैश्विक यात्रा एवं पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक, GenAI, अर्द्धचालक, क्वांटम, एन्क्रिप्शन। मेन्स के लिये:वैश्विक श्रम बाज़ारों में तकनीकी प्रगति का प्रभाव। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा 'फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट, 2025' को जारी किया गया, जिसमें वर्ष 2030 तक वैश्विक रोज़गार बाज़ार को आकार देने वाले प्रमुख रुझानों एवं परिवर्तनों पर प्रकाश डाला गया है।
- 55 अर्थव्यवस्थाओं से प्राप्त इनपुट के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक 78 मिलियन नौकरियों की शुद्ध वृद्धि का अनुमान लगाया गया है तथा इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी, आर्थिक बदलाव एवं हरित परिवर्तन से रोज़गार एवं कौशल पर प्रभाव पड़ता है।
WEF रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- उभरते क्षेत्र: सबसे तेजी से उभरते क्षेत्र में फ्रंटलाइन रोज़गार (कृषि श्रमिक, डिलीवरी), देखभाल अर्थव्यवस्था, तकनीकी भूमिकाएँ और ग्रीन ट्रांजिशन से संबंधित रोज़गार शामिल हैं।
- कम प्रभाव वाले क्षेत्र: इस रिपोर्ट में पाया गया है कि कैशियर, डाटा एंट्री क्लर्क एवं बैंक टेलर जैसी लिपिकीय भूमिकाओं में काफी गिरावट आने की संभावना है।
- रोज़गार का विस्थापन और सृजन: स्वचालन, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और वृद्ध होती आबादी के कारण रोज़गार कम हो रहे हैं लेकिन नई तकनीक एवं मशीन प्रबंधन सम्बन्धी भूमिकाओं में वृद्धि हो रही हैं।
- धीमी आर्थिक संवृद्धि के कारण वैश्विक स्तर पर 1.6 मिलियन रोज़गार समाप्त होने की आशंका है।
- तकनीकी उन्नति: डिजिटल पहुँच का विस्तार सबसे अधिक परिवर्तनकारी प्रवृत्ति है, 60% नियोक्ताओं को उम्मीद है कि इससे वर्ष 2030 तक व्यवसायों का स्वरूप बदल जाएगा।
- उच्च कौशल की मांग वाली प्रमुख प्रौद्योगिकियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और सूचना प्रसंस्करण (86%), रोबोटिक्स तथा स्वचालन (58%) और ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ (41%) शामिल हैं।
- हरित परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन प्रवृत्तियों से अक्षय ऊर्जा इंजीनियरों, पर्यावरण इंजीनियरों और इलेक्ट्रिक तथा स्वायत्त वाहनों के विशेषज्ञों जैसी भूमिकाओं की मांग बढ़ रही है।
- जनसांख्यिकीय बदलाव: वृद्ध होती आबादी एवं कम होते कार्यबल से श्रम आपूर्ति प्रभावित होती है।
- उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धावस्था के कारण स्वास्थ्य सेवा की मांग बढ़ जाती है जबकि निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते कार्यबल के कारण शिक्षकों तथा प्रतिभाशाली प्रबंधकों की मांग बढ़ जाती है।
- भू-आर्थिक विखंडन: भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार प्रतिबंध 34% संगठनों में व्यापार मॉडल परिवर्तन को प्रेरित कर रहे हैं।
- व्यवसायों द्वारा अपने परिचालन को विदेश में स्थानांतरित करने और पुनः विदेश में हस्तांतरित करने की अधिक संभावना है।
- भू-राजनीतिक तनाव सुरक्षा भूमिकाओं और साइबर सुरक्षा कौशल की मांग को बढ़ा रहे हैं।
- भारत से संबंधित निष्कर्ष: भारत AI कौशल नामांकन में अग्रणी है, तथा कॉर्पोरेट प्रायोजन से GenAI प्रशिक्षण को काफी बढ़ावा मिल रहा है।
- भारत में नियोक्ता वैश्विक तकनीक अपनाने में तेजी लाने का लक्ष्य रखते हैं, 35% नियोक्ता सेमीकंडक्टर और कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियों से तथा 21% नियोक्ता क्वांटम और एन्क्रिप्शन से परिचालन में परिवर्तन की उम्मीद करते हैं।
- भारत और उप-सहारा अफ्रीकी देश, आने वाले वर्षों में लगभग दो-तिहाई नए कार्यबल की आपूर्ति करेंगे।
विश्व आर्थिक मंच (WEF)
- परिचय: WEF सार्वजनिक-निज़ी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका मुख्यालय ज़िनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
- यह उद्योगों, क्षेत्रों और वैश्विक स्तर पर एजेंडा को आकार देने के लिये वैश्विक नेताओं को शामिल करता है।
- आधार : वर्ष 1971 में क्लॉस श्वाब द्वारा यूरोपीय प्रबंधन फोरम के रूप में स्थापित, WEF ने "हितधारक पूंजीवाद" की शुरुआत की, जो शेयरधारकों के लिये न केवल अल्पकालिक लाभ पर बल्कि सभी हितधारकों के लिये दीर्घकालिक मूल्य पर ज़ोर देता है।
- विकास: वर्ष 1973 में WEF ने अपना ध्यान आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया। इसने वर्ष 1975 में विश्व की अग्रणी 1,000 कंपनियों के लिये सदस्यता की शुरुआत की।
- वर्ष 1987 में इसे विश्व आर्थिक मंच का नाम दिया गया, जिससे संवाद के लिये एक मंच के रूप में इसकी भूमिका व्यापक हो गई। वर्ष 2015 में इसे एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में मान्यता दी गई।
- प्रमुख रिपोर्ट: WEF प्रमुख रिपोर्टें प्रकाशित करता है, जिसमें वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक, विश्व लैंगिक अंतर सूचकांक, ऊर्जा संक्रमण सूचकांक, वैश्विक जोखिम रिपोर्ट और वैश्विक यात्रा एवं पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक शामिल हैं।
उभरती प्रौद्योगिकियों के कारण भारत में रोज़गार के लिये क्या चुनौतियाँ हैं?
- रोज़गार विस्थापन: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, विनिर्माण एवं सेवा जैसे क्षेत्रों में दोहराव वाले कार्यों का स्वचालन हो रहा है, जिसके कारण संभावित रूप से रोज़गार का विस्थापन हो रहा है।
- कौशल की कमी: AI, साइबर सुरक्षा और डेटा साइंस में विशेषज्ञता की बढ़ती आवश्यकता है। हालाँकि कार्यबल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में विशेष कौशल का अभाव है, जिससे रोज़गार की आवश्यकताओं और उपलब्ध प्रतिभा के बीच अंतर देखने को मिलता है।
- असमान प्रौद्योगिकी अपनाना: शहरी क्षेत्र तीव्रता से नवीन प्रौद्योगिकियों को अपना रहे हैं, जबकि इस मामले में ग्रामीण क्षेत्र पीछे हैं, जिसके कारण रोज़गार के अवसरों और आर्थिक विकास में असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्र की चुनौतियाँ: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों, जो भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, को प्रशिक्षण और शिक्षा तक पहुँच की कमी के कारण प्रौद्योगिकी-संचालित नौकरियों में बदलाव करना कठिन हो सकता है।
आगे की राह
- उन्नत कौशल: सरकारों, व्यवसायों और शैक्षिक संस्थानों को उभरते क्षेत्रों के अनुरूप विशेष कौशल उन्नयन कार्यक्रम बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये।
- नियोक्ताओं को कर्मचारियों को घटती भूमिकाओं से बढ़ती भूमिकाओं में परिवर्तन में मदद करने के लिये कैरियर प्रगति के मार्ग बनाने चाहिये।
- विविधता, समानता और समावेशन (DEI): कंपनियों को विविधता भर्ती कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये, जिसका लक्ष्य कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों और क्षेत्रों तक पहुँचना है, जिससे प्रतिभा समूह में वृद्धि हो सके।
- कार्यबल के लिये AI को अपनाना: मानव रचनात्मकता और AI दक्षता के मिश्रण को अपनाना, जहाँ मनुष्य और मशीनें प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय सहयोग कर सकें, जिससे रोज़गार का त्याग किये बगैर उत्पादकता में सुधार हो सके।
- प्रतिभा को बनाए रखना: नियमित वेतन समीक्षा करना, पारिश्रमिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना, तथा प्रतिधारण और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिये स्टॉक विकल्प, बोनस और लाभ जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना।
- सार्वजनिक नीति का समर्थन: सरकारों को पुनः कौशल प्रदान करने और उच्च कौशल प्रदान करने हेतु पहलों को वित्तपोषित करना चाहिये, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी से प्रभावित उद्योगों के लिये, साथ ही विस्थापित श्रमिकों के लिये पुनः प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिये।
निष्कर्ष
WEF की 'फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2025' में कौशल वृद्धि, तकनीकी बदलावों के अनुकूल होने और कार्यबल में विविधता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है। सरकारों और व्यवसायों को भविष्य की नौकरी की मांगों को पूरा करने के लिये कौशल, AI और समावेशी विकास रणनीतियों में निवेश करके लचीले श्रम बाज़ार निर्माण के लिये सहयोग करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वर्ष 2030 तक वैश्विक श्रम बाज़ारों पर तकनीकी प्रगति और आर्थिक स्थितियों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न 1. वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट किसके द्वारा प्रकाशित की जाती है? (2019) (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उत्तर: (c) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग प्रदान करता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a)मेन्स
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भूगोल
तिब्बत, चीन और नेपाल में भूकंप
प्रिलिम्स के लिये:भूकंप, माउंट एवरेस्ट, भारतीय विवर्तनिकी प्लेट, हिमालय पर्वत शृंखला, पैंजिया, भारतीय मानक ब्यूरो मेन्स के लिये:विवर्तनिकी प्लेट संचलन, भारत के भूकंपीय क्षेत्र, तिब्बत का पठार और भूकंप |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
चीन के तिब्बती क्षेत्र और नेपाल के कुछ हिस्सों में 7.1 तीव्रता का भूकंप आया, जिससे व्यापक तबाही हुई। भूकंप का केंद्र माउंट एवरेस्ट क्षेत्र के पास ल्हासा टेरेन के अंदर टिंगरी काउंटी में था।
- यह घटना किक्सियांग को भ्रंश (जो खोजा गया नवीन विवर्तनिकी भ्रंश है) की पहचान करने वाले शोध के निष्कर्षों के अनुरूप है, जिससे क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधियाँ प्रेरित होती हैं।
ल्हासा टेरेन में भूकंप के क्या कारण हैं?
- विवर्तनिकी प्लेट गतिविधि: यह भूकंप भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के बीच चल रहे टकराव (जो लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ था) का परिणाम है।
- भारतीय प्लेट द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 60 मिमी की दर से यूरेशियन प्लेट पर दबाव पड़ रहा है, जिसके कारण तनाव बढ़ने से अंततः भूकंप प्रेरित होता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: वर्ष 1950 से अब तक ल्हासा भू-भाग में 6 या उससे अधिक तीव्रता के 21 से अधिक भूकंप दर्ज़ किए गए हैं।
- इनमें से सबसे शक्तिशाली भूकंप वर्ष 2017 में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के मेनलिंग (जिसकी तीव्रता 6.9 थी) में दर्ज़ किया गया था।
भारतीय विवर्तनिकी प्लेट
- लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व, सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया के विघटन के दौरान भारतीय प्लेट (जो कभी गोंडवाना का हिस्सा थी) 9 सेमी प्रतिवर्ष की गति से उत्तर की ओर खिसकने लगी।
- इसके कारण यूरेशियन प्लेट से टकराव होने से हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ तथा यह प्रक्रिया आज भी जारी है।
- भारतीय प्लेट की सीमा उत्तर में यूरेशियन प्लेट, दक्षिण-पूर्व में ऑस्ट्रेलियाई प्लेट, दक्षिण -पश्चिम में अफ्रीकी प्लेट तथा पश्चिम में अरब प्लेट से संलग्न है।
ल्हासा टेरेन का क्या महत्त्व है?
- ल्हासा टेरेन: भूकंप ल्हासा टेरेन में आया, यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का स्थान है, जिसमें चीन का विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत बाँध भी शामिल है, जो यारलुंग त्संगपो नदी पर निर्मित किया जा रहा है।
- यारलुंग त्सांगपो नदी भारत में सियांग और बाद में ब्रह्मपुत्र के नाम से प्रवेश करती है। इससे अरुणाचल प्रदेश और असम में जल प्रवाह पर संभावित प्रभाव को लेकर भारत में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- वर्ष 2004 में तिब्बत में भूस्खलन के कारण एक हिमनद झील निर्मित हो गई थी, जिससे सतलज नदी लगभग बाढ़ की चपेट में आ गई थी, जिसके कारण भारत को स्थिति पर बारीकी से नज़र रखनी पड़ी।
- यारलुंग त्सांगपो नदी भारत में सियांग और बाद में ब्रह्मपुत्र के नाम से प्रवेश करती है। इससे अरुणाचल प्रदेश और असम में जल प्रवाह पर संभावित प्रभाव को लेकर भारत में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- पर्यावरणीय जोखिम: तिब्बती पठार में महत्त्वपूर्ण जल संसाधन हैं, इसके ग्लेशियरों, नदियों और झीलों के कारण इसे 'तीसरा ध्रुव' कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में आने वाले भूकंप से ग्लेशियर अस्थिर हो सकते हैं और नदियों का मार्ग परिवर्तित हो सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ने की संभावना है।
किक्सियांग कंपनी फॉल्ट (Qixiang Co Fault) क्या है?
- भूवैज्ञानिक विशेषता: QXCF एक वाम-पार्श्वीय भ्रंश है, जिसका अर्थ है कि भ्रंश के दोनों ओर के ब्लॉक एक दूसरे के सापेक्ष बाएँ हाथ की दिशा में पार्श्विक रूप से चलते हैं।
- विवर्तनिकी गतिकी में महत्त्व: QXCF, क्वांगतांग टेरेन में सबसे महत्त्वपूर्ण विवर्तनिकी सीमा के रूप में कार्य करता है, जो तिब्बती पठार भूकंपीय क्षेत्र (चीन के पाँच प्रमुख भूकंपीय क्षेत्रों में से एक) की एक प्रमुख भूवैज्ञानिक विशेषता है।
- QXCF मध्य तिब्बत को पूर्व की ओर बढ़ने में मदद करता है, जिससे भारतीय और यूरेशियाई विवर्तनिकी प्लेटों के टकराव के कारण क्षेत्र में होने वाले जटिल परिवर्तनों में वृद्धि होती है।
- QXCF सक्रिय क्षेत्र में भूकंप की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित कर सकती है।
हिमालय क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्यों है?
- विवर्तनिक प्लेट अभिसरण: हिमालय भारतीय और यूरेशियाई विवर्तनिकी प्लेटों के बीच टकराव का परिणाम है, जो अभी भी 40-50 मिमी/वार्षिक दर से अभिसरित हो रहे हैं, जिससे निरंतर विवर्तनिक दाब उत्पन्न हो रहा है और भूकंपीय सक्रिय हो रहे हैं।
- निरंतर प्लेट अवतलन: भारतीय प्लेट निरंतर यूरेशियन प्लेट के नीचे निमज्जित हो रही है, जिससे दाब उत्पन्न हो रहा है, जो निरंतर भूकंपों के माध्यम से मुक्त हो रहा है।
- भ्रंश रेखाओं की उपस्थिति: यह क्षेत्र अनेक भ्रंश रेखाओं से घिरा हुआ है, जिसमें मुख्य हिमालयी थ्रस्ट भी शामिल है, जो बार-बार होने वाली भूकंपीय परिघटनाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- ये भ्रंश प्रत्यास्थ ऊर्जा संग्रहीत करते हैं, जो मुक्त होने पर भूकंप का कारण बनती है।
- जटिल विवर्तनिक अंतर्क्रियाएँ: भारत-यूरेशिया टकराव के अलावा, अन्य विवर्तनिकी विशेषताएँ, जैसे पामीर पर्वत के नीचे यूरेशियन प्लेट का अभिसरण भी क्षेत्र की भूकंपीयता में योगदान देता है।
- विभिन्न विवर्तनिक बलों के इस अभिसरण से भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।
भूकंप क्या है?
- परिचय: भूकंप पृथ्वी की सतह का कंपन है जो ऊर्जा के निर्मुक्त होने के कारण होता है, जिससे भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं।
- ये तरंगें सभी दिशाओं में यात्रा करती हैं और सीस्मोग्राफ पर अभिलिखित की जाती हैं। सतह के नीचे का प्रारंभिक बिंदु अवकेंद्र (Hypocenter) है, और सतह पर इसके ठीक ऊपर का बिंदु अधिकेंद्र (Epicenter) है।
- भूकंप के प्रकार: भूकंप चार प्रकार के होते हैं: विवर्तनिक, ज्वालामुखीय, नियात (Collapse) और विस्फोट (Explosion)।
- विवर्तनिकी भूकंप तब आता है जब चट्टानों और समीपवर्ती प्लेटों पर कार्य करने वाले भूवैज्ञानिक बलों के कारण पृथ्वी की पर्पटी विघटित हो जाती है, जिससे भौतिक और रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
- ज्वालामुखीय भूकंप ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण उत्पन्न होता है, जो आमतौर पर ज्वालामुखी के भीतर मैग्मा की गति के कारण होता है।
- नियात भूकंप (Collapse Earthquake) भूमिगत गुफाओं या खदानों में होता है, जो सतह पर विस्फोट से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के कारण होता है। ये भूकंप आमतौर पर छोटे झटके वाले होते हैं।
- विस्फोट भूकंप एक ऐसा भूकंप है जो परमाणु और/या रासायनिक उपकरण के विस्फोट का परिणाम होता है।
- भारत में भूकंप: भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा भारत को चार भूकंपीय ज़ोन में विभाजित किया गया है : II, III, IV और V। ज़ोन V भूकंपीय रूप से सबसे अधिक सक्रिय है, जबकि ज़ोन II सबसे कम है।
- भारतीय हिमालय क्षेत्र भूगर्भीय रूप से सक्रिय होने के कारण मुख्यतः भूकंपीय क्षेत्र IV और V के अंतर्गत आता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: हिमालयी क्षेत्र में उच्च भूकंपीय गतिविधि में योगदान देने वाले कारक क्या हैं, और विवर्तनिक प्लेटों और भ्रंश रेखाओं के अभिसरण से भूकंप की संभावना कैसे बढ़ जाती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ है। विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न. भूकंप से संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंपों द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ कीजिये। (2021) |