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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई की पुनः गणना

  • 16 Sep 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

माउंट एवरेस्ट, के-2

मेन्स के लिये

माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को पुनः मापने के कारण और इस संदर्भ में किये गए पूर्व प्रयास

चर्चा में क्यों?

विश्व के सबसे ऊँचे पर्वत माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को पुनः मापने के निर्णय के तकरीबन एक वर्ष बाद चीन और नेपाल जल्द ही इस संबंध में अपने आधिकारिक आँकड़े जारी करेंगे।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि चीन और नेपाल ने मिलकर विश्व के सबसे ऊँचे पर्वत को मापने के लिये वर्ष 2019 में एक समझौता ज्ञापन के तहत सहमति व्यक्त की थी, जिसके मुताबिक दोनों देश माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई के संबंध में एक साथ अपने निष्कर्षों की घोषणा करेंगे।
    • हालाँकि महामारी के कारण इस प्रकार की घोषणा में काफी देरी हुई है।

पुनः ऊँचाई मापने का कारण

  • माउंट एवरेस्ट की वर्तमान आधिकारिक ऊँचाई 8,848 मीटर है, जिसकी गणना वर्ष 1956 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) की गई थी और अब इस संख्या को व्यापक स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है।
  • हालाँकि बीते कुछ वर्षों में विभिन्न टेक्टोनिक गतिविधियों (Tectonic Activity) के कारण इस पर्वत की ऊँचाई में परिवर्तन आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 में नेपाल में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था, कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना ​​है कि इस भूकंप के कारण बर्फ की चोटी में कुछ कमी आ सकती है।
  • चर्चा एक अन्य महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को उसकी उच्चतम चट्टान बिंदु के आधार पर मापी जाए अथवा उच्चतम बर्फ बिंदु के आधार पर।
  • वर्षों से नेपाल और चीन के बीच इसी मुद्दे को लेकर असहमति थी, किंतु अंततः इसे वर्ष 2010 में हल कर लिया गया था, जब नेपाल ने चीन के दावे को और चीन ने नेपाल के दावे को स्वीकार कर लिया था।
  • पर्वत की ऊँचाई को पुनः मापने का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि इसकी गणना अब तक केवल भारतीय, अमेरिकी या यूरोपीय सर्वेक्षणकर्त्ताओं द्वारा की गई है और चीन तथा नेपाल द्वारा किये जा रहे संयुक्त प्रयास दोनों देशों के राष्ट्रीय गौरव का प्रतिनिधित्त्व करेगा।

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ऊँचाई संबंधी नए आँकड़े 

  • दोनों देशों के बीच सहमति बनने के पश्चात् वर्ष 2019 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल के दौरे पर गए तो दोनों देशों ने एवरेस्ट की ऊँचाई को पुनः मापने और इस संबंध में अपने-अपने निष्कर्षों को एक साथ घोषित करने पर सहमति व्यक्त की थी।
  • गौरतलब है कि नेपाल के सर्वेक्षणकर्त्ताओं के समूह ने बीते वर्ष ही अपना कार्य पूरा कर लिया था, जबकि चीन के सर्वेक्षणकर्त्ताओं ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बीच मई माह में अपना अभियान पूरा किया था।
  • हालाँकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि उस स्थिति में क्या होगा जब दोनों देश अलग-अलग माप प्रस्तुत करेंगे, क्योंकि दोनों देशों के समूहों ने पर्वत की ऊँचाई की गणना करने के लिये अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल किया है, अतः यह संभव है कि दोनों के आँकड़ों में कुछ अंतर हो।
    • चीन इससे पहले भी एवरेस्ट की ऊँचाई की गणना दो बार कर चुका है, जिसमें पहली बार वर्ष 1975 में और दूसरी बार वर्ष 2005 में की गई थी।
    • इस बार चीन के सर्वेक्षणकर्त्ताओं के समूह ने पर्वत की ऊँचाई की गणना करने के लिये चीन के घरेलू बाईडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम का प्रयोग किया है।

माउंट एवरेस्ट के बारे में 

  • नेपाल और तिब्बत (चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र) के बीच स्थित तकरीबन 8,848 मीटर (29,035 फीट) ऊँचा माउंट एवरेस्ट हिमालय पर्वत श्रृंखला की एक उच्च चोटी है, इसे पृथ्वी का सबसे ऊँचा बिंदु माना जाता है।
  • इसकी वर्तमान आधिकारिक ऊँचाई 8,848 मीटर है, जो कि 'पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर' (Pakistan Occupied Kashmir-PoK) में स्थित विश्व के दूसरे सबसे ऊँचे पर्वत के-2 (K-2) से 200 मीटर अधिक है। ध्यातव्य है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित के-2 पर्वत की आधिकारिक ऊँचाई 8,611 मीटर है।
  • 19वीं शताब्दी में इस पर्वत का नाम भारत के पूर्व महासर्वेक्षक जॉर्ज एवरेस्ट (George Everest) के नाम पर रखा गया था।
  • इस पर्वत को तिब्बत में चोमोलुंग्मा (Chomolungma) और नेपाल में सागरमाथा (Sagarmatha) के नाम से जाना जाता है।
  • एवरेस्ट पर चढ़ने का सबसे पहला रिकॉर्ड न्यूज़ीलैंड के एक पर्वतारोही एडमंड हिलेरी (Edmund Hillary) और उनके तिब्बती गाइड तेनजिंग नोर्गे (Tenzing Norgay) की नाम है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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