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भूगोल

प्लेट विवर्तनिकी

  • 04 Jul 2020
  • 6 min read

भूमिका:

  • पृथ्वी की सतह अस्थाई एवं परिवर्तनशील है। पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के लिये अंतर्जात एवं बहिर्जात भूसंचलन को जिम्मेदार माना जाता है।
  • सतह पर होने वाले इन परिवर्तनों को स्पष्ट करने के लिये अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया पंरतु भू-आकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्जात भूसंचलन द्वारा सतह पर होने वाले परितर्वनों से संबंधित दिये गए सिद्धांतों में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को सार्वधिक मान्यता प्राप्त है।
  • प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय किसी एक भूगोलवेत्ता को नहीं जाता बल्कि यह ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, ‘पुराचुम्बकत्त्व अध्ययन’ एवं ‘सागर नितल प्रसरण सिद्धांत’ का सम्मिलित रूप है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का विकास:

  • वर्ष 1955 में सर्वप्रथम कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन (J-Tuzo Wilson) ने ‘प्लेट’ शब्द का प्रयोग किया।
  • वर्ष 1967 में मैकेंजी, मॉर्गन व पारकर पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर ‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया।

प्लेट एवं प्लेट विवर्तनिकी:

  • क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल की ऊपरी परत से निर्मित 5 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर मोटाई की ठोस परत अर्थात् स्थलमंडल के वृहद भाग को प्लेट कहते हैं।
    • वस्तुतः पृथ्वी का स्थलीय दृढ़ भू-खंड ही प्लेट कहलाता है।
    • यह कई खंडों में विभाजित होती है जो महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट से निर्मित होती है।
    • इनमें सिलिका, एल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम की अधिकता होती है।
  • गौरतलब है कि ये प्लेटें स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलमंडल पर विभिन्न दिशाओं में संचलन करती हैं।
  • प्लेटों के एक दूसरे के सापेक्ष होने वाले संचलन के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं।

प्लेट्स के संचरन का कारण

  • मुख्यतः संवहन तरंग, कटक दबाव एवं स्लैब खिंचाव को सम्मिलित रूप को प्लेट संचलन के लिये उत्तरदायी माना जाता है।
    • जिसमें संवहन तरंगों का योगदान सर्वाधिक होता है।
    • ध्यातव्य है कि संवहन तरंगों की उत्पत्ति तापमान में वृद्धि एवं दाब में कमी के कारण गर्मगलित पदार्थ अर्थात् मैग्मा के प्रभाव से होती है।

Plate-Tectonics

चित्र प्लेट विवनिकी के विभिन्न पक्ष, आरेखीय रूप में

प्लेट संचलन के प्रकार: प्लेटों का संचलन तीन प्रकार से होता है।

  • अपसारी संचलन-
    • जब दो प्लेटें एक-दूसरे की विपरीत दिशा में गमन करती हैं तो उसे अपसारी संचलन कहा जाता हैं।
    • अपसारी प्लेट किनारों पर नए क्रस्ट का निर्माण होने के कारण इन्हें रचनात्मक सीमा तथा सीमांत भी कहते हैं।
      • विश्व के अधिकांश सीमांत तथा अपसारी सीमा मध्य महासागरीय कटकों के सहारे हैं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण मध्य-अटलांटिक कटक है।

A-Divergent-Boundary

  • अभिसारी संचलन-
    • इसमें दो प्लेटें एक-दूसरे की ओर गति करती हैं। यहाँ पर भारी (अधिक घनत्व वाली) एवं तेज़ गति वाली प्लेट का हल्की व कम गति वाली प्लेट के नीचे क्षेपण होता है।
    • क्षेपण के कारण यहाँ क्षेपित सीमांत का क्षय होता है। इसके फलस्वरूप इसे विनाशात्मक सीमा एवं सीमांत भी कहते हैं।
    • अभिसारी सीमा पर जब कोई भी प्लेट गहराई में क्षेपित होती तो यहाँ ज्वालामुखी पर्वतों के स्थान पर वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
      • हिमालय पर्वत का निर्माण अभिसारी प्लेट सीमा पर ही हुआ है।
    • अभिसारी प्लेट संचलन तीन प्रकार से होता है।
      • महाद्वीपीय- महासागरीय संचलन
      • महाद्वीपीय- महाद्वीपीय संचलन
      • महासागरीय- महासागरीय संचलन 

Volcanic-arc

  • समानांतर प्लेट संचलन/संरक्षी प्लेट सीमा तथा सीमांत-
    • जब प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर गति करती हैं जिससे न तो किसी प्रकार की पर्पटी का निर्माण होता है न विनाश होता है समानांतर प्लेट संचलन या संरक्षी प्लेट सीमांत कहलाता है।
    • संरक्षी प्लेट सीमा पर बहुत अधिक भूकंप आते हैं। 
    • प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर भूंकप, ज्वालामुखी एवं पर्वत निर्माण की प्रक्रिया की व्याख्या की जा सकती है।

Asthenosphere

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