शासन व्यवस्था
जेनरेटिव AI के युग में डेटा प्राइवेसी को सुरक्षित करना
प्रिलिम्स के लिये: जेनरेटिव AI (GenAI), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs), इंडिया AI मिशन, ज़ोहो।
मेन्स के लिये: जनरेटिव AI (GenAI) के बारे में मुख्य तथ्य, इसके अपनाने से जुड़ी चिंताएँ, जोखिमों को कम करने हेतु भारत सरकार द्वारा किये गए उपाय और संप्रभु AI क्षमताओं का निर्माण करने तथा विदेशी प्लेटफॉर्म पर निर्भरता कम करने के लिये कदम
चर्चा में क्यों?
भारत में जेनरेटिव AI (GenAI) को तेज़ी से अपनाए जाने से डेटा गोपनीयता, अनुमान जोखिम और राष्ट्रीय सुरक्षा, विशेष रूप से आधिकारिक कार्यों में विदेशी AI के संबंध में सरकार की चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे संवेदनशील शासन में इसके उपयोग का मूल्यांकन करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
- अनुमान जोखिम वह संभावना है कि AI मॉडल संवेदनशील जानकारी प्रकट कर सकते हैं या संकेतों से उपयोगकर्त्ता की भूमिका, प्राथमिकताएँ और रणनीतिक इरादे का अनुमान लगा सकते हैं, तब भी जब डेटा गोपनीय रखा गया हो।
जेनरेटिव AI (GenAI) क्या है?
- परिचय: जनरेटिव AI कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में एक प्रमुख प्रगति है, जो मशीनों को मूल सामग्री (जैसे कि पाठ, चित्र, संगीत, कोड और वीडियो) बनाने में सक्षम बनाती है।
- परंपरागत AI के विपरीत, जो मुख्य रूप से मौजूदा डेटा का विश्लेषण, वर्गीकरण या पूर्वानुमान लगाती है, जेनरेटिव एआई (GenAI) नए, मानव जैसे आउटपुट उत्पन्न करती है, जो केवल डेटा प्रोसेसिंग से आगे बढ़कर रचनात्मक सृजन की क्षमता दर्शाती है।
- कार्यप्रणाली: जनरेटिव एआई (GenAI) बड़े डेटा सेट (जैसे पाठ, चित्र, कोड, संगीत) से पैटर्न और संबंधों को पहचानना सीखती है। जब इसे कोई प्रॉम्प्ट (निर्देश या इनपुट) दिया जाता है तो यह उन्हीं पैटर्न के आधार पर नया कंटेंट (सामग्री) उत्पन्न करती है।
- आधुनिक GenAI मुख्य रूप से ट्रांसफॉर्मर आर्किटेक्चर का उपयोग करता है, जो ChatGPT, Gemini और Claude जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLM) को शक्ति प्रदान करता है, जो अनुक्रमिक डेटा में संदर्भ को समझने में उत्कृष्ट हैं।
- मुख्य उदाहरण: सामान्य उदाहरणों में ChatGPT और Gemini (पाठ के लिये), DALL-E और Midjourney (चित्रों के लिये), GitHub Copilot (कोड के लिये), Suno और ElevenLabs (ऑडियो के लिये) तथा Runway Gen-2 (वीडियो के लिये) शामिल हैं।
जेनरेटिव AI को अपनाने से जुड़ी मुख्य चिंताएँ क्या हैं?
- अनुमान जोखिम: मुख्य चिंता यह है कि AI सिस्टम उपयोगकर्त्ताओं के प्रॉम्प्ट/संकेतों और व्यवहार से संवेदनशील रणनीतिक अंतर्दृष्टि का अनुमान लगा सकती हैं, जिससे केवल डेटा गोपनीयता से परे गंभीर मुद्दे उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिये वरिष्ठ नौकरशाहों और नीति सलाहकारों के प्रश्नों से राष्ट्रीय प्राथमिकताएँ, नीति समयसीमाएँ और प्रणाली की कमज़ोरियों के बारे में संकेत (reveal) दे सकते हैं।
- डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: विदेशी AI प्लेटफॉर्म भारतीय उपयोगकर्त्ताओं के डेटा को कैसे संग्रहित, ट्रैक या पुनः उपयोग करते हैं, इस पर बहुत सीमित पारदर्शिता है विशेष रूप से तब, जब ऐसे उपकरण टेलीकॉम सब्सक्रिप्शन से जुड़े हों और सत्यापित फोन नंबरों से लिंक किये गए हों।
- विदेशी कंपनियों द्वारा व्यापक डेटा एकत्रीकरण: वैश्विक AI कंपनियाँ लाखों भारतीय उपयोगकर्त्ताओं के डेटा को एकत्रित और विश्लेषित कर सकती हैं, ताकि सामाजिक रुझानों की निगरानी की जा सके और उन्नत AI मॉडल प्रशिक्षित किये जा सकें। इससे भारत की उभरती हुई AI पहलें संभावित रूप से पिछड़ने के खतरे में पड़ सकती हैं।
- विदेशी AI इकोसिस्टम पर निर्भरता: विदेशी जनरेटिव AI (GenAI) सेवाओं के व्यापक उपयोग से बाहरी तकनीकों पर निर्भरता बढ़ रही है, जिससे डेटा स्थानीयकरण, तकनीकी आत्मनिर्भरता और डिजिटल संप्रभुता की दिशा में भारत के प्रयास कमज़ोर पड़ सकते हैं।
- नीति की अस्पष्टता: सरकारी स्तर पर जनरेटिव AI (GenAI) टूल्स के आधिकारिक उपयोग पर एक समान नीति की अनुपस्थिति ने विभागों में विखंडित दृष्टिकोणों को जन्म दिया है, जिसमें कुछ ने प्रतिबंध लगाए हैं और अन्य स्पष्ट सुरक्षा उपायों के बिना प्रयोग कर रहे हैं।
जनरेटिव AI के जोखिमों को कम करने के लिये भारत सरकार कौन-से कदम उठा रही है?
- सरकारी कार्यों में AI उपयोग पर प्रतिबंध: भारत सरकार ने आधिकारिक उपकरणों पर विदेशी जनरेटिव AI (GenAI) टूल्स के उपयोग पर रोक लगाना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिये, वित्त मंत्रालय ने कर्मचारियों को निर्देश दिया है कि वे ChatGPT और DeepSeek जैसे टूल्स का उपयोग सरकारी उपकरणों पर न करें, ताकि गोपनीय सरकारी डेटा तथा दस्तावेज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- आंतरिक निगरानी और नीतिगत चर्चा: विभिन्न मंत्रालय जनरेटिव AI के आधिकारिक उपयोग पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, जिसमें डेटा गोपनीयता, भ्रमपूर्ण निष्कर्ष और यह निर्णय शामिल है कि जब तक देशी विकल्प तैयार नहीं हो जाते, तब तक क्या सरकारी प्रणालियों को विदेशी AI प्लेटफॉर्म से अलग रखा जाए या नहीं।
- स्वदेशी AI विकास: सरकार ₹10,372 करोड़ की ‘इंडिया AI मिशन’ के माध्यम से घरेलू AI क्षमताओं के विकास में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है।
- इसका उद्देश्य कम से कम 12 भारतीय LLM और विशिष्ट क्षेत्रों के लिये छोटे AI मॉडल विकसित करना है। स्टार्टअप सर्वम से उम्मीद है कि वह वर्ष 2026 के अंत तक शासन और सार्वजनिक क्षेत्र के अनुप्रयोगों के लिये एक भारतीय LLM जारी करेगा।
- AI गवर्नेंस दिशानिर्देशों हेतु उपसमिति: इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अंतर्गत इंडिया AI मिशन के तहत गठित एक उपसमिति ने भारत-विशिष्ट AI जोखिम मूल्यांकन ढाँचा तैयार करने की सिफारिश की है, ताकि देश से जुड़े स्थानीय चुनौतियों और संभावित हानियों का समाधान किया जा सके।
- इसने सभी क्षेत्रों में संगठित और सुसंगत AI शासन सुनिश्चित करने के लिये ‘समग्र सरकारी दृष्टिकोण’ अपनाने का भी प्रस्ताव दिया है।
- डिजिटल संप्रभुता को बढ़ावा: सरकार ने संचार और शासन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भारतीय निर्मित डिजिटल प्लेटफॉर्मों के उपयोग को प्रोत्साहित किया है। इस दिशा में वरिष्ठ अधिकारियों ने ज़ोहो ऑफिस सूट और ज़ोहो मेल जैसे भारतीय प्लेटफॉर्म्स को अपनाना शुरू किया है, जिससे डिजिटल संप्रभुता को मज़बूत किया जा सके तथा विदेशी डेटा निर्भरता को सीमित किया जा सके।
- सुरक्षा ढाँचे को सुदृढ़ करना: सरकार डेटा सुरक्षा, नैतिक उपयोग और मॉडल पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित AI परिनियोजन के लिये मानक विकसित कर रही है। इन मानकों का निर्माण इंडिया AI मिशन फ्रेमवर्क के तहत किया जा रहा है, जो संवेदनशील क्षेत्रों में AI के सुरक्षित उपयोग का मार्गदर्शन करेगा।
- AI उपयोग पर चर्चाएँ अब राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रौद्योगिकीय संप्रभुता से जुड़ी हैं जो वर्ष 2020 में चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध और Koo व UPI जैसे घरेलू प्लेटफॉर्मों के प्रोत्साहन जैसे कदमों की दिशा को भी प्रतिध्वनित करती हैं।
भारत संप्रभु AI क्षमताओं का निर्माण कैसे कर सकता है और विदेशी प्लेटफॉर्म जोखिमों को कैसे कम कर सकता है?
- स्वदेशी AI क्षमताओं को सुदृढ़ करना: सबसे बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिये कि शासन के लिये प्रस्तावित 12 स्वदेशी LLM के विकास को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए। साथ ही अनुदान, इनक्यूबेशन, सहयोग और अपनाने के प्रोत्साहन के माध्यम से घरेलू AI इकोसिस्टम को समर्थन दिया जाए, ताकि विदेशी प्लेटफॉर्मों पर निर्भरता कम हो सके।
- AI प्रॉम्प्ट सैनिटाइजेशन गेटवे: सभी आधिकारिक AI प्रॉम्प्ट्स को एक सुरक्षित गेटवे से होकर गुजरना चाहिये, जो मेटाडेटा, संदर्भ और पहचान से संबंधित जानकारी को हटा दे। साथ ही प्रत्येक क्वेरी को एक सुरक्षित आंतरिक रजिस्ट्री में लॉग किया जाए, ताकि ऑडिट और पैटर्न विश्लेषण किया जा सके। इससे संप्रभु AI शासन सुनिश्चित होगा।
- AI प्रशिक्षण के लिये राष्ट्रीय सिंथेटिक डेटा फैब्रिक का निर्माण: भारतीय AI के समक्ष एक प्रमुख चुनौती उच्च-गुणवत्ता और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक डेटा सेट्स की कमी है। सरकार इसे राष्ट्रीय सिंथेटिक डेटा जनरेशन परियोजना के माध्यम से संबोधित कर सकती है, जहाँ भारतीय LLM का उपयोग करके विविध और गोपनीयता-संरक्षित डेटा सेट्स तैयार किये जाएंगे, जिन्हें स्टार्टअप्स तथा शोधकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध कराया जा सके।
- ‘विशिष्ट क्षेत्रीय LLM’ को प्रोत्साहन: GPT-4 जैसे बड़े मॉडलों से प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय, भारत को विशिष्ट क्षेत्रों के लिये LLM विकसित करने पर ध्यान देना चाहिये जैसे कि ‘न्याय-शास्त्र’ जो भारतीय कानून पर प्रशिक्षित हो, ताकि यह उच्च प्रभावशाली और रणनीतिक उपयोगिता प्रदान कर सके।
- फॉस्टर स्ट्रेटेजिक कोलैबोरेशन: मित्र देशों के साथ सुरक्षित AI पर सहयोग करना, वैश्विक AI गवर्नेंस मानकों को स्थापित करना तथा विदेशी AI जोखिमों का प्रबंधन करते हुए तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिये घरेलू नवाचार को प्राथमिकता देना।
- डेटा स्थानीयकरण लागू करना: भारत में सभी AI प्लेटफार्मों को अनिवार्य करना ताकि डेटा को देश के भीतर ही संग्रहित, संसाधित और प्रशिक्षित करना, साथ ही कड़े एन्क्रिप्शन और गोपनीयता प्रावधानों का पालन करना। डेटा हैंडलिंग, इन्फेरेंस सिक्यूरिटी तथा मॉडल पारदर्शिता के लिये एक राष्ट्रीय AI सुरक्षा संबंधी ढाँचा तैयार करना, जो डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 के अनुरूप हो।
- संवेदनशील क्षेत्रों में AI उपयोग प्रतिबंधित करना: सभी मंत्रालयों में एकीकृत मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) जारी की जाएँ, जिनके तहत आधिकारिक कार्यों में विदेशी जनरेटिव एआई टूल्स के उपयोग पर प्रतिबंध हो। संवेदनशील सरकारी डेटा की सुरक्षा के लिये सुरक्षित, पृथक (एयर-गैप्ड) AI प्रणालियों को लागू किया जाए।
निष्कर्ष:
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये गए मुद्रा आपूर्ति के चार मापों में, M3 को विशेष महत्त्व प्राप्त है और वार्षिक व्यापक आर्थिक उद्देश्यों के निर्धारण में इसका उपयोग किया जाता है। मौद्रिक प्रणाली के कार्यों की समीक्षा करने के लिए गठित चक्रवर्ती समिति (1982–85) ने भी मौद्रिक लक्ष्य-निर्धारण के लिये M3 का उपयोग करने की सिफ़ारिश की थी।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: विदेशी जनरेटिव AI प्लेटफॉर्म का प्रसार डेटा गोपनीयता और रणनीतिक भेद्यता की दोहरी चुनौती प्रस्तुत करता है। भारतीय संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये और आगे की राह सुझाइये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. जेनरेटिव AI (GenAI) क्या है?
जेनरेटिव AI बड़े डेटासेट से पैटर्न सीखकर और मानव-समान आउटपुट उत्पन्न करके मूल सामग्री जैसे टेक्स्ट, चित्र, ऑडियो या कोड बनाता है।
2. AI में अनुमान जोखिम क्या है?
अनुमान जोखिम उस संभावना को संदर्भित करता है कि AI संवेदनशील जानकारी, उपयोगकर्त्ता की भूमिकाएँ, प्राथमिकताएँ या रणनीतिक इरादे का अनुमान लगा सकता है, भले ही डेटा गोपनीय हो।
3. सरकारी उपयोग के लिए भारत AI को सुरक्षित बनाने के लिए क्या कदम उठा रहा है?
भारत विदेशी GenAI टूल्स को सरकारी उपकरणों पर सीमित करता है, स्थानीय/स्वदेशी LLMs विकसित कर रहा है, स्वदेशी डिजिटल उपकरणों को बढ़ावा देता है तथा AI गवर्नेंस फ्रेमवर्क तैयार कर रहा है ताकि डेटा और इन्फेरेंस जोखिमों को कम किया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?
(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. बच्चों को दुलारने की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। बच्चों के समाजीकरण पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2023)
प्रश्न. बढ़ते साइबर अपराधों के कारण डिजीटल दुनिया में डेटा सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हो गई है। न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट डेटा सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को संबोधित करती है। आपके विचार में साइबरस्पेस में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा से संबंधित रिपोर्ट की शक्ति और कमज़ोरियाँ क्या हैं? (वर्ष 2018)
भारतीय राजव्यवस्था
मताधिकार एवं मतदान की स्वतंत्रता में अंतर
प्रिलिम्स के लिये: मताधिकार, NOTA (इनमें से कोई नहीं), अनुच्छेद 19, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
मेन्स के लिये: मतदान के अधिकार की प्रकृति, अभिव्यक्ति के रूप में मतदान की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक भागीदारी और चुनावी दक्षता में संतुलन
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) को बताया कि मताधिकार और मतदान की स्वतंत्रता दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं।
- यह बयान उस याचिका के जवाब में दिया गया था, जिसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA 1951) की धारा 53(2) तथा निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 11 और प्रपत्र 21 एवं 21B को चुनौती दी गई थी, जो निर्विरोध चुनावों से संबंधित हैं।
मताधिकार एवं मतदान की स्वतंत्रता में क्या अंतर है?
- प्रकृति:
- मताधिकार: यह RPA, 1951 के तहत प्रदत्त एक वैधानिक अधिकार है, न कि एक मौलिक अधिकार।
- मतदान की स्वतंत्रता: यह अनुच्छेद 19(1)(a) का हिस्सा मानी जाती है, जो प्रत्येक नागरिक को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- यह मतदाता की पसंद को व्यक्त करने की स्वतंत्रता को शामिल करता है चाहे वह किसी उम्मीदवार को चुनना हो या NOTA (इनमें से कोई नहीं) का चयन करना हो। हालाँकि, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल तब लागू होती है जब वास्तविक मतदान कराया जाता है।
- निर्विरोध चुनावों का मुद्दा: RPA, 1951 की धारा 53(2) के तहत, यदि प्रतियोगिता में शामिल उम्मीदवारों की संख्या भरे जाने वाले सीटों की संख्या के बराबर है तो कोई मतदान नहीं कराया जाता। इसके बजाय, रिटर्निंग ऑफिसर उम्मीदवारों को बिना प्रतियोगिता के निर्वाचित घोषित करता है, सामान्य चुनावों के लिये फॉर्म 21 या उपचुनावों के लिए फॉर्म 21B का उपयोग करते हुए।
- जब मतदान नहीं होता तो मतदाता मतदान की स्वतंत्रता का उपयोग नहीं कर पाते और न ही NOTA का चयन कर सकते हैं। याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि यह स्थिति मतदाताओं को NOTA के माध्यम से असंतोष व्यक्त करने के अवसर से वंचित करती है, जिससे उनका अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत दिया गया अभिव्यक्ति का अधिकार उल्लंघित होता है।
- केंद्र सरकार ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 79(b) के तहत NOTA को उम्मीदवार नहीं माना गया है। इसलिये निर्विरोध चुनावों में मतदान कराने की मांग के लिये NOTA का उपयोग नहीं किया जा सकता।
- भारत निर्वाचन आयोग का दृष्टिकोण: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) का कहना है कि यदि NOTA को एक प्रतिस्पर्द्धी उम्मीदवार के रूप में माना जाए तो इसके लिये RPA 1951 और निर्वाचन आचरण नियम, 1961 में संशोधन करना आवश्यक होगा।
- निर्वाचन आयोग (EC) ने उल्लेख किया कि निर्विरोध चुनाव अत्यंत दुर्लभ हैं (वर्ष 1951 से 2024 के बीच हुए 20 आम चुनावों में केवल नौ बार हुए हैं और वर्ष 1991 के बाद से मात्र एक बार ही ऐसे चुनाव हुए हैं)।
- निर्वाचन आयोग (ECI) ने कहा कि जैसे-जैसे लोकतंत्र विकसित हुआ है, अधिक राजनीतिक दल और उम्मीदवार चुनाव लड़ने लगे हैं, जिसके परिणामस्वरूप निर्विरोध विजय अब अत्यंत दुर्लभ हो गई है।
- न्यायिक व्याख्या: सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम संघ (2003) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मताधिकार मूल अधिकार नहीं है, लेकिन एक बार जब मतदाता अपना मत देता है तो वह उसकी अभिव्यक्ति का कार्य बन जाता है, जो उसके विचार और वरीयता को प्रतिबिंबित करता है।
मताधिकार क्या है?
- परिचय: मताधिकार पात्र नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों के चयन में भाग लेने की अनुमति देता है।
- भारत में यह प्रतिनिधिक लोकतंत्र का केंद्रीय तत्त्व है, जो जवाबदेही और जन-भागीदारी को सक्षम बनाता है।
- यद्यपि यह सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के माध्यम से सुनिश्चित किया गया है, परंतु इसकी प्रकृति को मुख्यतः मूल अधिकार के रूप में नहीं बल्कि वैधानिक माना गया है।
- संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 यह प्रावधान करता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम न हो, उसे लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के चुनावों के लिये वयस्क मताधिकार के आधार पर मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का अधिकार है।
- 61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1988) के माध्यम से मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
- वैधानिक ढाँचा: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1950 की धारा 16 गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल होने से रोकती है, जबकि धारा 19 के अनुसार मतदाता की आयु 18 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिये और वह संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से निवासरत होना चाहिये।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 62 के तहत प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति को मताधिकार है, जब तक कि उसे किसी अयोग्यता (जैसे कारावास) के आधार पर प्रतिबंधित न किया गया हो।
- इन प्रावधानों के माध्यम से मतदाता पात्रता परिभाषित की गई है, जिससे मताधिकार वैधानिक बनता है और यह विधिक विनियमन के अधीन रहता है।
- मताधिकार की न्यायिक व्याख्या:
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मामला |
न्यायिक व्याख्या |
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एन.पी. पोन्नुस्वामी (1952) |
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मताधिकार एक वैधानिक अधिकार है और यह उसी के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के अधीन है। |
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ज्योति बसु (1982) |
सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि मतदान न तो मूल अधिकार है और न ही सामान्य विधिक अधिकार, बल्कि मात्र एक वैधानिक अधिकार है। |
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कुलदीप नायर (2006) |
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मताधिकार वैधानिक है। |
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राज बाला (2015) |
सर्वोच्च न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि मताधिकार संवैधानिक स्वरूप रखता है। |
अधिकार क्या हैं?
- अधिकार: अधिकार वह न्यायोचित दावा या विशेषाधिकार है जो व्यक्तियों को संविधान, वैधानिक कानून या न्यायिक व्याख्या के अंतर्गत प्राप्त होता है।
- यह व्यक्ति को कुछ स्वतंत्रताओं या संरक्षणों का अधिकार देता है, जिन्हें न्यायालयों सहित विधिक संस्थानों के माध्यम से लागू या संरक्षित किया जा सकता है।
- अधिकारों के प्रकार:
- प्राकृतिक अधिकार: ये जन्मसिद्ध और अविच्छेद्य अधिकार हैं जो राज्य से पूर्व अस्तित्व में रहते हैं, जैसे जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार।
- ये सीधे न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं होते, परंतु इन्हें मूल अधिकारों के माध्यम से मान्यता दी जा सकती है।
- नैतिक अधिकार: ये विधिक प्रावधानों के बजाय नैतिक सिद्धांतों पर आधारित अधिकार होते हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि क्या नैतिक रूप से सही या गलत है।
- मौलिक अधिकार: ये संविधान के भाग III में निहित हैं, जो समानता और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
- राज्य इनका उल्लंघन नहीं कर सकता और ये अनुच्छेद 32 के अंतर्गत प्रत्यक्ष रूप से सर्वोच्च न्यायालय में प्रवर्तनीय हैं।
- संवैधानिक अधिकार: ये वे अधिकार हैं जो संविधान में भाग III के बाहर निहित हैं, जैसे संपत्ति का अधिकार, मुक्त व्यापार का अधिकार तथा कानून के अधिकार के बिना कराधान न करने का अधिकार।
- इनका प्रवर्तन विधि (legislation) के माध्यम से किया जाता है और इन्हें अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
- वैधानिक (कानूनी) अधिकार: ये अधिकार सामान्य कानूनों से उत्पन्न होते हैं, जैसे मनरेगा (MGNREGA) या वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act)।
- इनका प्रवर्तन संबंधित कानूनों में निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है।
- प्राकृतिक अधिकार: ये जन्मसिद्ध और अविच्छेद्य अधिकार हैं जो राज्य से पूर्व अस्तित्व में रहते हैं, जैसे जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार।
निष्कर्ष
भारत में मताधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत पर आधारित है, परंतु इसका वास्तविक क्रियान्वयन सांविधिक (statutory) कानूनों के माध्यम से नियंत्रित होता है। न्यायालयों ने प्रायः इसे वैधानिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है। यद्यपि विकसित होती लोकतांत्रिक परंपराएँ और न्यायिक विमर्श यह विचार जारी रखे हुए हैं कि क्या इस अधिकार को अधिक सशक्त संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिये।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अनुच्छेद 326 के अंतर्गत सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार एक संवैधानिक आदेश है, फिर भी मतदान की क्रिया सांविधिक है। इस वर्गीकरण के निर्वाचन लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ते हैं, चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. अनुच्छेद 326 क्या प्रावधान करता है?
यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर कराने का निर्देश देता है। 61वें संविधान संशोधन (1988) द्वारा मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी।
2. भारत में मतदान के अधिकार की कानूनी स्थिति क्या है?
सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि यह एक वैधानिक अधिकार है, न कि मूल अधिकार (पोन्नुस्वामी 1952; ज्योति बसु 1982; कुलदीप नायर 2006; अनूप बरनवाल 2023)।
3. RPA, 1951 की धारा 53(2) क्या प्रावधान करती है?
यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या सीटों की संख्या के बराबर हो तो मतदान नहीं कराया जाता और रिटर्निंग ऑफिसर उन्हें निर्वाचित घोषित कर देता है। इसके लिये सामान्य चुनावों में फॉर्म 21 तथा उपचुनावों में फॉर्म 21B का उपयोग किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत में मताधिकार और निर्वाचित होने का अधिकार (2017)
(a) मूल अधिकार है
(b) नैसर्गिक अधिकार है
(c) संवैधानिक अधिकार है
(d) विधिक अधिकार है
उत्तर: C
मेन्स
प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)
सामाजिक न्याय
भारत के शीर्ष 1% व्यक्तियों की संपत्ति वर्ष 2000 से 62% बढ़ी: G20 रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये: G20, G7 असमानता, कुपोषण, बौद्धिक संपदा (IP), IPCC, वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर, IMF, विशेष आहरण अधिकार (SDR), खाद्य सुरक्षा, डिजिटल डिवाइड।
मेन्स के लिये: वैश्विक संपत्ति असमानता पर G20 रिपोर्ट के निष्कर्ष, असमानता के प्रमुख कारक और इसके सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक परिणाम। असमानता से निपटने के लिये आवश्यक उपाय।
स्रोत: ET
चर्चा में क्यों?
दक्षिण अफ्रीका की G20 अध्यक्षता द्वारा गठित G20 समिति ने पाया कि विश्व के संपन्न 1% व्यक्तियों ने वर्ष 2000 से 2023 के बीच वैश्विक संपत्ति का 41% हिस्सा अर्जित किया।
वैश्विक असमानता पर G20 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक आय असमानता: 83% देशों में आय असमानता का स्तर बहुत अधिक है (गिनी गुणांक > 0.4)। ये देश विश्व की कुल जनसंख्या के 90% हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- वर्ष 2000 के बाद से चीन और भारत की आर्थिक वृद्धि के कारण वैश्विक असमानता में थोड़ी कमी आई है, लेकिन अब भी संपन्न क्षेत्रों और उप-सहारा अफ्रीका के बीच बड़ी असमानताएँ बनी हुई हैं, जहाँ गिनी गुणांक 0.61 दर्ज किया गया है।
- संपत्ति असमानता: वर्ष 2000 से वर्ष 2024 के बीच वैश्विक संपत्ति असमानता में तीव्र वृद्धि हुई है। सबसे संपन्न 1% व्यक्तियों ने नई संपत्ति का 41% हिस्सा हासिल किया, जबकि निचले 50% व्यक्तियों को केवल 1% हिस्सा मिला।
- भारत में शीर्ष 1% संपन्न व्यक्तियों की संपत्ति का हिस्सा वर्ष 2000 से वर्ष 2023 के बीच 62% तक बढ़ गया।
- वैश्विक खाद्य असुरक्षा: पूरे विश्व में हर 4 में से 1 व्यक्ति (लगभग 2.3 बिलियन व्यक्ति) मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और वर्ष 2019 से अब तक 335 मिलियन व्यक्ति नियमित रूप से भोजन छोड़ने पर मज़बूर हुए हैं।
गिनी सूचकांक (Gini Index)
- परिचय: गिनी सूचकांक का विकास वर्ष 1912 में इतालवी सांख्यिकीविद् कोराडो गिनी द्वारा किया गया था। यह किसी देश में घरों या व्यक्तियों के बीच आय असमानता को मापने का एक उपकरण है।
- यह लॉरेंज कर्व से व्युत्पन्न है और कर्व तथा पूर्ण समानता की रेखा के बीच के क्षेत्र को परिमाणित करता है, जो 0 (पूर्ण समानता) से लेकर 1 (अधिकतम असमानता) तक होता है तथा निम्न मान अधिक समतापूर्ण समाज का संकेत देते हैं।
- भारत में गिनी सूचकांक की प्रवृत्ति: भारत का गिनी सूचकांक वर्ष 2011 में 28.8 से घटकर वर्ष 2022 में 25.5 हो गया है, जिससे यह मध्यम रूप से निम्न असमानता वाले देशों की श्रेणी में आता है।
- भारत का 25.5 का स्कोर इसे चीन (35.7) और संयुक्त राज्य अमेरिका (41.8) जैसे अधिक असमानता वाले देशों से आगे रखता है।
वैश्विक असमानता को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
- आर्थिक उदारीकरण: वित्तीय विनियमन (मूल्य अस्थिरता), कमज़ोर ट्रेड यूनियनों के साथ श्रम बाज़ार विनियमन तथा सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण, गरीबों पर असमान रूप से प्रभाव डालते हैं, जिससे आय और आर्थिक असमानता बढ़ती है।
- अंतर्राष्ट्रीय कारक: व्यापार पैटर्न और पूंजी प्रवाह से कॉर्पोरेट अभिजात वर्ग को असमान रूप से अधिक लाभ मिलता है, जबकि श्रमिकों विशेषकर कम कुशल श्रमिकों की वास्तविक मज़दूरी स्थिर या घटती जाती है। साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार और एकाधिकार विकसित देशों को लाभ पहुँचाते हैं तथा विकासशील देशों के लिये आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं व तकनीक तक पहुँच सीमित कर देते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय कर नियम और बाह्य आघात बहुराष्ट्रीय कंपनियों व संपन्न वर्ग को कर से बचने का अवसर देते हैं तथा विकासशील देशों को वित्तीय संकटों व वैश्विक मंदी के जोखिम में डालते हैं।
- संरचनात्मक कारक: औपनिवेशिक काल की संसाधन-उत्खनन आधारित अर्थव्यवस्थाओं की विरासत, असमान भूमि स्वामित्व और सामाजिक भेदभाव आज भी कायम हैं। औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न क्षेत्रीय विकास असंतुलन और पीढ़ी-दर-पीढ़ी संपत्ति हस्तांतरण ने आर्थिक असमानता को और गहराया है।
- आय का असमान वितरण: असमान परिसंपत्ति स्वामित्व, शिक्षा, कौशल और सामाजिक पूंजी में अंतर कुछ व्यक्तियों की आय बढ़ाता है जबकि अन्य को पीछे छोड़ देता है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: वंशानुगत संपत्ति और विवाह पैटर्न, सामाजिक भेदभाव (जैसे लैंगिक, जाति, नस्ल) तथा कमज़ोर सार्वजनिक समर्थन संपन्न वर्ग की संपत्ति को स्थिर बनाए रखते हैं और निम्न-आय वर्ग को गरीबी के चक्र में फँसा देते हैं।
असमानता के विभिन्न निहितार्थ क्या हैं?
- गरीबी का स्थायीकरण: उच्च असमानता गरीबी का जाल बनाती है, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण तक पहुँच को सीमित करती है तथा अंतर-पीढ़ीगत असुविधा को बढ़ाती है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंचना को बनाए रखती है, मानव क्षमता का अपव्यय करती है, श्रम उत्पादकता और नवाचार को घटाती है तथा समग्र आर्थिक विकास में बाधा डालती है।
- आर्थिक अस्थिरता: संपत्ति का अत्यधिक संकेंद्रण उत्पादक निवेश के बजाय वित्तीय परिसंपत्तियों और रियल एस्टेट में सट्टेबाज़ी को प्रोत्साहित करता है। वहीं अधिकांश आबादी की सीमित क्रय शक्ति आर्थिक विकास को धीमा कर देती है।
- स्वास्थ्य संकट: स्वास्थ्य सेवाओं पर जेब से होने वाला व्यय 1.3 बिलियन व्यक्तियों को गरीबी में धकेल चुका है, जिससे उत्पादकता और आय में गिरावट आई है। इसी तरह 2.3 बिलियन व्यक्ति खाद्य असुरक्षा से प्रभावित हैं, जिससे भुखमरी, कुपोषण और मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- लोकतंत्र का क्षरण: अत्यधिक संपत्ति केंद्रीकरण से संपन्न वर्ग को राजनीतिक प्रभाव और कानून पर नियंत्रण प्राप्त होता है। उच्च असमानता वाले देशों में लोकतंत्र के कमज़ोर होने की संभावना सात गुना अधिक होती है, क्योंकि संस्थाओं पर जनविश्वास घटता है। पारस्परिक दुष्चक्र: इन परिणामों से एक दुष्चक्र बनता है - आर्थिक असमानता राजनीतिक असमानता को बढ़ावा देती है, जिसके परिणामस्वरूप संपन्न व्यक्तियों के पक्ष में नीतियाँ बनती हैं, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ती है और मध्यम वर्ग कमज़ोर होता है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता एवं धीमी आर्थिक वृद्धि होती है।
G20 रिपोर्ट ने असमानता से निपटने के लिये क्या सुझाव दिये हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय असमानता पैनल (IPI) की स्थापना: रिपोर्ट ने IPCC के मॉडल पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय असमानता पैनल (International Panel on Inequality- IPI) की स्थापना की अनुशंसा की है, जो वैश्विक असमानता की निगरानी करेगा, नीति-निर्माताओं को डेटा उपलब्ध कराएगा और सरकारी हस्तक्षेपों के लिये मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
- प्रगतिशील कराधान: आय, संपत्ति और उत्तराधिकार पर प्रगतिशील कर लागू किये जाएँ तथा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाया जाए, ताकि एक न्यायसंगत समाज का निर्माण हो सके तथा धन-संपत्ति के अत्यधिक संकेंद्रण को कम किया जा सके।
- सामाजिक सुरक्षा नीतियाँ: श्रमिकों की शक्ति को सामूहिक सौदेबाज़ी, ट्रेड यूनियन संरक्षण और न्यूनतम वेतन के माध्यम से सुदृढ़ किया जाए तथा निष्पक्ष वेतन और प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी कानूनों (Antitrust Enforcement) के माध्यम द्वारा कॉरपोरेट एकाधिकारों पर नियंत्रण लगाया जाए।
- वैश्विक व्यापार और बौद्धिक संपदा (IP) नियमों में सुधार: महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य और जलवायु प्रौद्योगिकियों के लिये बौद्धिक संपदा (IP) छूट और अनिवार्य लाइसेंस (Compulsory Licenses) की अनुमति दी जाए तथा ऐसे न्यायसंगत व्यापार और निवेश समझौते प्रोत्साहित किये जाएँ जो विकासशील देशों को मूल्य शृंखला (Value Chain) में ऊपर बढ़ने में सहायता करें।
- वैश्विक वित्तीय प्रणालियों में सुधार: एक सुदृढ़ वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर लागू किया जाए और अत्यधिक धनाढ्य व्यक्तियों पर न्यूनतम कर लगाने की संभावना पर विचार किया जाए। साथ ही अंतराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IFI) में सुधार करते हुए मितव्ययिता (Austerity) की नीतियों के स्थान पर विकास-उन्मुख नीतियाँ अपनाई जाएँ तथा पूंजी नियंत्रण (Capital Controls) को सामष्टिक आर्थिक स्थिरता (Macroeconomic Stability) के एक साधन के रूप में मान्यता प्रदान की जाए।
- विकासशील देशों की क्षमताओं का विस्तार: अत्यधिक ऋणग्रस्त विकासशील देशों को ऋण राहत (Debt Relief) प्रदान की जाए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विशेष आहरण अधिकार (SDR) को आवश्यकता के आधार पर (न कि कोटा के आधार पर) आवंटित किया जाए और अनुकूलन व क्षति-निवारण के लिये जलवायु वित्त (Climate Finance) सुनिश्चित किया जाए। साथ ही खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाए और डिजिटल अंतराल (Digital Divide) को कम किया जाए।
निष्कर्ष
- G20 की रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि वैश्विक असमानता अब आपात स्तर पर पहुँच चुकी है, जहाँ शीर्ष 1% व्यक्तियों के पास अत्यधिक धन-संपत्ति केंद्रित है। यह असमानता गरीबी, स्वास्थ्य संकट, आर्थिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक क्षरण को बढ़ावा देती है। इसे दूर करने के लिये प्रगतिशील कराधान, सामाजिक सुरक्षा, वैश्विक समन्वय तथा व्यापार, बौद्धिक संपदा (IP) और वित्तीय प्रणालियों में सुधार की आवश्यकता है, ताकि समावेशी और सतत् विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. विकासशील देशों में असमानता पर आर्थिक उदारीकरण, संरचनात्मक कारकों तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के प्रभाव की समीक्षा कीजिये |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. वैश्विक धन-संपत्ति में शीर्ष 1% की हिस्सेदारी क्या है?
वर्ष 2000 से 2024 के बीच, सबसे धनी 1% व्यक्तियों ने विश्व की कुल नई संपत्ति का 41% प्राप्त किया, जबकि निचले 50% वर्ग को केवल 1% हिस्सा मिला, यह गहरी वैश्विक असमानता को उजागर करता है।
2. गिनी इंडेक्स क्या है और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति कैसी है?
गिनी इंडेक्स आय असमानता को मापने का एक पैमाना है (0 = पूर्ण समानता, 1 = अधिकतम असमानता)। भारत का जिनी सूचकांक 2011 में 28.8 से घटकर 2022 में 25.5 हो गया है, जिससे भारत चीन (35.7) और अमेरिका (41.8) की तुलना में अधिक समानतामूलक देश बन गया है।
3. वैश्विक असमानता से निपटने के लिये वर्ष 2025 की G20 रिपोर्ट का प्रमुख प्रस्ताव क्या है?
रिपोर्ट का प्रमुख प्रस्ताव अतर्राष्ट्रीय असमानता पैनल (International Panel on Inequality- IPI) की स्थापना है, जो IPCC के मॉडल पर आधारित होगा। इसका उद्देश्य असमानता की प्रवृत्तियों पर विश्वसनीय ऑंकड़े और नीतिगत विश्लेषण प्रदान करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स:
प्रश्न. COVID-19 महामारी ने भारत में वर्ग असमानताओं और गरीबी को गति दे दी है। टिप्पणी कीजिये। (2020)


