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मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के माध्यम द्वारा लोकतंत्र को सशक्त बनाना

  • 30 Sep 2025
  • 128 min read

यह संपादकीय “India needs an SIR because of Manmohan Singh government’s Aadhaar policies” पर आधारित है, जो 29/09/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। यह लेख बताता है कि आधार नामांकन में नागरिकता मानदंडों को कमज़ोर करने और इसे मतदाता सूचियों से जोड़ने के कारण अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में प्रवेश करने की अनुमति मिली है, जिससे भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा की अखंडता को नुकसान पहुँचा है। इसलिये देशव्यापी मतदाता सूचियों के तत्काल और व्यापक संशोधन की आवश्यकता है। 

प्रिलिम्स के लिये: भारत निर्वाचन आयोग (ECI), विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR), मतदाता सूची, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 

मेन्स के लिये: मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की आवश्यकता, मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में प्रमुख चुनौतियाँ 

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की शुरुआत की है, जिसमें 8 करोड़ मतदाताओं को नए एन्यूमरेशन फॉर्म भरवाए जा रहे हैं। एक योजनाबद्ध राष्ट्रीय SIR के हिस्से के रूप में, सभी मतदाताओं को अपने फॉर्म और दस्तावेज फिर से जमा करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उन लोगों को जो पिछले पुनरीक्षण के बाद जोड़े गए हैं। इस विशाल स्तर और सत्यापन कार्यभार के कारण यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जो विधानसभा चुनाव से पहले अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ समाप्त होगा।

मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्या है?  

  • परिभाषा: SIR भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा किये जाने वाला मतदाता सूचियों का व्यापक, घर-घर जाकर (डोर-टू-डोर) सत्यापन और अद्यतन है, जिसका उद्देश्य सटीक और त्रुटिरहित मतदाता सूची सुनिश्चित करना है। 
  • कानूनी आधार: यह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत और संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा दिये गए अधिकारों के तहत किया जाता है, जो ECI को अपनी विवेकानुसार मतदाता सूचियों में संशोधन करने की शक्ति देता है। 
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) द्वारा घर-घर जाकर गहन सत्यापन। 
    • योग्य मतदाताओं को सूची में शामिल करना, डुप्लीकेट, मृतक और अयोग्य नामों को हटाना। 
    • निवास और नागरिकता सत्यापन के लिये दस्तावेज जमा करना। 
  • ऐतिहासिक उदाहरण: पिछले SIR 1950 के दशक से विभिन्न राज्यों में अंतराल पर (कम से कम नौ बार) आयोजित किये गए हैं, जो प्रवासन और सीमांकन जैसी विकसित प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं। 
    • बिहार में चल रहे 2025 अभ्यास से पहले अंतिम SIR 2003 में आयोजित किया गया था।

मतदाता सूची क्या है? 

  • मतदाता सूची के बारे में: मतदाता सूची, जिसे वोटर लिस्ट भी कहा जाता है, में किसी निर्दिष्ट क्षेत्र में पंजीकृत हर व्यक्ति का विवरण शामिल होता है।  
    • इसे नियमित रूप से अपडेट किया जाता है ताकि नए मतदाता (आमतौर पर वे जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं) को जोड़ा जा सके और उन व्यक्तियों को हटाया जा सके जो अब पात्र नहीं हैं, जैसे मृतक या जो कानून द्वारा अयोग्य घोषित किये गए हैं। 
    • मतदाता सूचियों की तैयारी, पुनरीक्षण और रख-रखाव भारत के संविधान (अनुच्छेद 324, 325, 326) में निहित है और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 द्वारा नियंत्रित है। 
  • मतदाता सूची के प्रकार: 
    • सामान्य मतदाता सूची (General Electoral Roll): लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिये सामान्य मतदाताओं की सूची। 
    • सेवा मतदाता सूची (Service Electoral Roll):शस्त्र बलों और सरकारी कर्मचारियों के लिये, जो अपने सामान्य निवास स्थान से बाहर तैनात हैं। 
    • विदेशी मतदाता सूची (Overseas Electoral Roll): उन गैर-निवासी भारतीयों (NRI) के लिये जो मतदान करने के पात्र हैं और मतदान करना चाहते हैं। 
  • मतदाता सूची पुनरीक्षण: 
    • मतदाता सूची पुनरीक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची को अपडेट और सुधारकर उसकी सटीकता और पूर्णता सुनिश्चित की जाती है। इसमें नए मतदाताओं को जोड़ना, मृतक या अयोग्य व्यक्तियों के नाम हटाना और चुनाव से पहले मौजूदा प्रविष्टियों को सुधारना शामिल है। 

मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने की क्या आवश्यकता है? 

  • दीर्घकालिक त्रुटियों का सुधार: SIR उन जमा हुई त्रुटियों और छूटों को ठीक करता है जो चुनाव की साख को प्रभावित करती हैं।
    • बिहार में पिछली SIR 2003 में आयोजित हुई थी; 2025 की SIR में लगभग 4.74 करोड़ मतदाताओं (राज्य के मतदाताओं का 60%) का पुनः सत्यापन किया जा रहा है ताकि गलतियों और पुराने प्रविष्टियों को हटाया जा सके। 
  • डुप्लीकेट और नकली मतदाताओं का उन्मूलन: यह धोखाधड़ी या डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाता है, जिसमें कई बार पंजीकरण करना शामिल है, जिससे चुनावी दुरुपयोग रोका जा सके। 
    • भूतपूर्व मतदाता और डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाकर, विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) “एक व्यक्ति, एक वोट (One Person, One Vote)” के सिद्धांत को सुदृढ़ करता है और इस प्रकार लोकतंत्र में जनता के विश्वास को दृढ़ बनाता है। 
  • नए पात्र मतदाताओं को शामिल करना: यह सुनिश्चित करता है कि पिछले अपडेट के बाद 18 वर्ष के हुए लाखों नए प्रथम-बार मतदाता सूची में शामिल हों, जिससे मतदाता भागीदारी बढ़ती है। 
    • बिहार की 2025 की SIR में 8 करोड़ मतदाताओं को लक्षित किया गया है, जिसमें कई प्रथम-बार मतदाता शामिल हैं। 
  • निर्वाचन सीमाओं और जनसंख्या परिवर्तन के साथ संरेखण: परिसीमन के बाद अद्यतन यह सुनिश्चित करते हैं कि नामावलियाँ आधिकारिक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं से सुमेलित हों, जो निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह मतदाता के पते को जनसंख्या परिवर्तनों के अनुरूप अपडेट करता है, निर्वाचन क्षेत्र की सटीकता बनाए रखता है और प्रवासियों के मताधिकार हनन को कम करता है। 
  • पारदर्शिता और सार्वजनिक सहभागिता: SIR संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 326) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का पालन करता है, जिससे पात्रता और अयोग्यता नियमों का पालन सुनिश्चित होता है। 
    • मसौदा/ड्राफ्ट सूचियों का प्रकाशन और दावे व आपत्तियाँ आमंत्रित करना मतदाताओं के विश्वास को बढ़ाता है। 
  • प्रौद्योगिकीय और नीति उन्नयन को संबोधित करना: SIR मतदाता सूचियों के डिजिटल एकीकरण का समर्थन करता है तथा प्रवासियों के लिये दूरस्थ मतदान जैसी नीतिगत सुधारों को सक्षम बनाकर पहुँच एवं कार्यकुशलता को बढ़ाता है। 
    • उदाहरण: बिहार भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने नगरपालिकाओं के चुनावों में मोबाइल ई-वोटिंग का पायलट चलाया, E-SECBHR ऐप के माध्यम से, जिसमें ब्लॉकचेन, फेसियल रिकग्निशन, बायोमेट्रिक स्कैनिंग और मतदाता पहचान सत्यापन का उपयोग किया गया। 
  • न्यायिक स्वीकृति: मो‍हिंदर सिंह गिल बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामला, 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग (ECI) की व्यापक शक्तियों को मान्यता दी, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किये जा सकें। इसमें आवश्यकता पड़ने पर पुनर्मतदान (re-poll) कराने की शक्ति भी शामिल है। साथ ही, न्यायिक समीक्षा को अनुच्छेद 329(b) के अनुसार चुनाव के दौरान सीमित बताया गया। 
    • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अनुच्छेद 327 और 328 के अंतर्गत बने कानून किसी विषय पर मौन हों, तो निर्वाचन आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है।

नोट: अनुच्छेद 327 संसद को यह शक्ति देता है कि वह विधानमंडल के चुनावों से संबंधित प्रावधान बना सके। 

  • अनुच्छेद 328 राज्य की विधानमंडल को यह शक्ति देता है कि वह अपने विधानमंडल के चुनावों से संबंधित प्रावधान बना सके। 

मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के संचालन में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • हाशिये पर रह रहे समूहों के लिये दस्तावेजीकरण संबंधी बाधाएँ: आंतरिक प्रवासी, बेघर लोग और जनजातीय समुदाय जैसे संवेदनशील वर्ग प्रायः मतदाता सत्यापन हेतु आवश्यक औपचारिक दस्तावेजों से वंचित रहते हैं, जिससे उनके मताधिकार से वंचित होने का खतरा बढ़ जाता है। 
    • आधार, राशन कार्ड या यहाँ तक कि मतदाता पहचान-पत्र जैसे व्यापक रूप से प्रयुक्त पहचान पत्रों को बाहर रखने से वंचित मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। 
    • भारत में मतदाता सूची के पुनरीक्षण/संशोधन के दौरान जन्म प्रमाण-पत्र या पैतृक दस्तावेज जैसी पहचानें माँगना व्यावहारिक रूप से नागरिकता-परीक्षा जैसा कार्य करता है। इससे गंभीर चिंता उठती है कि सामाजिक-आर्थिक और ऐतिहासिक कारणों से ऐसे दस्तावेजों से वंचित हाशिये और अल्पसंख्यक समुदायों को व्यवस्थित रूप से चुनावी प्रक्रिया से बाहर किया जा सकता है। 
  • अवैध आप्रवासियों का समावेशन: अप्रभावी सत्यापन तंत्र के कारण अवैध आप्रवासियों को पंजीकृत होने का अवसर मिल गया है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
    • जैसा कि CAG की रिपोर्ट में कहा गया है, आधार नामांकन में समस्याएँ इस समस्या को और बढ़ा देती हैं। 
  • योग्य मतदाताओं का त्रुटियों के कारण बहिष्करण: विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान विशाल स्तर पर क्षेत्रीय कार्य किया जाता है, जिसमें हज़ारों बूथ स्तर अधिकारियों (Booth Level Officers- BLO) की भागीदारी होती है। दूरदराज़ क्षेत्रों में इन अधिकारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती है। 
    • हटाने या सत्यापन की प्रक्रिया में मानव या प्रणालीगत त्रुटियों के कारण वैध मतदाताओं के नाम सूची से छूट जाने का खतरा रहता है। 
    • पिछले पुनरीक्षण अभियानों में हज़ारों लोगों को अपने नाम पुनः जोड़ने हेतु दावा प्रस्तुत करना पड़ा, जिससे प्रक्रियागत कमियों का संकेत मिलता है। 
  • राजनीतिक हस्तक्षेप के जोखिम: विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया का राजनीतिकरण हो सकता है, जिसमें राजनीतिक दलों पर चुनावी लाभ के लिये मतदाताओं को जोड़ने या हटाने का आरोप लगाया जाता है। 
    • यह संवेदनशील राज्यों में मतदाता क्षेत्रों की मनमानी सीमांकन (गेरीमैंडरिंग) और मतदाता दमन (voter suppression) के आरोपों को जन्म दे सकता है। 
  • डेटा गुणवत्ता और तकनीकी सीमाएँ: अप्रभावी प्रारंभिक डेटा कैप्चर/संग्रह, रिकॉर्ड में असमानता और तकनीकी ढाँचे की कमियाँ सुचारु सत्यापन में बाधा डालती हैं। 
    • UIDAI ने 2021 में स्वीकार किया कि आधार डेटा की गुणवत्ता मतदाता की विशिष्टता सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नहीं थी। 
  • पर्याप्त सार्वजनिक परामर्श की कमी: बिहार में वर्ष 2025 के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान एक प्रमुख आलोचना यह रही कि पर्याप्त सार्वजनिक परामर्श नहीं किया गया। 
    • जहाँ निर्वाचन आयोग (ECI) ने राजनीतिक दलों को बूथ स्तर के एजेंट नियुक्त करने और प्रारूप सूची पर दावे व आपत्तियाँ आमंत्रित करने की अनुमति दी, वहीं कई कार्यकर्त्ताओं और नागरिक समाज समूहों का तर्क था कि प्रक्रिया शीघ्रता में पूरी की गई, जिससे सार्थक जनता की भागीदारी सीमित रह गई। 
    • इससे SIR की पारदर्शिता, समावेशिता और वैधता को लेकर चिंता उत्पन्न हुई, विशेषकर बिहार की जटिल सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, बाढ़ और उच्च प्रवासन दर को देखते हुए। 
  • सुरक्षा और लोकतांत्रिक अधिकारों का संतुलन: कड़े नामांकन को सुनिश्चित करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे नागरिकों के मतदान अधिकारों के साथ संतुलित करना चाहिये।  
    • सुप्रीम कोर्ट समावेशी प्रक्रियाओं की आवश्यकता को मानता है, वहीं धोखाधड़ीपूर्ण पंजीकरण की रोकथाम को भी कड़ा रखने की आशा करता है, जिससे यह एक संवेदनशील कानूनी और नैतिक चुनौती बन जाती है।

मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रभावशीलता और समावेशिता बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • दस्तावेज आवश्यकताओं को सरल बनाना: आधार, मतदाता पहचान-पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को स्वीकार करना, ताकि प्रवासियों और सीमांत समूहों का मताधिकार कम न हो। 
    • भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि निर्वाचन आयोग (ECI) को मतदाता सूची अपडेट करने के लिये आधार, मतदाता पहचान-पत्र और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से स्वीकार किये जाने वाले दस्तावेजों पर विचार करना चाहिये। 
  • सत्यापन तंत्र को सुदृढ़ करना: बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, फेसियल रिकग्निशन और AI क्रॉस-चेक का उपयोग करके सत्यापन को दृढ़ करना ताकि सटीकता सुनिश्चित हो। 
    • बिहार के मोबाइल ई-वोटिंग पायलट में ब्लॉकचेन का उपयोग कर अवैध प्रविष्टियों को रोकने के अनुभवों से सीख ली जा सकती है। 
  • सार्वजनिक जागरूकता और आउटरीच बढ़ाना: जागरूकता अभियान चलाना और नागरिकों को SIR प्रक्रियाओं, समयसीमा और दस्तावेज आवश्यकताओं की जानकारी प्रदान करने हेतु सुलभ शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना, जैसा कि केरल और गोवा में प्रभावी रहा। 
    • कनाडा में, इलेक्शंस कनाडा जनजातीय जनसंख्या तक पहुँचने के लिये लक्षित आउटरीच कार्यक्रम चलाता है ताकि मतदाता सूची अपडेट में उनकी उच्च भागीदारी सुनिश्चित हो सके। 
  • क्षेत्रीय अधिकारियों के प्रशिक्षण और संसाधनों में सुधार: बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) को सटीक डोर-टू-डोर (घर-घर जाकर) सत्यापन के लिये व्यापक प्रशिक्षण, तकनीकी उपकरण और पर्यवेक्षण प्रदान करना, जिससे त्रुटियाँ और बहिष्कार कम हों। 
  • राजनीतिक दलों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: SIR की निगरानी में राजनीतिक दलों को सक्रिय रूप से शामिल क्ररना ताकि पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप रोका जा सके और पारदर्शिता सुनिश्चित हो, जिससे जनता का विश्वास बढ़े। 
    • सार्वजनिक परामर्श आयोजित करना जिसमें नागरिक समाज और नागरिकों को शामिल किया जाए, ताकि पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप से बचा जा सके, पारदर्शिता बढ़े तथा समावेशी भागीदारी सुनिश्चित हो। 
    • जर्मनी में राजनीतिक दलों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को पारदर्शिता के लिए मतदाता सूचियों की निगरानी की अनुमति दी जाती है। 
  • कानूनी और न्यायिक निगरानी का उपयोग करना: संविधान के प्रावधानों (अनुच्छेद 326) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का पालन सुनिश्चित करना, सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग की समीक्षा के साथ, जिससे लोकतांत्रिक अधिकार सुरक्षित रहें। 
    • SIR को चरणबद्ध तरीके से लागू करना, उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों से शुरुआत करना जहाँ अधिक प्रवासन या विसंगतियाँ हों और पूर्ण पैमाने पर लागू करने से पहले प्रतिक्रिया के आधार पर तरीकों को परिष्कृत करना, जैसा कि बिहार के वर्ष 2025 के चरणबद्ध लॉन्च में किया गया। 

निष्कर्ष: 

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, मतदाता सूची में असमानताएँ "हर बार के लिये गणना को बढ़ा देती हैं और मतदान के अनुमान में नीचे की ओर पूर्वाग्रह उत्पन्न करती हैं," जो नियमित और गहन पुनरीक्षण की आवश्यकता को उजागर करती हैं। दस्तावेज संबंधी कमियों, डुप्लीकेट प्रविष्टियों और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये, निर्वाचन आयोग को सरल सत्यापन, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, सार्वजनिक जागरूकता अभियान और विश्वसनीय SIR प्रक्रिया का चरणबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिये, ताकि सहभागी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किये जा सकें। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सटीक मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भारत में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कैसे चुनावी सटीकता और समावेशिता को सुधार सकता है, विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 

1. मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्या है?  
निर्वाचन आयोग द्वारा घर-घर जाकर (डोर-टू-डोर) सत्यापन, ताकि सटीक और अपडेटेड मतदाता सूची सुनिश्चित की जा सके, RPA, 1950 की धारा 21(3) और अनुच्छेद 324 के अंतर्गत। 

2. भारत में SIR की आवश्यकता क्यों है? 
त्रुटियों को सुधारने, डुप्लिकेट्स को हटाने, नए मतदाताओं को शामिल करने, प्रवासन और सीमांकन के साथ समन्वय करने और "एक व्यक्ति, एक वोट (One Person, One Vote)" के सिद्धांत को बनाए रखने के लिये। 

3. SIR की मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं? 
दस्तावेज संबंधी कमियाँ, अवैध प्रविष्टियाँ, संचालन में त्रुटियाँ, राजनीतिक हस्तक्षेप, सीमित सार्वजनिक परामर्श और तकनीकी सीमाएँ। 

4. SIR को प्रभावी और समावेशी कैसे बनाया जा सकता है? 
दस्तावेजों को सरल बनाना, बायोमेट्रिक्स/AI का उपयोग, सार्वजनिक जागरूकता, BLO का प्रशिक्षण, राजनीतिक दलों को शामिल करना, परामर्श आयोजित करना, चरणबद्ध क्रियान्वयन, कानूनी निगरानी। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2021) 

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है। 
  2. 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। 
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1       
(b)  केवल 2 
(c) 1 और 3       
(d) 2 और 3 

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

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