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OMO खरीदारी तथा डॉलर–रुपया स्वैप

  • 27 Dec 2025
  • 32 min read

स्रोत: द हिंदू

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सरकारी प्रतिभूतियों की खुला बाज़ार परिचालन (OMO) खरीद और डॉलर-रुपये की बाय/सेल स्वैप ऑक्शन सहित दोहरे मध्यक्षेप की घोषणा की है।

सारांश

  • खुला बाज़ार परिचालन (OMO) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद एवं बिक्री की जाती है, जिसका उद्देश्य तरलता तथा मुद्रा आपूर्ति का प्रबंधन करना होता है।
    प्रतिभूतियों की खरीद से प्रणाली में तरलता का संचार होता है, जबकि उनकी बिक्री से तरलता का अवशोषण किया जाता है।
  • रुपया–डॉलर स्वैप के अंतर्गत RBI बैंकों के साथ डॉलर और रुपये का परस्पर विनिमय करता है, जिससे तरलता प्रबंधन के साथ-साथ विनिमय दर को भी प्रभावित किया जाता है।
  • RBI प्रायः इन दोनों साधनों का संयुक्त रूप से उपयोग करता है, ताकि घरेलू तरलता, ब्याज दरों तथा मुद्रा स्थिरता के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके और किसी एक उपकरण पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।

खुला बाज़ार परिचालन (OMO) क्या हैं?

  • खुला बाज़ार परिचालन से तात्पर्य भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अर्थव्यवस्था में चलनिधि और मुद्रा आपूर्ति को विनियमित करने के लिये खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री से है।
    • प्रकार:
      • OMO खरीद: RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद → रुपये की चलनिधि का विस्तार (विस्तारवादी नीति)
      • OMO बिक्री: RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री → रुपये की चलनिधि को अवशोषित करता है (संकुचनकारी)।

रुपया–डॉलर स्वैप परिचालन क्या है?

  • रुपया–डॉलर स्वैप एक विदेशी मुद्रा साधन है, जिसके तहत RBI बैंकों के साथ डॉलर के बदले रुपये का विनिमय करता है तथा भविष्य की किसी तिथि पर इस लेन-देन को पुनः प्रतिवर्तित करने का समझौता किया जाता है।
  • संरचना:
    • बाय/सेल स्वैप: RBI वर्तमान में डॉलर क्रय करता है (रुपये देता है) और बाद में उसी डॉलर को विक्रय हेतु सहमत होता है → अभी रुपये की चलनिधि बढ़ाता है, और परिपक्वता पर उसे वापस ले लेता है।
    • सेल/बाय स्वैप: RBI वर्तमान में डॉलर का विक्रय करता है (रुपये को अवशोषित करता है) और बाद में उन्हें वापस क्रय करता है → अभी रुपये की चलनिधि को अवशोषित करता है, बाद में उसे पुनः अंतर्वेशित करता है।

RBI दोनों का एक साथ प्रयोग क्यों करता है? 

  • RBI दोनों साधनों का एक साथ प्रयोग करता है क्योंकि वे चलनिधि, ब्याज दरों और विनिमय दर स्थिरता के प्रबंधन में अलग-अलग लेकिन पूरक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
    • अल्पकालिक बनाम टिकाऊ चलनिधि प्रबंधन: OMO, RBI को चलनिधि को स्थायी रूप से बेहतर बनाने में मदद करता है, जबकि रुपया-डॉलर स्वैप लंबी अवधि के लिये टिकाऊ लेकिन प्रतिवर्ती चलनिधि प्रदान करते हैं।
    • उद्देश्यों का पृथक्करण: स्वैप का उपयोग करके RBI घरेलू बांड यील्ड को सीधे परिवर्तित किये बिना रुपये की चलनिधि को बढ़ा सकता है, जबकि OMO सीधे सरकारी प्रतिभूति बाज़ार को प्रभावित करता है।
    • चलनिधि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अस्थिरता का प्रबंधन: रुपया-डॉलर स्वैप विनिमय दर को स्थिर करने और विदेशी मुद्रा भंडार को अनुकूलित करने में मदद करते हैं, जबकि OMO पूरी तरह से घरेलू मौद्रिक स्थितियों पर केंद्रित होता है ।
    • मौद्रिक नीति संचरण में लचीलापन: ये दोनों मिलकर RBI को किसी एक साधन का अत्यधिक प्रयोग किये बिना चलनिधि अधिशेष/घाटे को नियंत्रित करने के लिये अधिक परिचालन लचीलापन प्रदान करते हैं।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य घरेलू चलनिधि को सुगम बनाना, डॉलर-रुपये के बढ़े हुए फॉरवर्ड प्रीमियम को नियंत्रित करना और RBI के विदेशी मुद्रा भंडार को सहायता देना है, जो हाल ही में बाज़ार में किये गए मध्यक्षेपों के कारण कम हो गया है।
    • फॉरवर्ड प्रीमियम का मतलब है कि भविष्य की विनिमय दर वर्तमान दर से अधिक है, जो दर्शाता है कि बाज़ार को रुपये के कमज़ोर होने की उम्मीद है।
    • लगातार उच्च फॉरवर्ड प्रीमियम आयातकों को डॉलर की ओर आकर्षण को प्रेरित करता है जिससे प्रीमियम में वृद्धि होती है तथा रुपये के प्रति नकारात्मक धारणा का दुष्चक्र निर्मित हो जाता है।
  • विदेशी मुद्रा का दबाव: यह कार्रवाई RBI द्वारा डॉलर की पर्याप्त बिक्री (उदाहरण के लिये, अक्तूबर 2025 में 11.88 बिलियन अमेरिकी डॉलर की शुद्ध बिक्री) के बाद की गई है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी टैरिफ जैसे कारकों के दबाव के बीच रुपये की गिरावट को रोकना है।

और पढ़ें: RBI द्वारा खुला बाज़ार परिचालन

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