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निर्वाचन नामावली का विशेष गहन पुनरीक्षण

  • 11 Jul 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, भारत का निर्वाचन आयोग, आधार, मतदाता सूची, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, अनुच्छेद 324            

मेन्स के लिये:

निर्वाचन नामावली में संशोधन की आवश्यकता और संबंधित चिंताएँ, मतदाता सूची संशोधन की सत्यनिष्ठा और सटीकता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने बिहार में मतदाता सूची के भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की समीक्षा की और मतदाता गणना के लिये आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज़ों के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया।

  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि भारत के निर्वाचन आयोग के पास संशोधन करने का अधिकार नहीं है।

निर्वाचन नामावली के विशेष गहन पुनरीक्षण के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: निर्वाचन नामावली (जिसे मतदाता सूची या निर्वाचक रजिस्टर भी कहा जाता है) एक विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्र के सभी पात्र और पंजीकृत मतदाताओं की आधिकारिक सूची है। 
    • इसका उपयोग मतदाताओं की पहचान सत्यापित करने तथा चुनावों के दौरान निष्पक्ष एवं पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
    • मतदाता सूचियाँ ECI द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP अधिनियम), 1950 के तहत तैयार की जाती हैं।
    • इसमें गैर-नागरिकों (धारा 16) को शामिल नहीं किया गया है तथा 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिकों को शामिल किया गया है जो सामान्यतः निर्वाचन क्षेत्र (धारा 19) में निवास करते हैं।
  • विशेष गहन पुनरीक्षण के संबंध में: SIR एक केंद्रित, समयबद्ध घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन प्रक्रिया है, जो प्रमुख चुनावों से पहले मतदाता सूचियों को अद्यतन और सही करने के लिये बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) द्वारा संचालित की जाती है।
    • नये पंजीकरण, विलोपन और संशोधन की अनुमति देकर यह सुनिश्चित करता है कि मतदाता सूची सटीक, समावेशी और विसंगतियों से मुक्त हो।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 भारत निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और संशोधित करने का अधिकार देती है, जिसमें दर्ज कारणों के साथ किसी भी समय विशेष संशोधन करना भी शामिल है।
  • एसआईआर का संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव कराने का पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की गारंटी देता है, जिसके तहत 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिकों को मतदान का अधिकार है, जब तक कि उन्हें आपराधिक दोषसिद्धि, विकृत मस्तिष्क या भ्रष्टाचार के कारण कानून द्वारा अयोग्य घोषित न कर दिया जाए।
  • न्यायिक स्थिति: मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त मामले, 1977 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये अनुच्छेद 324 के तहत ECI की व्यापक शक्तियों को बरकरार रखा, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर पुनर्मतदान का आदेश देना भी शामिल है, और इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 329(b) के अनुसार चुनावों के दौरान न्यायिक समीक्षा प्रतिबंधित है
    • इसमें स्पष्ट किया गया कि यदि अनुच्छेद 327 और 328 के तहत कानून किसी भी पहलू पर मौन हैं तो भारत निर्वाचन आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है ।
    • साथ ही यह भी उल्लेख किया गया कि यद्यपि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है, फिर भी असाधारण परिस्थितियों में ECI त्वरित और व्यावहारिक निर्णय ले सकता है।
  • पूर्ववर्ती मतदाता सूची पुनरीक्षण: देश के विभिन्न भागों में वर्ष 1952–56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983–84, 1987–89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 में विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) आयोजित किये गए थे। बिहार में अंतिम SIR वर्ष 2003 में आयोजित किया गया था।

नोट: अनुच्छेद 327 संसद को विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने का अधिकार प्रदान करता है।

  • अनुच्छेद 328 राज्य की विधानमंडल को उसके अपने चुनावों के संबंध में प्रावधान करने का अधिकार देता है।

ECI

मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) की आवश्यकता क्यों होती है?

  • त्रुटिरहित और अद्यतन मतदाता सूची: SIR का उद्देश्य अपात्र मतदाताओं को हटाना, नव पात्र या पूर्व में छूटे हुए मतदाताओं को जोड़ना और मतदाता सूची में त्रुटियों को सुधारना होता है, ताकि सूची सटीक हो और धोखाधड़ी को रोका जा सके।
    • SIR प्रवासियों तथा स्थानांतरित जनसंख्या के लिये पुनः पंजीकरण को सरल बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि मतदाता सूची संशोधित निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के अनुसार अद्यतन रहे।
  • लोकतांत्रिक वैधता की रक्षा: SIR "वन पर्सन, वन वोट अर्थात् एक व्यक्ति, एक वोट" के सिद्धांत को सशक्त करता है। यह फर्जी और दोहराए गए मतदाताओं को हटाकर लोकतांत्रिक प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने में सहायक होता है, क्योंकि यह सूक्ष्म जाँच की प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
  • मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहन: SIR जागरूकता अभियानों के माध्यम से नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देता है और डोर-टू-डोर सर्वेक्षण तथा ऑनलाइन पंजीकरण विकल्पों के माध्यम से मतदाता पंजीकरण को सुलभ बनाता है — विशेष रूप से वंचित वर्गों को लाभ पहुँचाता है।
  • प्रौद्योगिकी और नीतिगत सुधारों को अपनाना: SIR, मतदाता सूचियों के डिजिटल एकीकरण को प्रोत्साहित करता है और प्रवासी मतदाताओं के लिये  रिमोट वोटिंग जैसी नीतिगत पहलों को लागू करने में सहायक होता है, जिससे सुलभता तथा दक्षता में सुधार होता है।
    • उदाहरण के लिये, बिहार भारत का पहला राज्य बना जिसने E-SECBHR ऐप के माध्यम से नगरपालिका चुनावों में मोबाइल ई-वोटिंग की पायलट परियोजना शुरू की। इसमें ब्लॉकचेन, फेशियल रिकग्निशन, बायोमेट्रिक स्कैनिंग और वोटर आईडी सत्यापन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया।

मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) से जुड़ी चिंताएँ क्या हैं?

  • व्यापक मताधिकार वंचन का जोखिम: आधार, राशन कार्ड या यहाँ तक कि मतदाता पहचान पत्र जैसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले पहचान पत्रों को अस्वीकार करना, वंचित वर्गों पर अनुपातहीन रूप से प्रभाव डाल सकता है।
    • परंपरागत रूप से, मतदाता सूची में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को उनके सामान्य निवास स्थान के आधार पर शामिल किया जाता है, लेकिन वर्तमान प्रक्रिया में उनके जन्म स्थान को भी ध्यान में रखा जा रहा है।
  • प्रवासी श्रमिकों पर प्रभाव: प्रवासी श्रमिकों, छात्रों और अस्थायी श्रमिकों के बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण निवास का प्रमाण प्रस्तुत करना कठिन हो जाता है, जिससे उनकी मतदाता सूची से बहिष्करण का जोखिम बढ़ जाता है।
  • नागरिकों के गुप्त राष्ट्रीय रजिस्टर का संदेह: जन्म प्रमाण पत्र या वंशानुगत दस्तावेज़ों की मांग को परोक्ष रूप से नागरिकता परीक्षण के रूप में देखा जा रहा है, जिससे हाशिये पर और अल्पसंख्यक समुदायों के व्यवस्थित बहिष्करण की आशंका बढ़ जाती है।
    • यह आशंका जताई जा रही है कि SIR को पक्षपातपूर्ण ढंग से लागू किया जा सकता है, जिससे चुनावी अखंडता और समावेशी प्रतिनिधित्व कमज़ोर हो सकता है।
  • जन परामर्श की कमी: शीर्ष स्तर पर कार्यान्वयन और अत्यधिक दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं के कारण सार्वभौमिक मताधिकार को नुकसान पहुँचने का खतरा है, विशेष रूप से अशिक्षित और निराश्रित लोगों के लिये।

SIR प्रक्रिया की अखंडता और सटीकता को किस प्रकार मज़बूत किया जा सकता है?

  • समावेशी दस्तावेज़ीकरण नीतियाँ: हालाँकि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, फिर भी यह वंचित समुदायों के लिये सबसे सुलभ पहचान पत्र है। इसलिये इसे निवास प्रमाणन के लिये स्वीकार किया जाना चाहिये तथा इसे पूर्ववर्ती अभिलेखों (legacy data) से क्रॉस-वेरिफिकेशन द्वारा पूरक किया जाना चाहिये।
  • सुदृढ़ सत्यापन और डेटा सटीकता: त्रुटिरहित और पारदर्शी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को सुनिश्चित करने के लिये, सुरक्षा उपायों के साथ आधार-वोटर आईडी लिंकिंग, BLO द्वारा घर-घर सत्यापन और राज्य निर्वाचन आयोग जैसे चुनावी प्राधिकरणों द्वारा नियमित ऑडिट किया जाना चाहिये।
  • राजनीतिक और कानूनी सहमति: चुनाव आयोग (ECI) को सभी हितधारकों, जिसमें नागरिक समाज भी शामिल हो, से परामर्श करना चाहिये तथा SIR से जुड़े नियमों और अंतिम तिथियों को स्पष्ट करने के लिये जन-जागरूकता अभियान चलाने चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, विशेष न्यायाधिकरणों द्वारा न्यायिक निगरानी और निर्वाचन नामांकन अधिकारियों (EROs) के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश अत्यंत आवश्यक हैं, ताकि संवैधानिक सुरक्षा उपायों को बनाए रखा जा सके तथा मनमाने ढंग से मतदाताओं के बहिष्करण को रोका जा सके।
  • प्रौद्योगिकी-आधारित सुरक्षा उपाय: AI-सक्षम विसंगति पहचान (Anomaly Detection) के माध्यम से संदेहास्पद विलोपन/जोड़ (जैसे किसी एक क्षेत्र से एक साथ कई नाम हटना) की पहचान की जाए। ब्लॉकचेन-आधारित मतदाता लॉग लागू किए जाएँ और वास्तविक समय ट्रैकिंग डैशबोर्ड उपलब्ध कराया जाए, ताकि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान छेड़छाड़ को रोका जा सके।
  • समावेशिता के उपाय: वंचित समूहों (जैसे विकलांग, आदिवासी समुदाय) के लिये विशेष शिविरों का आयोजन किया जाए। बहुभाषी हेल्पलाइन शुरू की जाए और पुनरीक्षण के बाद नमूना सर्वेक्षण (sample surveys) कराए जाएँ, ताकि सटीक नामांकन सुनिश्चित किया जा सके और बहिष्करण को न्यूनतम किया जा सके।

निष्कर्ष:

विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) मतदाता सूचियों की त्रुटिरहितता सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसमें सटीकता और समावेशिता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग (ECI) के अधिकार क्षेत्र को बरकरार रखा है, फिर भी मतदाता अधिकार से वंचित होने और पूर्वाग्रह (bias) को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं। प्रौद्योगिकी आधारित सत्यापन, राजनीतिक सहमति, और न्यायिक निगरानी जैसे उपाय SIR की पारदर्शिता और निष्पक्षता को मज़बूत कर सकते हैं, जिससे लोकतांत्रिक वैधता के लिये एक न्यायसंगत और विश्वसनीय मतदाता सूची सुनिश्चित की जा सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) चुनावी निष्पक्षता के लिये आवश्यक है, लेकिन यह बहिष्करण की चिंताएँ भी उत्पन्न करता है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है। 
  2. 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।  
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1      
(b)  केवल 2
(c) 1 और 3      
(d) 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

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