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डेली न्यूज़

  • 08 Nov, 2019
  • 62 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

कुंग फू नन्स

प्रीलिम्स के लिये:

कुंग फू नन्स, एशियाटिक सोसाइटी, गेम चेंजर अवार्ड

मेन्स के लिये:

भारतीय विरासत और संस्कृति में मार्शल आर्ट्स की महत्ता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्यमंत्री ने ड्रुकपा विरासत के कुंग फू नुन्स (Kung Fu Nuns) से मुलाकात की।

Kung Fu Nuns

प्रमुख बिंदु

  • कुंग फू नन्स ( Kung Fu Nuns) को हाल ही में न्यूयॉर्क में एशियाटिक सोसाइटी के प्रतिष्ठित गेम चेंजर अवार्ड (Game Changer Award) से सम्मानित किया गया है।
  • कुंग फू नन्स को हिमालयी क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तीकरण और महिला-पुरुष आधारित भेदभाव को दूर करने के लिये उनके अनुकरणीय कार्य को लेकर यह अवार्ड दिया गया।
  • इनकी टैगलाइन ‘बी योर ओन हीरो’ (Be Your Own Hero) हैं।
  • नन्स अपने प्रथम नाम के रूप में जिग्मे (Jigme) का इस्तेमाल करती हैं और जिग्मे (Jigme) का अर्थ ‘निडर’ होता है।

कुंग फू नन्स के बारे में:

  • कुंग फू नन्स 1000 साल पुरानी ड्रुकपा विरासत के लगभग 700 नन्स का एक मज़बूत समुदाय है
  • ये बौद्धिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • इसके अलावा अपने शिक्षण का इस्तेमाल महिला-पुरुष समानता और पर्यावरणवाद को बढ़ावा देकर विश्व में सार्थक बदलाव लाने के लिये करती हैं।
  • इसी मान्यता के साथ कुंग फू नन्स इन्द्रा नूई, मुकेश अंबानी और देव पटेल जैसे भारतीय नायकों की श्रेणी में शामिल हो गई हैं।
  • सशक्तीकरण और समानता को बढ़ावा देने तथा समुदायों को बेहतर बनाने के लिये ये प्राचीन मार्शल आर्ट का उपयोग करती हैं।
  • इसके अलावा युवा लड़कियों को रूढ़िवादी दायरे से बाहर निकालकर अपनी स्वयं की नायक बनने के लिये प्रेरित कर रही हैं।

एशियाटिक सोसाइटी गेम चेंजर अवार्ड

(Game Changer Award)

  • एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना 1956 में की गई थी यह एक पक्षपात-मुक्त, गैर-लाभकारी शैक्षिक संस्थान है।
  • वैश्विक संदर्भ में एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों, नेताओं एवं संस्थानों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देने तथा साझेदारी को मज़बूत करने के लिये समर्पित हैं।
  • गेम चेंजर अवार्ड प्रत्येक वर्ष ऐसे व्यक्तियों, संगठनों या आंदोलनों को दिया जाता है जिन्होंने एशियाटिक सोसाइटी के अनुसार अनेक क्षेत्रों में प्रेरक, प्रबुद्ध और उच्च नेतृत्व दर्शाया है।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फेनी नदी

प्रीलिम्स के लिये:

फेनी नदी की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

नदी जल विवाद से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारत और बांग्लादेश के बीच फेनी नदी से संबंधित जल निकासी के एक समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी दी गई।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने त्रिपुरा के सबरूम शहर में पेयजल आपूर्ति योजना के लिये भारत द्वारा फेनी नदी से 1.82 क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) पानी की निकासी पर भारत और बांग्लादेश के बीच इस समझौता ज्ञापन (Memorandum of understanding-MoU) को मंज़ूरी दी है।
  • त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 135 किलोमीटर दक्षिण में बहने वाली फेनी नदी वर्ष 1934 से विवादों में रही है।
    • उल्लेखनीय है कि यह नदी कुल 1,147 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है जिसमें से 535 वर्ग किमी. भारत में और शेष बांग्लादेश में पड़ता है।
  • त्रिपुरा के जल संसाधन विभाग के अनुसार, बांग्लादेश द्वारा आपत्ति व्यक्त किये जाने के बाद फेनी नदी से जुड़ी 14 परियोजनाएँ वर्ष 2003 से ही रुकी हुई हैं जिसके कारण इस क्षेत्र के गाँवों में सिंचाई प्रभावित हो रही है।

फेनी नदी

  • फेनी नदी दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में प्रवाहित होने वाली एक नदी है।
  • यह एक ट्रांस-बाउंड्री (Trans-Boundary) नदी है जिसके पानी के अधिकारों को लेकर विवाद चल रहा है।
  • फेनी नदी का उद्गम दक्षिण त्रिपुरा ज़िले से होता है तथा यह सबरूम शहर से बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
  • नोअखली ज़िले से मुहुरी नदी, जिसे छोटी फेनी भी कहा जाता है इसके मुहाने पर मिलती है।

ऐसा समझौता क्यों?

  • भारत और पाकिस्तान (बांग्लादेश के निर्माण से पूर्व) के बीच नदी-जल के बँटवारे पर पहली बार वर्ष 1958 में चर्चा शुरू की गई थी।
  • गौरतलब है कि आज तक भारत और बांग्लादेश के बीच फेनी नदी के जल-साझाकरण पर कोई समझौता नहीं हुआ है।
  • सबरूम शहर में पीने के पानी की वर्तमान आपूर्ति अपर्याप्त है। विदित हो कि इस क्षेत्र के भू-जल में लौह तत्व की मात्रा अधिक है। ऐसे में शहर की जलापूर्ति योजना के कार्यान्वयन से सबरूम शहर की 7000 से अधिक आबादी को लाभ होगा।

स्रोत- PIB और इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय शिक्षा नीति

प्रीलिम्स के लिये:

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, NTP, RIAP

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य प्रावधान और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) के मसौदे में 12वीं कक्षा तक शिक्षा का अधिकार (Right to Education- RTE) अधिनियम को बढ़ाने के प्रावधान में संशोधन और तीन वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा को भी शामिल किया गया है।

  • अंतिम नीति दस्तावेज़ में कहा गया है कि RTE अधिनियम के विस्तार पर विचार करने का आश्वासन दिया गया। नई शिक्षा नीति RTE अधिनियम के कवरेज को कक्षा 12 तक बढ़ाने के प्रावधान में संशोधन किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा:

  • NEP का मसौदा विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा तैयार किया गया जिसका नेतृत्व भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन द्वारा किया गया।
  • इस मसौदे को सार्वजनिक फीडबैक के लिये ऑनलाइन अपलोड किया गया था। इससे सरकार को लगभग 2 लाख सुझाव प्राप्त हुए थे, अंत में इसे कैबिनेट की मंज़ूरी के लिये रखा गया है।
  • इस मसौदे में पढ़ने (Reading) और गणितीय कौशल (Mathematics Skill) को मज़बूत करने के लिये नेशनल ट्यूटर प्रोग्राम (National Tutors Programme- NTP) एवं रेमेडियल इंस्ट्रक्शनल एड प्रोग्राम (Remedial Instructional Aid Programme- RIAP) जैसे सुझावों को भी अंतिम मसौदा नीति में संशोधित कर दिया गया है।

NTP और RIAP:

  • NTP के तहत प्रत्येक स्कूल में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों द्वारा कमज़ोर छात्रों को सप्ताह में पाँच घंटे ट्यूशन दिया जाता।
  • RIAP प्रशिक्षकों (विशेष रूप से महिलाओं) को आकर्षित करने का एक 10 वर्षीय प्रोजेक्ट था जिसमें पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों पर विशेष ध्यान देने का प्रयास किया जाता।

अंतिम मसौदा:

  • मसौदे में उच्च शिक्षा के लिये एक नई त्रि-स्तरीय संस्थागत प्रणाली का प्रस्ताव किया गया है, जिसके तहत वर्ष 2030 तक सभी संस्थान या तो अनुसंधान विश्वविद्यालय (Research University) या शिक्षण विश्वविद्यालय (Teaching University) या स्नातक कार्यक्रम चलाने वाले कॉलेज (Colleges Running Undergraduate Programmes) बन जाएंगे।
  • अंतिम मसौदे में एक पदानुक्रमित संरचना के तहत संस्थानों का वर्गीकरण अनुसंधान और शिक्षण के आधार किया गया है।

संबद्ध कॉलेज:

  • सरकार ने संबद्ध कॉलेजों की प्रणाली को समाप्त करने की कस्तूरीरंगन समिति द्वारा निर्धारित सख्त सीमा को भी हटा दिया है।
  • मसौदे में सुझाव दिया गया है कि वर्ष 2032 तक वर्तमान में संबद्ध सभी कॉलेजों को स्वायत्त डिग्री देने वाले कॉलेजों के रूप में विकसित किया जाना चाहिये या संबंधित विश्वविद्यालय के साथ उनका विलय कर देना चाहिये या एक स्वायत्त विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करना चाहिये।
  • अंतिम मसौदे में केवल संबद्ध कॉलेजों की प्रणाली को धीरे-धीरे समाप्त करने की बात कही गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दोहरा कराधान अपवंचन समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

दोहरा कराधान अपवंचन समझौता, आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण

मेन्स के लिये:

भारत-ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय पर लगने वाले कर के संदर्भ में दोहरे कराधान (Double Taxation) को समाप्त करने तथा वित्तीय चोरी रोकने के लिये भारत और ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते में संशोधन को मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारतीय गणराज्य और ब्राज़ील गणराज्य संघ के मध्य दोहरे कराधान को समाप्त करने तथा वित्तीय एवं राजकोषीय चोरी रोकने के लिये समझौते में संशोधन पर हस्ताक्षर किये हैं।

कार्यान्वयन:

  • मंत्रिमंडल की मंज़ूरी के बाद प्रोटोकॉल को प्रभाव में लाने के लिये आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी की जाएंगी।
  • इस समझौते के कार्यान्वयन की मंत्रालय द्वारा निगरानी की जाएगी तथा बाद में मंत्रालय इसकी रिपोर्ट करेगा।

क्या है दोहरा कराधान?

दोहरे कराधान से आशय ऐसी स्थिति से है जिसमें एक ही कंपनी या व्यक्ति (करदाता) की एकल आय एक से अधिक देशों में कर-योग्य हो जाती है। ऐसी स्थिति विभिन्न देशों में कराधान के भिन्न नियमों के कारण उत्पन्न होती है।

दोहरा कराधान अपवंचन समझौता :

(Double Taxation Avoidance Convention- DTAC)

  • दोहरे कराधान से मुक्ति के लिये दो देशों की सरकारें ‘दोहरा कराधान अपवंचन समझौता’ निष्पादित करती हैं जिसका उद्देश्य दोहरे कराधान की समस्या से परस्पर राहत प्रदान करना है।
  • भारत में आयकर अधिनियम की धारा 90 द्विपक्षीय कर राहत से संबंधित है।
  • इस धारा के अंतर्गत भारत सरकार दूसरे देशों की सरकारों के साथ दोहरे कराधान की समस्या से निपटने के लिये समझौते करती है।

भारत-ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते के प्रमुख प्रभाव:

  • इस समझौते में संशोधन से भारत तथा ब्राज़ील के बीच दोहरा कराधान समाप्त होगा।
  • भारत और ब्राज़ील के बीच कर-अधिकारों के स्पष्ट निर्धारण से दोंनों देशों के निवेशकों तथा व्यापारियों की कर अदायगी में निश्चितता आएगी।
  • इस संशोधित प्रोटोकॉल के माध्यम से आय के स्रोत देश में रॉयल्टी, ब्याज, तकनीकी सेवा शुल्क पर कर दरों में कमी होने के कारण निवेश में वृद्धि होगी।
  • संशोधित प्रोटोकॉल, दोंनों देशों के मध्य G-20/OECD की ‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ (Base Erosion and Profit Shifting-BEPS) संधि के न्यूनतम मानकों और अन्य अनुशंसाओं को लागू करेगा।
  • BEPS के अनुरूप नियमों का सरलीकरण कर निर्धारण प्रक्रिया के बेमेल और गलत नियमों को समाप्त करने में सहायता मिलेगी।

इतिहास:

  • भारत और ब्राज़ील के बीच वर्तमान दोहरा कराधान अपवंचन समझौता 26 अप्रैल 1988 को हस्ताक्षरित हुआ था।
  • 15 अक्तूबर, 2013 को सूचना आदान-प्रदान करने के संबंध में एक प्रोटोकॉल द्वारा इसे संशोधित किया गया था।

आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण

(Base Erosion and Profit Shifting-BEPS):

  • BEPS का तात्पर्य ऐसी टैक्स रणनीतियों से है जिनके तहत टैक्स नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाकर कंपनियाँ अपने लाभ को किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र में स्थानांतरित कर देती हैं, जहाँ या तो टैक्स नाममात्र होता है या होता ही नहीं है क्योंकि इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ नगण्य होती हैं।
  • जून 2017 में भारत ने पेरिस स्थित OECD के मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में BEPS संधि पर हस्ताक्षर किये थे। वर्तमान में इस संधि पर 135 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं।
  • BEPS संधि का उद्देश्य कृत्रिम ढंग से कर अदायगी से बचने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना तथा संधि के दुरुपयोग को रोकना है।

भारत और ब्राज़ील के मध्य वर्तमान दोहरा कराधान अपवंचन समझौता बहुत पुराना है। इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार करने तथा G-20/OECD की BEPS संधि की अनुशंसाओं को लागू करने के लिये संशोधित किए जाने की आवश्यकता थी।

स्रोत- PIB


सामाजिक न्याय

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

भारतीय न्याय प्रणाली की स्थिति

चर्चा में क्यों?

भारतीय न्याय प्रणाली के संबंध में टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) द्वारा जारी ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ के अनुसार, पूरे देश में लोगों को न्याय दिलाने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है।

  • गौरतलब है कि इस सूची में महाराष्ट्र के बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान है।
  • इसके अलावा न्याय दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बड़े राज्यों में सबसे खराब रहा है।

रिपोर्ट संबंधी बिंदु

  • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में विभिन्न सरकारी आँकड़ों का प्रयोग करते हुए भारतीय न्याय प्रणाली के मुख्यतः 4 स्तंभों (1) पुलिस, (2) न्यायतंत्र, (3) कारागार या जेल और (4) कानूनी सहायता का आकलन किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि यह पहली बार है जब भारतीय न्याय प्रणाली की समग्र तस्वीर प्रस्तुत करते हुए कोई रिपोर्ट सामने आई है।
  • शोधकर्त्ताओं ने आंतरिक सुरक्षा की चुनौती को देखते हुए नगालैंड, मणिपुर, असम और जम्मू और कश्मीर (केंद्रशासित प्रदेश होने से पूर्व) का अध्ययन नहीं किया है।
  • रिपोर्ट के दौरान दी गई रैंकिंग में राज्यों को मुख्यतः 2 भागों में बाँटा गया है (1) 18 बड़े या मध्यम आकार वाले राज्य जिनमें जनसंख्या 10 मिलियन से अधिक है और (2) 7 छोटे राज्य जिनमें 10 मिलियन या उससे कम लोग रहते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, न्याय वितरण के मामले में महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है।

स्तंभवार विश्लेषण

पुलिस

  • रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस क्षमता के मामले में तमिलनाडु और उत्तराखंड पहले और दूसरे स्थान पर रहे, जबकि इस क्षेत्र में राजस्थान और उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब आँकी गई। वहीं छोटे राज्यों में सिक्किम पहले स्थान पर रहा और मिज़ोरम अंतिम स्थान पर।
  • ज्ञातव्य है कि समग्र रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाले कुछ राज्यों का प्रदर्शन इस विषय पर अपेक्षाकृत थोड़ा भिन्न रहा। उदाहरण के लिये केरल समग्र रैंकिंग में दूसरे स्थान पर है, जबकि पुलिस कार्यप्रणाली के मामले में वह 13वें स्थान पर रहा।
  • आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 100000 नागरिकों पर मात्र 151 पुलिसकर्मी ही मौजूद हैं, विदित हो कि यह अनुपात दुनिया भर के अन्य देशों के मुकाबले काफी खराब है। भारत के ब्रिक्स साझेदारों जैसे- रूस और दक्षिण अफ्रीका में यह अनुपात भारत से 2-3 गुना अधिक है।
  • पुलिस विभाग में विभिन्न जाति, धर्म और संप्रदायों के लोगों की भर्ती से संबंधित विविधता कोटे का भी काफी सीमित उपयोग किया गया है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जो इस कार्य में सफल हुआ है।
  • रिपोर्ट में दिये गए पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (BPRD) के आँकड़ों के अनुसार, देश के कुल पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 7 प्रतिशत है, जो कि महिला सशक्तीकरण के नज़रिये से एक अच्छी स्थिति नहीं है।

न्यायतंत्र

  • न्यायपालिका की क्षमता के मामले में तमिलनाडु अव्वल स्थान पर रहा और पंजाब को दूसरा स्थान हासिल हुआ। वहीं छोटे राज्यों में सिक्किम पहले स्थान पर रहा और अरुणाचल प्रदेश अंतिम स्थान पर।
  • वर्ष 2013-2017 के मध्य तमिलनाडु ने उच्च और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों को निपटाने में काफी सुधार किया। साथ ही न्यायाधीशों की संख्या की दृष्टि से भी तमिलनाडु ने अच्छा कार्य किया था।
  • न्यायतंत्र के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन बिहार और उत्तर प्रदेश का रहा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 23 प्रतिशत पद खाली हैं।
  • उल्लेखनीय है कि भारत अपने कुल बजट का मात्र 0.08 प्रतिशत हिस्सा ही न्यायतंत्र पर खर्च करता है।
    • दिल्ली के अतिरिक्त कोई भी अन्य राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश अपने क्षेत्र में न्यायतंत्र पर बजट का 1 प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं करता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, नवगठित राज्य तेलंगाना के अधीनस्थ न्यायालयों में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक तकरीबन 44 प्रतिशत पाई गई।
  • बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 39.5 प्रतिशत मामले 5 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं।

कारागार या जेल

  • कारागार या जेल के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन केरल और महाराष्ट्र का रहा, जिन्होंने विगत कुछ वर्षों में कारागार से संबंधित कई संकेतकों पर सुधार किया। वहीं छोटे राज्यों में गोवा पहले स्थान पर रहा और सिक्किम अंतिम स्थान पर।
  • गौरतलब है कि विश्लेषण की अवधि के दौरान केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, बिहार और महाराष्ट्र ने अधिकारी एवं कैडर स्टाफ दोनों स्तरों पर रिक्तियों को कम कर दिया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, जेल प्रशासन के सभी स्तरों पर लगभग 9.6 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएँ हैं।
  • देश के केवल 6 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिला प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से अधिक है।
    • नगालैंड (22.8%), सिक्किम (18.8%), कर्नाटक (18.7%), अरुणाचल प्रदेश (18.1%), मेघालय (17%) और दिल्ली (15.1%)।
  • जेल कर्मचारियों में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में गोवा (2.2%) और तेलंगाना (2.3%) का प्रदर्शन काफी खराब रहा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कारागारों या जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की समस्या सबसे प्रमुख है और इनमें सबसे अधिक वे विचाराधीन कैदी होते हैं जो जाँच, पूछताछ या परीक्षण का इंतज़ार कर रहे हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रत्येक एक दोषी कैदी पर 2 विचारधीन कैदी हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर पर 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सालाना 20,000 से 35,000 रुपए प्रति कैदी खर्च होता है। उल्लेखनीय है कि यह एक कैदी पर 100 रुपए प्रतिदिन से भी कम है।

कानूनी सहायता

  • कानूनी सहायता का उद्देश्य समाज के गरीब वर्गों की कानूनी मदद करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी व्यक्ति न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए।
  • आम नागरिकों को क़ानूनी सहायता प्रदान करने के मामले में केरल और हरियाणा सबसे अव्वल स्थान पर हैं, जबकि इस सूची में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सबसे निचले स्थान पर रहे। वहीं छोटे राज्यों में गोवा पहले स्थान पर रहा और अरुणाचल प्रदेश अंतिम स्थान पर।
  • रिपोर्ट में सामने आया है वर्ष 2017-18 में देश में कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 0.75 रुपए प्रतिवर्ष था।
  • उल्लेखनीय है कि देश के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने नालसा (NALSA) के तहत आवंटित बजट का पूर्णतः उपयोग नहीं किया।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंतरिक्ष टैक्सी

प्रीलिम्स के लिये:

सी.एस.टी.-100, नासा

मेन्स के लिये:

अमेरिकी स्पेस शटल कार्यक्रम से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी ‘बोइंग’ ने अंतरिक्ष यात्रियों के आवागमन के लिये विकसित किये जा रहे सी.एस.टी.-100 (Crew Space Transportation, C.S.T-100) नामक कैप्सूलनुमा अंतरिक्षयान की पहली उड़ान का सफल परीक्षण किया है।

मुख्य बिंदु:

  • बोइंग कंपनी ने नासा (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम (Commercial Crew Programme- CCP) के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में वैज्ञानिकों के आवागमन के लिये C.S.T-100 स्टारलाइनर क्रू कैप्सूल नामक अंतरिक्षयान की मानवरहित उड़ान का पहला सफल परीक्षण किया है।
  • बोइंग कंपनी उन दो कंपनियों में से एक है, जिनके साथ नासा ने अपने वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम के तहत निजी अंतरिक्षयान निर्माण के लिये समझौते किये हैं। नासा के इस कार्यक्रम के तहत निजी अंतरिक्षयान का निर्माण करने वाली दूसरी कंपनी एलन मास्क की ‘स्पेस एक्सप्लोरेशन टेक्नोलोजीज़ कोर्पोरेशन’ (Space Exploration Technologies Corporation- SpaceX) है।
  • बोइंग कंपनी द्वारा निर्मित इस अंतरिक्षयान द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में सात सदस्यों को कार्गो सहित भेजा जा सकता है।

अंतरिक्ष टैक्सी की आवश्यकता:

  • नासा रूस के ‘सोयुज़ स्पेस शटल’ कार्यक्रम पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है। वर्ष 2011 में ‘यूएस स्पेस शटल’ कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद ‘सोयुज़’ एकमात्र अंतरिक्षयानों की श्रृंखला है जो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में आवागमन की सुविधा देती है।
  • ‘सोयुज़’ स्पेस शटल कार्यक्रम के अंतर्गत सभी अंतरिक्षयानों को कज़ाखस्तान के बैकानूर प्रक्षेपण केंद्र से प्रक्षेपित किया गया है।
  • नासा अपने CCP कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से नई पीढ़ी के अंतरिक्षयान बनाने के लिये ऐसी कंपनियों को आमंत्रित कर रहा है जो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तथा पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष परिवहन सेवाएँ प्रदान कर सकें।
  • ऐसे अंतरिक्ष कार्यक्रमों का स्वामित्व और संचालन निजी कंपनियों के पास ही रहेगा जो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को आवागमन की सुविधा देने के अलावा अपनी सेवाएँ अन्य ग्राहकों को भी बेच सकेंगे।

नासा का स्पेस शटल कार्यक्रम :

  • नासा का स्पेस शटल कार्यक्रम 12 अप्रैल, 1981 को प्रारंभ हुआ तथा लगभग 30 वर्षों बाद 21 जुलाई, 2011 को समाप्त हुआ।
  • नासा ने इस कार्यक्रम के तहत अपने अंतरिक्षयान कोलंबिया, चैलेंजर, डिस्कवरी, एंडेवर और अटलांटिस के माध्यम से लगभग 135 मिशन क्रियान्वित किए जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण तथा नई पीढ़ी के अंतरिक्ष मिशनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • नासा के अंतिम अंतरिक्ष शटल मिशन का नाम STS-135 था, जिसे 21 जुलाई, 2011 को अटलांटिस अंतरिक्षयान के माध्यम से संचालित किया गया था।
  • वर्ष 2003 में नासा का कोलंबिया यान अपने 28वें मिशन के दौरान शटल के पंख में छेद होने के कारण नष्ट हो गया तथा उसमें सवार भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला सहित सभी सात सदस्यों की मौत हो गई।
  • विमान की तरह रनवे पर उतरने वाले स्पेस शटल कार्यक्रम के यानों के विपरीत C.S.T.-100 अपने पैराशूट तथा एयरबैग प्रणाली का प्रयोग करके ज़मीन पर उतरता है।
  • नासा को उम्मीद है कि इस बोइंग कैप्सूल के माध्यम से वर्ष 2020 तक पहला मानव मिशन पूरा किया जाएगा ।

स्रोत-द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

गिल-ऑक्सीजन परिसीमन सिद्धांत

प्रीलिम्स के लिये:

गिल-ऑक्सीजन सीमा सिद्धांत,प्रभाव

मेन्स के लिये:

गिल-ऑक्सीजन सीमा सिद्धांत, प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने महासागरों में मछलियों के वितरण को गिल-ऑक्सीजन परिसीमन सिद्धांत (Gill-Oxygen Limitation Theory-GOLT) के आधार पर स्थापित किया है।

गिल-ऑक्सीजन सीमा सिद्धांत

  • यह सिद्धांत मछली की श्वसन क्रिया पर आधारित है जिसे गिल-ऑक्सीजन परिसीमन सिद्धांत के रूप में वर्णित किया गया है।
  • जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जीवन को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करता है जिनमें से एक महासागरों में मछलियों की स्थिति तथा उनका महासागरों में वितरण भी शामिल है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मछलियाँ ध्रुवों (Poles) की ओर विस्थापित होंगी। इस सिद्धांत के द्वारा मछलियों के ध्रुवों की ओर विस्थापन हेतु उत्तरदायी जैविक कारकों की व्याख्या की गई है।

यह कैसे कार्य करता है?

  • इस सिद्धांत के अनुसार, गर्म जल में ऑक्सीजन की कमी होती है, इस कारण मछलियों को ऐसे परिवेश में साँस लेने में कठिनाई होती है
  • गर्म जल मछलियों के उपापचय (Metabolism) में भी बढ़ोतरी करता है जिसके कारण मछली की ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है।
  • मछली की आयु में वृद्धि होने के साथ ही उनकी ऑक्सीजन की मांग में भी वृद्धि होती है।
  • गलफड़ों का पृष्ठीय क्षेत्र (द्विआयामी) शरीर के बाकी हिस्सों (त्रिआयामी) के साथ समान गति से नहीं बढ़ता है।
  • बड़ी मछली का पृष्ठीय क्षेत्र उसके शरीर के आयतन के सापेक्ष छोटा होता है।
  • परिणामतः मछलियाँ ऑक्सीजन की आवश्यकता की पूर्ति हेतु अपने मूल निवास के समान तापमान वाले जल की ओर विस्थापित हो जाती हैं।

प्रभाव

  • पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर समुद्री सतह के तापमान में लगभग 0.13 ° C प्रति दशक की दर से वृद्धि हुई है, इसलिये मछलियों के लिये उपयुक्त जल ध्रुवों की ओर एवं अधिक गहराई पर पाया जाने लगा है।
  • यह स्थिति कुछ मछली प्रजातियों के उनके मूल निवास में विस्थापित होने का कारण हो सकता है। विस्थापन की यह प्रक्रिया 50 किलोमीटर प्रति दशक की दर से भी अधिक हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सुरक्षा

‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

‘नो मनी फॉर टेरर’ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

मेन्स के लिये:

मुख्य बिंदु, भारत का दृष्टिकोंण

चर्चा में क्यों?

‘नो मनी फॉर टेरर’ (No Money for Terror) पर मंत्री स्तरीय सम्मेलन का आयोजन 6 से 8 नवंबर तक मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) मे किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु

इस सम्मेलन में आतंकवाद के वित्तपोषण (Terrorism Financing) को रोकने के लिये 5 विषयों पर विचार-विमर्श किया गया:

  • इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (Islamic State in Iraq and Syria-ISIS) की क्षेत्रीय स्तर पर हार के बाद वैश्विक एवं हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में उत्पन्न नए खतरों (ISIS अब नए भौगोलिक क्षेत्रों में, सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन नए लड़ाकों को भर्ती करने का प्रयास करेगा) पर विचार करना।
  • आतंकवाद के वित्तपोषण (फिरौती के लिये अपहरण भी शामिल है) को रोकने के लिये अंतरर्राष्ट्रीय सहयोग और एक तंत्र की स्थापना करने के लिये समर्थन पर विचार करना।
  • आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की साझेदारी को बढ़ाने हेतु व्यावहारिक तरीकों की पहचान करना।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों (क्रिप्टोकरेंसी, ऑनलाइन फ्रॉड) से उत्पन्न नए जोखिमों का पता लगाना।
  • गैर-लाभकारी संगठनों के वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता और सरकार द्वारा इनकी निगरानी से जुड़े मुद्दों पर विचार करना।

भारत का दृष्टिकोंण

भारत की ओर से निम्नलिखित 4 बिंदुओं को भी प्रस्ताव में शामिल करने का सुझाव दिया गया है:

  • आतंकवाद शांति, सुरक्षा और विकास के लिये सबसे बड़ा खतरा है।
  • सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र के तहत अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय को मंजूरी देनी चाहिये।
  • फाइनेंसियल एक्शन टास्क फाॅर्स (Financial Action Task Force-FATF) के मानकों को प्रभावी रूप से लागू करने पर सहमति बनाने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आतंकी संगठनों की सूची एवं FATF का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिये।
  • कट्टरपंथ को आतंकवाद की प्रारंभिक चरण मानते हुए कट्टरपंथ के वित्तपोषण को रोकने हेतु पहल पर चर्चा।

उद्देश्य:

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य नए आतंकी खतरों की पहचान, आतंकवाद के वित्तपोषण के नए तरीकों पर चर्चा एवं उन जोखिमों का मुकाबला करने के लिये सर्वोत्तम पद्धतियों और रणनीतियों को परस्पर साझा करना है।
  • डिजिटल और क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) के बढ़ते उपयोग, स्टोर् वैल्यू कार्ड (Stored Value Cards), ऑनलाइन भुगतान प्रणाली (Online Payment System) और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म (Crowdfunding Platform) जैसे माध्यमों का प्रयोग आतंकवाद के वित्तपोषण हेतु किये जाने के खतरे को कम करना।

अन्य प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2020 में भारत ‘नो मनी फॉर टेरर’ पर मंत्री स्तरीय सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।
  • वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2017 के अनुसार, आतंकवादी घटनाओं के कारण वैश्विक स्तर पर 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर आर्थिक हानि का अनुमान था।

‘नो मनी फॉर टेरर’ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

(No Money for Terror Ministerial Conference)

  • यह सम्मेलन एग्मोंट ग्रुप (Egmont Group) द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • यह एग्मोंट ग्रुप 164 देशों की वित्तीय खुफिया इकाइयों (Financial Intelligence Units) का समूह है।
  • वर्ष 2018 में इस सम्मेलन का प्रथम आयोजन पेरिस में किया गया था।
  • यह समूह मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के लिये विशेषज्ञता एवं वित्तीय खुफिया जानकारी के सुरक्षित आदान-प्रदान के लिये एक मंच प्रदान करता है।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

मूडीज़ ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग घटाई

प्रीलिम्स के लिये:

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, नाममात्र जीडीपी

मेन्स के लिये:

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से संबंधित मुद्दे, रेटिंग घटाने से भारत पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (Credit rating agency) मूडीज़ ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग को स्थिर (Stable) से घटाकर नकारात्मक (Negative) कर दिया।

  • मूडीज़ ने भारत के लिये विदेशी मुद्रा (Foreign-Currency) और स्थानीय मुद्रा दीर्घकालिक जारीकर्त्ता (Local-Currency Long-Term Issuer Rating) रेटिंग baa2 की पुष्टि की। इसके अतिरिक्त भारत की अन्य अल्पकालिक स्थानीय-मुद्रा रेटिंग पी-2 (P-2) की भी पुष्टि की गई। भारत की baa2 रेटिंग असुरक्षित श्रेणी में आती है।

रेटिंग घटने का कारण:

  • मूडीज़ के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते जोखिमों और आर्थिक विकास दर पहले की तुलना में कम रहने के कारण ऐसा किया गया है।
  • अर्थव्यवस्था में लंबे समय से चली आ रही आर्थिक समस्याओं का समाधान ढूढ़ने में सरकार की नीतिगत विफलता तथा पहले से ही उच्च ऋण के बोझ के स्तर में और वृद्धि जैसे कारकों की वजह से भारत की रेटिंग में अस्थिरता आई है।
  • ग्रामीण परिवारों के बीच समय तक वित्तीय तनाव, कम रोज़गार सृजन और गैर-बैंक वित्तीय संस्थानों (Non-bank financial institutions) के क्षेत्र में क्रेडिट संकट जैसे कारकों के प्रभावस्वरूप भारत की रेटिंग में कटौती की गई है।

प्रभाव:

  • रेटिंग में गिरावट के फलस्वरूप भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • यदि सरकार हिस्सेदारी बिक्री (Stake Sale) के माध्यम से अधिक धन जुटाकर राजकोषीय घाटे को दूर करने में सक्षम होती है तो रेटिंग एजेंसियाँ ​​अपने दृष्टिकोण को संशोधित कर सकती हैं।

आगे की राह:

  • मूडीज़ के अनुसार, यदि नाॅमिनल जीडीपी (Nominal GDP) की वृद्धि दर उच्च नहीं रहेगी तो सरकार को सरकारी बजट घाटे को कम करने और ऋण के बोझ में वृद्धि को रोकने हेतु महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • मूडीज़ ने कहा कि यदि आर्थिक सुधार किया जाएगा तो निवेश, विकास दर और संकीर्ण कर आधार (Narrow Tax Base) जैसे क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

सरकार का पक्ष:

  • भारत ने कहा कि वह विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिये वित्तीय क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किये हैं। इन उपायों के परिणामस्वरूप भारत में पूंजी प्रवाह और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ज़ीरो कार्बन बिल

प्रीलिम्स के लिये:

ज़ीरो कार्बन बिल

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यूज़ीलैंड ने वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को पूर्णतः समाप्त करने के उद्देश्य हेतु एक "ज़ीरो कार्बन" बिल पारित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • नए कानून में निर्धारित किया गया है कि आने वाले वर्षों में न्यूज़ीलैंड मीथेन को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं करेगा।
  • ध्यातव्य है कि न्यूज़ीलैंड ने पेरिस जलवायु समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को स्पष्ट करते हुए यह कदम उठाया है।
  • इस विधेयक में जानवरों द्वारा मीथेन उत्सर्जन तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसों के लिये अलग-अलग नियम निर्धारित किये गए हैं।
    • हालाँकि अभी भी वर्ष 2030 तक मीथेन को 10 प्रतिशत और वर्ष 2050 तक 47 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के तहत सरकार को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के बारे में सलाह देने तथा ‘कार्बन बजट’ के निर्धारण हेतु एक स्वतंत्र जलवायु परिवर्तन आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान किया गया है।
  • इसके अलावा न्यूज़ीलैंड की सरकार ने यह भी वादा किया है कि वह अगले 10 वर्षों में 1 बिलियन पेड़ लगाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि वर्ष 2035 तक बिजली ग्रिड पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा से चले।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

ईट-लांसेट आयोग : प्लैनेटरी हेल्थ डाइट

प्रीलिम्स के लिये

ईट-लांसेट आयोग, प्लैनेटरी हेल्थ डाइट क्या है?

मेन्स के लिये

वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में ‘प्लैनेटरी हेल्थ डाइट’ की भूमिका का आलोचनात्मक वर्णन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (International Food Policy Research Institute-IFPRI) ने एक शोध में कहा कि ईट-लांसेट आयोग (EAT-Lancet Commission) द्वारा सुझाए गए एक मानक ‘प्लैनेटरी हेल्थ डाइट’ को विश्व की एक बड़ी आबादी के लिये अपनाना नामुमकिन होगा।

क्या है ईट-लांसेट आयोग?

ईट-लांसेट आयोग (EAT-Lancet commission on Food, Planet, Health) 16 देशों के 32 प्रमुख वैज्ञानिकों (जो कि अलग-अलग क्षेत्रों से हैं) का संगठन है। इस आयोग का प्रमुख उद्देश्य वैज्ञानिक आधार पर एक मानक बनाना है जिससे विश्व में सभी के लिये सतत् खाद्य उत्पादन तथा स्वस्थ भोजन मुहैया कराया जा सके।

ईट-लांसेट आयोग के सुझाव:

  • वर्ष 2019 के मध्य में एक शोध के दौरान इस संस्था ने एक स्वस्थ वयस्क के लिये एक ‘प्लैनेटरी हेल्थ डाइट’ (Planetary Health Diet) नामक एक विस्तृत खाद्य मानक निर्धारित किया है। इसके अंतर्गत फल, सब्जियाँ, ड्राईफ्रूट, साबुत अनाज, दालें, असंतृप्त तेल, पर्याप्त मात्रा में मांस, दूध, स्टार्चयुक्त सब्जियाँ आदि शामिल हैं। शोध के अनुसार, इस प्रकार के आहार से खराब स्वास्थ्य आदतें तथा पर्यावरणीय दोहन दोनों से बचा जा सकता है।
  • वर्तमान में खाद्यान्नों की बढ़ती मांग तथा अस्वास्थ्यकर भोजन की आदतों की वजह से मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। इस प्रकार की भोजन आदतों से भविष्य में एक बड़े खाद्य संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

IFPRI द्वारा किये गए शोध के मुख्य बिंदु:

  • इसके अनुसार, इन सुझावों के पालन में मुख्य समस्या इसके लिये आवश्यक खर्च को लेकर होगी। साथ ही अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र तथा दक्षिण एशिया के लगभग 1.58 बिलियन लोग इसके लिये आवश्यक खर्च वहन नहीं कर सकेंगे।
  • शोध में ईट-लांसेट द्वारा सुझाया गया डाइट प्लान, एक आम वयस्क के लिये आवश्यक पर्याप्त पोषणयुक्त आहार से 64 प्रतिशत महँगा बताया गया। साथ ही इसके द्वारा सुझाए गए भोजन में आवश्यकता से अधिक जानवरों से प्राप्त आहार (दूध व मांस), फल तथा सब्जियाँ शामिल की गई हैं।
  • वैश्विक स्तर पर प्रस्तावित इस डाइट की औसत कीमत तकरीबन 2.84 डॉलर (200 रुपए) प्रतिदिन होगी। कम आय वाले देशों में यह राशि प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय का 89.1 प्रतिशत होगी तथा एक परिवार के लिये सिर्फ भोजन पर इतना खर्च करना नामुमकिन है। उच्च आय वाले देशों में यह धनराशि प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय का 6.1 प्रतिशत होगी जो वास्तविकता में उनके द्वारा किये जाने वाले खर्च से कहीं कम है।
  • अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में लगभग 57 प्रतिशत लोग ईट-लांसेट द्वारा सुझाए गये एक दिन के भोजन की कीमत से कम कमाते हैं। दक्षिण एशिया में यह आँकड़ा 38.4 प्रतिशत है। पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका में यह 19.4 प्रतिशत है। पूर्वी एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में यह 15 प्रतिशत है। लैटिन अमेरिका तथा कैरेबिया में यह 11.6 प्रतिशत है। यूरोप तथा मध्य एशिया में 1.7 प्रतिशत लोग तथा उत्तरी अमेरिका में 1.2 प्रतिशत है।
  • फल, सब्जियाँ तथा जानवरों से प्राप्त होने वाला भोजन एक स्वस्थ आहार का आवश्यक हिस्सा होने के साथ ही काफी महँगा भी होता है। इसकी लागत विश्व के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होती हैं।
  • यदि बहुतायत संख्या में गरीब उपभोक्ता स्वस्थ आहार लेने के लिये इच्छुक भी हों तो आय तथा लागत से संबंधित बाधाओं के कारण यह उनके लिये अवहनीय हो जाता है।
  • आय में वृद्धि, सुरक्षित लाभ हस्तांतरण तथा संस्थानिक तौर पर खाद्यान्नों की कीमत में कमी द्वारा ही विश्व के प्रत्येक हिस्से के निवासियों को स्वस्थ व सतत् आहार की प्राप्ति हो सकती है।

स्रोत : द हिंदू


कृषि

सरकार द्वारा आयातित प्याज के धूम्र-उपचार नियम में छूट

प्रीलिम्स के लिये -

कृषि उत्पादों के लिये फोटोसैनिटरी प्रमाण-पत्र

मेन्स के लिये -

कृषि विपणन संबंधी नीतियों का विश्लेषण

चर्चा में क्यों?

प्याज की बढती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कुछ समय के लिये आयातित प्याज के धूम्र-उपचार (Fumigation) संबंधी मानदंडों में छूट दी है।

प्रमुख बिंदु-

  • सरकार ने प्याज की उपलब्धता बढाने और इसके मूल्य में आई तेजी को रोकने के लिये अफगानिस्तान, मिस्र, तुर्की तथा ईरान से निजी आयात हेतु यह सुविधा देने का निर्णय किया है।
  • गौरतलब है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने सीमित अवधि के लिये प्याज के आयात हेतु फोटोसैनिटरी प्रमाण-पत्र (Photosanitary Certificate) पर पादप संगरोध (Plant Quarantine- PQ) आदेश, 2003 के अनुरूप धूम्र-उपचार का उल्लेख किये जाने की अनिवार्यता से छूट की अनुमति देने का फैसला किया है।
  • मंत्रालय के अनुसार बिना धुम्र-उपचार के आयात किये गए प्याज की मान्यता प्राप्त उपचार प्रदाता के जरिये भारत में धूम्र-उपचार करने की अनुमति दी जाएगी।
  • आयातित प्याज का पादप संगरोध विभाग के अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से निरीक्षण किया जाएगा और दूसरे देशों के कीटों और बीमारियों से मुक्त पाए जाने पर ही बाजार में लाया जाएगा।
  • वर्तमान समय में प्याज को मिथाइल ब्रोमाइड से धूम्र-उपचार और निर्यातक देशो द्वारा प्रमाणित किये जाने के बाद ही भारत में आयात करने की अनुमति दी जाती है।
  • इन मानदंडों का अनुपालन न होने की स्थिति में भारी शुल्क देना पड़ता है, परंतु संशोधित नियमों के अनुसार इन शुल्कों से छूट दी गई है।

धूम्र-उपचार (Fumigation)-

  • खाद्य उद्योग में धूम्र-उपचार एक महत्त्वपूर्ण कीट नियंत्रण प्रक्रिया है, इसके तहत खाद्य पदार्थ की आंतरिक संरचना के भीतर गैसीय कीटनाशक या फ्यूमिगैंट्स (Fumigants) का प्रयोग किया जाता है।
  • वर्तमान समय में मिथाइल ब्रोमाइड और फोस्फीन का प्रयोग मुख्य रूप से फ्यूमिगैंट्स के रूप में किया जाता है।

पादप संगरोध (Plant Quarantine- PQ)-

  • आयातित बीजों एवं अन्य पादप उत्पादों का रोग, कीट एवं खरपतवार से मुक्त होना सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को पादप संगरोध कहते हैं |
  • नाशक कीट एवं नाशक जीव अधिनियम 1914 के अंतर्गत भारत में आने वाले सभी पादप उत्पादों का रोग, कीट व खरपतवार से मुक्त होना अनिवार्य है |
  • आयातित पदार्थों के संगरोध की जिम्मेदारी भारत सरकार के पादप संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय की है |

फोटो सैनिटरी प्रमाणपत्र (Phytosanitary Certificate)

  • फोटो सैनिटरी प्रमाण पत्र यह इंगित करने के लिये जारी किये जाते हैं कि आयातित पौधे या कृषि उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय पादप संरक्षण कन्वेंशन (IPPC), 1951 के तहत निर्दिष्ट फोटोसैनेटिक आयात मानकों को पूरा करते है।
    • यह प्रमाण पत्र सामान्यतया निर्यातक देश द्वारा जारी किया जाता है।
    • केवल एक ऐसे सरकारी विभाग के अधिकृत अधिकारी द्वारा जारी किया जा सकता है जो एक राष्ट्रीय संयंत्र संरक्षण एजेंसी (NPPO) द्वारा अधिकृत हो।

स्रोत- PIB


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इंडिया इंटरनेट 2019- IAMAI

प्रीलिम्स के लिये -

इंडिया इंटरनेट 2019

मेन्स के लिये -

भारत में इंटरनेट प्रसार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Internet and Mobile Association of India-IAMAI) द्वारा भारत में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या से संबंधित ‘इंडिया इंटरनेट 2019’ के नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई।

प्रमुख बिंदु-

  • रिपोर्ट के अनुसार भारत में 5 वर्ष या उससे अधिक आयु के कुल सक्रिय उपयोगकर्त्ताओं की संख्या 485 मिलियन है।
  • इंटरनेट के कुल उपयोगकर्त्ताओं में 385 मिलियन 12 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के हैं जबकि 66 मिलियन उपयोगकर्त्ता 5 से 11 वर्ष की आयु वर्ग के हैं।
  • राज्य स्तर पर राजधानी दिल्ली सर्वाधिक 69% उपयोगकर्त्ताओं के साथ प्रथम स्थान पर है, वहीं केरल 54% उपयोगकर्त्ताओं के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • हाल ही में केरल सरकार ने 1524 करोड़ रुपए की लागत से केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क परियोजना लॉन्च की है।
    • इसके तहत राज्य में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 20 लाख परिवारों को मुफ्त इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, और हिमाचल प्रदेश 49% उपयोगकर्त्ताओं के साथ तीसरे स्थान पर हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर से संबंधित आँकड़े उसके विभाजन के पहले के हैं।
  • सबसे कम इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या क्रमशः ओडिशा, झारखंड और बिहार में दर्ज की गई।
  • लैंगिक आधार पर कुल उपयोगकर्त्ताओं में 67% पुरुष उपयोगकर्त्ता हैं।
  • केरल, तमिलनाडु और दिल्ली में अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक महिला उपयोगकर्त्ता हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, कुल उपयोगकर्त्ताओं का ⅔ भाग इंटरनेट का दैनिक उपयोगकर्त्ता है।
  • इंटरनेट उपयोग करने की अवधि के आधार पर जहाँ लगभग 1/3 शहरी उपयोगकर्त्ता 1 घंटा इंटरनेट उपयोग करते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ये अवधि 15 से 20 मिनट है।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया

(Internet and Mobile Association of India-IAMAI)

  • इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना वर्ष 2004 में की गई थी।
  • यह सोसायटी अधिनियम, 1896 के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी औद्योगिक निकाय है।

स्रोत-द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (08 November)

  • मेक्सिको में मैमथ के दाँत मिले: मेक्सिको के टोलिपेक में खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को 14000 वर्ष पहले मैमथ (हाथी जैसा विशाल जानवर) की हड्डियाँ और दाँत मिले हैं इसे विशाल मैमथ के बारे में प्रमाणिक खोज माना जा रहा है।
  • फारमित्र एप: निजी क्षेत्र की बीमा कंपनी बजाज अलियांज ने फारमित्र एप लॉन्च किया गया इसका उद्देश्य किसानों से संबंधित विभिन्न ज़रूरतों से जुड़ी सूचना प्रदान करना है इस एप के माध्यम से किसानों को न केवल बीमा से जुड़ी समस्त सूचनाएँ दी जाएंगी बल्कि इसके माध्यम से मौसम में होने वाले बदलावों, फसलों का बाज़ार मूल्य आदि के बारे में लगातार जानकारी उपलब्ध कराएगी। इस एप के ज़रिये सीधे PM फसल बीमा योजना की वेबसाइट तक पहुँचा जा सकेगा।
  • अंतर आस्था केंद्र: मानव संसाधन विकास मंत्रालय मंत्री रमेश पोखरियाल ने पंजाब में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में अंतर आस्था केंद्र की स्थापना की। इस सम्मेलन में मूल रुप से पंजाबी में प्रकाशित तीन पुस्तकों गुरु नानक बानी, नानक बानी और साखियाँ का विमोचन किया गया।
  • खादी को मिला एचएस कोड: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने खादी उत्पादों के लिये अलग से एचएस कोड (हार्मोनाइज्ड सिस्टम) आबंटित किया है। केंद्र सरकार ने देश और विदेश में खादी की बिक्री, मांग, उत्पादन और खपत में बढ़ोतरी का स्तर बरकरार रखने हेतु विश्व में इसकी अलग पहचान के लिये ज़रूरी एचएस कोड दिलाने का फैसला किया था। एचएस कोड एक अंतरराष्ट्रीय कोड होता है, इस कोड की स्वीकार्यता पूरी दुनिया में होती है। एचएस छह अंकों का एक पहचान कोड है। इसे विश्व सीमा शुल्क संगठन (डब्ल्यूसीओ) ने विकसित किया है। एचएस कोड से अब विदेशों में खपत को टेक्सटाइल से अलग चिह्नित किया जा सकेगा।
  • गांधी परिवार की एसपीजी सुरक्षा: केंद्र सरकार ने हाल ही में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन फोर्स) सुरक्षा हटाने का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस से जुड़े इन तीनों नेताओं को अब CRPF की Z+ श्रेणी की सुरक्षा दी जाएगी। यह फैसला गृह मंत्रालय की उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया है। एसपीजी की सुरक्षा अब सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ही रहेगी। क्योंकि इससे पहले एसपीजी की सुरक्षा केवल चार लोगों के पास थी जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी का नाम शामिल था।
  • रोहित शर्मा: रोहित शर्मा ने 100 मैचों की 92 पारियों में 32 की औसत और 137.68 की स्ट्राइक रेट से 2533 रन बनाए हैं। रोहित शर्मा ने क्रिकेट के इस छोटे प्रारूप में अब तक 115 छक्के लगाए हैं। पाकिस्तान के शोएब मलिक एकमात्र ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने 100 से अधिक टी 20 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले है। उनके नाम पर 111 मैच दर्ज हैं। रोहित शर्मा ने भारत की ओर से सबसे ज्यादा मैच खेलने के मामले में पिछले मैच में पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को पछाड़ा था जिन्होंने 98 टी-20 मैच खेले थे। इसके साथ रोहित शर्मा ने पाकिस्तान के दिग्गज खिलाड़ी शाहिद आफरीदी को भी पीछे छोड़ दिया है जिनके नाम 99 टी-20 मैच हैं। इसके अतिरिक्त रोहित शर्मा टी-20 भारत की तरफ सबसे अधिक छक्के लगाने वाले बल्लेबाज हैं, रोहित शर्मा ने क्रिकेट के इस प्रारूप में 115 छक्के लगाएँ हैं।

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