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सामाजिक न्याय

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

  • 08 Nov 2019
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

भारतीय न्याय प्रणाली की स्थिति

चर्चा में क्यों?

भारतीय न्याय प्रणाली के संबंध में टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) द्वारा जारी ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ के अनुसार, पूरे देश में लोगों को न्याय दिलाने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है।

  • गौरतलब है कि इस सूची में महाराष्ट्र के बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान है।
  • इसके अलावा न्याय दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बड़े राज्यों में सबसे खराब रहा है।

रिपोर्ट संबंधी बिंदु

  • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में विभिन्न सरकारी आँकड़ों का प्रयोग करते हुए भारतीय न्याय प्रणाली के मुख्यतः 4 स्तंभों (1) पुलिस, (2) न्यायतंत्र, (3) कारागार या जेल और (4) कानूनी सहायता का आकलन किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि यह पहली बार है जब भारतीय न्याय प्रणाली की समग्र तस्वीर प्रस्तुत करते हुए कोई रिपोर्ट सामने आई है।
  • शोधकर्त्ताओं ने आंतरिक सुरक्षा की चुनौती को देखते हुए नगालैंड, मणिपुर, असम और जम्मू और कश्मीर (केंद्रशासित प्रदेश होने से पूर्व) का अध्ययन नहीं किया है।
  • रिपोर्ट के दौरान दी गई रैंकिंग में राज्यों को मुख्यतः 2 भागों में बाँटा गया है (1) 18 बड़े या मध्यम आकार वाले राज्य जिनमें जनसंख्या 10 मिलियन से अधिक है और (2) 7 छोटे राज्य जिनमें 10 मिलियन या उससे कम लोग रहते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, न्याय वितरण के मामले में महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है।

स्तंभवार विश्लेषण

पुलिस

  • रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस क्षमता के मामले में तमिलनाडु और उत्तराखंड पहले और दूसरे स्थान पर रहे, जबकि इस क्षेत्र में राजस्थान और उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब आँकी गई। वहीं छोटे राज्यों में सिक्किम पहले स्थान पर रहा और मिज़ोरम अंतिम स्थान पर।
  • ज्ञातव्य है कि समग्र रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाले कुछ राज्यों का प्रदर्शन इस विषय पर अपेक्षाकृत थोड़ा भिन्न रहा। उदाहरण के लिये केरल समग्र रैंकिंग में दूसरे स्थान पर है, जबकि पुलिस कार्यप्रणाली के मामले में वह 13वें स्थान पर रहा।
  • आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 100000 नागरिकों पर मात्र 151 पुलिसकर्मी ही मौजूद हैं, विदित हो कि यह अनुपात दुनिया भर के अन्य देशों के मुकाबले काफी खराब है। भारत के ब्रिक्स साझेदारों जैसे- रूस और दक्षिण अफ्रीका में यह अनुपात भारत से 2-3 गुना अधिक है।
  • पुलिस विभाग में विभिन्न जाति, धर्म और संप्रदायों के लोगों की भर्ती से संबंधित विविधता कोटे का भी काफी सीमित उपयोग किया गया है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जो इस कार्य में सफल हुआ है।
  • रिपोर्ट में दिये गए पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (BPRD) के आँकड़ों के अनुसार, देश के कुल पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 7 प्रतिशत है, जो कि महिला सशक्तीकरण के नज़रिये से एक अच्छी स्थिति नहीं है।

न्यायतंत्र

  • न्यायपालिका की क्षमता के मामले में तमिलनाडु अव्वल स्थान पर रहा और पंजाब को दूसरा स्थान हासिल हुआ। वहीं छोटे राज्यों में सिक्किम पहले स्थान पर रहा और अरुणाचल प्रदेश अंतिम स्थान पर।
  • वर्ष 2013-2017 के मध्य तमिलनाडु ने उच्च और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों को निपटाने में काफी सुधार किया। साथ ही न्यायाधीशों की संख्या की दृष्टि से भी तमिलनाडु ने अच्छा कार्य किया था।
  • न्यायतंत्र के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन बिहार और उत्तर प्रदेश का रहा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 23 प्रतिशत पद खाली हैं।
  • उल्लेखनीय है कि भारत अपने कुल बजट का मात्र 0.08 प्रतिशत हिस्सा ही न्यायतंत्र पर खर्च करता है।
    • दिल्ली के अतिरिक्त कोई भी अन्य राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश अपने क्षेत्र में न्यायतंत्र पर बजट का 1 प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं करता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, नवगठित राज्य तेलंगाना के अधीनस्थ न्यायालयों में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक तकरीबन 44 प्रतिशत पाई गई।
  • बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 39.5 प्रतिशत मामले 5 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं।

कारागार या जेल

  • कारागार या जेल के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन केरल और महाराष्ट्र का रहा, जिन्होंने विगत कुछ वर्षों में कारागार से संबंधित कई संकेतकों पर सुधार किया। वहीं छोटे राज्यों में गोवा पहले स्थान पर रहा और सिक्किम अंतिम स्थान पर।
  • गौरतलब है कि विश्लेषण की अवधि के दौरान केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, बिहार और महाराष्ट्र ने अधिकारी एवं कैडर स्टाफ दोनों स्तरों पर रिक्तियों को कम कर दिया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, जेल प्रशासन के सभी स्तरों पर लगभग 9.6 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएँ हैं।
  • देश के केवल 6 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिला प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से अधिक है।
    • नगालैंड (22.8%), सिक्किम (18.8%), कर्नाटक (18.7%), अरुणाचल प्रदेश (18.1%), मेघालय (17%) और दिल्ली (15.1%)।
  • जेल कर्मचारियों में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में गोवा (2.2%) और तेलंगाना (2.3%) का प्रदर्शन काफी खराब रहा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कारागारों या जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की समस्या सबसे प्रमुख है और इनमें सबसे अधिक वे विचाराधीन कैदी होते हैं जो जाँच, पूछताछ या परीक्षण का इंतज़ार कर रहे हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रत्येक एक दोषी कैदी पर 2 विचारधीन कैदी हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर पर 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सालाना 20,000 से 35,000 रुपए प्रति कैदी खर्च होता है। उल्लेखनीय है कि यह एक कैदी पर 100 रुपए प्रतिदिन से भी कम है।

कानूनी सहायता

  • कानूनी सहायता का उद्देश्य समाज के गरीब वर्गों की कानूनी मदद करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी व्यक्ति न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए।
  • आम नागरिकों को क़ानूनी सहायता प्रदान करने के मामले में केरल और हरियाणा सबसे अव्वल स्थान पर हैं, जबकि इस सूची में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सबसे निचले स्थान पर रहे। वहीं छोटे राज्यों में गोवा पहले स्थान पर रहा और अरुणाचल प्रदेश अंतिम स्थान पर।
  • रिपोर्ट में सामने आया है वर्ष 2017-18 में देश में कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 0.75 रुपए प्रतिवर्ष था।
  • उल्लेखनीय है कि देश के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने नालसा (NALSA) के तहत आवंटित बजट का पूर्णतः उपयोग नहीं किया।

स्रोत: द हिंदू

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