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डेली न्यूज़

  • 07 Nov, 2019
  • 33 min read
भारतीय राजनीति

राष्ट्रीय एकता परिषद

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय एकता परिषद

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय एकता परिषद की भूमिका

संदर्भ:

राम जन्मभूमि/बाबरी मस्जिद मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने के लिये राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलाई जाने की मांग की जा रही है।

राष्ट्रीय एकता परिषद के बारे में:

पृष्ठभूमि:

  • प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा वर्ष 1961 में राष्ट्रीय एकता से संबंधित विभिन्न मुद्दों के समाधान के लिये एक सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • इस सम्मेलन के पश्चात् वर्ष 1962 में राष्ट्रीय एकता परिषद (National Integration Council- NIC) की पहली आधिकारिक बैठक का आयोजन किया गया।

उद्देश्य:

  • वर्ष 1968 में हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में इसके उद्देश्य की घोषणा की गई जो इस प्रकार है- “ हमारे संविधान आधार आम नागरिकता (Common Citizenship), विविधता में एकता, धर्मों की स्वतंत्रता (Freedom of Religions), धर्मनिरपेक्षता (Secularism), समानता, राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक न्याय और सभी समुदायों के बीच भाईचारा है।”
  • राष्ट्रीय एकता परिषद इन संवैधानिक मूल्यों के अनुपालन हेतु प्रतिबद्धता है।
  • इसका उद्देश्य सांप्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद की समस्याओं को दूर करने हेतु समाधान खोजना है।

संगठन:

  • यह एक सरकारी सलाहकार निकाय है और इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।
  • परिषद के सदस्यों में कैबिनेट मंत्री, उद्यमी, मशहूर हस्तियाँ, मीडिया प्रमुख, मुख्यमंत्री और विपक्षी नेता आदि शामिल होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पेरिस समझौते से अमेरिका का अलगाव

प्रीलिम्स के लिये

पेरिस समझौता, UNFCCC

मेन्स के लिये

पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने के कारण जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

4 नवंबर, 2019 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र को सूचित करते हुए स्वयं को पेरिस समझौते से अलग करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।

यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद अमेरिका इस समझौते को छोड़ने वाला एकमात्र देश होगा। इससे पहले सीरिया तथा निकारागुआ ही इस समझौते से बाहर थे लेकिन वर्ष 2017 में उन्होंने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिये।

पेरिस समझौता क्या है?

  • 4 नवंबर, 2016 को संपन्न पेरिस समझौता एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौता है जिसने दुनिया के 200 देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने तथा जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये एकजुट किया।
  • इस संधि द्वारा वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य रखा गया था। इसके साथ ही तापमान वृद्धि को और आगे चलकर 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रत्येक देश को अपने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना था।
  • वर्ष 1992 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) की स्थापना के बाद जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की दिशा में यह एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कदम था।
  • इस संधि द्वारा विकसित तथा अमीर देशों को निर्देशित किया गया था कि वे जलवायु परिवर्तन के इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये विकासशील देशों को आर्थिक तथा तकनीकी मदद प्रदान करें।

पेरिस समझौते से अलग होने की प्रक्रिया

  • पेरिस समझौते का अनुच्छेद-28, किसी भी हस्ताक्षरकर्त्ता देश के इससे अलग होने के प्रावधानों का वर्णन करता है।
  • इसके अनुसार, कोई भी हस्ताक्षरकर्त्ता देश पेरिस समझौते के गठन के तीन वर्ष बाद (4 नवंबर 2016) ही इससे अलग होने के लिये सूचना दे सकता है। इसके अलावा सूचित करने के एक वर्ष बाद ही उक्त देश को इस समझौते से अलग माना जाएगा। इस प्रकार अमेरिका इस समझौते से वर्ष 2020 में औपचारिक रूप से अलग होगा।

अमेरिका के इससे अलग होने की वजह:

  • वर्ष 2016 के चुनाव प्रचार के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते को अमेरिका के हितों के खिलाफ बताया था तथा अपने चुनावी वादों में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया था कि यदि वे बतौर राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो अमेरिका को इस समझौते से अलग करना उनकी प्राथमिकता होगी।
  • राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद जून 2017 में उन्होंने अमेरिका के इस समझौते से अलग होने की यह घोषणा की लेकिन तब तक पेरिस समझौते को तीन वर्ष पूरे नहीं हुए थे।

अमेरिका का अलग होना: पेरिस समझौते के लक्ष्यों पर प्रभाव

  • चीन (27%) के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (15%) विश्व में ग्रीनहाउस गैसों दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। यदि इसके द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं की जाती है तो समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल होगा।
  • पेरिस समझौते में की गई प्रतिबद्धता के अनुसार अमेरिका को अपने 2005 के स्तर से 2025 तक अपने उत्सर्जन को घटाकर 26-28 प्रतिशत तक कम करना था।
  • अमेरिका का इससे अलग होने का सबसे बड़ा प्रभाव जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये प्राप्त होने वाले वित्तीय संसाधनों पर पड़ेगा। समझौते के अंतर्गत हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) में अमेरिका की सर्वाधिक भागीदारी थी। अतः इसकी अनुपस्थिति में समझौते के लक्ष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • समझौते के अनुसार सभी विकसित देशों का यह कर्त्तव्य होगा कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये वे हरित जलवायु कोष में वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दें। अमेरिका का इससे अलग होने से अन्य देशों पर अतिरिक्त भार बढ़ेगा।
  • अमेरिका के इस समझौते से अलग होने का यह अर्थ नहीं है कि वह अपने इन लक्ष्यों का परित्याग कर देगा लेकिन ऐसा करने से वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये बाध्य नहीं होगा। इसके साथ ही अमेरिका पेरिस समझौते में दोबारा शामिल होने के लिये स्वतंत्र होगा।
  • हालाँकि अमेरिका पेरिस समझौते से अलग हो जाएगा लेकिन पेरिस समझौते की मातृसंस्था UNFCCC का हस्ताक्षरकर्त्ता होने की वजह से वह इस संगठन के अन्य प्रक्रियाओं तथा बैठकों में शामिल रहेगा।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन

(United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC)

  • यह विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौता है जिसके तहत जलवायु परिवर्तन की समस्या को संज्ञान में लिया गया था। इसका प्रस्ताव वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी सम्मलेन (Rio Earth Summit) में रखा गया था तथा वर्ष 1994 में यह प्रभावी रूप से लागू हुआ।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को संतुलित करना तथा मानवजनित कारकों का वातावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों को रोकना है।
  • इसका सचिवालय बॉन, जर्मनी में है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्थिक मंदी और कार्बन उत्सर्जन

प्रीलिम्स के लिये:

कार्बन ब्रीफ, UNFCCC

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

संदर्भ:

कार्बन ब्रीफ के अध्ययन के अनुसार, कोयला आधारित विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में धीमी वृद्धि के कारण कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन स्तर वर्ष 2001 के बाद से सबसे धीमी गति से बढ़ रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में सिल्वर लाइनिंग (वर्तमान में मंदी लेकिन आगे वृद्धि की उम्मीद) की स्थिति से गुज़र रही है।
  • बिजली, कोयला, तेल, गैस और विदेशी व्यापार इत्यादि से संबंधित मंत्रालयों के आँकड़ों के आधार पर विश्लेषण किया गया कि इस वर्ष भारत की कार्बन उत्सर्जन दर में पिछले वर्षों की तुलना में केवल 2% की वृद्धि देखी गई है।
  • वर्ष 2019 के ये आँकड़े अगस्त महीने तक के ही हैं लेकिन कोयले की मांग में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा के योगदान को देखते हुए इन आँकड़ों में परिवर्तन की संभावना कम है।

कार्बन उत्सर्जन में गिरावट के कारण:

  • वर्ष 2017 में निर्माण क्षेत्र मंदी की वज़ह से औद्योगिक कोयला की मांग में गिरावट आई है, हालाँकि इस क्षेत्र में वर्ष 2018 में सीमित उछाल देखा गया।
  • कोयले की कम मांग होने के कारण कोयला खदानों में कम खनन हुआ तथा इसके आयात में भी 14% की गिरावट आई।
  • वर्ष 2019 के पहले छह महीनों में पवन ऊर्जा उत्पादन में एक वर्ष पहले इसी अवधि की तुलना में 17%, सौर ऊर्जा में 30% और जल विद्युत ऊर्जा में 22% की वृद्धि हुई।

प्रभाव:

  • इन आँकड़ों के आधार पर भविष्य में वायु प्रदूषण में कमी की संभावना व्यक्त की जा रही है।

महत्त्व:

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) पर अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुसार भारत ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में अपनी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2030 तक कम करने का वादा किया है।
  • भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा का 40% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।

कार्बन ब्रीफ (Carbon Brief)

  • यह यूनाइटेड किंगडम से संचालित की जाने वाली एक वेबसाइट है, जो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और इससे संबंधित अन्य आँकड़ों के रुझानों को ट्रैक करती है।
  • इसके अतिरिक्त यह जलवायु विज्ञान, जलवायु नीति और ऊर्जा नीतियों से संबंधित मुद्दों को कवर करती है।
  • यह वेबसाइट जलवायु परिवर्तन की समझ को बेहतर बनाने के लिये आँकड़ों, लेख और ग्राफिक्स का प्रयोग करती है।
  • वर्ष 2019 में कार्बन ब्रीफ ने 1.5C, 2C और उससे आगे के जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर इंटरएक्टिव फीचर (Interactive Feature) के लिये एसोसिएशन ऑफ ब्रिटिश साइंस राइटर्स (Association of British Science Writers) का "इनोवेशन ऑफ द ईयर" (Innovation of the year) पुरस्कार जीता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एज कंप्यूटिंग

प्रीलिम्स के लिये:

एज कंप्यूटिंग और इसके अनुप्रयोग

मेन्स के लिये:

एज कंप्यूटिंग की क्रियाविधि और अनुप्रयोग

संदर्भ:

एज कंप्यूटिंग को केंद्रीकृत और कनेक्ट रहने वाले नेटवर्क सेगमेंट (जैसे ड्रॉपबॉक्स, जीमेल इत्यादि) से पृथक एवं डेटा कैप्चर के व्यक्तिगत स्रोतों जैसे कि लैपटॉप, टैबलेट के स्तर पर डेटा-हैंडलिंग गतिविधियों या अन्य नेटवर्क संचालन के रूप में परिभाषित किया जाता है।

  • यह क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing) का विस्तार है और सूचना को संसाधित करने में लगने वाले समय के संदर्भ में यह भिन्न है। इसमें स्थानीय रूप से संग्रहीत डेटा का बिना विलंब किये वास्तविक समय में विश्लेषण किया जाता है।
  • भविष्य में क्लाउड कंप्यूटिंग के बाद एज कंप्यूटिंग सबसे ज़्यादा प्रचलन में रहेगा। वैश्विक एज कंप्यूटिंग बाज़ार वर्ष 2025 तक 8 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।

Edge Computing

एज कंप्यूटिंग के लाभ

  • त्वरित (Quick):
    • नेटफ़्लिक्स प्लेटफार्मों के वीडियो स्ट्रीमिंग की तरह एज कंप्यूटिंग त्वरित डेटा प्रसंस्करण (Quicker Data Processing) और सामग्री वितरण (Content Delivery) की अनुमति देता है।
  • भविष्य की प्रौद्योगिकी सक्षमता:

    • 5जी वायरलेस तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी प्रौद्योगिकियाँ एज कंप्यूटिंग को शीघ्र प्रतिक्रिया एवं कंप्यूटिंग में सरलीकृत रखरखाव हेतु सक्षम करती हैं।
  • स्थानीयकृत समाधान:
    • दूरस्थ स्थानों पर जहाँ एक केंद्रीकृत स्थान पर सीमित या कोई कनेक्टिविटी नहीं होती है वहाँ क्लाउड कंप्यूटिंग के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है।
    • इन स्थानों को एक मिनी डेटा सेंटर के समान स्थानीय भंडारण (Local Storage) की आवश्यकता होती है, एज कंप्यूटिंग इसके लिये सही समाधान प्रदान करता है।
  • डेटा दक्षता:
    • किसी डेटा के संसाधित होते ही उसके नेटवर्क पर भेजने की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि केवल महत्त्वपूर्ण डेटा ही भेजा जाता है।
    • इसलिये एज कंप्यूटिंग नेटवर्क किसी भी नेटवर्क पर भेजे जाने वाले डेटा की मात्रा को कम करता है।

क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing)

  • क्लाउड कंप्यूटिंग को इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न सेवाओं के वितरण के लिये प्रयोग किया जाता है। इसमें विभिन्न संसाधन जैसे डेटा स्टोरेज, सर्वर, डेटाबेस, नेटवर्किंग और सॉफ्टवेयर जैसे टूल एवं एप्लीकेशन शामिल हैं।
  • यह फाइलों को हार्ड ड्राइव या स्थानीय भंडारण डिवाइस में सुरक्षित रखने के बजाय क्लाउड-आधारित भंडारण के दूरस्थ डेटाबेस में सुरक्षित रखना संभव बनाता है।
  • यह लोगों और व्यवसायों के लिये लागत में बचत, उत्पादकता में वृद्धि, गति और दक्षता, प्रदर्शन एवं सुरक्षा जैसे कारकों की वज़ह से एक लोकप्रिय विकल्प है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जी.वी.-971

प्रीलिम्स के लिये:

अल्ज़ाइमर रोग

मेन्स के लिये:

अल्ज़ाइमर रोग तथा संबंधित दवा से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने अल्ज़ाइमर रोग के निदान के लिये जी.वी.-971 (G.V-971) नामक एक घरेलू दवा विकसित की है।

मुख्य बिंदु:

  • अल्ज़ाइमर रोग के निदान के लिये विकसित जी.वी.-971 नामक घरेलू दवा को आधिकारिक अनुमोदन के बाद दिसंबर 2019 से चीन के रोगियों के लिये उपलब्ध कराया जाएगा।
  • द चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ ( The chinese Academy Of Sciences), शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ मैटेरिआ मेडिका ( Shanghai Institute of Materia Medica) ने ग्रीन वैली फार्मास्यूटिकल तथा ओशियन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना (Ocean University of China) के साथ मिलकर 22 वर्षों के शोध के बाद यह दवा विकसित की है।
  • फार्मास्यूटिकल कंपनियों द्वारा अल्ज़ाइमर के निदान के लिये दुनिया भर में विकसित लगभग 320 दवाओं में से जी.वी.-971 अकेली ऐसी दवा है जो नैदानिक परीक्षणों में सफल रही है।
  • जी.वी.-971, भूरे शैवाल से निर्मित विश्व की पहली बहु-लक्ष्यीय (Multi-Targeting) और कार्बोहाइड्रेट आधारित ओरल (Oral) दवा है जो प्रारंभिक तथा मध्यम स्तरीय अल्ज़ाइमर रोग के निदान तथा स्मरण क्षमता (Cognition) में सुधार के लिये उपयोगी है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, यह दवा मस्तिष्क में सूजन कम करके तथा आँत में उपस्थित सूक्ष्मजीवों की संख्या को संतुलित करके मस्तिष्क में होने वाली संज्ञानात्मक क्षति को कम करती है।

अल्ज़ाइमर:

  • अल्ज़ाइमर रोग ‘डिमेंशिया’ नामक सिंड्रोम का सामान्य रूप है जिसमें ब्रेन डिसऑर्डर (Disorder) के रूप में मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
  • इस रोग के कारण रोगी की सोचने, सरल कार्यों को करने की तथा स्मरण क्षमता घट जाती है और इस प्रकार रोगी की निर्णय लेने की क्षमता घट जाती है।
  • 55-60 वर्ष के आयु वर्ग में अल्ज़ाइमर का खतरा अधिक रहता है।
  • यह रोग मस्तिष्क में टैंगल्स (Tangles) प्रोटीन के निर्माण के कारण होता है। जिसे टाइप-3 डायबिटीज़ के नाम से भी जानते हैं।
  • उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस रोग के बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है, कभी-कभी आनुवंशिक लक्षणों के कारण इस बीमारी के लक्षण कम उम्र में ही देखने को मिल जाते हैं।
  • विश्व अल्ज़ाइमर दिवस प्रत्येक वर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है।
  • इस वर्ष विश्व अल्ज़ाइमर दिवस की थीम ‘लेट्स टॉक अबाउट डिमेंसिया’ (Let’s Talk About Dementia) थी।

भारत में अल्ज़ाइमर की स्थिति:

  • भारत में लगभग 4 मिलियन लोग किसी-न-किसी रूप में डिमेंशिया से प्रभावित हैं।
  • पूरे विश्व में लगभग 44 मिलियन लोग डिमेंशिया से प्रभावित हैं।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


जैव विविधता और पर्यावरण

इंडएयर

प्रीलिम्स के लिये:

इंडएयर, सीएसआईआर- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान

मेन्स के लिये:

इंडएयर से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सीएसआईआर- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR- National Environment Engineering Research Institute- NEERI) ने वायु गुणवत्ता पर शोध संकलन के लिये देश की पहली संवादात्मक ऑनलाइन रिपोेज़िटरी ‘इंडएयर’ (IndAIR- Indian Air Quality Studies Interactive Repository) की स्थापना की है।

मुख्य बिंदु:

  • NEERI के अनुसार, ‘इंडएयर’ की स्थापना का उद्देश्य वायु गुणवत्ता अनुसंधान की जानकारी को सभी के लिये उपलब्ध कराना है।
  • ‘इंडएयर’ ने देश में पूर्व में हुए वायु प्रदूषण से जुड़े अनुसंधानों तथा क़ानूनी प्रक्रियाओं के इतिहास को सामान्य जन तक पहुँचाने के लिये लगभग 1,215 शोध-पत्र, 170 रिपोर्ट और केस स्टडी, लगभग 100 से अधिक मामले तथा 2000 कानूनों तथा इंटरनेट पूर्व समय के लगभग 700 दस्तावेज़ों को संग्रहीत किया है।
  • ‘इंडएयर’ वर्ष 1905 तक के सभी प्रमुख कानूनों को संग्रहीत करता है।
  • ‘इंडएयर’ भारत में वायु प्रदूषण के क्षेत्र में अविष्कारमूलक अनुसंधान एवं विश्लेषण तथा इसके नुकसान एवं प्रभावों के बारे में सबको जानकारी उपलब्ध कराएगा तथा इसकी सहायता से वायु प्रदूषण के संबंध में किये जा रहे अध्ययनों तक शोधकर्त्ताओं, मीडिया तथा शिक्षाविदों की ऑनलाइन पहुँच सुनिश्चित करेगा।

‘इंडएयर’ के संबंध में अन्य तथ्य:

  • ‘इंडएयर’ देश के विभिन्न संस्थानों से संग्रहीत सामग्री को एकत्रित करता है तथा इंटरनेट डोमेन पर अनुपस्थित शोधों की जानकारी को संग्रहीत करता है।
  • ‘इंडएयर’ के अन्य कार्यों में वेबसाइट का निर्माण तथा इतिहास में किये गए कार्य और वर्तमान कार्यक्रमों की तार्किक समझ के लिये भारतीय पर्यावरण विशषज्ञों से साक्षात्कार करना है।
  • NEERI ने इस नवाचारी पहल का प्रारंभ सीएसआईआर- राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, राष्ट्रीय अभिलेखागार, ऊर्जा संसाधन संस्थान, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी संस्थाओं के सहयोग से किया है।
  • NEERI के अनुसार, पहले के समय में उचित उपकरण न होने के कारण वायु की गुणवत्ता मापना मुश्किल कार्य था, पर वर्तमान में ऐसे उपकरण विद्यमान हैं जिनकी सहायता से हम सटीकता के साथ वायु की गुणवत्ता के बारे में जान सकते हैं।
  • ‘इंडएयर’ द्वारा दिल्ली में दीपावली के बाद अचानक बढ़ें वायु प्रदूषण जैसी गंभीर परिस्थितियों के समाधान में सहायता मिलेगी।

सीएसआईआर- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान

(CSIR-National Environment Engineering Research Institute- NEERI)

  • NEERI वर्ष 1958 में भारत सरकार द्वारा नागपुर में स्थापित और वित्तपोषित संस्थान है।
  • इसका उद्देश्य पर्यावरण और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान करना है।
  • NEERI वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific & Industrial Research- CSIR) की एक घटक प्रयोगशाला है।
  • इसकी पाँच क्षेत्रीय प्रयोगशालाएँ क्रमशः चेन्नई, दिल्ली, कलकत्ता, हैदराबाद और मुंबई में स्थित हैं।

स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

RO सिस्टम के संबंध में NGT का निर्देश

प्रीलिम्स के लिये -

NGT

मेन्स के लिये -

भारत में जल प्रदूषण संबंधी विश्लेषण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को RO (Reverse Osmosis) सिस्टम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित अधिसूचना जारी करने के लिये अल्टिमेटम जारी किया है।

प्रमुख बिंदु-

  • NGT ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पानी खारा नहीं है, RO सिस्टम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है।
  • निर्देश के अनुसार जिन जगहों पर पानी में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (Total Dessolved Solids- TDS) की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहाँ RO सिस्टम के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया जाए।
  • सरकार की प्रस्तावित नीति में इसका प्रावधान होना चाहिये कि RO सिस्टम में व्यर्थ होने वाले पानी के 60% से अधिक का पुनः प्रयोग किया जा सके।
  • NGT के अनुसार अगर टीडीएस का स्तर 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, तो आरओ सिस्टम उपयोगी नहीं होगा, बल्कि पानी में मौजूद महत्वपूर्ण खनिजों की हानि के साथ पानी की बर्बादी भी होगी।

आरओ (Reverse Osmosis)-

रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) एक जल उपचार प्रक्रिया है जो पानी से दूषित पदार्थों को दबाव (Pressure) का उपयोग करके अर्धचालक झिल्ली (Semipermeable Membrane) के माध्यम से बाहर निकालती है।

WHO का पेयजल संबंधी मानक -

डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के अनुसार 300 मिलीग्राम प्रति लीटर से नीचे के टीडीएस स्तर वाले जल को उत्कृष्ट, 900 मिलीग्राम प्रति लीटर टीडीएस स्तर वाले जल को खराब और 1200 मिलीग्राम से ऊपर के टीडीएस स्तर वाले जल को अस्वीकार्य माना गया है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय

  • यह भारत की पर्यावरण एवं वानिकी संबंधी नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के नियोजन, संवर्द्धन, समन्वय और निगरानी हेतु केंद्र सरकार के प्रशासनिक ढाँचे के अंतर्गत एक नोडल एजेंसी है।
  • इस मंत्रालय का मुख्य दायित्व देश की झीलों और नदियों, जैव विविधता, वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, पशु कल्याण,आदि से संबंधित नीतियों तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना है।
  • इन नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में मंत्रालय सतत् विकास एवं जन कल्याण को बढ़ावा देने के सिद्धांतों का पालन करता है।
  • यह मंत्रालय देश में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP), अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र (ICIMOD) तथा पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) के लिये भी नोडल एजेंसी की तरह कार्य करता है।
  • इस मंत्रालय को बहुपक्षीय निकायों और क्षेत्रीय निकायों के पर्यावरण से संबंधित मामले भी सौंपे गए हैं।
  • मंत्रालय के व्यापक उद्देश्यों के अंतर्गत वनस्पतियों, जीवों, जंगलों एवं वन्यजीवों का संरक्षण और सर्वेक्षण, प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण, पर्यावरण का संरक्षण व पशुओं का कल्याण सुनिश्चित करना शामिल है।

स्रोत-द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (07 November)

  • म्याँमार का प्रकाश महोत्सव: म्याँमार के शान प्रांत में प्रकाश महोत्सव मनाया जाता हैं, इसमें लोग आतिशबाजी और पटाखे तैयार करते हैं। इस महोत्सव के दौरान पटाखों को गुब्बारों में भरकर, गुब्बारों को आसमान में छोड़ दिया जाता है। गुब्बारे कुछ ऊँचाई पर पटाखों के कारण फट जाते हैं, इनके फटने से रंग-बिरंगी चिंगारियाँ निकलती हैं इससे आसमान में अदभुत नज़ारा दिखाई देता है।
  • गॉइ फॉक्स महोत्सव: इसे बोनफायर नाइट फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है, इस महोत्सव के दौरान लुईस शहर में नाइट परेड निकाली जाती है। इस महोत्सव के दौरान देश-दुनिया की सबसे विवादास्पद सामाजिक अथवा राजनीतिक हस्ती का पुतला जलाया जाता है। इस महोत्सव की शुरुआत 16वीं शताब्दी में की गई थी। यह महोत्सव कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच संघर्ष की याद दिलाता है।
  • रोबो-बी: हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के हार्वर्ड माइक्रोरोबोटिक्स लेबोरेटरी के शोधकर्त्ताओं ने रोबो-बी रोबोट तैयार किया है। जो मधुमक्खी की तरह उड़ान भर सकता है और इसके आसानी से उड़ान भरने तथा लचीलेपन के लिये कोमल आर्टिफिशियल मांसपेशियों (एक्ट्यूएटर) का प्रयोग किया गया है। यह रोबोट आसानी से दुर्गम स्थानों पर जा सकता है। सामान्यतः यह किसी सतह से टकराने पर टूटता नहीं हैं। इनका प्रयोग रोबोटिक आर्मी में भी किया जा सकता है क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि दुश्मन को आसानी से नज़र नहीं आ सकते हैं।
  • ईरान का फोरडो संयंत्र: ईरान ने परमाणु समझौते के विपरीत अपने भूमिगत परमाणु संयंत्र, फोरडो में दोबारा कार्य शुरू कर दिया है, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षक को हिरासत में ले लिया है। संयुक्त राष्ट्र के किसी भी निरीक्षक को हिरासत में लेने का विश्व में यह पहला मामला है। अपने फोरडो परमाणु संयंत्र में ईरान यूरेनियम गैस को सेंट्रीफ्यूज में डालने का प्रयोग करने जा रहा है।
  • इंटरनेट स्वतंत्रता: इंटरनेट वाचडॉग की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट और डिजिटल स्वतंत्रता के मामले में पाकिस्तान विश्व के 10 सबसे खराब देशों में शामिल है। इस रिपोर्ट में भारत को 55 अंक दिये गए और भारत में इंटरनेट की स्थिति को आंशिक रूप से मुक्त बताया गया। इस रिपोर्ट में आइसलैंड इंटरनेट स्वतंत्रता के मामले में पहले स्थान पर रहा।

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