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डेली न्यूज़

  • 08 Oct, 2022
  • 55 min read
इन्फोग्राफिक्स

शांति का नोबेल पुरस्कार 2022

Peace-award-2022


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA)

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांज़िट कॉरिडोर (INSTC), काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शन्स एक्ट (CAATSA)।

मेन्स के लिये:

भारत से जुड़े समूह और समझौते और/या भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, JCPOA और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने मुंबई स्थित एक पेट्रोकेमिकल कंपनी, तिबालाजी पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ प्रतिबंध लगाए क्योंकि उस पर ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों को बेचने का आरोप लगाया गया है।

  • संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) से अमेरिका के बाहर निकलने के बाद वर्ष 2018-19 में पारित एकतरफा प्रतिबंधों के तहत अमेरिकी पदनाम का सामना करने वाली यह पहली भारतीय इकाई है।

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA):

  • इस समझौते को ईरान परमाणु समझौते, 2015 के नाम से भी जाना जाता है।
  • CPOA ईरान और P5+1 देशों (चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय संघ या EU) के बीच वर्ष 2013-2015 के बीच चली लंबी बातचीत का परिणाम था।
  • ईरान एक प्रोटोकॉल को लागू करने पर भी सहमत हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों को अपने परमाणु स्थलों तक पहुँचने की अनुमति देगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।
  • हालाँकि पश्चिम, ईरान के परमाणु प्रसार से संबंधित प्रतिबंधों को हटाने के लिये सहमत हो गया है, जबकि मानवाधिकारों के कथित हनन और ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को संबोधित करने वाले अन्य प्रतिबंध यथावत रहेंगे।
  • अमेरिका ने तेल निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है, लेकिन वित्तीय लेन-देन को प्रतिबंधित करना जारी रखा है जिससे ईरान का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित हुआ है।
  • बहरहाल ईरान की अर्थव्यवस्था मंदी, मुद्रा मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति के बाद सौदे के प्रभावी होने के चलते काफी स्थिर हो गई तथा इसका निर्यात भी काफी बढ़ गया है।
  • अमेरिका द्वारा वर्ष 2018 में सौदे को छोड़ने और बैंकिंग एवं तेल प्रतिबंधों को बहाल करने के बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ावा दिया, जो वर्ष 2015 से पहले की उसकी परमाणु क्षमताओं का लगभग 97% था।

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अमेरिका के इस सौदे से पीछे हटने के प्रभाव:

  • अप्रैल 2020 में अमेरिका ने प्रतिबंधों को वापस लेने के अपने उद्देश्य की घोषणा की। हालाँकि अन्य भागीदारों ने इस कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा था, चूँकि अमेरिका अब इस सौदे का हिस्सा नहीं है, इसलिये वह एकतरफा प्रतिबंधों को फिर से लागू नहीं कर सकता था।
  • शुरुआत में वापसी के बाद कई देशों ने ट्रंप प्रशासन द्वारा दी गई छूट के तहत ईरान से तेल का आयात करना जारी रखा। लगभग एक वर्ष बाद अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाओं के दबाव में छूट को समाप्त कर दिया और ऐसा करके ईरान के तेल निर्यात पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया।
  • अन्य शक्तियों ने, सौदे को बनाए रखने के प्रयास में, अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली के बाहर ईरान के साथ लेन-देन की सुविधा के लिये एक वस्तु विनिमय प्रणाली शुरू की जिसे व्यापार विनिमय के समर्थन में साधन (Instrument in Support of Trade Excahanges-INSTEX) के रूप में जाना जाता है। हालाँकि INSTEX में केवल भोजन एवं दवा को कवर किया, जो पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों से मुक्त थे।
  • जनवरी 2020 में अमेरिका द्वारा शीर्ष ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने घोषणा की कि वह अब अपने यूरेनियम संवर्द्धन को सीमित नहीं करेगा।
  • सितंबर 2022 में ईरान और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अधिकारियों ने रिएक्टरों की निगरानी के लिये निरीक्षकों को ईरान में वापस लाने के लिये ईरान के समझौते की संभावना पर चर्चा करने हेतु एक दौर को वार्त्ता की।
    • अमेरिका और ईरान ने भी JCPOA में फिर से शामिल होने पर "अंतिम मसौदे" के लिये यूरोपीय संघ के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से अपने पक्ष का आदान-प्रदान किया है।

भारत के लिये संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का महत्त्व:

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में वृद्धि:
    • यदि प्रतिबंध हटा लिये जाते हैं तो बंदर अब्बास और चाबहार बंदरगाहों के साथ-साथ क्षेत्रीय संपर्क की अन्य योजनाओं में भारत की दिलचस्पी फिर से पुनर्जीवित हो सकती है।
    • इससे भारत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन की भूमिका को बेअसर करने में मदद मिलेगी।
    • चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) में भारत की दिलचस्पी को भी बढ़ावा मिल सकता है, जो पाँच मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ संपर्क में सुधार करेगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) अरब प्रायद्वीप में 6 देशों- बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का गठबंधन है। ईरान GCC का सदस्य नहीं है।
  • यह सदस्यों के बीच आर्थिक, सुरक्षा, सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1981 में स्थापित किया गया था तथा सहयोग एवं क्षेत्रीय मामलों पर चर्चा करने के लिये प्रत्येक वर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित करता है।

अतः विकल्प (a)  सही है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सतत् वित्त

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन मार्केट, MSME, नियामक सैंडबॉक्स।

मेन्स के लिये:

सतत् वित्त, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण।

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) द्वारा गठित सतत् वित्त पर एक समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कार्बन मार्केट के विकास का सुझाव दिया गया है।

सतत् वित्त:

  • निवेश निर्णय के ऐसे विकल्प जो एक आर्थिक गतिविधि के पर्यावरणीय, सामाजिक और शासकीय(ESG) कारकों का ध्यान रखते हैं, उन्हें सतत् वित्त कहा जाता है।
    • पर्यावरणीय कारकों में जलवायु संकट को कम करना या सतत् संसाधनों का उपयोग शामिल है।सामाजिक कारकों के अंतर्गत मानव और पशु अधिकार, साथ ही उपभोक्ता संरक्षण शामिल हैं।
    • शासकीय कारक सार्वजनिक और निजी दोनों संगठनों के प्रबंधन, कर्मचारी संबंधों और मुआव की पद्धति को संदर्भित करते हैं।

समिति के सुझाव:

  • एक स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार का निर्माण, संक्रमण बॉण्ड के लिये ढाँचा, जोखिम कम करने वाले तंत्र को सक्षम बनाना, ग्रीन फिनटेक के लिये नियामक सैंडबॉक्स को प्रोत्साहित करना और दूसरों के बीच वैश्विक जलवायु गठबंधन के निर्माण की सुविधा प्रदान करना है।
  • सतत् ऋण के लिये एक समर्पित MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) का निर्माण।
  • आपदा बॉण्ड, नगरपालिका बॉण्ड, हरित प्रतिभूतिकरण, मिश्रित वित्त जैसे अभिनव उपकरणों के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
  • IFSC में एकत्रीकरण सुविधाओं, प्रभाव निधियों, ग्रीन इक्विटी आदि को सक्षम करना।
  • वित्तीय प्रणाली को हरित बनाने की नींव रखने के लिये IFSCA को क्षमता निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

IFSCA:

  • स्थापना:
  • भूमिका:
    • यह भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों के विकास तथा विनियमन के लिये एक एकीकृत प्राधिकरण है।
    • वर्तमान में गुजरात के GIFT सिटी में स्थित IFSC भारत में पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र है
    • IFSCA की स्थापना से पूर्व घरेलू वित्तीय नियामक यथा RBI, SEBI, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) तथा पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) IFSC में व्यवसाय को विनियमित करने का कार्य करते थे।
  • सदस्य:
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण में कुल नौ सदस्य होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • इनमें प्राधिकरण का अध्यक्ष, RBI, SEBI, IRDAI और PFRDA का एक-एक सदस्य तथा वित्त मंत्रालय के दो सदस्य होते हैं। इसके अलावा चयन समिति की सिफारिश पर दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
  • कार्यकाल:
    • IFSCA के सभी सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जो पुनर्नियुक्ति के अधीन होता है।

कार्बन मार्केट:

  • कार्बन मार्केट वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से कार्बन उत्सर्जन को खरीदने और बेचने की अनुमति देते हैं।
  • क्योटो प्रोटोकॉल के तहत कार्बन मार्केट मौजूद थे, जिसे वर्ष 2020 में पेरिस समझौते के उपरांत बदला जा रहा है।
  • कार्बन मार्केट संभावित रूप से उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं, यह कार्य देश अपने दम पर कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये भारत में ईंट भट्टे का प्रौद्योगिकी उन्नयन और उत्सर्जन में कमी दो तरीकों से की जा सकती है:
      • विकसित देश जो अपने कमी के लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ है, वह भारत में ईंट भट्ठे को धन या प्रौद्योगिकी प्रदान कर सकता है और इस प्रकार उत्सर्जन में कमी का दावा कर सकता है।
      • वैकल्पिक रूप से भट्टे पर निवेश कर सकता हैं फिर उत्सर्जन में कमी कर बिक्री की पेशकश कर सकता है, जिसे कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। इसके साथ ही पार्टी जो अपने स्वयं के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रही है, इन क्रेडिटों को खरीद सकती है और इन्हें अपना क्रेडिट स्कोर दिखा सकती है।

भारत सरकार की संबंधित पहलें:

  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना: सरकार ने 13 ऊर्जा गहन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी को लक्षित करते हुए PAT योजना शुरू की है।
  • विदेशी पूंजी को प्रोत्साहित करना: सरकार ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में स्वत: मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन:
    • सरकार ने परियोजनाओं के लिये सौर और पवन ऊर्जा की अंतर-राज्यीय बिक्री के लिये अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (ISTS) शुल्क माफ कर दिया है।
    • अक्षय खरीद दायित्व (RPO) के लिये प्रावधान करना और अक्षय ऊर्जा पार्कों की स्थापना करना।
  • भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान: पेरिस समझौता,  जिसे वर्ष 2015 में हस्ताक्षरकर्त्ता देशों द्वारा अपनाया गया था, के तहत भारत ने निर्धारित लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया था।
    • अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक से उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी -8 शिखर सम्मेलन, हेलीगेंडम

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वर्ष 1997 में अपनाया गया क्योटो प्रोटोकॉल वर्ष 2005 में लागू हुआ। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो वर्ष 1992 के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) का विस्तार करती है जो वैज्ञानिक सहमति के आधार पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये पार्टियों को प्रतिबद्ध करती है।
    • क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 17 में निर्धारित उत्सर्जन व्यापार उन देशों को कार्बन व्यापर की  अनुमति देता है जिनके पास उत्सर्जन इकाइयाँ हैं, लेकिन उन देशों को इस अतिरिक्त क्षमता को बेचने के लिये उपयोग नहीं किया जाता है जो उनके लक्ष्य से अधिक हैं।
    • कार्बन क्रेडिट माप की एक इकाई है, जो किसी संस्था/कंपनी अथवा किसी देश को दिया गया क्रेडिट है, यदि वे अपने GHG उत्सर्जन (CO2 समकक्ष) को 1 इकाई से कम करते हैं। यह क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्वच्छ विकास तंत्र (Clean Development Mechanism-CDM) के माध्यम से प्रदान किया जाता है, जो "कार्बन बाज़ार" की सुविधा प्रदान करता है।
  • रियो डी जनेरियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन, या रियो शिखर सम्मेलन, जून 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित एक प्रमुख संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन था।
    • शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर एक समझौते के साथ संपन्न हुआ, जिसके कारण क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता हुआ।
    • एक अन्य समझौता "स्वदेशी लोगों की भूमि पर ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं करना था जो पर्यावरणीय क्षरण का कारण बने या जो सांस्कृतिक रूप से अनुपयुक्त हो"
    • शिखर सम्मेलन में विकसित दस्तावेज़ पर्यावरण और विकास पर रियो घोषणा, एजेंडा 21, वन सिद्धांत शामिल हैं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन का एक प्रोटोकॉल है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे ओज़ोन परत की रक्षा के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो ओज़ोन रिक्तीकरण हेतु ज़िम्मेदार माने जाने वाले कई पदार्थों के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर देता है।
  • हेलीगेंडम में आयोजित 33वें G8 शिखर सम्मेलन का परिणाम हेलीगेंडम प्रक्रिया था। यह प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रासंगिक मुद्दों पर वार्त्ता शुरू करने के लिये की गई थी।
  • चार प्रमुख लक्षित क्षेत्र:
    • नवाचार को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना;
    • एक खुले निवेश वातावरण के माध्यम से निवेश की स्वतंत्रता को मज़बूत करना, जिसमें कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांतों को मज़बूत करना शामिल है;
    • विकास के लिये संयुक्त ज़िम्मेदारियों का निर्धारण, विशेष रूप से अफ्रीका पर ध्यान केंद्रित करना;
    • CO2 उत्सर्जन को कम करने में योगदान देने के उद्देश्य से ऊर्जा दक्षता और प्रौद्योगिकी सहयोग में सुधार के लिये संयुक्त पहुँच।

अतः विकल्प (b) सही है।


मेन्स:

प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी

प्रिलिम्स के लिये:

पर्यावरण प्रभाव आकलन, पर्यावरण मंज़ूरी।

मेन्स के लिये:

कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी और संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार कार्योत्तर (शुरू होने के बाद) पर्यावरण मंज़ूरी (Environmental Clearances-EC) स्वीकार्य है।

  • न्यायालय ने एक दावे के जवाब में निर्णय दिया है कि जैव-चिकित्सा उपचार सुविधा पर्यावरण मंज़ूरी के बिना स्थापित और चलाई गई थी तथा यह पर्यावरण में गिरावट पर चिंता पैदा करती है।

एक्स पोस्ट फैक्टो पर्यावरणीय मंज़ूरी (Ex Post Facto Environmental Clearance):

  • कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी का तात्पर्य किसी ऐसे उद्योग या परियोजना के कामकाज़ की अनुमति देना है, जिसने हरित मंज़ूरी प्राप्त किये बिना और परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का खुलासा किये बिना काम करना शुरू कर दिया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की एक बेंच ने पाया कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, एक्स पोस्ट फैक्टो पर्यावरणीय मंज़ूरी को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं करता है।
    • इसे नियमित रूप से नहीं दिया जाना चाहिये, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में सभी प्रासंगिक पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखते हुए मंज़ूरी दी जा सकती है।

संबंधित चिंताएँ:

  • कार्योत्तर मूल्यांकन पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) के मूल उद्देश्य को विफल कर देता है क्योंकि संचालन शुरू होने के साथ ही पारिस्थितिक क्षति पहले ही हो चुकी होगी।
    • संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (FAO) EIA के उद्देश्य को निर्णय निर्माताओं, नियामक एजेंसियों एवं परियोजनाओं के पर्यावरणीय परिणामों के बारे में जनता को सचेत करने के रूप में परिभाषित करता है "ताकि उन परियोजनाओं को संशोधित किया जा सके, यदि आवश्यक हो तो पर्यावरणीय गिरावट, निर्माण त्रुटियों से बचने और नकारात्मक दुष्प्रभावों से होने वाले आर्थिक नुकसान को रोका जा सके।
  • उद्योगों को मंज़ूरी के बाधा रहित परिचालन के लिये प्रोत्साहित करने और अंततः जुर्माने की राशि का भुगतान करके विनियमित किये जाने से, इसके उल्लंघनों के बढ़ने एवं ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की संभावना है, जहाँ पर्यावरण को होने वाली क्षति अपरिवर्तनीय होगी।

पर्यावरण प्रभाव आकलन:

  • इसे पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/परियोजना के प्रभाव की भविष्यवाणी के लिये अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • यह कुछ परियोजनाओं के लिये पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वैधानिक है।
  • प्रक्रिया:
    • निवेश के पैमाने, विकास के प्रकार और विकास के स्थान के आधार पर स्क्रीनिंग यह देखने के लिये की जाती है कि किसी परियोजना को वैधानिक अधिसूचनाओं के अनुसार पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं।
    • स्कोपिंग EIA के संदर्भ की शर्तों (Terms of Reference -ToR) का विवरण देने की एक प्रक्रिया है, जो किसी परियोजना के विकास में मुख्य मुद्दे या समस्याएँ हैं।
    • संभावित प्रभाव में परियोजना के महत्त्वपूर्ण पहलुओं और इसके विकल्पों के पर्यावरणीय परिणामों का मानचित्रण शामिल है।
  • EIA रिपोर्ट के पूरा होने के बाद प्रस्तावित विकास पर जनता को अनिवार्य रूप से सूचित और परामर्श प्रदान करने की आवश्यकता है।

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया:

  • किसी परियोजना के लिये पर्यावरण मंजूरी (EC) प्राप्त करने के लिये एक EIA रिपोर्ट तैयार की जाती है।
  • राज्य नियामकों द्वारा 'स्थापना के लिये सहमति (NOC)' जारी करने से पूर्व 'जन सुनवाई' की प्रक्रिया आयोजित की जाती है। प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र में रहने वाले लोगों की चिंताओं पर विचार किया जाता है।
  • EIA रिपोर्ट के साथ एक आवेदन पत्र जन सुनवाई एवं NOC के विवरण के साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के समक्ष पर्यावरण मंजूरी के लिये प्रस्तुत किया जाता है एवं यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई परियोजना परियोजना A श्रेणी अथवा राज्य सरकार के अंतर्गत आती है या वह परियोजना परियोजना B  श्रेणी के अंतर्गत आती है।
    • श्रेणी ए परियोजनाओं को अनिवार्य रूप से पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है और इस प्रकार वे स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुज़रते हैं।
    • श्रेणी बी परियोजनाएँ एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुज़रती हैं और उन्हें दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
      • श्रेणी B1 परियोजनाएँ (EIA अनिवार्य रूप से आवश्यक).
      • श्रेणी B2 परियोजनाएँ ( EIAआवश्यक नहीं होता).
  • तत्पश्चात् प्रस्तुत दस्तावेजों का विश्लेषण मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) द्वारा किया जाता है। समिति की सिफारिशों को अंतिम अनुमोदन या अस्वीकृति के लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में प्रसंस्कृत किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रिलिम्स

प्रश्न निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को यह अधिकार देता है कि
  2. पर्यावरण संरक्षण प्रक्रियाओं में जनभागीदारी की आवश्यकता और इसे प्राप्त करने की प्रक्रियाओं एवं विधियों का उल्लेख करना
  3. विभिन्न स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन के लिये मानक निर्धारित करना

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो  1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंज़ूरी दिये जाने से पूर्व पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन तेज़ी से किये जाते हैं। कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयले से चलने वाले थर्मल संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2020 का मसौदा मौजूदा  EIA अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (2020)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में कार्ड का टोकनाइज़ेशन

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), टोकनाइज़ेशन, संवेदनशील डेटा, कार्ड-ऑन-फाइल सिस्टम, डिजिटल भुगतान।

मेन्स के लिये:

टोकनाइज़ेशन का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ऑनलाइन, पॉइंट-ऑफ-सेल और इन-एप लेनदेन में उपयोग किये जाने वाले सभी क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड के लिये टोकनाइज़ेशन अनिवार्य कर दिया है।

  • उपभोक्ता को टोकनाइज़ेशन सेवा के बदले कोई भी शुल्क नहीं देना पड़ेगा।

टोकनाइज़ेशन:

  • यह वास्तविक क्रेडिट और डेबिट कार्ड के विवरण को "टोकन" नामक एक वैकल्पिक कोड में बदलने को संदर्भित करता है, जो कार्ड, टोकन अनुरोधकर्त्ता (वह इकाई जो कार्ड के टोकनाइज़ेशन के लिये ग्राहक का अनुरोध स्वीकार करता है और संबंधित टोकन जारी करने के लिये इसे कार्ड नेटवर्क पर भेजता है) तथा डिवाइस के संयोजन के लिये विशिष्ट होगा।

टोकनाइज़ेशन की आवश्यकता:

  • संवेदनशील जानकारियों की सुभेद्यता: अमेज़न, मिंत्रा, फ्लिपकार्ट, बिगबास्केट आदि जैसे ई-कॉमर्स दिग्गज अपने साथ कार्ड के संवेदनशील विवरण जैसे कार्ड नंबर, समाप्ति तिथि और सीवीवी इन कंपनियों के डेटाबेस में संग्रहीत कर लेते हैं।
    • लेकिन यदि डेटाबेस हैक कर लिया जाता है तो कार्ड के डेटा के चोरी या गलत उपयोग के कारण समस्या पैदा हो जाती है।
  • डिजिटल धोखाधड़ी में वृद्धि: COVID-19 महामारी ने डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव किया  है। उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों की बढती संख्या को देखते हुए इस दिशा में सुरक्षा तंत्र को और अधिक  मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • प्रत्येक माह औसतन 6 अरब लेन-देन होने के साथ, यदि ध्यान नहीं दिया गया तो धोखाधड़ी भी आनुपातिक रूप से बढ़ सकती है।
    • यह धोखाधड़ी पूरे देश की वित्तीय व्यवस्था के लिये बहुत बड़ा खतरा हो सकती है। वर्ष 2019 से वर्ष 2020 तक, कार्ड धोखाधड़ी 14% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ी है, जबकि पिछले तीन वर्षों में इसमें 34% की वृद्धि हुई है।
  • अप्रचलित वर्तमान व्यवस्था: मौज़ूदा कार्ड-ऑन-फाइल सिस्टम (CoF) को आसानी से भंग किया जा सकता है और डेटा चोरी हो सकता है। इन्हीं सुरक्षा चिंताओं का ध्यान रखने के लिये आरबीआई टोकन प्रणाली लेकर आया है जो गारंटी देता है कि ग्राहकों के विवरण का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है तथा किसी के द्वारा उनका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
    • CoF लेन-देन एक ऐसा लेन-देन है जहांँ कार्डधारक ने कार्डधारक के मास्टरकार्ड या वीज़ा भुगतान विवरण को संग्रहीत करने हेतु एक व्यापारी को अधिकृत किया है।

टोकनाइज़ेशन सेवाओं की पेशकश:

  • अधिकृत कार्ड नेटवर्क: टोकनाइज़ेशन केवल अधिकृत कार्ड नेटवर्क द्वारा किया जा सकता है और मूल प्राथमिक खाता संख्या (पैन) तक पहुँच केवल अधिकृत कार्ड नेटवर्क के लिये संभव होनी चाहिये।
    • इसके अलावा यह सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय किये जाने चाहिये कि पैन और अन्य संवेदनशील डेटा टोकन से कार्ड नेटवर्क को छोड़कर किसी अन्य के द्वारा नहीं प्राप्त किया जा सकता है। आरबीआई ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि टोकन बनाने की प्रक्रिया की अखंडता हर समय सुनिश्चित की जानी चाहिये।

टोकनाइज़ेशन के लाभ:

  • एक टोकनयुक्त कार्ड लेन-देन को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि लेन-देन के दौरान वास्तविक कार्ड विवरण व्यापारी के साथ साझा नहीं किया जाता है। वास्तविक कार्ड डेटा, टोकन और अन्य प्रासंगिक जानकारी अधिकृत कार्ड नेटवर्क द्वारा सुरक्षित रूप से संग्रहीत की जाती है।
    • टोकन अनुरोधकर्त्ता प्राथमिक खाता संख्या (Primary Account Number-PAN), या कोई अन्य कार्ड विवरण संग्रहीत नहीं कर सकता है। कार्ड नेटवर्क को सुरक्षा के लिये टोकन अनुरोधकर्त्ता को प्रमाणित करना भी अनिवार्य है जो अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं/विश्व स्तर पर स्वीकृत मानकों के अनुरूप है।
  • टोकनाइज़ेशन भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में उन्नत नवाचारों का मार्ग प्रशस्त करता है। यह भुगतान के लिये आधारशिला बन गया है, चाहे वह इन-स्टोर हो, ऑनलाइन हो या मोबाइल वॉलेट के माध्यम से
  • यह ग्राहकों और व्यवसायों के मध्य विश्वास को मज़बूत करता है।
  • व्यवसायों के लिये लालफीताशाही के स्तर को कम करता है।
  • इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये आसान और सुरक्षित भुगतान अनुभव का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है।

भारत में कार्ड भुगतान की स्थिति:

  • RBI की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 के दौरान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किये गए भुगतान लेन-देन मात्रा के संदर्भ में 27% बढ़कर 223.99 करोड़ और मूल्य के संदर्भ में 54.3% बढ़कर 9.72 लाख हो गया है।
  • जुलाई (2022) तक जारी किये गए क्रेडिट कार्डों की संख्या लगभग 8 करोड़ थी, और इस प्रणाली में डेबिट कार्ड की संख्या लगभग 92.81 करोड़ थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)  

‘भुगतान प्रणाली आँकड़ों के भंडारण (स्टोरेज ऑफ पेमेंट सिस्टम डेटा)’ के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के हाल का निदेश, जिसे प्रचलित रूप से डेटा डिक्टेट के रूप में जाना जाता है, भुगतान प्रणाली प्रदाताओं (पेमेंट सिस्टम प्रोवाइडर्स) को समादेशित करता है कि:

  1. वे यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके द्वारा संचालित भुगतान प्रणालियों से संबंधित समग्र आँकड़े एक प्रणाली के अंतर्गत केवल भारत में भंडारित किये जाएँ।
  2. वे यह सुनिश्चित करेंगे कि इन प्रणालियों का स्वामित्व और संचालन सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम ही करें।
  3. वे कैलेंडर वर्ष की समाप्ति तक भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक को समेकित प्रणाली लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)  

व्याख्या:

  • पर्यवेक्षी उद्देश्यों के लिये सभी भुगतान डेटा तक निर्बाध पहुँच प्राप्त करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक ने निर्देश दिया था कि सभी सिस्टम प्रदाता यह सुनिश्चित करें कि संचालित भुगतान प्रणाली से संबंधित संपूर्ण डेटा केवल भारत में एक सिस्टम में संग्रहीत किया जाए। इस डेटा में संदेश/भुगतान निर्देश के हिस्से के रूप में संपूर्ण लेन-देन विवरण/संग्रह/संसाधित की गई जानकारी शामिल हो, अत: कथन 1 सही है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा सिस्टम के स्वामित्व और संचालन के संबंध में कोई प्रावधान प्रदान नहीं किया गया है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • आरबीआई ने भुगतान प्रणाली प्रदाताओं को सीईआरटी-इन पैनलबद्ध लेखापरीक्षकों द्वारा अनिवार्य रूप से आयोजित ऑडिट के साथ सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट (SAR) जमा करने का भी निर्देश दिया था। अत: कथन 3 सही नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

गाम्बिया में भारत निर्मित सिरप और मौतें

प्रिलिम्स के लिये:

WHO, डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल, CDSCO, DGCI

मेन्स के लिये:

भारत में ड्रग रेगुलेटरी नॉर्म्स।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चार भारतीय निर्मित कफ सिरप के बारे में अलर्ट जारी किया, जो छोटे से पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र गाम्बिया में बच्चों में तीव्र गुर्दे की चोट और 66 मौतों से जुड़ा हुआ है।

  • इन उत्पादों में से प्रत्येक के नमूनों के WHO द्वारा किये गए विश्लेषण में "दूषित पदार्थों के रूप में डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकॉल की अस्वीकार्य मात्रा" की उपस्थिति की पुष्टि की गई थी। भोजन या दवाओं में इन सामग्रियों की अनुमति नहीं है, क्योंकि वे पेट दर्द, उल्टी, दस्त, सिरदर्द, गंभीर गुर्दे की चोट और न्यूरोलॉजिकल विषाक्तता का कारण बन सकते हैं।
  • कंपनी ने कहा कि ये भारत में नहीं बेचे गए थे और केवल निर्यात बाज़ारों के लिये हैं जो पहले से ही भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI) द्वारा अनुमोदित हैं।

DGCI

सिरप भारत में क्यों नहीं बेचे जाते हैं?

  • भारत ने अपनी निलंबन प्रकृति के कारण 2020 में सिरप को चरणबद्ध रूप से समाप्त कर दिया (निलंबन में दवा के कण पूरी तरह से विलायक में घुलते नहीं हैं)।
    • सिरप में सक्रिय दवा सामग्री (API) विलायक में पूरी तरह मिश्रित होती है, जबकि निलंबन में API कणों को विलायक में समान रूप से निलंबित कर दिया जाता है।
  • चार सिरप में निहित सक्रिय दवा सामग्री (API) जैसे पैरासिटामोल और अन्य, पानी में घुलनशील नहीं होते हैं इसलिये प्रोपलीन ग्लाइकाॅल जैसे क्षार विलायक की आवश्यकता होती है।
    • प्रोपलीन ग्लाइकाॅल दो किस्मों में उपलब्ध है, एक प्रकार औद्योगिक उपयोग के लिये है, दूसरा दवा उपयोग के लिये है। लागत बचाने के लिये कुछ कंपनियाँ औद्योगिक प्रोपलीन ग्लाइकाॅल का उपयोग करती हैं जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल संदूषक के रूप में हो सकते हैं, जो न्यूरोलॉजिकल विषाक्तता एवं अन्य जटिलताओं को जन्म देते हैं तथा इस प्रकार बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं।

भारत में इससे संबंधित अधिनियम:

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम:
    • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और 1945 ने दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के विनियमन के लिये केंद्र और राज्य नियामकों को विभिन्न जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं।
    • यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी दवाओं के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने के लिये नियामक दिशानिर्देश प्रदान करता है।
    • निर्माताओं के लिये सुरक्षा और प्रभावशीलता के प्रमाण, अच्छी विनिर्माण प्रथाओं (GMP) के अनुपालन सहित विनिर्माण इकाइयों और दवाओं के लाइसेंस के लिये निर्धारित आवश्यकताओं का पालन करना अनिवार्य है।
    • निर्माताओं को विनिर्माण इकाइयों और दवा उत्पाद अनुमोदनों के संबंध में कुछ आवश्यकताओं का पालन करना चाहिये, जिसमें सुरक्षा एवं प्रभावकारिता का प्रमाण तथा अच्छी विनिर्माण प्रथाओं (GMP) का पालन शामिल है।
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO)
    • यह देश में दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन, निदान और उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये मानकों एवं उपायों को निर्धारित करती है।
    • नई दवाओं और नैदानिक परीक्षण मानकों के बाज़ार प्राधिकरण को नियंत्रित करती है।
    • दवा आयात का पर्यवेक्षण करती है और उपर्युक्त उत्पादों के निर्माण के लिये लाइसेंसों को मंज़ूरी देती है।
    • CDSCO भारत में दवाओं के निर्यात को नियंत्रित करती है, CDSCO से प्रमाणीकरण वाला कोई भी निर्माता भारत के बाहर दवाओं का निर्यात कर सकता है।
  • भारत का औषधि महानियंत्रक (Drugs Controller General of India-DGCI):
    • DCGI, भारत सरकार के CDSCO के विभाग का प्रमुख है, जो भारत में रक्त और रक्त उत्पादों, IV तरल पदार्थ तथा टीके जैसी विशिष्ट श्रेणियों की दवाओं के लाइसेंस के अनुमोदन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • DCGI भारत में दवाओं के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के लिये मानक भी निर्धारित करता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारतीय राजव्यवस्था

संसदीय समितियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय समितियाँ, अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 118, अध्यक्ष, राज्यसभा, लोकसभा

मेन्स के लिये:

संसदीय समितियाँ और इनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 22 स्थायी समितियों का पुनर्गठन हुआ।

संसदीय समितियाँ:

  • परिचय:
    • संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
    • समिति अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और यह अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
    • संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद में हुई है।
    • वे अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 118 से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं।
      • अनुच्छेद 105 सांसदों के विशेषाधिकारों से संबंधित है।
      • अनुच्छेद 118 संसद को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।
  • आवश्यकता:
    • विधायी कार्य शुरू करने के लिये संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता है लेकिन कानून बनाने की प्रक्रिया अक्सर जटिल होती है तथा संसद के पास विस्तृत चर्चा के लिये सीमित समय होता है।
    • साथ ही राजनीतिक ध्रुवीकरण और चर्चा हेतु सामंजस्य का अभाव संसद में तेज़ी से विद्वेषपूर्ण और अनिर्णायक बहसों को जन्म दे रहा है।
      • इन मुद्दों के कारण विधायी कार्य का एक बड़ा निर्णय संसद के बज़ाय संसदीय समितियों में होता है।

संसद की विभिन्न समितियाँ:

  • भारत की संसद में कई प्रकार की समितियाँ हैं। उन्हें उनके काम, उनकी सदस्यता और उनके कार्यकाल के आधार पर विभेदित किया जा सकता है।
  • तथापि मोटे तौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।
    • स्थायी समितियाँ स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) होती हैं और निरंतर आधार पर काम करती हैं।
      • स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
        • वित्तीय समितियाँ
        • विभागीय स्थायी समितियाँ
        • जाँच हेतु समितियाँ
        • जाँच और नियंत्रण के लिये समितियाँ
        • सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबंधित समितियाँ
        • हाउस कीपिंग या सर्विस कमेटी
    • जबकि तदर्थ समितियाँ अस्थायी होती हैं और उन्हें सौंपे गए कार्य के पूरा होने पर उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
      • उन्हें आगे जाँच समितियों और सलाहकार समितियों में विभाजित किया गया है।
      • प्रमुख तदर्थ समितियाँ विधेयकों पर प्रवर और संयुक्त समितियाँ हैं।

 संसदीय समितियों का महत्त्व:

  • विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
    • अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं, जो जनता की समस्या को समझते हैं लेकिन निर्णय लेने से पूर्व विशेषज्ञों और हितधारकों की सलाह पर भरोसा करते हैं।
      • संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता हासिल करने में मदद करती हैं और उन्हें मुद्दों पर विस्तार से सोचने का समय देती हैं।
  • लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
    • ये समितियाँ एक लघु-संसद के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि उनके पास विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद होते हैं, जो संसद में उनकी ताकत के अनुपात में, एकल संक्रमणीय चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं।
  • विस्तृत जाँच के लिये साधन:
    • जब इन समितियों को बिल भेजे जाते हैं, तो उनकी बारीकी से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से इनपुट मांगे जाते हैं।
  • सरकार पर नियंत्रण प्रदान करता है:
    • हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन उनकी रिपोर्टें उन परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड बनाती हैं जो बहस योग्य प्रावधानों पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिये सरकार पर दबाव डालती हैं।
    • बंद दरवाजे और लोगों की नज़रों से दूर होने के कारण समिति की बैठकों में चर्चा भी अधिक सहयोगी होती है, जिसमें सांसद मीडिया दीर्घाओं के लिये कम दबाव महसूस करते हैं।

संसदीय समितियों को कम महत्त्व दिये जाने से संबद्ध मुद्दे:

  • सरकार की संसदीय प्रणाली का कमज़ोर होना:
    • संसदीय लोकतंत्र संसद और कार्यपालिका के बीच शक्तियों को समेकित करने के सिद्धांत पर काम करता है, लेकिन संसद से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार की ज़िम्मेदारी को बनाए रखने के साथ ही इसकी शक्तियों पर भी नियंत्रण बनाए रखे।
      • इस प्रकार महत्त्वपूर्ण विधानों को पारित करते समय संसदीय समितियों को महत्त्व न दिये जाने या उन्हें दरकिनार करने से लोकतंत्र के कमज़ोर होने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
  • ब्रूट मेजोरिटी को लागू करना:
    • भारतीय प्रणाली में यह अनिवार्य नहीं है कि विधेयक समितियों को भेजे जाएँ। यह अध्यक्ष (लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति) के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
      • अध्यक्ष को विवेकाधीन शक्ति प्रदान कर इस प्रणाली को विशेष तौर पर लोकसभा में जहाँ बहुमत सत्तारूढ़ दल के पास होता है, को कमज़ोर रूप में प्रस्तुत किया गया है।

आगे की राह

  • पारित किये गए महत्त्वपूर्ण विधेयकों की जाँच अनिवार्य रूप से विधायी प्रक्रिया में बाधा नहीं है, बल्कि कानून की गुणवत्ता और विस्तार से शासन की गुणवत्ता को बनाए रखना आवश्यक है।
  • इस प्रकार कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की शुचिता सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत संसदीय समिति प्रणाली की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सी संसदीय समिति जाँच करती है और सदन को रिपोर्ट करती है कि संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों, उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का कार्यपालिका द्वारा प्रतिनिधिमंडल के दायरे में उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है

(a) सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति
(b) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति
(c) नियम समिति
(d) कार्य मंत्रणा समिति

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • सरकारी आश्वासन संबंधी समिति: इस समिति का कार्य समय-समय पर मंत्रियों द्वारा दिये गए आश्वासनों, वादों और उपक्रमों आदि की सदन के पटल पर जाँच करना है। लोकसभा में इसके सदस्यों की संख्या 15 है, जबकि राज्यसभा में 10 सदस्य हैं।
  • अधीनस्थ विधान संबंधी समिति: इस समिति का कार्य इस बात की जाँच करना और सदन को रिपोर्ट करना है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों एवं उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का ऐसे प्रतिनिधिमंडल के भीतर उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है। लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों के लिये यह 15 सदस्यीय निकाय है।
  • नियम समिति: इसका कार्य सदन में प्रक्रिया और कार्य संचालन के मामलों पर विचार करना और इन नियमों में किसी भी संशोधन या परिवर्धन की सिफारिश करना है जिसे आवश्यक समझा जा सकता है। लोकसभा के लिये यह 15 सदस्यीय निकाय है, जबकि राज्यसभा में 16 सदस्य हैं। समिति की अध्यक्षता राज्यसभा और लोकसभा के लिये क्रमश: सभापति या अध्यक्ष करते हैं।
  • इस समिति का कार्य यह सिफारिश करना है कि सरकार द्वारा लाए जाने वाले विधायी तथा अन्य कार्यों को निपटाने के लिए कितना समय नियत किया जाए।
  • कार्य मंत्रणा समिति: इस समिति का कार्य उस समय की सिफारिश करना है जो ऐसे सरकारी विधायी और अन्य कार्य की चर्चा के लिये आवंटित किया जाना चाहिये क्योंकि अध्यक्ष, सदन के नेता के परामर्श से, इसे समिति को भेजे जाने का निर्देश दे सकता है। यह लोकसभा में 15 सदस्यीय निकाय है जिसकी अध्यक्षता सदन के अध्यक्ष करते हैं। इसलिये विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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