लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

स्थायी समितियों के कार्यकाल में विस्तार

  • 05 Sep 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय समितियाँ,  तदर्थ समिति

मेन्स के लिये:

भारतीय लोकतंत्र में संसदीय समितियों की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा सचिवालय द्वारा विभागीय स्थायी समितियों के कार्यकाल को 1 वर्ष से बढ़ाकर 2 वर्ष करने के लिये इससे संबंधित नियमों में बदलाव पर विचार किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि वर्तमान में राज्यसभा में कार्यरत सभी स्थायी समितियों का कार्यकाल 11 सितंबर, 2020 को समाप्त हो जाएगा और इसके पश्चात वे नए पैनल की स्थापना तक विचार-विमर्श नहीं कर सकेंगी।  
  • कई समिति अध्यक्षों के अनुसार, उनकी समिति के कार्यकाल का एक बड़ा हिस्सा COVID-19 महामारी के कारण नष्ट हो गया। 
  • इसी प्रकार कई अन्य समितियाँ अपनी रिपोर्ट पूरी नहीं कर सकी हैं। उदाहरण के लिये सूचना प्रौद्योगिकी पर बने एक पैनल द्वारा नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और  सोशल मीडिया/ ऑनलाइन समाचार प्लेटफार्मों के दुरुपयोग (जिसमें इंटरनेट पर महिला सुरक्षा के मुद्दे पर पर विशेष ज़ोर देते दिया गया) को रोकने  के लिये विचार-विमर्श को पूरा नहीं किया जा सका है।
  • ध्यातव्य है कि पैनल ने इसी मुद्दे पर हाल ही में सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक को समन (Summon) भेजा था।
  • इसी प्रकार COVID-19 से निपटने की तैयारी पर बनी एक अन्य समिति अभी तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सकी है।

समाधान:

  • वर्तमान में इस चुनौती से निपटने के लिये दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।
    1. वर्तमान पैनल के कार्यकाल को एक वर्ष के लिये बढ़ाया जाना। 
    2. दो वर्ष के निर्धारित कार्यकाल के साथ नई समितियों का गठन करना।

स्थायी समितियों का महत्त्व:  

  • संसद के कार्यदिवसों में कमी और संसद में प्रस्तुत विधेयकों की संख्या अधिक होने से सदन में ही इन पर व्यापक चर्चा कर पाना बहुत कठिन है। ऐसे में स्थायी समितियाँ प्रस्तावित विधेयकों पर चर्चा और सुधारों के लिये एक मंच प्रदान करती हैं।
  • संसदीय समितियाँ सरकार की नीतियों का परीक्षण कर उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं।  

स्थायी समितियों से संबंधित दिशा निर्देशों का नया मसौदा:

  • हाल ही में राज्यसभा सचिवालय द्वारा स्थायी समितियों के लिये दिशानिर्देशों का नया मसौदा तैयार किया गया है। इस मसौदे में कई महत्त्वपूर्ण सुधार प्रस्तावित किये गए हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-   
    • किसी भी पैनल की बैठक से पहले कम-से-कम 15 दिन का नोटिस और 1/3 सदस्यों से इसकी पुष्टि की अनिवार्यता।
    • योग्यता, रुचियों और कार्यक्षेत्र के आधार पर सदस्यों का नामांकन। 
    • साक्ष्य एकत्र करने और रिपोर्ट को  अपनाने या उसके निर्धारण के लिये कम-से-कम 50% सदस्यों की उपस्थिति की अनिवार्यता।

संसदीय समितियाँ:

  • भारत में आमतौर पर दो प्रकार की संसदीय समितियाँ होती हैं।
    • स्थायी समिति (Standing Committee)
    • तदर्थ समिति (Ad Hoc Committee)
  • स्थायी समिति:  स्थायी समितियों अनवरत रूप से कार्य करती रहती हैं, इनका गठन वार्षिक रूप से किया जाता है। वित्तीय समितियाँ, विभागीय समितियाँ आदि स्थायी समितियों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
  • तदर्थ समिति:  तदर्थ या अस्थायी समितियों का गठन किसी विशेष उद्देश्य के लिये किया जाता है। उद्देश्य की पूर्ति हो जाने के पश्चात् संबंधित अस्थायी समिति को भी समाप्त कर दिया जाता है। अस्थायी समितियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

    • जाँच समितियाँ
    • सलाहकार समितियाँ
  • विभागीय समितियाँ:  वर्तमान में ऐसी कुल समितियों की संख्या 24 है, इनमें से 16 लोकसभा और 8 राज्यसभा के अंतर्गत कार्य करती हैं।

सदस्य:  

  • प्रत्येक विभागीय समिति में अधिकतम 31 सदस्य (21 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से) होते हैं। समिति में शामिल लोकसभा सदस्यों का मनोनयन लोकसभा स्पीकर तथा राज्यसभा सदस्यों का मनोनयन राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जाता है।
  • कोई भी मंत्री किसी स्थायी समिति के सदस्य के रूप में मनोनीत होने के लिये पात्र नहीं होता है।  
  • कार्यकाल:   प्रत्येक स्थायी समिति का कार्यालय उसके गठन की तिथि से एक वर्ष के लिये होता है।  

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2