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डेली न्यूज़

  • 06 Sep, 2022
  • 57 min read
शासन व्यवस्था

केरल लोकायुक्त की शक्तियों में कमी

प्रिलिम्स के लिये:

लोकायुक्त, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013।

मेन्स के लिये:

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, लोकपाल के कामकाज से जुड़े मुद्दे और आगे की राह, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल विधानसभा ने केरल लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया।

संशोधन:

  • यह संशोधन विधेयक लोकायुक्त के आदेश के बाध्यकारी पहलू को कमज़ोर कर दिया है, जिससे सक्षम प्राधिकारी अब लोकपाल की रिपोर्ट को या तो अस्वीकार कर सकता है या स्वीकार कर सकता है।
    • संशोधन द्वारा राज्य सरकार को भ्रष्टाचार विरोधी निकाय के फैसले को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति मिल जाएगी।
    • संशोधन लोकायुक्त को सिर्फ सिफारिशें करने या सरकार को रिपोर्ट भेजने के लिये एक निकाय बना देगा।
  • इसने विधानसभा को मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोग रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिये सक्षम प्राधिकारी भी बनाया है।
    • अगर लोकायुक्त की रिपोर्ट में कैबिनेट मंत्री को दोषी ठहराया जाता है, तो विधेयक मुख्यमंत्री में समीक्षा करने का अधिकार देता है।
    • विधायकों के मामले में सक्षम प्राधिकारी सदन के अध्यक्ष होंगे।
  • विधेयक राजनीतिक नेताओं को अधिनियम के दायरे से छूट देता है।
  • विधेयक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को लोकायुक्त नियुक्त करने की अनुमति देता है
  • अधिनियम की धारा 14, जिसे अब संशोधित किया गया है, के अनुसार, यदि लोकायुक्त लोक सेवक के खिलाफ शिकायत पर संतुष्ट हो जाता है कि उसे अपने पद पर बने रहना आवश्यक नहीं है, तो वह सक्षम प्राधिकारी को अपनी रिपोर्ट में इस आशय की घोषणा करेगा जो इसे स्वीकार कर उस पर कार्रवाई करेगा।
    • दूसरे शब्दों में यदि लोक सेवक मुख्यमंत्री या मंत्री है, तो वह तुरंत अपने पद से इस्तीफा दे देगा। ऐसा प्रावधान राज्य के किसी भी कानून या केंद्र के लोकपाल अधिनियम में मौजूद नहीं है।

लोकपाल और लोकायुक्त की अवधारणा:

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की।
  • इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है, अतः ये संस्थाएँ वैधानिक निकाय हैं।
  • ओम्बड्समैन या लोकपाल का कार्य कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करना है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 लोकपाल की स्थापना का प्रावधान करता है। लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये।
    • आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा कम-से -कम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
    • लोकपाल को मार्च 2019 में नियुक्त किया गया था और इसने मार्च 2020 से कार्य करना शुरू कर दिया था, जब इसके नियम बनाए गए थे।
    • वर्तमान में झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती लोकपाल के प्रमुख है।
    • लोकपाल के पास किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार क्षेत्र है जो प्रधानमंत्री, या केंद्र सरकार में मंत्री, या संसद सदस्य, साथ ही समूह A, B, C और D के तहत केंद्र सरकार के अधिकारी हैं।
    • इसके अलावा किसी भी बोर्ड, निगम, समाज, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी और निदेशक शामिल हैं जो या तो संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित हैं या केंद्र द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित हैं।
    • यह किसी भी समाज या ट्रस्ट या निकाय को भी शामिल करता है जो 10 लाख रुपए से अधिक का विदेशी योगदान प्राप्त करता है।

लोकायुक्त अधिनियम से संबंधित चिंताएँ:

  • लोकायुक्त कानून को सार्वजनिक पदाधिकारियों जैसे मंत्रियों, विधायकों आदि के भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। इस अधिनियम के परिभाषा खंड में राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को शामिल नहीं किया गया है।
    • मूल रूप से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सरकार और संबद्ध एजेंसियों, वैधानिक निकायों, निर्वाचित निकायों आदि में भ्रष्टाचार से संबंधित है। राजनीतिक दलों के पदाधिकारी इस कानून के दायरे में नहीं आते हैं।
    • इसलिये इन्हें लोकायुक्त अधिनियम के दायरे लाना मुश्किल कार्य है।
  • इस कानून में एक और समस्यात्मक प्रावधान है, जो लोकायुक्त (धारा 12) की रिपोर्ट से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि लोकायुक्त भ्रष्टाचार के आरोप की पुष्टि होने पर, कार्रवाई की सिफारिश के साथ निष्कर्षों को सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा, जिसे लोकायुक्त की सिफारिश के अनुसार कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
    • इसमें आगे कहा गया है कि यदि लोकायुक्त सक्षम प्राधिकारी द्वारा की गई कार्रवाई से संतुष्ट हैं, तो वह मामले को समाप्त कर देंगे। सवाल यह है कि लोकायुक्त एक भ्रष्टाचार के मामले को कैसे बंद कर सकता है जो एक आपराधिक मामला है और जिसमें तीन से सात वर्ष की कैद का प्रावधान है।
      • लोकपाल ने जाँच के बाद न्यायालय में केस दायर करता है। केंद्रीय कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत लोकपाल मामले को न्यायालय में पहुँचने से पूर्व ही समाप्त कर दे।

आगे की राह:

  • भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई को प्रभावी बनाने के लिये राजनीतिक, कानूनी, प्रशासनिक और न्यायिक प्रणालियों के व्यापक सुधार अनिवार्य है।
  • केरल लोकायुक्त अधिनियम की विधानसभा की एक समिति द्वारा पुन: जाँच की जानी चाहिये और इसे लोकपाल अधिनियम के अनुरूप होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पीएम श्री स्कूल

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वपल्ली राधाकृष्णन, शिक्षक दिवस, पीएम श्री स्कूल।

मेन्स के लिये:

शिक्षा क्षेत्र में सुधार।

चर्चा में क्यों?

शिक्षक दिवस 2022 के अवसर पर, भारत के प्रधानमंत्री ने पीएम श्री स्कूल (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया- PM ScHools for Rising India) नामक नयी पहल की घोषणा की है।

Radhkrishnan

शिक्षक दिवस:

  • भारत में शिक्षकों, शोधकर्त्ताओं और प्रवक्ताओं/प्रोफेसर सहित शिक्षकों के कार्यों के महत्त्व कों पहचानने और मनाने के लिये वर्ष 1962 से प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • वर्ष 1962 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, कुछ छात्रों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति माँगी। हालाँकि डॉ. राधाकृष्णन ने किसी भी प्रकार के उत्सव को मंज़ूरी नहीं दी, बल्कि अनुरोध किया कि इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिचय:
    • जन्म:
      • इनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तानी शहर में एक तेलुगु परिवार में हुआ था।
    • शैक्षणिक पृष्ठभूमि:
      • उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया।
      • अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, वह मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर और उसके बाद मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बन गए।
    • कार्य:
      • इन्होंने वर्ष 1952 से 1962 तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति और वर्ष 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
      • ये वर्ष 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत भी रहे।
      • इन्होंने वर्ष 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चौथे कुलपति के रूप में भी कार्य किया।
    • पुरस्कार:
      • वर्ष 1984 में इन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
    • उल्लेखनीय रचनाएँ:
      • समकालीन दर्शन में धर्म का शासन, रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन, जीवन का हिंदू दृष्टिकोण, कल्कि या सभ्यता का भविष्य, जीवन का एक आदर्शवादी दृष्टिकोण, हमें जिस धर्म की आवश्यकता है, भारत और चीन, गौतम बुद्ध।

प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-श्री) योजना

  • परिचय:
    • यह देश भर में 14500 से अधिक स्कूलों के उन्नयन और विकास के लियकेंद्र प्रायोजित योजना है।
    • इसका उद्देश्य केंद्र सरकार/ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार/स्थानीय निकायों द्वारा प्रबंधित स्कूलों में से चयनित मौजूदा स्कूलों को मज़बूत करना है।
  • महत्त्व:
    • यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के सभी घटकों को प्रदर्शित करेगा और अनुकरणीय स्कूलों के रूप में कार्य करेगा तथा अपने आसपास के अन्य स्कूलों को प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा।
      • इन स्कूलों का उद्देश्य न केवल गुणात्मक शिक्षण, शिक्षा और संज्ञानात्मक विकास होगा, बल्कि 21 वीं सदी के प्रमुख कौशल से लैस समग्र एवं सर्वांगीण व्यक्तियों का निर्माण भी होगा।
    • इन स्कूलों में अपनाई गई शिक्षाशास्त्र अधिक अनुभवात्मक, समग्र, एकीकृत, खेल/खिलौना आधारित, पूछताछ-संचालित, खोज-उन्मुख, शिक्षार्थी-केंद्रित, चर्चा-आधारित, लचीली और मनोरंजक होगी।
    • प्रत्येक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के सीखने के परिणामों में दक्षता हासिल करने पर ध्यान दिया जाएगा।
      • सभी स्तरों पर मूल्यांकन वैचारिक समझ और वास्तविक जीवन स्थितियों में ज्ञान के अनुप्रयोग एवं योग्यता पर आधारित होगा।
    • ये स्कूल प्रयोगशालाओं, स्मार्ट कक्षाओं, पुस्तकालयों, खेल उपकरणों, कला कक्ष आदि सहित आधुनिक बुनियादी ढांँचे से लैस होंगे जो समावेशी और सुलभ हैं।
      • इन स्कूलों को जल संरक्षण, अपशिष्ट पुनर्चक्रण, ऊर्जा कुशल बुनियादी ढाँचे और पाठ्यक्रम में जैविक जीवन शैली के एकीकरण के साथ हरित स्कूलों के रूप में भी विकसित किया जाएगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सतत् विकास लक्ष्य-4 (2030) के अनुरूप है। यह भारत में शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन और पुनर्रचना का इरादा रखती है। कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत और स्टार्टअप

प्रिलिम्स के लिये:

स्टार्टअप, नवाचारों के विकास और दोहन हेतु राष्ट्रीय पहल, NIDHI, स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम, राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार।

मेन्स के लिये:

स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

स्टार्टअप और यूनिकॉर्न

  • स्टार्टअप:
    • स्टार्टअप शब्द कंपनी को संचालन के पहले चरण को संदर्भित करता है। स्टार्टअप एक या एक से अधिक उद्यमियों द्वारा स्थापित किये जाते हैं जो ऐसे उत्पाद या सेवा विकसित करना चाहते हैं जिसके लिये उनका मानना है कि उपभोग हेतु मांग है।
    • ये कंपनियाँ आम तौर पर उच्च लागत और सीमित राजस्व के साथ शुरू होती हैं, यही वजह है कि वे उद्यम पूंजीपतियों जैसे विभिन्न स्रोतों से पूंजी की तलाश करती हैं।
  • यूनिकॉर्न:
    • यूनिकॉर्न किसी भी निजी स्वामित्व वाली फर्म है जिसका बाज़ार पूंजीकरण 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
    • यह अन्य उत्पादों/सेवाओं के अलावा रचनात्मक समाधान और नए व्यापार मॉडल पेश करने के लिये समर्पित नई संस्थाओं की उपिस्थिति को दर्शाता है।
    • फिनटेक, एडटेक, बिज़नेस-टू-बिज़नेस (B-2-B) कंपनियाँ आदि इसकी कई श्रेणियाँ हैं।

भारत में स्टार्टअप्स की स्थिति:

  • स्थिति:
    • भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है।
      • भारत में 75,000 स्टार्टअप हैं।
      • 49% स्टार्टअप टियर-2 और टियर-3 शहरों से हैं।
    • वर्तमान में 105 यूनिकॉर्न हैं, जिनमें से 44 वर्ष 2021 में और 19 वर्ष 2022 में स्थापित किया गया।
    • आईटी, कृषि, विमानन, शिक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भी स्टार्टअप उभर रहे हैं।
  • वैश्विक नवाचार सूचकांक:
    • विश्व की 130 अर्थव्यवस्थाओं में भारत को वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) की वैश्विक रैंकिंग में वर्ष 2015 में 81वें से वर्ष 2021 में 46वें स्थान पर रखा गया है।
    • GII के संदर्भ में भारत 34 निम्न मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में दूसरे और 10 मध्य एवं दक्षिणी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में पहले स्थान पर है।
  • अन्य रैंकिंग:
    • प्रकाशन: राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन डेटाबेस के आधार पर वर्ष 2013 में 6वें स्थान से वर्ष 2021 में विश्व स्तर पर तीसरा स्थान प्राप्त किया।
    • पेटेंट: भारत रेजिडेंट पेटेंट फाइलिंग के मामले में विश्व स्तर पर 9वें (2021) स्थान पर है।
    • शोध प्रकाशनों की गुणवत्ता: वर्ष 2013 में 13वें स्थान पर था जबकि वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर 9वें स्थान पर था।

स्टार्टअप हेतु विकास कारक और चुनौतियाँ:

  • विकास कारक:
    • सरकारी सहायता: भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर सकल व्यय में तीन गुना से अधिक की वृद्धि की है।
      • भारत में 5 लाख से अधिक अनुसंधान एवं विकास कर्मचारी हैं, जो पिछले 8 वर्षों में 40-50% की वृद्धि दर्शाती है।
      • पिछले 8 वर्षों में बाहरी अनुसंधान एवं विकास में महिलाओं की भागीदारी भी दोगुनी हो गई है।
    • डिजिटल सेवाओं को अपनाना: महामारी ने स्टार्ट-अप और नए युग के उपक्रमों को ग्राहकों के लिये तकनीक-केंद्रित व्यवसाय बनाने में मदद करने वाले उपभोक्ताओं द्वारा डिजिटल सेवाओं को अपनाने में तेज़ी लाई।
    • ऑनलाइन सेवाएँ और वर्क फ्रॉम होम kaa संस्कृति: कई भारतीय खाद्य वितरण और एडु-टेक से लेकर ई-किराने तक की सेवाओ ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।
      • वर्क-फ्रॉम-होम कार्य-संस्कृति ने स्टार्ट-अप के उपयोगकर्त्ता आधार की संख्या बढ़ाने में मदद की और उनकी व्यवसाय विस्तार योजनाओं में तेज़ी लाई एवं निवेशकों को आकर्षित किया।
    • डिजिटल भुगतान: डिजिटल भुगतान का विकास एक और पहलू है जिसने यूनिकॉर्न को सबसे अधिक सहायता प्रदान की है।
    • प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद: प्रमुख सार्वजनिक निगमों से खरीद के परिणामस्वरूप कई स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन जाते हैं जो आंतरिक विकास में निवेश करने के बजाय अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिये अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • निवेश बढ़ाना स्टार्टअप की सफलता सुनिश्चित नहीं करता: स्टार्टअप्स में निवेश किये जा रहे अरबों डॉलर दूरगामी परिणामों का प्रतिनिधित्व करते हैं, साथ ही राजस्व के माध्यम से उत्पादन को महत्त्व नहीं देते हैं।
      • इस तरह के निवेश के साथ इन स्टार्टअप्स के सफल होने के उच्च दर की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि इसे होने वाले लाभ से सुनिश्चित किया जा रहा है।
    • भारत द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में एक सीमांत हिस्सेदारी: वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 440 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की है, जिसमें भारत के पास इस क्षेत्र में 2% से भी कम हिस्सेदारी है।
      • अंतरिक्ष में स्वतंत्र निजी भागीदारी की कमी का कारण कानूनों में पारदर्शिता और स्पष्टता प्रदान करने के लिये एक रूपरेखा का अभाव है।
    • भारतीय निवेशक जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं: भारत के स्टार्टअप क्षेत्र में बड़े निवेशक विदेशों संबंधित हैं, जैसे जापान के सॉफ्टबैंक, चीन के अलीबाबा और अमेरिका से सिकोइया आदि।
      • इसका प्रमुख कारण भारत में जोखिम लेने की प्रवृत्ति के साथ एक गंभीर उद्यम पूंजी उद्योग का अभाव है।

स्टार्टअप्स के लिये सरकार की पहल:

  • नवाचारों के विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (National Initiative for Developing and Harnessing Innovations -NIDHI))
  • स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान (Startup India Action Plan -SIAP)
  • स्टार्टअप इकोसिस्टम को समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग (Ranking of States on Support to Startup Ecosystems-RSSSE)
  • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): इसका उद्देश्य स्टार्टअप्स को अवधारणा के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: यह उन उत्कृष्ट स्टार्टअप और पारिस्थितिकी तंत्र को पहचानने और पुरस्कृत करने का प्रयास करता है जो नवाचार को बढ़ावा देकर और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं।
  • SCO स्टार्टअप फोरम: पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) स्टार्टअप फोरम को सामूहिक रूप से स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने और सुधार के लिये अक्तूबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • प्रारंभ (Prarambh): 'प्रारंभ’ शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्ट अप और युवांओं को नए विचारों, नवाचारों और आविष्कारो हेतु एक साथ आने के लिये मंच प्रदान करना है।

आगे की राह:

  • स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के त्वरित विकास के लिये वित्त/निवेश की आवश्यकता है और इसलिये उद्यम पूंजी और एंजेल निवेशकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
  • उद्यमिता को बढ़ावा देने वाले नीति-स्तरीय निर्णयों के अलावा, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, और प्रभावशाली प्रौद्योगिकी समाधान, और टिकाऊ और संसाधन-कुशल विकास के निर्माण के लिये तालमेल बनाने के लिये भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र पर भी ज़िम्मेदारी है।
  • हाल की घटनाओं के साथ चीन में पूंजी अविश्वास पैदा करने के साथ, विश्व का ध्यान भारत में आकर्षक तकनीकी अवसरों और सृजित किये जा सकने वाले मूल्य पर केंद्रित हो रहा है। इसके लिये भारत को डिज़िटल इंडिया पहल के अलावा निर्णायक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

Q. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014)

(a) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली एक अल्पकालिक पूंजी
(b) नए उद्यमियों को प्रदान की गई एक दीर्घकालिक स्टार्ट-अप पूंजी
(c) हानि की स्थिति में उद्योगों को प्रदान की जाने वाली धनराशि
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीनीकरण के लिये प्रदान की गई धनराशि

उत्तर:(b)

व्याख्या:

  • उद्यम पूंजी (Venture Capital) एक नए या बढ़ते व्यवसाय के लिये वित्त के स्रोत का एक स्वरूप है। यह आमतौर पर उद्यम पूंजी फर्मों से आता है जो उच्च जोखिम वाले वित्तीय पोर्टफोलियो के निर्माण में विशेषज्ञ होते हैं।
  • उद्यम पूंजी के साथ, उद्यम पूंजी फर्म स्टार्टअप में इक्विटी के बदले स्टार्टअप कंपनी का वित्तपोषण करती है।
  • जो लोग इसमें निवेश करते हैं उन्हें उद्यम पूंजीपति कहा जाता है। उद्यम पूंजी निवेश को जोखिम पूंजी या रुग्ण जोखिम पूंजी के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, क्योंकि इसमें उद्यम सफल नहीं होने पर निवेश के डूबने का जोखिम शामिल होता है और निवेश से लाभ प्राप्ति के लिये मध्यम से लंबी अवधि का समय लगता है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

 स्रोत:पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME)।

मेन्स के लिये:

भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और इसे बढ़ावा देने के तरीके।

चर्चा में क्यों?

एक्ज़िम बैंक ऑफ़ इंडिया के एक दस्तावेज़ के अनुसार भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था जिसमें कला एवं शिल्प, ऑडियो और वीडियो कला तथा डिज़ाइन शामिल हैं, वर्ष 2019 में 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात किया गया।

दस्तावेज़ के प्रमुख निष्कर्ष:

  • वर्ष 2019 तक भारत का रचनात्मक वस्तुओं और सेवाओं का कुल निर्यात 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब था, जिसमें से रचनात्मक सेवाओं का निर्यात लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • वर्ष 2019 में भारत में कुल रचनात्मक वस्तुओं के निर्यात का 87.5% डिज़ाइन सेगमेंट का तथा अन्य 9% कला और शिल्प सेगमेंट का योगदान शामिल है।
  • इसके अलावा भारतीय संदर्भ में रचनात्मक वस्तु उद्योग में 16 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था देश में काफी विविध है जो मनोरंजन उद्योग के क्षेत्र जैसे रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है।
  • राजस्व के मामले में शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय बॉक्स ऑफिस बाज़ारों के संबंध में भारत अमेरिका के बाहर विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है।
  • अध्ययन के अनुसार, इस विकसित क्षेत्र में मानव रचनात्मकता, ज्ञान, बौद्धिक संपदा के साथ-साथ प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

अध्ययन का महत्त्व:

  • शोध पत्र भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की अप्रयुक्त निर्यात क्षमता का मानचित्रण करता है।
  • अध्ययन 'भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का प्रतिबिंब और विकास' एक अनूठी पहल है।
  • इसने संयुक्त राष्ट्र के वर्गीकरण के अनुसार कला और शिल्प, श्रव्य दृश्य, डिजाइन तथा दृश्य कला जैसे सात अलग-अलग रचनात्मक खंडों का विश्लेषण किया, ताकि उनकी निर्यात क्षमता का मानचित्रण किया जा सके।
  • अध्ययन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग, विस्तारित वास्तविकता और ब्लॉकचेन की भूमिका पर भी रेखांकित किया गया है, जो रचनात्मक अर्थव्यवस्था के कामकाज को प्रभावित कर रहे हैं।
  • यह यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की नीतियों का भी विश्लेषण करता है, जहाँ रचनात्मक अर्थव्यवस्था को समर्पित मंत्रालयों या संस्थानों के साथ महत्त्वपूर्ण बल मिला है।

भारत में रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु आगे की राह:

  • भारत में रचनात्मक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिये:
    • भारत में रचनात्मक उद्योगों को परिभाषित करना और उनका मानचित्रण करना।
    • रचनात्मक उद्योगों के लिये वित्तपोषण।
    • संयुक्त कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • कॉपीराइट के मुद्दे को संबोधित करना।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देना।
    • रचनात्मक ज़िलों और केंद्रों की स्थापना।
    • रचनात्मक उद्योगों के लिये एक विशेष संस्थान का गठन।
  • जबकि भारत ने रचनात्मक अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योगों में प्रगति की है, देश में अपनी रचनात्मक अर्थव्यवस्था के मूल्य को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर है।
  • देश में रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिये एकल परिभाषा और समर्पित संस्थान तैयार करने की आवश्यकता है, जो इसकी अप्रयुक्त क्षमता का पता लगा सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई

प्रिलिम्स के लिये:

स्वतंत्रता आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय।

मेन्स के लिये:

वी. ओ. चिदंबरम पिल्लई।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने 5 सितंबर, 2022 को महान स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ.चिदंबरम पिल्लई को उनकी 151वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • वह एक लोकप्रिय कप्पलोटिया थमिज़ान (तमिल खेवनहार) और "चेक्किलुथथा चेम्मल" के रूप में जाने जाते थे।

Chidambaram-Pillai

चिदंबरम पिल्लई:

  • जन्म: वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई (चिदंबरम पिल्लई) का जन्म 5 सितंबर, 1872 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के ओट्टापिडारम् में एक प्रख्यात वकील उलगनाथन पिल्लई और परमी अम्माई के घर हुआ था।
  • प्रारंभिक जीवन: चिदंबरम पिल्लई ने कैलडवेल कॉलेज, तूतीकोरिन से स्नातक किया। अपनी कानून की पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्होंने एक संक्षिप्त अवधि के लिये तालुका कार्यालय में क्लर्क के रूप में कार्य किया।
    • वर्ष 1900 में न्यायाधीश के साथ उनके विवाद ने उन्हें तूतीकोरिन में नए काम की तलाश करने के लिये बाध्य किया।
    • वर्ष 1905 तक वे पेशेवर और पत्रकारिता गतिविधियों में संलग्न रहे।
  • राजनीति में प्रवेश:
    • चिदंबरम पिल्लई ने 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया।
    • तूतीकोरिन (वर्तमान थूथुकुडी) में चिदंबरम पिल्लई के आने तक तिरुनेलवेली ज़िले में स्वदेशी आंदोलन ने गति प्राप्त करना शुरू नहीं किया था।
  • स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
    • 1906 तक चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी (SSNCO) के नाम से एक स्वदेशी मर्चेंट शिपिंग संगठन स्थापित करने के लिये तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का समर्थन हासिल किया।
      • उन्होंने स्वदेशी प्रचार सभा, धर्मसंग नेसावु सलाई, राष्ट्रीय गोदाम, मद्रास एग्रो-इंडस्ट्रियल सोसाइटी लिमिटेड और देसबीमना संगम जैसी कई संस्थाओं की स्थापना की।
    • चिदंबरम पिल्लई और शिवा को उनके प्रयासों हेतु तिरुनेलवेली स्थित कई वकीलों द्वारा सहायता प्रदान की गई, जिन्होंने स्वदेशी संगम या 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक' नामक एक संगठन का गठन किया।
    • तूतीकोरिन कोरल मिल्स की हड़ताल (1908) की शुरुआत के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन ने एक द्वितीयक चरित्र प्राप्त कर लिया।
    • गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह (1917) से पहले भी चिदंबरम पिल्लई ने तमिलनाडु में मज़दूर वर्ग का मुद्दा उठाया था और इस तरह वह इस संबंध में गांधीजी के अग्रदूत रहे।
    • चिदंबरम पिल्लई ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर 9 मार्च, 1908 की सुबह बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने और स्वराज का झंडा फहराने के लिये एक विशाल जुलूस निकालने का संकल्प लिया।
  • कृतियाँ: मेयाराम (1914), मेयारिवु (1915), एंथोलॉजी (1915), आत्मकथा (1946), थिरुकुरल के मनकुदावर के साहित्यिक नोट्स के साथ (1917)), टोल्कपियम के इलमपुरनार के साहित्यिक नोट्स के साथ (1928)
  • मृत्यु: चिदंबरम पिल्लई की मृत्यु 18 नवंबर, 1936 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस कार्यालय तूतीकोरिन में हुई।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

LGBTQIA हेतु ‘कन्वर्जन थेरेपी’ पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

ट्रांसजेंडर, NMC, LGBTQIA+, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 से संबंधित मुद्दे।

मेन्स के लिये:

LGBTQIA और संबद्ध जोखिमों के लिये कन्वर्ज़न थेरेपी।

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने सभी राज्य चिकित्सा परिषदों को LGBTQIA+ समुदाय की रूपांतरण चिकित्सा या ‘कन्वर्ज़न थेरेपी पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसे "व्यावसायिक कदाचार (Professional Misconduct)" कहा है।

  • NMC ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के तहत ‘कन्वर्ज़न थेरेपी अवैध है।

LGBTQIA+:

  • LGBTQAI+ लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल तथा अन्य लोगों को संबोधित करता है। ये ऐसे लोग होते हैं जिनमें सीसजेंडर विषमलैंगिक "आदर्शों" की अनुपस्थिति होती है।
    • '+ ' का उपयोग उन सभी लैंगिक पहचानों और यौन अभिविन्यासों को दर्शाने के लिये किया जाता है जिनका अक्षर और शब्द अभी तक पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते हैं।
  • भारत में, LGBTQIA+ समुदाय में एक विशिष्ट सामाजिक समूह, एक विशिष्ट समुदाय थर्ड जेंडर भी शामिल है।
  • उन्हें सांस्कृतिक रूप से या तो "न पुरुष, न ही महिला" या एक महिला की तरह व्यवहार करने वाले पुरुषों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • वर्तमान में उन्हें थर्ड जेंडर भी कहा जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2018 को धारा 377[1] को गैर-आपराधिक घोषित कर दिया, जिसमें समलैंगिक संबंधों को "अप्राकृतिक अपराध" कहा गया था।

‘कन्वर्न थेरेप चिकित्सा और संबद्ध जोखिम:

  • कन्वर्ज़न थेरेपी एक हस्तक्षेप है जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति की यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान को बदलना है जिसके लिये मनोवैज्ञानिक उपचार, ड्रग्स, ईविल सेरेमोनियल प्रैक्टिस और यहाँ तक कि हिंसा का भी उपयोग किया जाता है।
  • इसमें उन युवाओं की मूल पहचान को बदलने के प्रयास शामिल हैं जिनकी लिंग पहचान उनके लिंग शरीर रचना के साथ असंगत है।
  • अक्सर, इस मुद्दे से निपटने में बहुत कम विशेषज्ञता वाले नीम हकीमों द्वारा चिकित्सा की जाती है।
  • अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकियाट्री (AACAP) के अनुसार कन्वर्ज़न थेरेपी के तहत हस्तक्षेप झूठे आधार पर प्रदान किया जाता है कि समलैंगिकता और विविध लिंग पहचान रोगात्मक हैं।
  • कन्वर्ज़न थेरेपी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को पैदा करती है, जैसे चिंता, तनाव और नशीली दवाओं का उपयोग जो कभी-कभी आत्महत्या का कारण भी बनता है।

मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश:

  • मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले ने LGBTQIA+ (लेस्बियन, गे, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, अलैंगिक या किसी अन्य अभिविन्यास के) लोगों के यौन अभिविन्यास को चिकित्सकीय रूप से "ठीक करने" या जबरन बदलने के किसी भी प्रयास को प्रतिबंधित कर दिया है।
  • इसने अधिकारियों से किसी भी रूप या कन्वर्न थेरेपी के तरीके में खुद को शामिल करने वाले पेशेवरों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
  • न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को एक आदेश दिया कि वह "एक पेशेवर कदाचार के रूप में 'कन्वर्न थेरेपी' को सूचीबद्ध करके आवश्यक आधिकारिक अधिसूचना जारी करे।
  • न्यायालय ने कहा कि समुदाय को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के समन्वय से ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • एजेंसियों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का अक्षरश: पालन करने के लिये कहते हुए न्यायालय ने कहा कि समुदाय एवं उसकी ज़रूरतों को समझने के लिये हर संभव प्रयास हेतु संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करना अनिवार्य है।

 LGBTQIA+ की सुरक्षा हेतु निर्णय:

  • नाज़ फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2009):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक गतिविधियों को वैध बनाने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया।
  • सुरेश कुमार कौशल केस (2013):
    • उच्च न्यायालय (2009) के पिछले फैसले को यह तर्क देते हुए पलट दिया कि "यौन अल्पसंख्यकों की दुर्दशा" को कानून की संवैधानिकता तय करने के लिये तर्क के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
  • न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि निजता का मौलिक अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के लिये अंतर्निहित है और इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। यह माना गया कि "यौन अभिविन्यास गोपनीयता का एक अनिवार्य गुण है"।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018):  
    • सुरेश कुमार कौशल मामले (2013) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को खारिज कर, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया।
  • शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. और अन्य (वर्ष 2018):
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि साथी या पार्टनर का चयन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और यह साथी किसी भी जेंडर से संबंधित हो सकता है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019:
    • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिये और उससे जुड़े एवं उसके आनुषंगिक मामलों के लिये यह अधिनियम लाया गया।
  • समलैंगिक विवाह:
    • फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का विरोध करते हुए कहा कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब बच्चा पैदा करने में सक्षम "जैविक पुरुष" और "जैविक महिला" के बीच विवाह हुआ हो।

आगे की राह:

  • समुदाय की बेहतर समझ के लिये स्कूलों और कॉलेजों को पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिये ।
    • वर्ष 2018 के अंत तक चिकित्सा पुस्तकों ने समलैंगिकता को "विकृति" के रूप में रेखांकित किया है। एक अलग यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान के लोग प्रायः भेदभाव, सामाजिक कलंक और बहिष्कार का सामना करते रहे हैं।
  • शैक्षणिक संस्थानों और अन्य जगहों पर जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिये।
  • इस विषय पर माता-पिता को भी संवेदनशील होने की ज़रूरत है, क्योंकि ऐसे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की शुरुआत सबसे पहले घर से ही होती है, जिसमें किशोरों को "कन्वर्न थेरेपी " को चुनने के लिये बाध्य किया जाता है।
  • सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी का विकल्प चुनने वाले वयस्कों को ऑपरेशन से पहले और बाद में थेरेपी जैसे उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है; जो की एक सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के लिये अवहनीय भी हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू


नीतिशास्त्र

सिविल सेवा में भ्रष्टाचार

मेन्स के लिये:

सिविल सेवा में भ्रष्टाचार का प्रसार, पारदर्शिता और जवाबदेही, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान।

चर्चा में क्यों?

स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की दोहरी चुनौतियों के खिलाफ तीखा हमला किया और कहा कि यदि समय पर इसका समाधान नहीं किया गया, तो ये बड़ी चुनौती बन सकती हैं।

भ्रष्टाचार क्या है?

  • सत्ता के पदों पर बैठे लोगों द्वारा किया गया असन्निष्ठ व्यवहार भ्रष्टाचार है।
  • इसमें लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं तथा वे व्यक्ति या व्यवसाय या सरकारों जैसे संगठनों से संबंधित हो सकते हैं।
  • भ्रष्टाचार में कई तरह की कार्रवाइयाँ, जैसे- रिश्वत देना या उसे स्वीकार करना या अनुचित उपहार देना, दोहरा व्यवहार करना और निवेशकों को धोखा देना आदि शामिल शामिल है।
  • भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2021 में भारत 180 देशों में से 85वें स्थान पर था।

सिविल सेवा में भ्रष्टाचार के प्रसार के कारण:

  • सिविल सेवा का राजनीतिकरण: जब सिविल सेवा पदों को राजनीतिक समर्थन के लिये पुरस्कार के रूप में उपयोग किया जाता है या रिश्वत के लिये स्थानांतरण किया जाता है, तो उच्च स्तर के भ्रष्टाचार के अवसर काफी बढ़ जाते हैं।
  • निजी क्षेत्र की तुलना में कम वेतन: निजी क्षेत्र की तुलना में सिविल सेवकों का वेतन।
    • वेतन में अंतर की भरपाई के लिये कुछ कर्मचारी रिश्वत का सहारा लेते हैं।
  • प्रशासनिक देरी: फाइलों की मंज़ूरी में देरी भ्रष्टाचार का मूल कारण है।
  • चुनौतीरहित सत्ता की औपनिवेशिक विरासत: सत्ता के उपासक वाले समाज में सरकारी अधिकारियों के लिये नैतिक आचरण से विचलित होना आसान होता है।
  • कानून का कमज़ोर प्रवर्तन: भ्रष्टाचार की बुराई को रोकने के लिये कई कानून बनाए गए हैं लेकिन उनके कमज़ोर प्रवर्तन ने भ्रष्टाचार को रोकने में एक बाधा के रूप में काम किया है।

 भ्रष्टाचार का प्रभाव

  • लोगों और सार्वजनिक जीवन पर:
    • सेवाओं में गुणवत्ता की कमी: भ्रष्टाचार वाली प्रणाली में सेवा की कोई गुणवत्ता नहीं है।
      • गुणवत्ता की मांग करने हेतु किसी को इसके लिये भुगतान करना पड़ सकता है। यह कई क्षेत्रों जैसे नगर पालिका, बिजली, राहत कोष के वितरण आदि में देखा जाता है।
    • उचित न्याय का अभाव: न्यायपालिका प्रणाली में भ्रष्टाचार अनुचित न्याय की ओर ले जाता है जिससे पीड़ित लोगों को भुगतना पड़ सकता है।
      • सबूतों की कमी या यहाँ तक कि मिटाए गए सबूतों के कारण एक अपराध संदेह के लाभ के रूप में साबित हो सकता है।
      • पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार के कारण दशकों से जाँच प्रक्रिया चल रही है।
    • खराब स्वास्थ्य और स्वच्छता: अधिक भ्रष्टाचार वाले देशों में लोगों के बीच अधिक स्वास्थ्य समस्याएँ देखी जा सकती हैं। यहाँ स्वच्छ पेयजल, उचित सड़कें, गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न आपूर्ति आदि की कमी होती है।
      • ये निम्न-गुणवत्ता वाली सेवाएँ ठेकेदारों और इसमें शामिल अधिकारियों द्वारा पैसे बचाने के लिये की जाती हैं।
  • वास्तविक अनुसंधान की विफलता: परियोजना में अनुसंधान हेतु सरकारी धन की आवश्यकता होती है और कुछ वित्त पोषण एजेंसियों में भ्रष्ट अधिकारीयों की वजह से इसमें समस्या होती है।
    • ये लोग अनुसंधान के लिये उन जाँचकर्त्ताओं को धनराशि स्वीकृत करते हैं जो उन्हें रिश्वत देने के लिये तैयार हैं।
  • समाज पर प्रभाव:
    • अधिकारियों की अवहेलना : भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी के बारे में नकारात्मक बातें कर लोग उसकी अवहेलना करने लगते हैं।
      • अवहेलना करने वाले अधिकारी भी अविश्वास पैदा करेंगे और निम्न श्रेणी के अधिकारी भी उच्च श्रेणी के अधिकारियों के प्रति अनादर करेगा इसी क्रम में वह भी उसके आदेशों का पालन नहीं करता है।
    • प्रशासकों के प्रति सम्मान की कमी: राष्ट्र के प्रशासक जैसे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जनता के प्रति सम्मान में कमी आती है। सामाजिक जीवन में सम्मान मुख्य मानदंड है।
      • जनता अपने जीवन स्तर में सुधार और नेता के सम्मान की इच्छा के साथ चुनाव के दौरान मतदान के लिये जाते हैं।
      • यदि राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, तो यह जानने वाले लोग उनके प्रति सम्मान खो देंगे और ऐसे नेताओं का निर्वाचित नहीं करेंगे।
    • भ्रष्टाचार से जुड़े पदों में शामिल होने से परहेज:
      • ईमानदार और मेहनती लोग भ्रष्ट समझे जाने वाले विशेष पदों के प्रति घृणा करने लगते हैं।
      • हालाँकि वे इन पदों पर कार्य करना पसंद करते हैं, फिर भी ऐसी स्थिति में वे उस पद पर नहीं जाना चाहते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अगर वे इस पद पर आते हैं तो उन्हें भी भ्रष्टाचार में शामिल होना पड़ेगा।
  • अर्थव्यवस्था पर:
    • विदेशी निवेश में कमी: सरकारी निकायों में भ्रष्टाचार के कारण कई विदेशी निवेशक विकासशील देशों से वापस जा रहे हैं।
    • विकास में देरी: एक अधिकारी जिसे परियोजनाओं या उद्योगों के लिये मंज़ूरी प्रदान करना होता है, वह धनार्जन और अन्य गैरकानूनी ढंग से  लाभ कमाने के उद्देश्य से जान-बूझ कर इस प्रक्रिया में देरी करता है। अतः जो कार्य कुछ दिनों/सप्ताह का होता है उसमें महीनों लग जाते हैं।
      • इससे निवेश, उद्योगों की शुरुआत और विकास की गति धीमी हो जाती है
    • विकास का अभाव: किसी विशेष क्षेत्र में कई नए उद्योग शुरू करने के इच्छुक व्यक्ति, क्षेत्र के अनुपयुक्त होने पर अपनी योजनाओं को बदल देते हैं।
      • यदि उचित सड़क, पानी और बिजली की व्यवस्था नहीं है, तो ऐसे क्षेत्र  कंपनियांँ नए उद्योग स्थापित नहीं करना चाहती हैं, जो उस क्षेत्र की आर्थिक प्रगति में बाधा डालती है।

संबंधित पहलें:

आगे की राह

  • सिविल सेवा बोर्ड: सिविल सेवा बोर्ड की स्थापना कर सरकार अत्यधिक राजनीतिक नियंत्रण पर अंकुश लगा सकती है।
  • अनुशासनात्मक प्रक्रिया का सरलीकरण: अनुशासनात्मक प्रक्रिया को सरल बनाकर और विभागों के भीतर निवारक सतर्कता को मज़बूत करके, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भ्रष्ट सिविल सेवक संवेदनशील पदों पर काबिज न हों।
  • मूल्य आधारित प्रशिक्षण: सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिये सभी सिविल सेवकों को मूल्य आधारित प्रशिक्षण पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है।
    • व्यावसायिक नैतिकता सभी प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में अभिन्न अंग होनी चाहिये और दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के आधार पर सिविल सेवकों के लिये व्यापक आचार संहिता की मांग की जानी चाहिये।
  • नैतिक और सार्वजनिक उत्साही सिविल सेवक की गणना:
    • नैतिक और लोक-उत्साही सिविल सेवक के गुणों की गणना करते हुए, आदर्श अधिकारी को अपने अधिकार क्षेत्र में मुद्दों की शून्य लंबितता सुनिश्चित करनी चाहिये और कार्यालय में ईमानदारी एवं अखंडता के उच्चतम गुणों को प्रदर्शित करना चाहिये, साथ ही सरकार के उपायों को लोगों तक ले जाने में सक्रिय होना चाहिये और सबसे बढ़कर हाशिये वर्गों के लोंगों के प्रति सहानुभूति रखे।
      • 'सुशासन' के लिये 'अच्छे संस्थानों' के महत्त्व पर विचार करते हुए, हमारे संस्थानों पुनर्स्थापित करने एवं सेवाओं की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
  • आधुनिक आकांक्षाओं के अनुरूप परिवर्तन:
    • शासन मॉडल लोगों की आधुनिक आकांक्षाओं के अनुरूप बदलना चाहिये और नौकरशाही व्यवस्था को 'संवेदनशील, पारदर्शी और मज़बूत ' रखना आवश्यक है।
      • सरकार ने राष्ट्र के लिये नागरिक-केंद्रित और भविष्य हेतु तैयार सिविल सेवा के निर्माण के उद्देश्य से 'मिशन कर्मयोगी' शुरू किया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. "संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन का महत्त्वपूर्ण चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों का सुझाव दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)


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