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डेली न्यूज़

  • 04 Oct, 2019
  • 53 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डिजिटल अब्यूज़ एवं साइबरस्टॉकिंग

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने फेसबुक द्वारा दायर एक याचिका का जवाब देते हुए इंटरनेट प्रौद्योगिकी के कारण शुरू हुए अपर्याप्त कानून एवं नियंत्रणहीनता की स्थिति के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार को तीन सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।

संदर्भ:

  • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश नागरिकों की गोपनीयता से समझौता किये बिना कानून प्रवर्तन (Law Enforcement) के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा जानकारी साझा करने के लिये रणनीति के निर्माण से प्रेरित है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा जानकारी साझा न करने अर्थात् पहचान की गोपनीयता के कारण दोषी का पता नहीं लग पाता है। इसके कारण नागरिकों को ट्रोल और बदनाम किये जाने के बावजूद कोई कानूनी सहायता और आसान कानूनी उपाय प्राप्त नहीं हो पाता है।

डिजिटल अब्यूज़ और साइबरस्टॉकिंग क्या है?

  • डिजिटल एब्यूज़ (Digital Abuse) का अभिप्राय टेक्स्टिंग (Texting) और सोशल नेटवर्किंग जैसी तकनीकों का उपयोग किसी को धमकाने, परेशान करने, डाँटने या डराने के लिये किये जाने से है। आमतौर पर यह अपराध ऑनलाइन (Online) किये जाने वाले मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार का एक रूप होता है।
  • साइबरस्टॉकिंग (Cyberstalking) का तात्पर्य किसी अन्य व्यक्ति से लगातार अवांछित संपर्क स्थापित करना या ऐसा करने की कोशिश करना है, चाहे वह पहचान का हो अथवा अजनबी।

Cyberstalking

समस्या क्या है?

  • पिछले कुछ वर्षों से समाज में अपमानित करने और होने की स्थिति अत्यंत उग्र हो चुकी है, तथा सोशल मीडिया पर अपमानित होने के बदले अपमानित करने की प्रवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि कानूनी प्रक्रिया को सार्थक बना पाना अत्यंत मुश्किल है।
  • शामिल हितधारकों में अनिवार्य नैतिक आचरण का पालन करने वालों की संख्या न के बराबर होती है।
  • 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की आपत्तिजनक धारा 66A को न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद भी पुलिस द्वारा इसके आधार पर नागरिकों का उत्पीड़न देखा जाता रहा है।

नोट: श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “धारा 66A मनमाने ढंग से, अत्यधिक और विषमतापूर्ण रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला करती है और इस तरह के अधिकार तथा युक्तियुक्त प्रतिबंधों के बीच संतुलन को भी विचलित करती है।”

  • कई बार कुछ सरकारों पर भी लोगों के खिलाफ उनके किसी राय, विचार अथवा किसी विषय पर समर्थन या विरोध की स्थिति में नकारात्मक राजनीति की भावना से ग्रसित होकर अलोकतांत्रिक तरीके से कार्रवाई किये जाने का आरोप लगाया जाता रहा है।
  • सरकार द्वारा इस संबंध में दिशा-निर्देशों को लागू किये जाने की स्थिति में भी व्यावहारिक स्तर पर इनका मनमाने ढंग से प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे मामलों में सही और गलत का निर्धारण कानूनी रूप से होने के बजाय अधिकांशतः सामाजिक तौर पर होने लगता है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिये इन दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए गोपनीयता और जवाबदेहिता के बीच संतुलन स्थापित कर पाना अत्यंत कठिन है तथा साथ ही इनके ऊपर अपने प्लेटफार्म का गलत उपयोग किये जाने का भी आरोप लगता रहा है। उदाहरण के लिये-
    • फेसबुक पर अमेरिकी चुनावों और ब्रेक्ज़िट को प्रभावित करने हेतु अपने मंच का प्रयोग करने का आरोप लगाया गया है।
    • ट्विटर पर अक्सर दुर्व्यवहार की शिकायतों के मामले में उत्तरदायित्वहीनता का आरोप लगाया जाता है।

आगे की राह:

  • न्यायपालिका ने पिछले कुछ वर्षों में स्वतंत्र अभिव्यक्ति के स्वरूप का काफी विस्तार किया है और अब यह धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। यह अंततः मौजूदा कानूनों और प्रक्रियाओं पर निर्भर है कि इनका किस प्रकार प्रयोग किया जाता है। यदि विवेकपूर्ण एवं नैतिक रूप से लागू किया जाए तो इनके निहितार्थो को सार्थक बनाना आसान होगा।
  • दिशा-निर्देशों से संबंधित स्पष्टता में वृद्धि के माध्यम से कार्रवाई में मनमानी की समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • अधिकांश सोशल नेटवर्किंग साइटों में साइबर दुर्व्यवहार और अन्य दुर्व्यवहारों की रिपोर्ट करने के लिये सुविधा उपलब्ध होती है। हालाँकि इसकी व्यावहारिक उपयोगिता के लिये जन-जागरूकता एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

गंगा में मूर्तियों का विसर्जन

चर्चा में क्यों?

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (National Mission For Clean Ganga- NMCG) ने दशहरा, दीपावली, छठ सहित सभी त्योहारों के दौरान गंगा या उसकी सहायक नदियों में मूर्तियों के विसर्जन को रोकने के लिये घाटों की घेराबंदी करने और 50,000 रुपए का जुर्माना लगाने हेतु 15 सूत्री निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

ये निर्देश 11 गंगा बेसिन राज्यों के मुख्य सचिवों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत जारी किये गए हैं जो निम्नलिखित हैं:

  • गंगा और उसकी सहायक नदियों में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई जानी चाहिये।
  • अधिकारियों को गंगा और उसकी सहायक नदियों में मूर्तियों के विसर्जन तथा पूजा सामग्री के निपटान के खिलाफ मानदंडों को सख्ती से लागू करने एवं पर्यावरणीय तरीके से उपयुक्त वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिये।
  • यदि कोई व्यक्ति निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिये 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाना चाहिये ।
  • अस्थायी रूप से सीमित तालाबों का निर्माण करके नगरपालिका क्षेत्र या गंगा और उसकी सहायक नदियों की तट सीमा में निर्दिष्ट मूर्ति विसर्जन स्थलों के लिये पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • सभी संबंधित राज्य सरकार, प्राधिकरण, बोर्ड या निगम यह सुनिश्चित करें कि मूर्तियों के निर्माण के लिये सिंथेटिक सामग्री/गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री, प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), पकी हुई मिट्टी, फाइबर और थर्मोकल का उपयोग न किया गया हो।
  • मूर्तियों की पेंटिंग में ज़हरीले और गैर-बायोडिग्रेडेबल रासायनिक रंगों या सिंथेटिक पेंट का उपयोग सख्ती से वर्जित होना चाहिये।

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा

(National Mission For Clean Ganga- NMCG):

  • नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (National Ganga River Basin Authority- NGRBA) का कार्यान्वयन विंग है।
  • यह एक पंजीकृत सोसायटी है, जो मूल रूप से 12 अगस्त, 2011 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा बनाई गई है।
  • लेकिन अब NGRBAऔर NMCG दोनों को जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) को आवंटित किया गया है।
  • कार्यक्रम के मुख्य स्तंभों में सीवरेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर (Sewerage Treatment Infrastructure), रिवर-फ्रंट डेवलपमेंट (River-Front Development), रिवर-सरफेस क्लीनिंग (River-Surface Cleaning),जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, जन जागरूकता तथा गंगा ग्राम शामिल हैं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances & Pensions) ने डाक विभाग में केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (Centralized Public Grievances Redress and Monitoring System- CPGRAMS) का एक नया संस्करण लॉन्च किया।

  • भारत सरकार के डाक विभाग में सर्वाधिक सार्वजनिक शिकायतें दर्ज होती हैं।
  • CPGRAMS के नए संस्करण से शिकायत निपटान में लगने वाला समय कम हो जाएगा, साथ ही शिकायत निवारण की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • वर्तमान में DARPG प्रत्येक वर्ष लगभग 16 लाख शिकायतों का निपटारा करता है, जिनमें से 95% को संतोषजनक तरीके से निपटाया जाता है।
  • नए संस्करण के तहत बिना किसी कार्मिक हस्तक्षेप के 1.5 लाख डाकघरों की मैपिंग की जाएगी।

केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली

  • यह एक ऑनलाइन वेब-आधारित प्रणाली है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatic Centre- NIC) द्वारा लोक शिकायत निदेशालय (Directorate of Public Grievances-DPG) और प्रशासनिक सुधार एवं सार्वजनिक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms and Public Grievances- DARPG) के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • इसको विकसित करने का मुख्य उद्देश्य जनता की शिकायतों का निवारण और निगरानी करना है।
  • इसकी शुरुआत कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances & Pensions) के तहत प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms and Public Grievances -DARPG) द्वारा की गई है।
  • CPGRAMS किसी भी स्थान से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • यह प्रणाली DARPG और नागरिकों को विभागों से संबंधित शिकायतों को ऑनलाइन ट्रैक करने में सक्षम बनाता है।
  • इस प्रणाली को सुलभ, सरल, त्वरित, निष्पक्ष और उत्तरदायी बनाने के लिये प्रत्येक कार्यालय में एक वरिष्ठ अधिकारी को शिकायत निदेशक अधिकारी के रूप में नामित किया जाएगा जिससे लोक शिकायतों एवं कर्मचारियों की शिकायतों से संबंधित कार्य के निपटान की समय सीमा तय की जा सके।

स्रोत:PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क (Nandankanan zoological park) में एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस (Elephant Endotheliotropic Herpes Viruses- EEHV) के कारण पाँच हाथियों की मृत्यु हो गई।

एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस (EEHV):

  • एलिफेंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस (EEHV) को एलिफेंटिड बेटाहैरपिसवायरस-1, ईआईएचबी-1 (Elephantid betaherpesvirus-1,ElHV-1) के रूप में भी जाना जाता है।
  • EEHV एक प्रकार का हर्पीस वायरस है जो युवा एशियाई हाथियों में अत्यधिक घातक रक्तस्रावी बीमारी का कारण बन सकता है।

बीमारी:

  • यह बीमारी आमतौर पर 1 वर्ष से 12 वर्ष तक के युवा हाथियों के लिये अधिक घातक है।
  • इस बीमारी से अत्यधिक आंतरिक रक्तस्राव होता है जो मृत्यु का कारण बनता है।
  • शोधकर्त्ताओं का कहना है कि इससे ग्रसित कुछ हाथियों में भूख कम लगना, नाक से पानी निकलना और सूजी हुई ग्रंथियाँ जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
  • जानवरों या मनुष्यों में हर्पीस वायरस का कोई सही इलाज नहीं है क्योंकि हर्पीस वायरस गुप्त रूप में (Latent) होते हैं।
  • इस बीमारी की अवधि कम होती है, इसका तात्पर्य है कि संदिग्ध EEHV मामला होने पर जल्द-से-जल्द उपचार कराना आवश्यक है।

नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क

(Nandankanan zoological park):

  • नंदनकानन जिसका शाब्दिक अर्थ है गार्डन ऑफ हेवन (The Garden of Heaven), जो भुवनेश्वर, ओडिशा के पास स्थित है।
  • देश के अन्य चिड़ियाघरों के विपरीत, नंदनकानन पार्क जंगल के अंदर बना है और पूरी तरह से प्राकृतिक वातावरण में स्थित है।
  • यह व्हाइट बैक्ड गिद्धों (White-Backed Vulture) को संरक्षण प्रदान करता है।
  • यह व्हाइट टाइगर (White Tiger) तथा मेलेनिस्टिक टाइगर (Melanistic Tiger) के प्रजनन के लिये विश्व में पहला चिड़ियाघर है।
  • यह विश्व में भारतीय पैंगोलिन (Indian Pangolin) को संरक्षण प्रदान करने वाला एकमात्र केंद्र है।
  • यह भारत में एकमात्र जूलॉजिकल पार्क है जो वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ ज़ूज़ एंड एक्वेरियम (World Association of Zoos and Aquarium- WAZA) का एक संस्थागत सदस्य है।
  • विश्व में पहली बार 1980 में नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क ने घड़ियालों को कैद करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

चिंता का विषय:

  • यदि जंगल में हाथी इस वायरस से ग्रसित हो जाते हैं, तो उपचार करना अत्यंत कठिन होगा।
  • यदि एक युवा हाथी प्रजनन करने से पहले मर जाता है, तो यह पारिस्थितकीय रूप से संपूर्ण प्रजाति को प्रभावित कर सकता है।
  • राज्य के प्रत्येक हाथी को ट्रैक करना और परीक्षण करना बेहद कठिन होगा कि क्या वे EEHV से ग्रसित हैं या नहीं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

पृथ्वी को गर्म करने में ज्वालामुखी की भूमिका

संदर्भ?

हाल ही में डीप कार्बन ऑब्ज़र्वेटरी (Deep Carbon Observatory-DCO) के डीप अर्थ कार्बन डीगैसिंग (Deep Earth Carbon Degassing- DECADE) उपसमूह के शोधकर्त्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि ज्वालामुखियों और ज्वालामुखीय क्षेत्रों में प्रतिवर्ष अनुमानित रूप से 280-360 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता है।

Deep Carbon

मुख्य बिंदु:

  • डीप कार्बन ऑब्ज़र्वेटरी (DCO) के वैज्ञानिकों ने पाया कि केवल कुछ ज्वालामुखी घटनाओं से होने वाली कार्बन की विनाशकारी मात्रा का उत्सर्जन भी एक गर्म वातावरण, महासागरों की अम्लीयता में वृद्धि और बड़े पैमाने पर विलुप्ति का कारण बन सकता है।
  • ज्वालामुखियों और ज्वालामुखीय क्षेत्रों में प्रतिवर्ष वृहद् मात्रा में होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में सक्रिय ज्वालामुखी, मिट्टी, फॉल्ट (Fault) और ज्वालामुखी क्षेत्रों में टूटन, ज्वालामुखी झीलों के साथ-साथ मध्य-महासागर रिज प्रणाली का योगदान शामिल होता है।
  • DECADE के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, पिछले 100 वर्षों के लिये जीवाश्म ईंधन और वनों के जलने जैसे मानवीय कारकों के कारण वार्षिक कार्बन उत्सर्जन भूगर्भीय स्रोतों जैसे कि सभी ज्वालामुखी उत्सर्जन आदि की तुलना में 40 से 100 गुना अधिक था।

Volcanic emissions

  • DECADE के अनुसार, 11,700 साल पहले के आखिरी हिमयुग से सक्रिय 1500 ज्वालामुखियों में से करीब 400 अब भी वृहद् मात्रा में CO2 का उत्सर्जन कर रहे हैं।
  • DECADE ने यह भी पुष्टि की है कि 200 से अधिक ज्वालामुखी प्रणालियों ने 2005 और 2017 के बीच CO2 के औसत दर्जे की मात्रा का उत्सर्जन किया है। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका में येलोस्टोन, पूर्वी अफ्रीकी भ्रंश (Rift) और चीन में टेक्नॉन्ग ज्वालामुखीय प्रांत शामिल हैं।
  • DCO के विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, ज्वालामुखी प्रक्रिया एवं पर्वत बेल्टों में चूना पत्थर का उष्मण आदि अन्य भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पृथ्वी द्वारा CO2 का कुल वार्षिक उत्सर्जन लगभग 300 से 400 मिलियन मीट्रिक टन (0.3 से 0.4 गीगाटन) है।

कार्बन का संतुलन:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी के मेंटल से निकली कार्बन की मात्रा सापेक्षतः विवर्तनिक प्लेटों के अधोमुखी उपशमन (Downward Subduction) और अन्य प्रक्रियाओं के माध्यम से संतुलन में रही है।
  • हालाँकि बड़े ज्वालामुखीय घटनाओं के कारण यह संतुलन पिछले 500 मिलियन वर्षों में लगभग चार गुना कम हो गया है। उदाहरण के लिये- कनाडा का क्षेत्र में मात्र कुछ हज़ार वर्ष से लेकर करीब एक मिलियन वर्ष की कालावधि के भीतर लगभग एक मिलियन या अधिक वर्ग किलोमीटर में मैग्मा बाहर निकला, जबकि इसी अवधि में पृथ्वी द्वारा कार्बन के अवशोषण की दर में सापेक्षिक वृद्धि दर्ज नहीं की गई।
  • इन बड़े आग्नेय प्रांतों में कार्बन की भारी मात्रा का उत्सर्जन हुआ है। एक अनुमान के अनुसार, यह उत्सर्जन 30,000 गीगाटन के करीब रहा है जो कि वर्तमान में सतह के ऊपर अनुमानित कुल 43,500 गीगाटन कार्बन के लगभग 70 प्रतिशत के बराबर है।
  • रिपोर्ट के माध्यम से वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि कार्बन चक्र के किसी भी असंतुलन के कारण तीव्र वैश्विक उष्मण (Global Warming), सिलिकेट अपक्षय दर में परिवर्तन, हाइड्रोलॉजिकल चक्र में परिवर्तन आदि के साथ-साथ समग्र रूप से तीव्र अधिवास परिवर्तन हो सकता है। यह पृथ्वी पर असंतुलन के माध्यम से बड़े पैमाने पर जैव-विविधता के ह्रास एवं विलुप्ति का कारण बन सकता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा की गई गणना के अनुसार, पृथ्वी के कुल कार्बन का मात्र 0.2 प्रतिशत (लगभग 43,500 गीगाटन) महासागरों में, भूमि पर और वायुमंडल में है। शेष अनुमानित करीब 1.85 बिलियन गीगाटन उपसतही (Subsurface) क्रस्ट, मेंटल और कोर में मौजूद है।
  • सतह पर मौजूद कुल कार्बन की मात्रा में से करीब 37,000 गीगाटन कार्बन (85.1 प्रतिशत) गहरे सागर में तथा लगभग 3,000 गीगाटन (6.9 प्रतिशत) समुद्री तलछट में निहित है।
  • उपरोक्त परिणाम एवं निष्कर्ष DCO के शोधकर्त्ताओं द्वारा पृथ्वी के विशाल आंतरिक कार्बन के भंडार और पृथ्वी की गहराई द्वारा स्वाभाविक रूप से कार्बन के अवशोषण तथा उत्सर्जन के अनुमानों का हिस्सा हैं।

डीप कार्बन ऑब्ज़र्वेटरी

(Deep Carbon Observatory- DCO)

  • DCO पृथ्वी में कार्बन की मात्रा, चाल, रूप और उत्पत्ति को समझने के लिये 1,000 से अधिक वैज्ञानिकों का 10-वर्षीय वैश्विक सहयोग है।
  • DCO वैज्ञानिकों के एक बहु-विषयक समूह को साथ लाता है, जिसमें भूवैज्ञानिक, रसायनज्ञ, भौतिक विज्ञानी और जीवविज्ञानी शामिल हैं।
  • नवीन प्रौद्योगिकी और उपकरण, प्रयोगशाला प्रयोगों और वास्तविक समय पर्यवेक्षणों (Real-time Observations) का उपयोग करते हुए DCO के वैज्ञानिक कार्बन का पृथ्वी पर जीवन के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों को समझाने का प्रयास करते हैं।
  • डीप कार्बन ऑब्ज़र्वेटरी को लॉन्च करने के लिये प्रारंभिक वित्त पोषण के रूप में दस वर्षों के लिये अल्फ्रेड पी. स्लोन फाउंडेशन (Alfred P. Sloan Foundation) द्वारा 50 मिलियन डॉलर की राशि प्रदान की गई थी।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

रातापानी टाइगर रिजर्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित रातापानी टाइगर रिज़र्व (Ratapani Tiger Reserve) के कोर और बफर क्षेत्रों की स्थिति को अंतिम रूप देने के लिये गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

पृष्ठभूमि

  • मध्य प्रदेश सरकार ने रातापानी वन्यजीव अभयारण्य को बाघ आरक्षित घोषित करने का निर्णय लिया था, इसके लिये राज्य को 11 साल पहले ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) से अनुमोदन प्राप्त हो गया था।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
  • वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण की पहली बैठक नवंबर 2006 में हुई थी।

Ratapani Sanctuary

रातापानी टाइगर रिज़र्व

  • यह अभयारण्य मध्य प्रदेश के भोपाल-रायसेन वन प्रभाग में 890 वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
  • अभयारण्य में लगभग 40 बाघों की आबादी है। इसके अलावा भोपाल के वन क्षेत्र में करीब 12 बाघों की आवाजाही बताई गई है। इस पूरे क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में घोषित करने के लिये एक साथ जोड़ा जाएगा।
  • रायसेन, सीहोर और भोपाल ज़िलों का लगभग 3,500 वर्ग किमी. का क्षेत्र इसी अभयारण्य के लिये आरक्षित किया गया है। इसके साथ ही 1,500 वर्ग किमी. को कोर क्षेत्र के रूप में, जबकि 2,000 वर्ग किमी. को बफर जोन (Buffer Zone) के रूप में नामित किया जाएगा।
  • बाघ अभयारण्य के रूप में इस अभयारण्य की घोषणा से क्षेत्र में अवैध खनन और अवैध शिकार की समस्या का सामना कर रहे बाघों के बेहतर संरक्षण में मदद मिलेगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक मुक्त भारत

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने देश में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक (Single Use Plastics) के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिये एक योजना तैयार की है।

प्रमुख बिंदु

  • 2 अक्तूबर 2019 से वर्ष 2022 तक देश भर में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करने के उद्देश्य से सरकार ने यह कदम उठाया है।
  • इस योजना की शुरुआत देश के ऐसे शहरों और गाँवों से की जा रही है जो विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों और गाँवों की श्रेणी में आते हैं।
  • एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद जैसे- प्लास्टिक बैग, कप, प्लेट, छोटी बोतलें, स्ट्रॉ (Strow) और कुछ प्रकार की थैलियों के प्रयोग को समाप्त करने के लिये इन वस्तुओं पर 2 अक्तूबर 2019 से देशव्यापी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • इस प्रकार के प्रतिबंध के अंतर्गत विनिर्मित और आयातित दोनों तरह की वस्तुएँ शामिल हैं।
  • इस योजना का नोडल मंत्रालय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEF&CC) है।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक

  • इसके अंतर्गत ऐसे प्लास्टिक उत्पादों को शामिल किया गया हैं जिन्हें एक बार प्रयोग किये जाने के बाद फेंक दिया जाता है अर्थात्त पुनः उपयोग में नहीं लाया जाता।
    • एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद संक्रमणकारी रोगों के प्रसार को भी रोकते हैं। जैसे कि सिरिंज, एप्लिकेटर, ड्रग टेस्ट, बैंडेज आदि को अक्सर डिस्पोज़ेबल बनाया जाता है।
    • इसके अलावा खाद्य-अपशिष्टों के खिलाफ लड़ाई में भी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों को सूचीबद्ध किया गया है, जो भोजन और पानी को अधिक समय तक ताजा रखते हैं और संदूषण की क्षमता को कम करते हैं।
  • हालाँकि कुछ एकल-उपयोग उत्पादों का निपटान चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं होते है और आमतौर पर ये लैंडफिल में चले जाते हैं जहाँ ये भूमि एवं जल में प्रवेश करते हैं।
    • विघटन की प्रक्रिया में यह ज़हरीले रसायनों (प्लास्टिक को आकार देने और सख्त करने के लिये इस्तेमाल होने वाले एडिटिव्स) को निष्काषित करते है जो हमारे भोजन और पानी की आपूर्ति में अपना स्थान बना लेते हैं।
  • अंतिम लक्ष्य यह है कि इन सभी उत्पादों को एकत्र किया जा सके और ऊर्जा या पुनर्नवीनीकरण में परिवर्तित किया जा सके।

Plastic graph

अन्य हितधारक

  • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India-NHAI) यह सुनिश्चित करेगा कि प्लास्टिक कचरे को ज़िम्मेदारी के साथ एकत्रित किया जाए और राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ ही परिवहन किया जाए।
    • एकत्रित प्लास्टिक कचरे का उपयोग सड़क निर्माण के लिये किया जा सकेगा।

मेघालय सरकार ने सड़क निर्माण में प्रयोग होने वाले क्लिंकर के निर्माण के लिये ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले कोयले के बजाय प्लास्टिक कचरे को खरीदने हेतु एक प्रमुख सीमेंट फर्म के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके साथ ही मेघालय, प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने वाला देश का प्रथम राज्य बन गया है।

  • औद्योगिक संवर्द्धन विभाग (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) यह सुनिश्चित करेगा कि सभी सीमेंट कारखाने ईंधन के रूप में प्लास्टिक का उपयोग करें।
  • रेलवे स्टेशनों और रेल पटरियों के किनारे पर प्लास्टिक कचरे के संग्रह के लिये रेल मंत्रालय ने 2 अक्तूबर को बड़े पैमाने पर श्रमदान (स्वैच्छिक कार्य) का आयोजन किया।
    • साथ ही यह सभी ट्रेनों पर विज्ञापन रेडियो स्पॉट भी चलाएगा।
  • खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India-FCI) सहित सभी मंत्रालयों और PSU में उपयोग किये जाने वाले सभी प्रकार के एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है।
  • पर्यटन मंत्रालय, प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों पर एकल-उपयोग प्लास्टिक पर जागरूकता फैलाने के लिये तैयार है।
  • कपड़ा मंत्रालय ने प्लास्टिक की थैलियों को बदलने के लिये जूट बैग के अधिक उत्पादन पर बल दे रहा है।

वैश्विक पहल

  • महासागरों में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में दुनिया भर में चिंताएँ बढ़ रही हैं, लगभग 50 प्रतिशत एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद, समुद्री जीवन को नष्ट करते है तथा मानव खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं।
    • इस संबंध में यूरोपीय संघ ने वर्ष 2021 तक एकल उपयोग वाली प्लास्टिक की वस्तुओं जैसे कि कांटे, चाकू और कपास की कलियों (Cotton Birds) आदि पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है।
  • चीन के शंघाई का वाणिज्यिक केंद्र खान-पान सेवाओं में प्रयोग किये जाने वाले एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग को धीरे-धीरे प्रतिबंधित कर रहा है। साथ ही इसके एक द्वीप (प्रांत हैनान) ने वर्ष 2025 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक को पूरी तरह से समाप्त करने की योजना बनाई है।
  • विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 पर दुनिया के नेताओं ने ‘प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म’ करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

आगे की राह

  • सबसे पहले यह तय करना होगा कि कौन-सा प्लास्टिक उत्पाद पुनः चक्रित किया जा सकता है और कौन-सा नहीं।
    • चूँकि भारत में कुल प्लास्टिक कचरे का 70% शहरी क्षेत्रों से है, इसलिये शहरी स्थानीय निकायों को पुन: उपयोग योग्य और गैर-पुन: उपयोग योग्य श्रेणियों में इकट्ठा करने और विभाजित करने के लिये एक विशाल श्रमदान अभ्यास शुरू करने की आवश्यकता है।
  • भारत में ई-कॉमर्स की बढ़ती खरीददारी के साथ प्लास्टिक का उपयोग काफी बढ़ गया है जो भारत की वार्षिक प्लास्टिक खपत का लगभग 40 प्रतिशत है। इन कंपनियों को प्लास्टिक पैकेजिंग का कोई अन्य विकल्प तलाशने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में अमेज़ॅन इंक ने जून 2020 तक पैकेजिंग लिये सभी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को पेपर कुशन के साथ बदलने का एक सराहनीय कदम उठाया है।
  • भारत सशक्त परीक्षण और प्रमाणन एजेंसियों की अनुपस्थिति में नकली बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक बाज़ार में प्रवेश कर रहा है, उत्पादकों द्वारा किये गए दावों को सत्यापित करने के लिये ऐसी प्रयोगशालाओं और एजेंसियों की स्थापना की तत्काल आवश्यकता है, जो इस विषय में आवश्यक कदम उठा सकें।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (Plastic Waste Management (PWM) Rules, 2016) की अधिसूचना और दो साल बाद किये गए संशोधनों के बावजूद, अधिकांश शहर और कस्बे इन नियमों को लागू करने के लिये तैयार नहीं हैं। नियमों के कड़ाई से कार्यान्वयन के लिये सख्त कदम उठाए जाने चाहिये।

स्रोत: द हिंदू, टाइम्स ऑफ इंडिया


भारतीय अर्थव्यवस्था

राज्य वित्त पर RBI रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘राज्य वित्त: वर्ष 2019-20 के बज़ट का अध्ययन’ (State Finances: A Study of Budgets of 2019-20) शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है। यह एक वार्षिक प्रकाशन है जो राज्य सरकारों के वित्त की सूचना, विश्लेषण और आकलन उपलब्ध कराता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले दो वर्षों (2017-18 व 2018-19) में राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा (GFD) राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility and Budget Management-FRBM) अधिनियम द्वारा निर्धारित सीमा GDP के 3% की सीमा में रहा।

Fiscal imprudence

  • हालाँकि यह राज्यों द्वारा पूंजीगत खर्च में तीव्र कमी के कारण संभव हुआ है।
  • राज्यों का बकाया ऋण पिछले पाँच वर्षों में GDP के 25% तक बढ़ गया है, जो इसकी मध्यावधिक स्थिरता के लिये एक चुनौती है।
  • FRBM समीक्षा समिति की सिफारिशों के अनुरूप इसे 20% तक लाना राज्यों की मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखते हुए चुनौतीपूर्ण होगा।
  • वर्ष 2019-20 के लिये राज्यों ने अत्यल्प राजस्व अधिशेष (Marginal Revenue Surplus) के साथ GDP के 2.6% के समेकित GFD का बजट बनाया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) में अत्यधिक कमी से आर्थिक विकास की गति और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  • क्योंकि राज्यों द्वारा किया गया सार्वजनिक व्यय केंद्र सरकार के खर्च की तुलना में अर्थव्यवस्था की भौतिक और सामाजिक पूंजी अवसंरचना की गुणवत्ता को अधिक प्रभावित करता है।

राज्यों के वित्त पर दबाव् के कारण

  • पहला, राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के माध्यम से पूंजीगत व्यय में तेज़ी ला रहे हैं। हालाँकि राज्य इन उद्यमों की उधारियों पर गारंटी देकर इनकी सहायता करते हैं।
  • लेकिन बिज़ली और परिवहन जैसे क्षेत्रों में कमज़ोर लागत वसूली तंत्र के कारण राजकोषीय जोखिम बढ़ जाते हैं।
  • दूसरा, उदय योजना (UDAY Scheme) के तहत राज्यों को विद्युत वितरण कंपनियों का वृद्धिशील घाटा उठाना पड़ता है। यह पहले से ही कमज़ोर राज्य वित्त पर और दबाव डालता है।
  • तीसरा, कॉरपोरेट करों में उच्च कटौती और GST संग्रह भी कम होने से राज्यों को कर अंतरण (Tax Devolution) भी प्रभावित होगा।
  • इसके अलावा आयुष्मान भारत की राजकोषीय लागत को लेकर भी चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • राज्यों को अपनी राजस्व क्षमताओं को साकार करने में कम टैक्स बॉइअन्सी (Tax Buoyancy), GST की व्यवस्था के तहत कम राजस्व स्वायत्तता और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) एवं अनुदानों के हस्तांतरण से जुड़ी अनिश्चितताओं जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा हैं।
  • केंद्र अपने व्यय के वित्तपोषण के लिये उपकर और अधिभार (Cesses and Surcharges) की उगाही पर निर्भर रहा है। इन स्रोतों से अर्जित राजस्व विभाज्य कर पूल का हिस्सा नहीं बनता है और इसे राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है।
  • वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार को उपकर और अधिभार से 3.69 लाख करोड़ रुपये की आय होने की उम्मीद है जो कि उसके सकल कर राजस्व के 15% तुल्य राशि है।
  • इसका अर्थ है कि सकल कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी केवल 32.9% ही रह जाएगी।
  • इसके अलावा केंद्र ने 15वें वित्त आयोग को रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिये भी धन आवंटन करने की संभावना पर विचार करने को कहा है। इसे राज्यों के हिस्से में आने वाली राशि में कटौती से पूरा किये जाने की संभावना है।

दबाव कम करने हेतु रणनीति

  • राज्यों को केवल कर दरों में वृद्धि के बजाय अधिकतम दक्षता सुनिश्चित करने के लिये राजस्व संग्रहण को बढ़ाने की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • जब तक राजस्व में वृद्धि नहीं होगी, राज्यों को बाध्य होकर पूंजीगत व्यय में कटौती करनी होगी जो आर्थिक मंदी को बढ़ावा देगा। इस तरह राजस्व में कमी का दुष्चक्र शुरू हो जाता है।
  • इस परिदृश्य में राज्यों को संसाधन जुटाने पर ध्यान देना चाहिये।
  • लेकिन कर राजस्व बढ़ाने की सीमाओं के मद्देनज़र उन्हें बिजली और सिंचाई से संबंधित अपनी टैरिफ नीतियों की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
  • इन सेवाओं पर तार्किक उपयोगकर्त्ता शुल्क लगाकर गैर-कर राजस्व बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये।
  • राज्यों को कर आधार का विस्तार करने के लिये धीरे-धीरे GST डेटाबेस का उपयोग करने पर भी ध्यान देना चाहिये।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (04 October)

1. वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान 2019

राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 3 अक्तूबर को नई दिल्‍ली में अंतर्राष्‍ट्रीय वृद्धजन दिवस के उपलक्ष्‍य में सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गणमान्‍य वरिष्‍ठजनों और संस्‍थाओं को वर्ष 2019 के लिये वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान प्रदान किये।

  • यह सम्‍मान वरिष्‍ठजनों के लिये की गई उत्‍कृष्‍ट सेवाओं के लिये दिया जाता है।
  • अंतर्राष्‍ट्रीय वृद्धजन दिवस हर साल 1 अक्तूबर को मनाया जाता है।

वयोश्रेष्ठ सम्मान

  • वयोश्रेष्ठ सम्मान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया पुरस्‍कार है, जो अब राष्‍ट्रीय श्रेणी के पुरस्‍कारों में शामिल हो चुका है।
  • यह सम्‍मान प्रत्येक वर्ष भारत में वरिष्‍ठ नागरिकों की नि:स्‍वार्थ सराहनीय सेवा करने वाले संस्‍थानों और वरिष्‍ठ नागरिकों को उनकी उत्‍तम सेवाओं और उपलब्धियों के सम्‍मान स्‍वरूप प्रदान किया जाता है।
  • यह पुरस्‍कार वरिष्‍ठजनों के हितों को लेकर सरकार की चिंताओं तथा समाज में ऐसे लोगों को उनका पूरा हक दिलाने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • यह समाज और राष्‍ट्र निर्माण में वरिष्‍ठजनों के योगदान से युवा पीढ़ी को परिचित कराने का अवसर भी प्रदान करता है।
  • यह सम्मान देश के किसी भी हिस्से के संस्थानों/संगठनों/व्यक्तियों को दिया जाता है। इसके लिये सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों से नामांकन आमंत्रित किये जाते हैं।
  • इनकी शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी। इस पुरस्‍कार योजना के तहत केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों उनके स्‍वायत्‍त संगठनों, राज्‍य और केंद्रशासित प्रदेशों, पद्म, वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान और अन्‍य राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त कर चुके व्‍यक्तियों अथवा संस्‍थानों, वरिष्‍ठ नागरिकों की राष्‍ट्रीय परिषद के सदस्‍यों तथा फिक्‍की, CII, एसोचैम, नेसकॉम जैसे उद्योग संगठनों से नामांकन आमंत्रित किये जाते हैं।

2. रामदेव धुरंधर को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति सम्मान

  • हिंदी के शीर्ष प्रवासी साहित्यकार मॉरीशस के साहित्य के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये दिया जाने वाला आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति सम्मान इस प्रदान किया जाएगा।
  • आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति के निर्णायक मंडल ने रामदेव धुरंधर को यह सम्मान देने का निर्णय लिया है।
  • इनसे पहले यह सम्मान डॉ. नामवर सिंह, डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, मैनेजर पांडे, काशीनाथ सिंह, प्रभाष जोशी, वेद प्रताप वैदिक, अच्युतानंद मिश्र, भारत यायावर आदि को दिया जा चुका है।

रामदेव धुरंधर

रामदेव धुरंधर का चर्चित उपन्यास 'पथरीला सोना' छह खंडों में प्रकाशित है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास में उन्होंने किसान-मज़दूरों के रूप में भारत से मॉरीशस गए अपने पूर्वजों की संघर्षमय जीवन-यात्रा का चित्रण किया है। इसके अलावा उनकी 'छोटी मछली बड़ी मछली', 'चेहरों का आदमी', 'बनते बिगड़ते रिश्ते', 'पूछो इस माटी से', 'विष-मंथन', 'जन्म की एक भूल' आदि कृतियाँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं। रामदेव धुरंधर को 11 लाख रुपए सम्मान राशि वाले श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्को साहित्य सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है।

  • उनके अलावा डॉक्टर राम मनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मान महाराष्ट्र में वनवासियों की सेवा करने वाले डॉक्टर दंपति डॉ. प्रकाश आमटे एवं उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे को दिया जाएगा।
  • प्रभाष जोशी स्मृति पत्रकारिता सम्मान से जनसत्ता नई दिल्ली के कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज को सम्मानित किया जाएगा।
  • उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िला मुख्यालय पर 9 नवंबर को आयोजित होने वाले स्मृति समारोह में ये सम्मान प्रदान किये जाएंगे।
  • आचार्य द्विवेदी समिति पिछले 12 वर्षों से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृति में सम्मान प्रदान करती है।

3. नोमेडिक एलीफैंट-14

  • भारत और मंगोलिया के बीच 14 दिन का संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास नोमेडिक एलीफैंट का 14वाँ संस्करण हिमाचल प्रदेश के बाकलोह में 5 अक्तूबर से 18 अक्तूबर के बीच आयोजित किया जा रहा है।
  • मंगोलियाई सेना का प्रतिनिधित्व एलीट 084 एयर बोर्न स्पेशल टॉस्क बटालियन के अधिकारी एवं जवान करेंगे।
  • भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व राजपूताना राइफल्स की बटालियन की एक टुकड़ी करेगी।
  • नोमाडिक एलीफैंट-14 का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था के तहत उग्रवाद रोधी और आतंकवाद निरोधी अभियानों के लिये सैनिकों को प्रशिक्षित करना है।
  • यह संयुक्त अभ्यास दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और सैन्य संबंधों को बढ़ाने में मदद करता है।
  • यह दोनों देशों की सेनाओं के लिये अपने अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने तथा संयुक्त प्रशिक्षण का पारस्परिक रूप से लाभ उठाने का एक आदर्श मंच है।
  • वर्ष 2004 में पहली बार भारत और मंगोलिया के बीच संयुक्त अभ्यास नोमेडिक एलीफैंट का आयोजन किया गया था। दोनों देश बारी-बारी से इसका आयोजन अपने देश में करते हैं।

प्रमुख उद्देश्य

संयुक्त प्रशिक्षण का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के आदेश के तहत सामूहिक आतंकवादी निरोधी अभियानों का संचालन करते हुए आतंकवाद-रोधी परिस्थितियों के लिये विभिन्न सुनियोजित अभ्यासों जैसे- कॉन्वॉय सुरक्षा ड्रिल, रूम इंटरवेंशन ड्रिल, घात लगाना/घात निरोधी ड्रिल को विकसित करना है। संयुक्त प्रशिक्षण में दोनों सेनाओं के सैनिकों को शामिल करते हुए एक सहयोगी सब-यूनिट द्वारा संचालन करने पर बल दिया जाता है। यह प्रतिकूल परिचालन परिस्थितियों में दोनों सेनाओं के बीच परस्पर सक्रियता को बढ़ाता है।

काजिंद-2019

  • इसके अलावा भारत और कज़ाकिस्तान की सेनाओं के बीच चौथा वार्षिक सैन्य अभ्यास काज़िंद-2019 3 अक्तूबर को पिथौरागढ़ में शुरू हुआ।
  • इस अभ्यास का उद्देश्य जंगलों और पहाड़ी इलाकों में अलगाववाद निरोधी/आतंकवाद निरोधी ऑपरेशन में सैनिकों को संयुक्त प्रशिक्षण देना है।
  • काज़िंद के तहत उग्रवाद और आतंकवाद निरोधी अभियानों से संबंधित महत्त्वपूर्ण व्याख्यान, प्रदर्शन और अभ्यास आयोजित किये जाएंगे।
  • इसके तहत दोनों सेनाएँ ऐसी परिस्थितियों का मुकाबला करने में अपने बहुमूल्य अनुभवों को भी साझा करती हैं तथा संयुक्त अभियानों के लिये अभ्यास और प्रक्रियाओं को परिष्कृत करती हैं।
  • काज़िंद संयुक्त सैन्य अभ्यास को भारत और कज़ाकिस्तान के बीच लंबे समय तक रणनीतिक संबंधों के एक आयाम के रूप में देखा जाता है।

4. एक्यूवरिन 2019

  • भारतीय सेना और मालदीव की नेशनल डिफेंस फोर्स 7 से 20 अक्तूबर, 2019 के बीच महाराष्ट्र में पुणे के औंध मिलिट्री स्टेशन में 10वाँ संयुक्त सैन्य अभ्यास एक्यूवरिन करने जा रही हैं।
  • भारतीय सेना और मालदीव की नेशनल डिफेंस फोर्सेस वर्ष 2009 से ही एक्यूवरिन युद्ध अभ्यास आयोजित कर रही हैं। मालदीव की धिवेही भाषा में एक्यूवरिन का अर्थ ‘मित्र’ होता है।
  • 14 दिनों का यह संयुक्त अभ्यास भारत और मालदीव में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।

प्रमुख उद्देश्य

  • इसमें संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था के अनुरूप एक अर्द्ध-शहरी वातावरण में उग्रवाद रोधी और आतंकवाद निरोधी अभियानों को अंजाम देने के लिये दोनों सेनाओं के बीच परस्पर सक्रियता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • इस अभ्यास में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं को साझा करने और उग्रवाद रोधी तथा आतंकवाद निरोधी अभियानों को अंजाम देने के लिये एक-दूसरे को संचालन प्रक्रियाओं से परिचित कराने पर बल दिया जाता है।
  • पिछला अभ्यास वर्ष 2018 में मालदीव के माफिलाफुसी स्थित नार्दर्न एरिया हेडक्वार्टर में आयोजित हुआ था।
  • गौरतलब है कि भारत मालदीव के साथ बहुत करीबी जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामरिक और वाणिज्यिक संबंध साझा करता है और एक्यूवरिन अभ्यास दोनों देशों के बीच इन संबंधों को और मज़बूत बनाने में सहायता करता है।

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