दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 05 Oct, 2019
  • 39 min read
भूगोल

समुद्र का बढ़ता तापमान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases- GHG) के उत्सर्जन की दर को कम नहीं किया गया तो वर्ष 2100 तक दुनिया भर के महासागर पिछले 50 वर्षों की तुलना में पाँच से सात गुना अधिक गर्मी को अवशोषित करेंगे, जिसके कारण उनके तापमान में भारी वृद्धि हो सकती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि यदि इसी तरह तापमान बढ़ता रहा तो वर्ष 2100 तक वैश्विक समुद्र-स्तर में कम-से-कम एक मीटर तक की वृद्धि होगी जिसके कारण मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और सूरत सहित कई तटीय शहर जलमग्न हो जाएंगे।
  • समुद्री हीटवेव (Marine Heatwaves) का अधिक तीव्र एवं चिरस्थायी होने का अनुमान है और इसकी बारंबारता में भी 50 गुना तक की वृद्धि हो सकती है।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि कई अन्य चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि का कारण बन सकती है, जैसा कि उच्च ज्वार और तीव्र तूफान के संदर्भ में होता है।
  • रिपोर्ट में अल-नीनो (El-Nino) और ला-नीना (La-Nina) जैसी परिघटनाओं की बारंबारता में वृद्धि की चेतावनी दी गई है।

समुद्र का बढ़ता तापमान और उसका प्रभाव:

  • पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से में महासागर अवस्थित हैं जो गर्मी को अवशोषित कर उसका समान रूप से वितरित करने जैसी महत्त्वपूर्ण पारितंत्रीय सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • जैसे ही पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होती है, समुद्र द्वारा अधिकांश अतिरिक्त ऊष्मा का अवशोषण कर लिया जाता है। फलतः वैश्विक उष्मण का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र पर पड़ता है।
  • साथ ही गर्म महासागरों का सीधा संबंध मज़बूत चक्रवात और तीव्र तूफान जैसी परिघटनाओं से होता है जिसके कारण कई तटीय क्षेत्रों में अभूतपूर्व अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिये-
    • वर्ष 2014 में चक्रवात नीलोफर (Nilofar) मानसून के बाद के मौसम में अरब सागर में दर्ज होने वाला पहला सबसे गंभीर चक्रवात था। इससे पहले देश में आने वाले चक्रवात आमतौर पर बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते थे और भारत के पूर्वी तट पर अपना लैंडफॉल (Landfall) बनाते थे। यद्यपि चक्रवात निलोफ़र ने लैंडफॉल (चक्रवात का जलीय भाग से स्थल पर प्रवेश करने की परिघटना) नहीं बनाया, लेकिन इससे देश के पश्चिमी तट में भारी बारिश हुई।
    • अक्टुबर 2014 में चक्रवात लुबन (Luban) की वजह से समुद्र के स्तर में सामान्य वृद्धि और उच्च ज्वार के दोहरे प्रभाव ने गोवा में कई समुद्र तटों को जलमग्न कर दिया था।
    • गर्म होते महासागरों ने चक्रवात व्यवहार को अन्य तरीकों से भी बदल दिया है। वर्ष 2017 में चक्रवात ओखी (Ockhi), जो बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न हुआ, ने 2,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर भारत के पश्चिमी तट पर भारी तबाही मचाई और पिछले 30 वर्षों में ऐसा करने वाला यह पहला चक्रवात था।

आगे की राह:

  • हरितगृह गैसों (Green House Gas- GHG) के उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • चरम मौसमी घटनाओं के खिलाफ लोगों के लचीलेपन (Resilience) को बढ़ावा देने वाले बुनियादी ढाँचे और ज्ञान प्रणालियों में निवेश में वृद्धि का प्रयास करना चाहिये।
  • हालाँकि, पेरिस जलवायु संधि के बाद से इस संदर्भ में लगातार सकारात्मक प्रयास किये जाते रहे हैं फिर भी स्थिति की गंभीरता को समझते हुए नवीनतम IPCC रिपोर्ट को वेक-अप कॉल (Wake-up Call) के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को बढ़ावा देते हुए विकसित देशों द्वारा तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग को सुनिश्चित करने तथा विकासशील देशों द्वारा इससे जुड़े वैश्विक संधि एवं समझौतों को व्यावहारिक रूप से लागू करने पर बल देना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

रणनीतिक विनिवेश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चयनित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण में तेज़ी लाने के लिये रणनीतिक विनिवेश (Strategic Disinvestmen) की नई प्रक्रिया को मंज़ूरी दी है।

नई प्रक्रिया की आवश्यकता क्यों?

  • बड़ी विनिवेश योजनाओं में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रशासनिक मंत्रालयों की भूमिका को कम करने तथा विनिवेश प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज़ करने के उद्देश्य से इस नई प्रक्रिया को मंज़ूरी दी गई है।
  • सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है।
  • लेकिन निगम कर में छूट के माध्यम से कॉर्पोरेट्स को 1.45 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन के बाद यह लक्ष्य प्राप्त करना और अधिक कठिन हो गया है।
  • 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले वर्तमान वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को GDP के 3.3% की सीमा में रखने के लिये भी विनिवेश से राशि जुटाना सरकार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • 4-5 महीनों की समय-सीमा में बिक्री की प्रक्रिया को पूरा करने के लिये इस प्रक्रिया को मंज़ूरी दी गई है।
  • प्रक्रिया में परिवर्तन, सचिवों के एक समूह द्वारा भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड (कॉनकॉर), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) सहित कुछ अन्य PSUs में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री के लिये सहमति व्यक्त करने के कुछ दिनों के बाद किया गया है।

क्या है नई प्रक्रिया?

  • वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management-DIPAM) को रणनीतिक विनिवेश के लिये नोडल विभाग बनाया गया है।
  • वर्तमान में रणनीतिक बिक्री के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) की पहचान नीति आयोग द्वारा की जाती है।
  • लेकिन इस नई प्रक्रिया में अब DIPAM और नीति आयोग संयुक्त रूप से रणनीतिक विनिवेश के लिये सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करेंगे।
  • इसके अलावा संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों के सचिव के साथ DIPAM सचिव भी विनिवेश पर अंतर-मंत्री समूह की सह-अध्यक्षता करेगा।
  • रणनीतिक बिक्री में दो चरणों में नीलामी हो सकती है। पहले चरण में रुचि व्यक्त की जा सकेगी और दूसरे चरण में वित्तीय नीलामी शामिल है।
  • बिक्री के हर पहलू पर स्पष्टता प्रदान करने के लिये नीलामी से पूर्व संभावित बोलीदाताओं के साथ मीटिंग्स और संभावित निवेशकों को आकर्षित करने हेतु रोड-शो विनिवेश प्रक्रिया का हिस्सा होंगे।
  • बिक्री के लिये चयनित PSU की जानकारी बोलीदाताओं को उपलब्ध कराने हेतु डेटा सेंटर स्थापित किया जाएगा।

विनिवेश और रणनीतिक बिक्री

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।
  • इसके लिये सरकार अपने हिस्से के शेयर्स को किसी निजी इकाई को स्थानांतरित कर देती है किंतु उस उपक्रम पर अपना स्वामित्व अथवा मालिकाना हक बनाए रखती है।
  • जबकि रणनीतिक बिक्री में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के शेयर्स के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है अर्थात् स्वामित्व और नियंत्रण को किसी निजी क्षेत्र की इकाई को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
  • साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री एक प्रकार से निजीकरण है।

रणनीतिक बिक्री क्यों?

  • किसी रणनीतिक निवेशक को कंपनी की इक्विटी के हस्तांतरण से प्राप्त होने वाली आय को आवश्यक अवसंरचनाओं के निर्माण में अधिक लाभप्रद तरीके से परिनियोजित किया जा सकता है।
  • यह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से सक्षम बनाते समय सार्वजनिक ऋण में कमी करने में भी सहायता करेगा तथा ऋण-जीडीपी अनुपात को भी कम करेगा।

स्रोत : बिज़नेस स्टैंडर्ड 


शासन व्यवस्था

इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग संबंधी दिशा-निर्देशों को मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग संबंधी दिशा-निर्देशों एवं विनिर्देशों में संशोधनों को मंज़ूरी दे दी है। इन दिशा-निर्देशों में इलेक्ट्रिक वाहन मालिकों से जुड़े विभिन्‍न मुद्दों को सुलझाने के लिये देश भर में चार्जिंग अवसंरचना का एक समुचित नेटवर्क विभिन्‍न चरणों में स्‍थापित करने की परिकल्‍पना की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • चार्जिंग अवसंरचना से जुड़े ये संशोधित दिशा-निर्देश 14 दिसंबर, 2018 को विद्युत मंत्रालय द्वारा जारी पूर्ववर्ती दिशा-निर्देशों एवं मानकों का स्‍थान लेंगे।
  • संशोधित दिशा-निर्देश पहले की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक उपभोक्‍ता अनुकूल हैं क्‍योंकि इनमें विभिन्‍न हितधारकों से प्राप्‍त कई सुझावों को शामिल किया गया है।
  • इन दिशा-निर्देशों को दो चरणों में क्रियान्वित किया जाएगा।
  • प्रथम चरण 1 से 3 वर्ष का होगा जिसमें 40 लाख से अधिक की आबादी वाली (जनगणना-2011 के अनुसार) सभी मेगा सिटी से जुड़े समस्‍त मौजूदा एक्‍सप्रेसवे और इनमें से प्रत्‍येक मेगा सिटी से जुड़े महत्त्वपूर्ण राजमार्गों को कवर कर लिया जाएगा।
  • 3 से 5 वर्षों वाले दूसरे चरण में बड़े शहरों जैसे कि राज्‍यों की राजधानियों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्‍यालयों को कवर किया जा सकता है।
  • चार्जिंग अवसंरचना की स्‍थापना में आसानी के लिये विद्युत मंत्रालय के अधीनस्‍थ वैधानिक निकाय ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो (Bureau of Energy Efficiency-BEE) को नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।

नेशनल ई-मोबिलिटी प्रोग्राम

(National E-Mobility Programme)

इस कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन सुनिश्चित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिये बड़े स्तर पर चार्जिंग अवसरंचना की आवश्यकता होगी।

ई-मोबिलिटी के निम्नलिखित लाभ हैं-

  • इलेक्ट्रिक वाहन पर्यावरण और आर्थिक दोनों ही दृष्टिकोणों से लाभकारी हैं।
  • सामान्य कारों के लिये प्रति किलोमीटर 6.5 रुपए की लागत की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों हेतु यह मात्र 85 पैसे ही है।
  • ये ऊर्जा दक्षता प्राप्त करने में सहायक हैं।
  • इससे महँगे पेट्रोलियम आयातों पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी।

क्या है नए दिशा-निर्देश?

  • शहरों में 3 किलोमीटर लंबाई और 3 किलोमीटर चौड़ाई के ग्रिड में कम-से-कम एक चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध कराया जाएगा।
  • राजमार्गों/सड़कों के दोनों ओर प्रत्येक 25 किलोमीटर की दूरी पर पर एक चार्जिंग स्टेशन होगा।
  • एक शहर से दूसरे शहर में भ्रमण करने वाले और भारी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रत्येक 100 किलोमीटर पर फास्ट चार्जिंग स्टेशन स्थापित किया जाएगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की ज्‍यादातर चार्जिंग घरों अथवा कार्यालयों में ही होगी और वहाँ ‘फॉस्‍ट या स्‍लो चार्जर’ का उपयोग करने का निर्णय उपभोक्‍ताओं पर निर्भर करेगा।
  • अत: इस बारे में दिशा-निर्देशों में स्‍पष्‍ट किया गया है कि आवास या कार्यालयों में निजी चार्जिंग की अनुमति विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्‍कॉम्स) द्वारा दी जाएगी।
  • घरेलू चार्जिंग दरअसल बिजली की घरेलू खपत जैसी ही होगी, अत: उसके लिये शुल्‍क दरें उसी के अनुसार होंगी।
  • हालाँकि सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों (Public Charging Stations-PCS) के मामले में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि PCS के लिये विद्युत आपूर्ति की शुल्‍क दर का निर्धारण उपयुक्‍त आयोग द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-3 के तहत जारी टैरिफ नीति के अनुसार किया जाएगा।
  • सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन की स्थापना के लिये किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी। कोई भी व्यक्ति या संस्था सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिये स्वतंत्र है।

स्रोत : द हिंदू और पीआईबी


भारतीय राजनीति

उच्च न्यायालय द्वारा पशु बलि पर प्रतिबंध का निर्णय

चर्चा में क्यों?

27 सितंबर, 2019 को त्रिपुरा उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने राज्य के मंदिरों में जानवरों और पक्षियों की बलि देने की परंपरा पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही न्यायालय ने सरकार को संवैधानिक मूल्यों और सभी जानवरों एवं पक्षियों के प्रति करुणा, प्रेम, मानवता के महत्त्व के बारे में लोगों को जागरूक करने का निर्देश दिया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • त्रिपुरा में पशु बलि की परंपरा कम-से-कम 500 वर्षों पुरानी है।
  • पशु बलि मुख्य रूप से त्रिपुरा के दो मंदिरों - उदयपुर स्थित त्रिपुरेश्वरी मंदिर और अगरतला के चतुर्दश देवता मंदिर में होती है।
  • दोनों मंदिरों की स्थापना त्रिपुरा पर शासन करने वाले माणिक्य वंश के शासकों द्वारा की गई थी।
  • त्रिपुरेश्वरी मंदिर को 51 शक्ति पीठों में से एक शक्ति पीठ माना जाता है, जिसकी स्थापना 1501 ईस्वी में महाराजा धन्य माणिक्य ने की थी।
  • चतुर्दश देवता मंदिर को चौदह देवताओं का मंदिर कहा जाता है जिसका निर्माण 1770 के आसपास महाराजा कृष्ण किशोर माणिक्य द्वारा कराया गया था।
  • पशु बलि की यह परंपरा त्रिपुरा में कम्युनिस्ट शासन के तहत भी जारी रही। हालाँकि अब तक केवल CPM ने इस आदेश का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया है।
  • त्रिपुरा संभवतः भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ राज्य सरकार 500 वर्ष से अधिक पुरानी दुर्गा पूजा को प्रायोजित करती रही है और जिसका पूर्ववर्ती शाही परिवार द्वारा प्रबंधन किया जाता है।
  • लेकिन अब पूजा की तांत्रिक विधि पर प्रतिबंध से राज्य में बहस छिड़ गई है।

उच्च न्यायालय का पक्ष

  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि जानवरों की बलि देने की परंपरा को संविधान के अनुच्छेद-25(1) के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता है। धार्मिक स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
  • इसके अलावा पशु बलि अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।
  • अदालत ने कहा कि धार्मिक परंपराएँ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों की अवहेलना नहीं कर सकती।

सरकार का पक्ष

  • सरकार ने तर्क दिया कि त्रिपुरेश्वरी और अन्य मंदिरों में पूजा पारंपरिक तरीके से जारी रहनी चाहिये क्योंकि यह भारत में त्रिपुरा के विलय के लिये किये गए समझौते का भाग है।
  • पूजा की तांत्रिक विधि के विरुद्ध यह याचिका इस्लाम धर्म में पशु बलि की परंपरा को शामिल नही करती है।
  • अदालत ने इस तर्क को निरथर्क मानते हुए कहा कि किसी बात की पुष्टि के लिये आवश्यक सामग्री की अनुपस्थिति में राज्य को इस तरह के स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम) द्वारा पशुबलि के मुद्दे को पहले ही मोहम्मद हनीफ कुरेशी और अन्य बनाम बिहार राज्य (1958), पश्चिम बंगाल राज्य बनाम आशुतोष लाहिड़ी (1994) और मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाब बनाम गुजरात राज्य और अन्य (1998) जैसे मामलों में निपटाया जा चुका है।
  • इन मामलों में भी सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि पशु बलि इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
  • इसमें यह भी कहा गया कि इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिये कानून बनाने हेतु राज्य स्वतंत्र है। हालाँकि एक सामान्य प्रतिबंध के प्रश्न पर अदालतों की अलग-अलग राय है।
  • त्रिपुरा के शाही परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देववर्मन और राज्य सरकार ने भी इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने की बात कही है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वाॅटर फॉल अप्रोच तथा पूंजी बाज़ार

चर्चा में क्यों?

बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड- सेबी (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने म्यूचुअल फंड हाउसों को मुद्रा बाज़ार और ऋण प्रतिभूतियों के मूल्यांकन के लिये वाॅटरफॉल अप्रोच (Waterfall Approach) अपनाने को कहा है, जिससे मूल्यांकन में एकरूपता और निरंतरता को बढ़ावा मिल सके।

प्रमुख बिंदु:

  • सेबी ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया है कि म्यूचुअल फंडस (Mutual Funds) ने प्रतिभूतियों पर अपने पूर्ण स्वामित्व को बनाये रखने के उद्देश्य से अपेक्षाकृत कम मात्रा में व्यापार किया है, इससे बचने के लिये वाॅटर फॉल अप्रोच को अपनाना होगा।
  • वाटरफॉल एप्रोच के तहत सभी व्यापारिक प्रतिभूतियों का कारोबार निवेश में प्राप्त आय या लाभांश (Traded Yields) के आधार पर किया जाएगा।
  • वॉल्यूम भारित औसत उपज (Volume Weighted Average Yield- VWAY) का उपयोग सरकारी प्रतिभूतियों (ट्रेज़री बिल सहित) के कारोबार हेतु व्यापार के अंतिम एक घंटे में किया जाएगा।
  • पूरे दिन के दौरान हुए अन्य सभी मुद्रा बाजार और ऋण प्रतिभूतियों (पिछले एक घंटे में सरकारी प्रतिभूतियों का कारोबार नहीं किया जाता है) का मूल्यांकन VWAY कारोबार के आधार पर किया जाएगा।

म्यूचुअल फंड (Mutual Funds):

  • म्यूचुअल फंड अल्पकालिक तरल निवेश हैं जो उच्च गुणवत्ता वाले मुद्रा बाज़ार के साधनों जैसे ट्रेज़री बिल्स (T-Bills), वाणिज्यिक पत्रों तथा जमाकर्त्ताओं के प्रमाण पत्र आदि में निवेश करते हैं।
  • म्यूचुअल फंड के रूप में छोटे-छोटे निवेशकों से विभिन्न प्रकार की योजनाओं के माध्यम से उनकी बचत को एकत्र किया जाता है जिससे जोखिम को कम किया जा सके एवं उच्च प्रतिफल प्राप्त किया जा सके।
  • यह पेशेवर रूप में प्रबंधित योजना है।
  • यह एक निवेश वित्तीय मध्यस्थ है जो छोटे निवेशकों की बचत को गतिशीलता प्रदान करता है।

वॉल्यूम भारित औसत उपज

(Volume Weighted Average Yield- VWAY):

  • यह व्यापारियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक ट्रेडिंग बेंचमार्क है जो वॉल्यूम और कीमत दोनों के आधार पर दिन भर में औसत मूल्य की प्रतिभूति प्रदान करता है।
  • यह महत्त्वपूर्ण इसलिये है क्योंकि यह व्यापारियों को प्रतिभूतियों के रुझान और मूल्य दोनों की जानकारी प्रदान करता है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

(Securities and Exchange Board of India)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • इसके मुख्य कार्य हैं -
    • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
    • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेबरहुड माइनस वन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) के अंतर्गत भारत आर्थिक शिखर सम्मेलन (India Economic Summit) में भारत एवं इसके पड़ोसी देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग के संदर्भ में नेबरहुड माइनस वन (Neighbourhood Minus One) की बात सामने आई।

संदर्भ:

  • दो दिवसीय भारत आर्थिक शिखर सम्मेलन का आयोजन विश्व आर्थिक मंच द्वारा भारतीय उद्योग परिसंघ के सहयोग से गया था।
  • यहाँ ‘नेबरहूड माइनस वन’ में वन (one) का संदर्भ पाकिस्तान से है।
  • भारत की विदेश नीति में ‘पड़ोसी पहले’ (Neighbourhood First) की नीति एक महत्त्वपूर्ण आयाम है एवं भारत लगातार इस नीति की व्यावहारिक प्रासंगिकता को बढ़ावा देता रहा है।
  • हालाँकि अन्य पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव आते रहे हैं लेकिन पाकिस्तान के साथ रिश्ता ज्यादातर विवादों से ही घिरा रहा है एवं पिछले कुछ समय से यह मूलतः नकारात्मक ही बना हुआ है।

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)

  • विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
  • यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
  • इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
  • इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर प्रदान की जानी है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
  • इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।

पृष्ठभूमि:

  • भारत द्वारा उरी, बालाकोट आदि में हुए आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान की संलिप्तता को मानना एवं संदर्भित कार्रवाई, जैसे कि पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन (Most Favoured Nation) का दर्जा वापस लेना आदि।
  • अनुच्छेद- 370 के संदर्भ में भारत सरकार द्वारा किये गए बदलाव एवं जम्मू और कश्मीर का मुद्दा।
  • SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) के मंच पर भारत-पाकिस्तान मतभेद एवं एक-दूसरे का बहिष्कार।
  • पिछले कुछ समय से भारत द्वारा SAARC की अपेक्षा BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) आदि अन्य क्षेत्रीय संगठनों को अधिक तवज्जो दिया जाना।

नेबरहुड माइनस वन की प्रासंगिकता:

  • पक्ष:
    • पाकिस्तान द्वारा राज्य प्रायोजित आतंकवाद एवं उसके द्वारा भारत में अन्य आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना दोनों देशों के रिश्तों को सर्वाधिक दुष्प्रभावित करता है।
    • यह भारत द्वारा पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की नीति का एक हिस्सा है।
    • पाकिस्तान के भारत-विरोधी रुख को देखते हुए दक्षिण एशिया के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये यह व्यावहारिक दृष्टिकोण है।
    • जम्मू और कश्मीर तथा अनुच्छेद- 370 जैसे भारत के आतंरिक मुद्दों पर पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए यह एक आवश्यक कूटनीतिक दृष्टिकोण प्रतीत होता है।
  • विपक्ष:
    • भारत का यह दृष्टिकोण क्षेत्र में गुटबाजी को बढ़ावा दे सकता है।
    • विदेश नीति के तहत यह एक व्यावहारिक तथ्य है कि पड़ोसी का कोई विकल्प नहीं होता।

निष्कर्ष:

अल्पकालिक नीतियों के तहत यह भले ही व्यावहारिक दिखे किंतु दीर्घकालिक रूप से यह धारणीय प्रतीत नहीं होता है। ऐसे में भारत को इस नीति के साथ-साथ स्थिति को सुधारने के अन्य सार्थक विकल्पों का उपयोग करने पर भी बल देना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (05 October)

1. रिज़र्व बैंक ने रेपो दर में की कमी; विकास दर अनुमान भी घटाया

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती करते हुए इसे 5.4 प्रतिशत से घटाकर 5.15 प्रतिशत कर दिया है।
  • रिवर्स रेपो दर भी घटाकर 4.9 प्रतिशत और बैंक दर 5.4 प्रतिशत कर दी गई है।
  • इस वर्ष बैंक ने लगातार पाँचवीं बार रेपो दर में कमी की है।
  • रेपो दर में कमी का उद्देश्‍य आवास और वाहन ऋण की दरों में कमी लाना है जो अब इस दर के साथ सीधे जुड़ गए हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये उदार नीति जारी रखने का फैसला किया है ताकि महंँगाई नियंत्रण में रहे।

विकास दर अनुमान घटाया

रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2019-20 के लिये GDP विकास दर का अनुमान 6.9 प्रतिशत से घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है। वर्ष 2020-21 के लिये यह अनुमान संशोधित करके 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है।

IMF ने भी घटाया था विकास दर का अनुमान

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत की विकास दर के अनुमान को घटाया था। IMF ने वित्त वर्ष 2019-20 में आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जिसमें 0.30 प्रतिशत की कटौती की गई है। इस संदर्भ में IMF का कहना है कि कॉर्पोरेट और विनियमन अनिश्चितताओं तथा कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की कमज़ोरी के कारण भारत की आर्थिक विकास दर अनुमान से अधिक कमज़ोर हुई है।

ADB ने भी की थी कटौती

एशियाई विकास बैंक (ADB) ने भी वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत के विकास अनुमान में कमी करते हुए इसे 6.5 प्रतिशत कर दिया था। ADB ने एशियाई विकास परिदृश्य 2019 अपडेट में वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत का GDP विकास अनुमान घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया था।


2. 94वांँ सैन्य नर्सिंग सेवा स्थापना दिवस

  • 1 अक्तूबर को 94वांँ सैन्य नर्सिंग सेवा (Military Nursing Service- MNS) स्थापना दिवस मनाया गया।
  • MNS सशस्त्र बलों का एकमात्र महिला कोर है।
  • तत्कालीन बंबई में 10 प्रशिक्षित ब्रिटिश नर्सों के पहले आगमन के साथ 28 मार्च, 1888 को यह अस्तित्व में आया था।
  • इसकी स्थापना भारत के सैन्य अस्पतालों में नर्सिंग गतिविधियों के लिये की गई थी।
  • वर्ष 1893 में इसका नाम इंडियन आर्मी नर्सिंग सर्विस (IANS) रखा गया और वर्ष 1902 में इसे क्वीन एलेक्जांड्रा मिलिट्री नर्सिंग सर्विस (QAMNS) कर दिया गया था।
  • वर्ष 1914 में पहली बार नर्सों को भारत में पंजीकृत किया गया और उन्हें QAMNS से जोड़ा गया था।
  • 1 अक्तूबर, 1926 को भारतीय टुकड़ियों के लिये एक स्थायी नर्सिंग सेवा बनाई गई और उसे इंडियन मिलिट्री नर्सिंग सर्विस (IMNS) नाम दिया गया।
  • 15 सितंबर, 1943 को IMNS अधिकारी भारतीय सेना के अधिकारी बने और उन्हें कमीशन अधिकारी बनाया गया।
  • MNS का नेतृत्व सेना मुख्यालय में ADG MNS द्वारा किया जाता है, जो मेजर जनरल का पद होता है।
  • इसी तरह कमान स्तर पर इसका नेतृत्व ब्रिगेडियर MNS द्वारा किया जाता है। यह ब्रिगेडियर के पद के बराबर होता है।

सैन्य नर्सिंग सेवा की उपलब्धियाँ

  • 1947, 1965, 1971 और 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए चार युद्धों में सैन्य नर्सिंग सेवा के अधिकारियों ने बीमार और घायल जवानों की देखभाल में प्रमुख भूमिका निभाई। वर्ष 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस सेवा का अप्रतिम योगदान रहा।
  • इसके अलावा सैन्य सेवा के अधिकारियों ने श्रीलंका में भारतीय शांति सेवा एवं अन्य शांति सेवा मिशनों के दौरान योगदान दिया है।
  • वर्तमान में सैन्य नर्सिंग सेवा के अधिकारी गड़बड़ी वाले राज्यों जम्मू-कश्मीर एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों तथा संयुक्त राष्ट्र मिशनों में तैनात किये गए हैं।
  • उल्लेखनीय सेवाओं, समर्पण और विशिष्ट योगदान के लिये सैन्य नर्सिंग सेवा के अधिकारियों को अब तक 3 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 17 अतिविशिष्ट सेवा मेडल, 45 विशिष्ट सेवा मेडल तथा 3 सेना मेडल से सम्मानित किया गया है।

3. विश्व पशु दिवस (World Animal Day)

  • हर साल दुनिया भर में 4 अक्तूबर का दिन विश्व पशु दिवस (World Animal Day) के रूप में मनाया जाता है।
  • इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में जानवरों की स्थिति में सुधार लाने और उसे बेहतर बनाना है।
  • इस दिवस के माध्यम से पशु कल्याण आंदोलन को एकजुट करने के लिये लोगों को जागरूक करना भी इसका एक अन्य प्रमुख उद्देश्य है।
  • इसका एक उद्देश्य यह भी है कि धरती को जानवरों के लिये एक बेहतर स्थान बनाया जा सके।

कैसे हुई शुरुआत

  • विश्व पशु दिवस मनाने की शुरुआत स्त्री रोग विशेषज्ञ हेनरिक ज़िमरमन (Heinrich Zimmermann) ने की थी।
  • उन्होंने 24 मार्च 1925, को बर्लिन, जर्मनी के स्पोर्ट्स पैलेस में पहला विश्व पशु दिवस आयोजित किया था।
  • इस पहले कार्यक्रम में 5000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था। यह कार्यक्रम मूल रूप से 4 अक्तूबर के लिये निर्धारित किया गया था।
  • ऐसा असीसी के सेंट फ्रांसिस (Saint Francis of Assisi) के पर्व के साथ संरेखित करने के लिये किया गया था, लेकिन उस दिन इतने लोगों के लिये स्थान उपलब्ध नहीं था।
  • वर्ष 1929 में पहली बार इस कार्यक्रम को 24 मार्च की जगह 4 अक्तूबर को मनाया गया।
  • नेचर वॉच फाउंडेशन (Nature Watch Foundation) भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और इस दिवस को पूरी दुनिया में आयोजित करने में मदद करता है।

भारत में क्या है स्थिति

  • पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम, 1960 के स्थान पर नया कानून/कानून में बदलाव लाने की तैयारी।
  • पशु क्रूरता मामले में अभी लोग जुर्माना देने से डरते नहीं हैं, क्योंकि यह केवल 50 रुपए है, जबकि ऑस्ट्रेलिया में इसके लिये 5 साल जेल व 25 लाख रुपए तक ज़ुर्माना लगाया जाता है।
  • देश में पशु क्रूरता के लचर कानूनों और मामूली जुर्माने के कारण जानवरों पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़े हैं।
  • पशु क्रूरता रोकथाम के लिये वर्ष 2013 में जीवित पशुओं के चिकित्सा शिक्षा में प्रयोग पर पाबंदी लगाईं गई।
  • वर्ष 2017 में कुत्ते-बिल्ली, मछली और अन्य पशुओं के पालन-पोषण नियम जारी किये गए।
  • इसके अलवा 750 किलोग्राम से अधिक सामान को घोड़ा-भैंसा-बैलगाड़ी से ले जाने पर रोक है तथा 12 से 3 बजे के बीच तेज़ धूप में जानवरों से काम नहीं करा सकते।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow