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डेली न्यूज़

  • 07 Oct, 2019
  • 33 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक

चर्चा में क्यों?

घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों के कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक जल्द ही मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थापित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • इसकी स्थापना के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) और भोपाल नगर निगम ( Bhopal Municipal Corporation- BMC) के बीच समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।
  • यह तीन महीने की पायलट परियोजना है। अगर यह सफल होती है, तो इसे पूरे देश में लागू किया जायेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक कचरे को या तो डोर-टू-डोर एकत्रित किया जाएगा या व्यक्तियों द्वारा सीधे क्लिनिक में जमा कराया जा सकता है।
  • CPCB इस परियोजना में तकनीकी सहायता प्रदान करेगा तथा एकत्र कचरे को फिर से रीसाइक्लिंग के लिये बेंगलूरू भेजा जाएगा।
  • यह घरों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों से उत्पन्न इलेक्ट्रॉनिक कचरे के वैज्ञानिक हैंडलिंग और निपटान को सुनिश्चित करेगा।
  • क्लिनिक की परिकल्पना सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 (Solid Waste Management Rules, 2016) के अनुपालन में की जा रही है।
  • ये नियम कचरे के स्रोत स्तर पर ही कचरे के पृथक्करण पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • वर्तमान में एक सुरक्षित निपटान तंत्र की अनुपस्थिति के कारण, अन्य घरेलू कचरे के साथ इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट का निपटान करना जटिल बनता जा रहा है, अतः ऐसे क्लिनिक को स्थापित करना आवश्यक है जिससे कुशलतापूर्वक और सुरक्षित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट को अलग किया जा सके।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:

(Central Pollution Control Board- CPCB):

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

स्रोत : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में एशिया का सबसे पुराना बाँस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम को बाँस के तनों के दो जीवाश्म प्राप्त हुए हैं जिनका नाम बम्बूसिकुलम्स तिरापेंसिस (Bambusiculmus Tirapensis) तथा बी. माकूमेंसिस (B. Makumensis) रखा गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • असम में माकुम कोयला क्षेत्र (Makum Coalfield) के तिरप खदान (Tirap mine) में पाए जाने के कारण इनका नाम बम्बूसिकुलम्स तिरापेंसिस तथा बी. माकूमेंसिस रखा गया है।
  • ये जीवाश्म लगभग 28 मिलियन साल पहले के अंतिम ओलिगोसिन काल से संबंधित हैं।
  • चीन के युन्नान प्रांत (Yunnan Province) में बाँस की सर्वाधिक विविधता पाई जाती है, लेकिन इस क्षेत्र का सबसे पुराना जीवाश्म 20 मिलियन वर्ष पुराना है।
    • इससे स्पष्ट होता है कि एशियाई बाँस भारत में पैदा हुआ था तथा उसके बाद चीन में लाया गया।
    • यह खोज इस सिद्धांत को और मज़बूत करती है कि एशिया में बाँस भारत से आया था न कि यूरोप से।
  • उन्हे बाँस के दो पत्तों के जीवाश्म भी प्राप्त हुए जो कि नई प्रजातियों बम्बूसियम डियोमैरेंस (Bambusium Deomarense) तथा बी.अरुणाचलेंस ( B. Arunachalense) से संबंधित हैं। ये लगभग 10 मिलियन वर्ष पुराने हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश के दोइमारा क्षेत्र (Doimara Region) में पाए जाने के कारण इनका नाम बम्बूसियम डियोमैरेंस तथा बी.अरुणाचलेंस रखा गया है।

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

नागरिकता संशोधन विधेयक पर विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक को एक बार पुन: सदन में पेश करने की बात कही गई है। इससे नागरिकता के मुद्दे पर बहस फिर से तेज़ हो गई है।

पृष्ठभूमि

  • जनवरी 2019 में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 लोकसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन राज्यसभा में इसे पेश नहीं किया गया था।
  • लोकसभा भंग होने के कारण यह विधेयक व्यपगत हो गया था। नई लोकसभा के गठन के बाद सरकार ने इसे पुन: सदन में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।
  • इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन प्रस्तावित है।

क्या है विधेयक के प्रावधान?

  • विधेयक में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बिना वैध दस्तावेज़ो के भारत में प्रवेश करने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा और इन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
  • इन अल्पसंख्यक समुदायों में छह गैर-मुस्लिम धर्मों अर्थात् हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई पंथ के अनुयायियों को शामिल किया गया है।
  • इन धर्मों के अवैध प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने से उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत निर्वासन का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है।
  • विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है।
  • विधेयक नागरिकता अधिनियम या किसी भी अन्य कानूनों के उल्लंघन के मामले में सरकार को भारत के विदेशी नागरिकता (Overseas Citizenship of India-OCI) कार्डधारकों के पंजीकरण को रद्द करने का भी प्रावधान करता है।

विधेयक के पक्ष में तर्क

  • सरकार का कहना है कि इन प्रवासियों ने ‘भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न’ का सामना किया है।
  • प्रस्तावित संशोधन देश की पश्चिमी सीमाओं से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आए उत्पीड़ित प्रवासियों को राहत प्रदान करेगा।
  • इन छह अल्पसंख्यक समुदायों सहित भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने में असफल तो रहते ही हैं और भारतीय मूल के समर्थन में साक्ष्य देने में भी असमर्थ रहते हैं।
  • इसलिये उन्हें देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिये आवेदन करना पड़ता है।
  • देशीयकरण की लंबी प्रक्रिया से इन तीन देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों को अवैध प्रवासी माना जाता है और भारतीय नागरिकों को मिलने वाले लाभों से इन्हें वंचित रहना पड़ता है।

विधेयक के विपक्ष में तर्क

  • आलोचकों का कहना है कि विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
  • विधेयक नागरिकता देने के लिये अवैध प्रवासियों के बीच धार्मिक आधार पर विभेद करता है। धर्म के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार की संवैधानिक गारंटी के विरुद्ध है।
  • अनुच्छेद-14 के तहत सुरक्षा नागरिकों और विदेशियों दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
  • प्रस्तावित विधेयक असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को बाधित करेगा, जो किसी भी धर्म के अवैध प्रवासी को एक पूर्व-निर्धारित समय-सीमा के आधार पर परिभाषित करता है।
  • इस नागरिकता विधेयक को 1985 के असम समझौते से पीछे हटने के एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।
  • समझौते में 24 मार्च, 1971 के बाद बिना वैध दस्तावेज़ो के असम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विदशी नागरिक माना गया है। इस मामले में यह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
  • अकेले असम में हाल ही में संपन्न NRC अभ्यास ने अंतिम सूची से 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया है।
  • OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान केंद्र सरकार के विवेकाधिकार का दायरा विस्तृत करता है। क्योंकि कानून के उल्लंघन में ह्त्या जैसे गंभीर अपराध के साथ यातायात नियमों का मामूली उल्लंघन भी शामिल है।

उच्चतम न्यायालय की क्या राय है?

  • उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में न्यायालय से पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015, विदेशी (संशोधन) आदेश, 2015 और नागरिकता अधिनियम के तहत 26 दिसंबर, 2016 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के माध्यम से धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पलायन कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मं के अवैध प्रवासियों के देशीयकरण की अनुमति देने वाले संशोधनों को अवैध और अमान्य घोषित करने का आग्रह किया गया था।
  • क्योंकि इन अधीनस्थ कानूनों द्वारा प्रदत्त छूट से बांग्लादेश से असम में अवैध प्रवासियों की अनियंत्रित आमद में कई गुना बढ़ोतरी हो जाएगी।
  • याचिका में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध आव्रजन के कारण वृहद् स्तर पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं।
  • 5 मार्च, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

गैर-सरकारी संगठनों की आवश्यकता

भूमिका

पिछली शताब्दी के 90 के दशक में यह विचार उभर कर आया कि सरकारी एजेंसियों के इतर कॉरपोरेट्स, सहकारी क्षेत्र और नागरिक साझे विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये साझेदारी कर सकते हैं। इसी विचार से गैर-सरकारी संगठन की अवधारणा का उद्भव हुआ।

NGOs की प्रासंगिकता

  • विकास के लिये प्रौद्योगिकी, पूंजी और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • लेकिन इन सबसे ऊपर न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से संसाधनों का उपयोग करने वाले लोगों की क्षमता और अभिप्रेरणा का प्रमुख स्थान है।
  • इस तरह की भागीदारी ही सतत् विकास का मूल तत्त्व है।
  • 90 के दशक में ग्रामीण विकास के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखे गए, विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के कल्याण हेतु आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलो में।
  • ग्रामीण समुदायों को स्थानीय परिस्थितियों और ज़रूरतों के लिये उपयुक्त सूक्ष्म योजनाओं को तैयार करने तथा लागू करने की आवश्यकता है।
  • संयुक्त वन प्रबंधन (1990), वाटरशेड विकास (1995), सहभागी सिंचाई प्रबंधन (1997) और स्वजलधारा (2003) इसके अच्छे उदाहरण हैं।

NGOs के समक्ष चुनौतियाँ

  • NGOs की शुरुआत के साथ ही समस्याओं का पहला दौर उभरना शुरू हो गया था। सरकार और कॉरपोरेट संस्थाओं के साथ इन संगठनों का संघर्ष होने लगा।
  • इनके समक्ष भ्रष्टाचार आम समस्या थी और नेतृत्व करने वाला भी कोई नहीं था।
  • प्राकृतिक संसाधनों के सहभागी प्रबंधन के लिये काम करने वाले लोग दसवीं पंचवर्षीय योजना के निर्माण के समय (वर्ष 2000-2001) सहभागी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किये जाने की उम्मीद कर रहे थे।
  • लेकिन इसमें 90 के दशक में हुई प्रगति के विपरीत रूख अपनाया जा रहा था।
  • तब हितधारकों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से संबंधित योजनाओं के निर्माण और संशोधन को निर्देशित करने वाले सिद्धांतों का मसौदा तैयार करने हेतु एक राष्ट्रीय विचार-विमर्श आयोजित करने का विचार आया।
  • इसी पृष्ठभूमि में 16 जनवरी, 2005 को अहमदाबाद के बोपल में राष्ट्रीय स्तर की बैठक हुई।

बोपल घोषणा

  • इस बैठक में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं तथा NGO समुदाय के लगभग 30 नेताओं ने भाग लिया। इस बैठक में निम्नलिखित प्रस्तावित आठ सिद्धांतों के आधार पर घोषणाएँ तैयार कीं गई-
    • समुदाय आधारित संगठनों (Community-Based Organisations-CBOs) की प्रमुखता।
    • समानता।
    • विकेंद्रीकरण
    • एक सहायक एजेंसी की आवश्यकता।
    • मॉनीटरिंग और मूल्यांकन।
    • प्रशिक्षण और सॉफ्टवेयर।
    • विकास की सतत् गति।
    • संगठनात्मक पुनर्गठन।
  • प्रत्येक सिद्धांत की केंद्र प्रायोजित योजनाओं और अन्य परियोजनाओं के उदाहरणों के साथ व्याख्या की गई थी।
  • नियोजन की व्यवस्था समाप्त करने के बाद यदि हम बड़ी संख्या में नई योजनाओं के निर्माण का निर्णय लेते हैं, तो हमें इन सिद्धांतों को पुन: स्थापित करना होगा। तभी गैर-सरकारी संगठन अपेक्षित परिणाम दे पाएंगे।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

बेहतर आवास के लिये प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा शहरों एवं नगरों की स्थिति और सभी को पर्याप्त आश्रय के मूल अधिकार को दर्शाने के लिये हर साल अक्तूबर माह के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस (World Habitat Day) के रूप में आयोजित करने हेतु नामित किया गया है। वर्ष 2019 में इसे 7 अक्तूबर को मनाया गया जिसकी थीम थी - “कचरे को धन में बदलने हेतु एक अभिनव उपकरण के रूप में सीमांत प्रौद्योगिकी”(Frontier Technologies as an innovative tool to transform waste to wealth)।

World Habitat Day 2019

पृष्ठभूमि:

  • विश्व पर्यावास दिवस की घोषणा पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1985 में की गई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अक्तूबर महीने के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस के रूप में घोषित किया है।
  • इसे पहली बार वर्ष 1986 में मनाया गया था।

संदर्भ:

  • वैश्विक स्तर पर आवास संकट की स्थिति विद्यमान है।
    • दुनिया भर में लगभग 1.6 बिलियन लोग घटिया आवासों में रह रहे हैं और लगभग 100 मिलियन लोग बेघर हैं।
    • यह इंगित करता है कि कुछ गंभीर कार्रवाइयाँ अत्यावश्यक हैं अन्यथा पूरी दुनिया में झुग्गी निवासियों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहेगी तथा स्थिति और भी अधिक चिंताजनक हो जाएगी।
  • इस आयोजन के पीछे पर्याप्त आश्रय, पानी, स्वच्छता, स्वास्थ्य, अन्य बुनियादी सेवाएँ, अच्छी शिक्षा तक आसान पहुँच, रोजगार की संभावनाएँ आदि उपलब्ध कराना शामिल है।
  • इसके साथ ही बेघर लोगों की परेशानियों, तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण के मुद्दों और इसके आसपास के वातावरण तथा मानव पर इसके प्रभावों का आकलन करने के लिये आवास दिवस मनाया जाता है।

उद्देश्य:

  • पूरी दुनिया में बेहतर आवास की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए सहयोग करना।
  • हर जगह सस्ता और पर्याप्त आवास की प्राथमिकता साझा करना।
  • घटिया आवास बनाने वाले व्यक्ति की नीतियों और दृष्टिकोण सहित सिस्टम में सकारात्मक बदलाव लाने की पहल करना।
  • उचित आश्रय हेतु बुनियादी मानव अधिकारों को ध्यान में रखते हुए राज्यों और कस्बों में इसे सार्थक बनाना।
  • भावी पीढ़ी के आवास हेतु साझा जिम्मेदारी के संदर्भ में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाना।

विश्व पर्यावास दिवस 2019

  • इस वर्ष के विश्व पर्यावास दिवस का ध्येय सतत विकास लक्ष्य 11: समावेशी, सुरक्षित, लचीला और स्थायी शहर की स्थिति प्राप्त करने हेतु स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन के लिये अभिनव सीमांत प्रौद्योगिकियों (Innovative Frontier Technologies) के योगदान को बढ़ावा देना है।
  • ठोस कचरे से परे जाकर इसमें मानव गतिविधि (ठोस, तरल, घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक) द्वारा उत्पादित सभी अपशिष्ट शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण पर लगातार विनाशकारी रूप से प्रभावी हैं।
  • इस वर्ष विश्व पर्यावास दिवस का वैश्विक समारोह 7 अक्तूबर को मैक्सिको सिटी में आयोजित किया गया। साथ ही इस समारोह को दुनिया भर में कई स्थानों पर आयोजित किया गया।

प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • विश्व आर्थिक और सामाजिक सर्वेक्षण (World Economic and Social Survey)- 2018 के अनुसार, सीमांत प्रौद्योगिकियाँ लोगों के काम करने और रहने के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा जलवायु परिवर्तन के समाधान के प्रयासों में तेज़ी लाने की काफी संभावनाएँ रखती हैं।
  • सीमांत प्रौद्योगिकियाँ, जैसे- स्वचालन (Automation), रोबोटिक्स (Robotics), इलेक्ट्रिक वाहन, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ, जैव-प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय क्षेत्रों में बेहतर बदलाव कर सकती हैं।
  • ये अपशिष्ट प्रबंधन सहित रोजमर्रा की समस्याओं के समाधान हेतु बेहतर, सस्ता, तीव्र, और आसान विकल्प साबित हो सकते हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (07 October)

1. शेख हसीना की भारत यात्रा

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की आधिकारिक भारत यात्रा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर नई दिल्‍ली में वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये संयुक्‍त रूप से तीन परियोजनाओं की शुरुआत की।

  1. बांग्‍लादेश से LPG के आयात से संबंधित परियोजना। आयातित LPG का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में वितरण किया जाएगा।
  2. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रामकृष्‍ण मिशन, वि‍वेकानंद भवन का निर्माण। विवेकानंद भवन में 100 से अधिक छात्रों के रहने की व्‍यवस्‍था होगी।
  3. बांग्‍लादेश-भारत पेशेवर कौशल विकास संस्‍थान की स्‍थापना। यह बांग्लादेश के औद्योगिक विकास के लिये कुशल मानव संसाधन और टेक्निशियन तैयार करेगा।

बांग्लादेश से मधुर संबंध हैं भारत के

  • दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच हुई वार्ता के बाद विभिन्‍न क्षेत्रों से संबंधित सात समझौतों पर भी हस्‍ताक्षर किये गए।
  • ये समझौते जल संसाधन, युवा मामलों, संस्कृति, शिक्षा और बांग्लादेश में संयुक्त तटीय निगरानी राडार प्रणाली स्थापित करने से संबंधित हैं।
  • इनके साथ एक महत्त्वपूर्ण समझौता चटगाँव और मोंगला बंदरगाहों के उपयोग के बारे में मानक संचालन प्रक्रिया को लेकर हुआ। इससे भारत, बंगलादेश की फेनी नदी से 1.82 क्यूसेक पानी त्रिपुरा में पेयजल परियोजना के लिये ले सकेगा।
  • पिछले एक साल में दोनों देशों ने इन तीन परियोजनाओं सहित कुल एक दर्जन संयुक्त परियोजनाएंँ शुरू की हैं।
  • विदित हो कि दोनों देशों के बीच काफी लंबे समय से नदियों से संबंधित विवाद लंबित हैं, जिसमें खास तौर पर तीस्ता नदी के जल बँटवारे का मुद्दा शामिल है।
  • इसके अलावा दोनों देशों के बीच रोहिंग्या प्रवासियों का मुद्दा भी एक बड़ी समस्या है।
  • बांग्लादेश की प्रधानमंत्री चार दिन की भारत यात्रा पर थीं। वे विश्‍व आर्थिक फोरम द्वारा आयोजित भारत आर्थिक शिखर सम्‍मेलन में मुख्‍य अतिथि थीं।

2. CSIR ने बनाए कम ध्वनि प्रदूषण करने वाले पटाखे

  • पटाखों से होने वाले प्रदूषण और स्‍वास्‍थ्‍य हानि के मद्देनज़र वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)-NEERI ने कम-से-कम ध्‍वनि प्रदूषण वाले पटाखे बनाने की एक नई विधि विकसित की है।
  • अब इस प्रकार के कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे और फुलझड़ि‍याँ बाज़ार में विक्रेताओं और उपभोक्‍ताओं के लिये उपलब्‍ध हैं।
  • सर्वोच्च न्‍यायालय के सुझाव के आधार पर नए किस्‍म के ये ग्रीन क्रैकर्स तैयार किये गए हैं।

ग्रीन क्रैकर्स

  • ये ग्रीन क्रैकर्स न सिर्फ कम आवाज़ करेंगे बल्कि प्रदूषण भी कम करेंगे।
  • ये पटाखे पहले इस्तेमाल हो रहे पटाखों की तरह ही होंगे, लेकिन इनके फटने से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
  • इन ग्रीन क्रैकर्स से प्रदूषण में 30 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी आएगी, साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी कम होगा।
  • सरकार ने ग्रीन क्रैकर्स बनाने के लिये 230 कंपनियों के साथ करार किया हैं और ये कंपनियाँ जल्द ही बाज़ार में ग्रीन क्रैकर्स बेचेंगी।
  • इन पटाखों पर ग्रीन स्टीकर और बारकोड भी होगा- स्टीकर से इस बात की पुष्टि होगी कि ये ग्रीन क्रैकर्स हैं।
  • बारकोड को स्कैन कर यह पता लगाया जा सकता है कि ये पटाखे कहाँ बने हैं, निर्माता कौन है तथा पटाखों में किन केमिकल्स का इस्तेमाल किया गया है।

3. FSSAI के ईट राइट इंडिया अभियान में ट्रांस-फैट फ्री’ लोगो जारी

  • केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने नई दिल्‍ली में 8वें अंतर्राष्‍ट्रीय शेफ सम्‍मेलन (आईसीसी VII) में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) का ‘ट्रांस-फैट फ्री’ लोगो जारी किया।
  • यह ट्रांस फैट के खिलाफ अभियान का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव होने के साथ ही FSSAI के ईट राइट डंडिया के जन अभियान को नई गति देगा।
  • ईट राइट इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष 2022 तक भारत के लोगों के लिये एक ऐसे न्यू इंडिया के निर्माण के सपने का साकार करना है जिसमें सभी के लिये स्‍वास्‍थ्‍य, सामाजिक सुरक्षा और पोषण युक्‍त आहार उपलब्‍ध हो सके।
  • ईट राइट इंडिया अभियान के तहत सरकार द्वारा पोषक और स्वस्थ खाने की आदतों को प्राथमिकता दी गई है।
  • गौरतलब है कि पोषण माह सितंबर में मनाया गया था, जिसमें पोषक आहार के बारे में जागरूकता लाने के लिये कई मंत्रालय और हितधारक एक साथ आगे आए थे।

क्या है ट्रांस फैट?

  • ट्रांस फैट वसा का एक खराब रूप है जो स्‍वास्‍थ्‍य के लिये हानिकारक है। इसे ट्रांस फैटी एसिड (TFA) के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक खाद्य पदार्थों में से ट्रांस फैट को पूरी तरह खत्‍म करने का लक्ष्‍य रखा है।
  • इसके लिये FSSAI ने वर्ष 2022 तक औद्योगिक खाद्य उत्‍पादों में ट्रांस फैट की मात्रा को चरणबद्ध तरीके से घटाते हुए 2 प्रतिशत से कम तक ले आने का लक्ष्‍य रखा है।
  • मई 2018 में WHO ने वर्ष 2023 तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये एक व्यापक योजना REPLACE अभियान की शुरुआत की थी-
    • RE- (Review): औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस वसा के आहार स्रोतों और आवश्यक नीति परिवर्तन हेतु परिदृश्य की समीक्षा।
    • P- (Promote): स्वस्थ वसा और तेलों के माध्यम से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के प्रतिस्थापन को बढ़ावा देना।
    • L- (Legislate): औद्योगिक तौर पर उत्पादित ट्रांसफैट को खत्म करने के लिये कानून या विनियामक कार्यवाही को लागू करना।
    • A- (Assess): खाद्य आपूर्ति में ट्रांस फैट सामग्री तथा लोगों द्वारा ट्रांस फैट के उपभोग का आकलन और निगरानी करना।
    • C- (Create): नीति निर्माताओं, उत्पादकों, आपूर्तिकर्त्ताओं और जनता के बीच ट्रांस फैट के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना।
    • E- (Enforce): नीतियों और विनियमों के अनुपालन को लागू करना।
  • WHO द्वारा तय पैमानों के अनुसार, Total Energy Intake में ट्रांस फैट्स की मात्रा 1 फीसदी से भी कम होनी चाहिये।

FSSAI के बारे में

  • FSSAI का पूरा नाम Food Safety and Standards Authority of India है, जिसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के नाम से जाना जाता है।
  • केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत FSSAI का गठन किया। इसे 1 अगस्‍त, 2011 को केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा और मानक विनिमय (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) के तहत अधिसूचित किया गया।
  • यह भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है तथा इसका मुख्‍यालय दि‍ल्ली में है।
  • यह राज्‍यों के खाद्य सुरक्षा अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों को लागू करने का काम करता है।
  • FSSAI मानव उपभोग के लिये पौष्टिक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात की सुरक्षित व्यवस्था सुनिश्चित करने का काम करता है।
  • इसके अलावा यह देश के सभी राज्‍यों, ज़िला एवं ग्राम पंचायत स्‍तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के निर्धारित मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है।
  • यह समय-समय पर खुदरा एवं थोक खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की भी जाँच करता है।


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