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शासन व्यवस्था

देश देशांतर : आयुष्मान भारत

  • 22 Aug 2018
  • 24 min read

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान शुरू करने का ऐलान किया। इसे 25 सितंबर को दीनदयाल उपाध्याय जयंती के मौके पर देश भर में लागू किया जाएगा। इसके तहत करीब 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए प्रति परिवार सालाना स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा। मोदी सरकार ने इस महत्त्वाकांक्षी योजना के लिये 10 हज़ार करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। इसे दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी हेल्थकेयर बीमा कार्यक्रम बताया जा रहा है। इस योजना के तहत गरीब लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधाएँ मिलेंगी। किसी भी व्यक्ति को यह सुविधा पाने में कठिनाई न हो, इसलिये इसमें टेक्नोलॉजी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में रोगी को अस्‍पताल में दाखिल करने का खर्च लगभग 300 प्रतिशत बढ़ा है।

पृष्ठभूमि 

  • श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने 2008 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) लॉन्च किया। इसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले पाँच सदस्‍यों वाले परिवारों तथा असंगठित श्रमिकों की 11 अन्‍य परिभाषित श्रेणियों के लिये प्रतिवर्ष 30000 रुपए के लाभ कवरेज के साथ कैशलेस स्‍वास्‍थ्‍य बीमा का प्रावधान किया गया है।
  • योजना को स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली से एकीकृत करने तथा भारत सरकार के व्‍यापक स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा विज़न का हिस्‍सा बनाने के लिये 1 अप्रैल, 2015 से स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय को हस्‍तांतरित कर दिया गया। 
  • 2016-17 के दौरान देश के 278 ज़िलों में 3.63 करोड़ परिवारों को आरएसबीवाई के अंतर्गत कवर किया गया और ये परिवार पैनल की सूची में शामिल 8,697 अस्‍पतालों में इलाज संबंधी सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। 
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (NHPS) इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए लाई गई है कि विभिन्‍न केंद्रीय मंत्रालय तथा राज्‍य/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों ने अपने लाभार्थियों के लिये स्‍वास्‍थ्‍य बीमा/सुरक्षा योजनाएँ लागू की हैं। इन योजनाओं को समेकित करने की महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकता है ताकि समुचित सक्षमता, पहुँच तथा कवरेज का लक्ष्‍य हासिल किया जा सके।

क्या है इस बड़ी योजना का दायरा?

  • इस योजना के दायरे में 50 से 55 करोड़ से अधिक लोग आएंगे| अगर 55 करोड़ का आकार देखा जाए तो यह भारत और चीन के बाद विश्व के तीसरे सबसे बड़े देश के बराबर होगा| अमेरिका की जनसंख्या 32 करोड़ है| प्रधानमंत्री ने कहा है कि कनाडा, मेक्सिको और यूरोपीय देशों को मिला लिया जाए तो तब यह जनसंख्या 50 करोड़ के बराबर होगी|
  • यह स्वास्थ्य खर्च के भार से 50 करोड़ लोगों (10 करोड़ परिवारों) को सुरक्षा प्रदान करेगा। यह कार्यक्रम  देश के निर्धनतम लोगों की सहायता करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराता है। इससे देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को लाभ मिलेगा। यह योजना अस्पताल में भर्ती होने के द्वितीयक और तृतीयक स्तर को कवर करेगी। 
  • पाँच लाख रुपए के कवरेज वाली इस योजना में परिवार के आकार और उम्र की कोई सीमा नहीं रहेगी| इलाज के लिये अस्पताल में दाखिल होने के वक्त यह योजना गरीब और कमज़ोर परिवारों की मदद करेगी। 
  • सामाजिक-आर्थिक-जातिगत जनगणना के आँकड़ों के आधार पर समाज की गरीब और असहाय जनसंख्या को आयुष्मान भारत-एनएचपीएम योजना से वित्तीय मदद मिलेगी। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ (RSBY) तथा वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना (SCHIS) को NHPM में शामिल कर दिया जाएगा।
  • सरकार द्वारा वित्तपोषित यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना होगी। लोग सरकारी और अधिसूचित निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे। सभी सरकारी अस्पतालों को इस योजना में शामिल किया गया है। निजी अस्पतालों की ऑनलाइन सूची बनाई जा रही है।
  • इस योजना के अंतर्गत कैशलेस, सीमलेस (seamless) और पेपरलेस टेक्नोलॉजी विकसित की गई है| योजना के तहत सभी पात्र लाभार्थियों को स्वास्थ्य सुविधाएँ दी जाएंगी|
  • इस योजना में मुख्य रूप से गंभीर बीमारियों पर फोकस किया गया है जिसे मेडिकल भाषा में सेकेंडरी तथा टरशियरी हॉस्पिटलाइजेशन कहते हैं| यह योजना हॉस्पिटलाइज केयर के लिये है, ओपीडी इसमें शामिल नहीं है| अर्थात् मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होना ज़रूरी होगा| इसका खर्च केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर उठाएंगे|
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कोई व्‍यक्ति‍(महिलाएँ, बच्‍चे तथा वृद्धजन) छूट न जाए, इसलिये योजना में परिवार के आकार और आयु पर किसी तरह की सीमा नहीं होगी।

10 करोड़ परिवारों की पात्रता क्या होगी?

  • एबी-एनएचपीएम पात्रता आधारित योजना होगी और पात्रता एसईसीसी डाटा बेस में वंचन मानक के आधार पर तय की जाएगी। इस योजना के लाभार्थियों के चयन के लिये एक अत्यंत पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई है| 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्‍न श्रेणियों में ऐसे परिवार शामिल हैं जिनके पास कच्‍ची दीवार और कच्‍ची छत के साथ एक कमरा हो| 
  • ऐसे परिवार जिनमें 16 से 59 वर्ष की आयु के बीच का कोई वयस्क सदस्‍य नहीं है| 
  • ऐसे परिवार जिसकी मुखिया महिला है और जिसमें 16 से 59 आयु के बीच का कोई वयस्क सदस्य नहीं है| 
  • ऐसा परिवार जिसमें दिव्‍यांग सदस्‍य है और कोई शारीरिक रूप से सक्षम वयस्क सदस्‍य नहीं है|
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवार| 
  • मानवीय आकस्मिक मज़दूरी से आय का बड़ा हिस्‍सा कमाने वाले भूमिहीन परिवार|
  • ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे परिवार स्‍वत: शामिल किये गए हैं जिनके रहने के लिये छत नहीं है, निराश्रित, खैरात पर जीवन यापन करने वाले, मैला ढोने वाले परिवार, आदिम जनजाति समूह, कानूनी रूप से मुक्‍त किये गए बंधुआ मज़दूर| 
  • लाभार्थी, पैनल में शामिल सरकारी और निजी दोनों अस्‍पतालों में लाभ ले सकेंगे। इसके लिये लाभार्थी पात्रता तंत्र (लाभार्थी कार्ड) विकसित किया गया है जो टेक्नोलॉजी पर आधारित है|
  • सभी पात्र लाभार्थियों की सूची जल्द ही एक वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाएगी| पात्रता संबंधी सभी विवरण देश भर में कार्यरत सभी 3 लाख कॉमन सर्विस सेंटर पर उपलब्ध होगा| इसके लिये एक हेल्पलाइन नंबर 1475 तैयार की गई है जहाँ कॉल करने पर आपकी पात्रता संबंधी जानकारी मिल जाएगी|

अस्पताल जिन्हें योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है

  • एबी-एनएचपीएम लागू करने वाले राज्‍यों के सभी सरकारी अस्‍पतालों को योजना के लिये पैनल में शामिल समझा जाएगा।
  • कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम (ESIC) से जुड़े अस्‍पतालों को भी बिस्तर दाखिला अनुपात मानक के आधार पर पैनल में शामिल किया जा सकता है। 
  • निजी अस्‍पताल परिभाषित मानक के आधार पर ऑनलाइन तरीके से पैनल में शामिल किये जाएंगे।

पैकेज (इलाज) तथा पैकेज दर क्या होगी?

  • लागत को नियंत्रित करने के लिये ट्रीटमेंट पैकेज दर (सरकार द्वारा अग्रिम रूप में परिभाषित) के आधार पर इलाज के लिये भुगतान किया जाएगा। पैकेज दर में इलाज से संबंधित सभी लागत शामिल होगी।
  • लाभार्थियों के लिये यह कैशलेस, पेपरलेस लेन-देन होगा। राज्‍य विशेष की आवश्‍यकताओं को ध्‍यान में रखते हुए राज्‍यों के पास इन दरों में सीमित रूप से संशोधन का लचीलापन होगा।
  • योजना के अंतर्गत 1350 पैकेज स्वीकृत किये गए हैं| 250 पैकेज (सर्वाधिक) जनरल सर्जरी के लिये स्वीकृत किये गए हैं| नीति आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, गरीब परिवार जिस पर सबसे अधिक खर्च करता है वह है जनरल सर्जरी प्रोसीजर| यही कारण है कि जनरल सर्जरी को अधिक महत्त्व दिया गया है|
  • दूसरे नंबर पर कैंसर सर्जरी है| इसके लिये बेहतर इलाज अर्थात् ऑन्कोलॉजी (जो कि एक सुविधा है) के अंतर्गत 112 पैकेज स्वीकृत किये गए हैं| सर्विक्स या ब्रेस्ट कैंसर, ट्यूमर, चाइल्ड ल्यूकीमिया के लिये अलग-अलग पैकेज स्वीकृत किये गए हैं| तीसरे तथा चौथे नंबर पर यूरोलोजी तथा ओर्थोपैडिक को रखा गया है|
  • इस मिशन के अंतर्गत सबसे अधिक पैकेज दर बोन ट्यूमर के लिये रखी गई है जो 2.50 लाख रुपए है|

राज्यों की भूमिका क्या होगी?

  • यह योजना सहकारी संघवाद का एक बेहतर नमूना है| इसमें केंद्र तथा राज्य दोनों की भागीदारी है| इसका औसत 60:40 है, जबकि उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों जैसे- जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड जैसे राज्यों में केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 90:10 होगी| इस योजना के क्रियान्वयन में राज्यों की पूरी भागीदारी रहेगी| सभी राज्यों को इस योजना का क्रियान्वयन करना होगा|
  •  इसमें वर्तमान स्‍वास्‍थ्‍य बीमा/केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों तथा राज्‍य सरकारों (उनकी अपनी लागत पर) की विभिन्‍न सुरक्षा योजनाओं के साथ उचित एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये राज्‍य सरकारों को अनुप्रस्‍थ और लंबवत दोनों रूप में इस योजना  के विस्‍तार की अनुमति होगी।
  • योजना को लागू करने के तौर-तरीकों को चुनने में राज्‍य स्‍वतंत्र होंगे। राज्‍य, बीमा कंपनी के माध्‍यम से या प्रत्‍यक्ष रूप से ट्रस्‍ट/सोसायटी के माध्‍यम से या मिले-जुले रूप में योजना लागू कर सकेंगे।
  • योजना को लागू करने के लिये राज्‍यों को राज्‍य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) की ज़रूरत होगी। योजना को लागू करने के लिये राज्‍यों के पास SHA रूप में वर्तमान ट्रस्‍ट/सोसायटी/अलाभकारी कंपनी/राज्‍य नोडल एजेंसी के उपयोग करने का विकल्‍प होगा या नया ट्रस्ट/सोसायटी/अलाभकारी कंपनी/राज्य स्वास्थ्य एजेंसी बनाने का विकल्प होगा| 
  • नीति आयोग के साथ साझेदारी में एक मजबूत, प्रमापी, आरोही तथा अंतर संचालन आईटी प्‍लेटफार्म चालू किया जाएगा जिसमें पेपरलेस एवं कैशलेस लेन-देन होगा। इससे संभावित दुरुपयोग की पहचान/धोखेबाजी और दुरुपयोग रोकने में मदद मिलेगी। 
  • इसमें सुपरिभाषि‍त शिकायत  समाधान व्‍यवस्‍था होगी। इसके अतिरिक्‍त नैतिक खतरों (दुरुपयोग की संभावना) के साथ इलाज पूर्व अधिकार को अनिवार्य बनाया गया है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह योजना वांछित लाभार्थियों तथा अन्य हितधारकों तक पहुँचे,एक व्‍यापक मीडिया तथा आउटरिच रणनीति विकसित की गई है,जिसमें अन्‍य बातों के अलावा प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक  मीडिया, सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म, पारंपरिक मीडिया, आईईसी सामग्री तथा आउटडोर गतिविधियाँ शामिल हैं।

आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन परिषद

  • नीति-निर्देश देने तथा केंद्र और राज्‍यों के बीच समन्‍वय में तेज़ी लाने के लिये शीर्ष स्‍तर पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्‍याण मंत्री की अध्‍यक्षता में आयुष्‍मान भारत राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा मिशन परिषद (AB-NHPMC) गठित करने का प्रस्‍ताव है।
  • इसकी अध्‍यक्षता संयुक्‍त रूप से सचिव (स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण) तथा सदस्‍य (स्‍वास्‍थ्‍य), नीति आयोग द्वारा की जाएगी।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय के वित्‍तीय सलाहकार,स्वास्थ्य मंत्रालय, अपर सचिव तथा मिशन निदेशक, आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन के सीइओ सदस्य सचिव होंगे|
  • आवश्यकता के अनुसार राज्यों के स्वास्थ्य सचिव भी इसके सदस्य हो सकते हैं| संचालन स्तर पर योजना के प्रबंधन के लिये सोसायटी के रूप में आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन एजेंसी (AB-NHPMA) स्थापित करने का प्रस्ताव है| AB-NHPMA की अगुवाई पूर्णकालिक सीईओ करेंगे जो सचिव/अपर सचिव भारत सरकार के स्‍तर के होंगे।

टीम दृष्टि इनपुट

योजना के क्रियान्वयन में क्या हैं चुनौतियाँ?

  • यह एक बड़ा सवाल है कि योजना के अंतर्गत शामिल किये गए लोग भारी तादाद में जब अस्पतालों में इलाज के लिये पहुँचेंगे तो ये अस्पताल कैसे मैनेज करेंगे? अस्पतालों के निर्माण पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाले अस्पताल क्या अपने मुनाफे को कम करने के लिये तैयार होंगे? क्या गरीब और असहाय रोगियों को वे सभी सुविधाएँ उपलब्ध हो पाएंगी जिसकी कल्पना इस योजना में की गई है? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर विचार किया जाना ज़रूरी है|

तय दर पर निजी अस्पताल तैयार नहीं

  • आयुष्मान की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि निजी अस्पताल सरकार की ओर से विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिये तय की गई दरों पर सहमत नहीं हैं| सरकार ने अनुमान के आधार पर दरें तय की हैं, जिन पर निजी अस्पताल इलाज करने के लिये तैयार नहीं हैं| 
  • सरकार का कहना है कि निजी अस्पताल एक साल तक इन दरों पर इलाज करें, एक साल बाद इस पर अध्ययन कर इन दरों को संशोधित कर दिया जाएगा| सरकार द्वारा यह दरें तकनीकी ढंग से तय की जानी चाहिये अन्यथा यह योजना भी अन्य योजनाओं की तरह दम तोड़ देगी|

स्वास्थ्य सुविधा ढाँचे का अभाव 

  • जितने समय में जनसंख्या सात गुनी हो गई है उस रफ्तार से अस्पताल दोगुने भी नहीं हो पाए| एक अनुमान के मुताबिक, देश में छोटे-बड़े दोनों को मिलाकर करीब 60,000 - 70,000 अस्पताल हैं, जिनमें 60 फीसदी ऐसे हैं जहाँ 30 या उससे कम बेड हैं|
  • NSS की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में 1/3 बेड खाली रहते हैं| इनका समुचित उपयोग किया जा सकता है| योजना के लिये इनका उपयोग मामूली लागत पर किया जा सकता है|
  • इसके लिये रेगुलेशन बनाए जाने की ज़रुरत है| सभी अस्पतालों में आयुष्मान भारत के लिये बेड की संख्या तय करनी पड़ेगी| अगर ऐसा नहीं हो पाया तो इस महत्त्वाकांक्षी योजना का क्रियान्वयन एक बहुत बड़ी चुनौती होगी|
  • भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी के 1 फीसदी के बराबर खर्च किया जाता है, जिसे बढ़ाकर 2.5 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है| आयुष्मान भारत स्कीम की वज़ह से देश में बड़ी मांग उत्पन्न होगी ऐसे में निजी अस्पतालों के विस्तार के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को सुदृढ़ करने की भी चुनौती होगी|
  • इतनी बड़ी आबादी के इलाज के लिये डॉक्टर्स, नर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ की उपलब्धता और मांग में बड़ा अंतर भी एक बड़ी चुनौती है|

बीमा लागत को कम रखने की चुनौती 

  • 50 करोड़ लोगों को बीमा मुहैया कराने के लिये सरकार के सामने बड़ी चुनौती, लागत को कम रखने की होगी| लागत बढऩे से बीमा कंपनियों का प्रीमियम बढ़ेगा जिसका असर अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर ही पड़ेगा|
  • निजी क्षेत्र में इलाज की दरों के कोई तय मानक नहीं हैं और सरकारी अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधा होती तो बीमा की ज़रूरत क्यों पड़ती|

लाभार्थी को लाभ मिलना भी चुनौती होगी 

  • लाभार्थी को इस योजना का लाभ मिले यह एक बड़ी चुनौती है| इस योजना के संबंध तमाम फेक वेबसाइट सक्रिय हैं जो आम लोगों में भ्रम पैदा कर रही हैं| कुछ वेबसाइट के नाम हैं aayushmanbharat.net, ayushmanbharat.co.in, pradhanmantriyojna.in आदि| 
  • ये सभी वेबसाइट्स गलत सूचनाएँ दे रही हैं| इनके द्वारा बताया जा रहा है कि यह नामांकन आधारित योजना है| इसके लिये जनता से रुपए लेकर नामांकन का दावा किया जा रहा है| जबकि यह नामांकन आधारित योजना नहीं है| सबसे पहले जनता को इस संबंध में जागरूक करने की आवश्यकता है कि यह सामाजिक, आर्थिक, जातिगत जनगणना पर आधारित 10 करोड़ परिवारों की सूची तैयार की गई है जिसका सत्यापन सरकार द्वारा कर लिया गया है और उन्हें कार्ड देने की प्रक्रिया जारी है और ये लाभार्थी इन्हीं परिवारों के सदस्य हैं|
  • इन फेक वेबसाइट्स पर लगाम लगाना भी एक चुनौती है| हालाँकि गृह मंत्रालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा है कि इन तमाम वेबसाइट्स को ट्रैक कर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए|

निष्कर्ष 

  • यह मुहिम सिर्फ भारत सरकार या राज्य सरकारों की नहीं है| यह उनके लिये है जिनको इसकी ज़रुरत है| इसमें सबसे बड़ी भूमिका आम नागरिक के साथ साथ सभी अस्पतालों, डाक्टरों, नर्सों तथा पैरा मेडिकल स्टाफ की भी है जिनके सहयोग से गरीब जनता को उसका हक़ मिल पाएगा|
  • देश में सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाओं को बहुत अच्छा नहीं माना जाता और इनमें उत्तरदायित्व की कमी जैसे कई नकारात्मक पहलू उजागर होते हैं। साथ ही, सभी देशवासियों की पहुँच अच्छे हॉस्पिटलों तक होना अब भी सपना जैसा है।
  • स्पष्ट रूप से जहाँ इस कार्यक्रम के तहत बहुत से लक्ष्यों को प्राप्त करने की रणनीति बनाई जा रही है वहीं, कई पक्ष ऐसे भी हैं जिनके विषय में और अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
  • सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दबाव अधिक है| ऐसे में निजी अस्पतालों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा| सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट को बढ़ाकर स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचे पर काम करने की आवश्यकता है| लाभार्थियों को इस योजना का लाभ तभी मिल सकता है जब प्राथमिक उपचार केंद्र मज़बूत हों और सरकार सभी पक्षों की भागीदारी सुनिश्चित करे|
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