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भारतीय राजव्यवस्था

द बिग पिक्चर - अनुच्छेद 370

  • 22 Aug 2018
  • 8 min read

संदर्भ

चूँकि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी गठबंधन टूट गया है, ऐसे में इस बात पर बहस हो रही है कि अनुच्छेद 370 जो राज्य को विशेष दर्जा देता है, को रद्द कर दिया जाना चाहिये या नहीं। जब केंद्र में सरकार बनी थी तब वादा किया गया था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है और समय के साथ खत्म हो जाएगा, भ्रम पैदा करता है। अस्थायी प्रावधान के तौर पर संविधान में शामिल अनुच्छेद 370 को धीरे-धीरे रद्द कर दिया जाना चाहिये। ऐसा लगभग 70 वर्षों में नहीं हो पाया है।

पृष्ठभूमि

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को दिये गए विशेष दर्जे से संबंधित है।
  • यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।
  • इस अनुच्छेद में उचित बदलाव हुए हैं और यह भारतीय संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आया है, जैसा कि इसके मूल स्वरूप में किया गया था।
  • यह राज्य को स्वायत्तता का दर्जा प्रदान करता है और राज्य को अपने "स्थायी निवासियों" को कुछ विशेष विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
  • इसके कुछ प्रमुख निहितार्थ इस प्रकार सूचीबद्ध किये जा सकते हैं:
    • आपातकालीन प्रावधान राज्य की सहमति के बिना "आंतरिक अशांति" के आधार पर राज्य पर लागू नहीं होते हैं|
    • राज्य के नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
    • राज्य का अपना संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।
    • राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
    • भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।
    • राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|

अनुच्छेद 35A

  • अनुच्छेद 35A  जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के "स्थायी निवासियों" को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
  • इस अनुच्छेद का आशय जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था। इस तथ्य के बावजूद कि जम्मू और लद्दाख के हिंदू और बौद्ध धर्म के बहुसंख्य लोगों को कश्मीर में रहने की इज़ाज़त है, इसकी जनसांख्यिकीय संरचना कामोवेश वही है।
  • अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की गई है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है। इस परिदृश्य में  इस अधिनियम को रद्द करना मुश्किल है।

अनुच्छेद पर आपत्तियाँ

  • यह अनुच्छेद भारतीय संसद की शक्तियों को अपने राज्यों के लिये कानून बनाने हेतु परिशुद्ध करता है।
  • अनुच्छेद 368 में निर्धारित संशोधन प्रक्रिया के अनुसार इस अनुच्छेद को संविधान में नहीं जोड़ा गया है। इसके बजाय राष्ट्रपति के आदेश द्वारा इसे संविधान में सन्निवेश (inserted) किया गया था।
  • यह अनुच्छेद मैला ढोने वाले श्रमिकों, पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों तथा साथ ही उन महिलाओं के कुछ मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है जो राज्य के बाहर शादी करती हैं|
  • राज्य सरकार की अनुचित आधार पर भारत सरकार के नागरिकों के बीच भेदभाव करने की भी आलोचना की जाती है।

अनुच्छेद 370 और 35A को प्रतिसंहरण (रद्द करने) से संबंधित मुद्दे

  • वर्तमान में  स्थायी बंदोबस्त का अधिकार कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता है। इसलिये इससे छेड़छाड़ करने का कोई भी प्रयास भारी प्रतिक्षेप (प्रतिक्रिया) को आकर्षित कर सकता है।
  • यदि अनुच्छेद 35A को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगा। उस स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।
  • यह भी तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दी गई कई प्रकार की स्वायत्तता वैसे भी कम हो गई है और संघ के अधिकांश कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू होते हैं।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • अनुच्छेद 370 को एकतरफा निरस्त नहीं किया जा सकता है। यह ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र इस बारे में सर्वसम्मति से आगे आएँ। यह कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देकर और आत्मविश्वास के बल पर ही संभव हो सकता है।
  • कश्मीर के युवाओं तथा निवासियों  को इस तथ्य से आश्वस्त होना चाहिये कि कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है।
  • राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को सुदृढ़ कर शांति बहाली का प्रयास किया जाना चाहिये ताकि अनुच्छेद 370 के बारे में एक सुखद माहौल में बातचीत शुरू की जा सके।
  • शांति स्थापना के उपायों के तहत सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ के माध्यम से नफरत फैलाने वाले लोगों को रोकने की ज़रूरत है ताकि भारतीयों में कश्मीर के लोगों के प्रति स्वीकारोक्ति की भावना पनप सके|  
  • राज्य सरकार को आम सहमति से लोकतंत्र का मार्ग भी अपनाना चाहिये। यह महत्त्वपूर्ण है कि इसमें निर्णय लेने के विकल्पों की विस्तृत श्रृंखला शामिल हो और उन्हें ध्यान में रखा जाए|
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