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डेली न्यूज़

  • 03 Nov, 2020
  • 36 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भीम-UPI के माध्यम से डिजिटल लेन-देन में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली

मेन्स के लिये:

भारत में डिजिटल लेन-देन का बढ़ता दायरा 

चर्चा में क्यों?

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (National Payment Corporation of India- NPCI) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भीम-UPI के माध्यम से किया गया लेन-देन अक्तूबर महीने में 2 बिलियन के आँकड़े को पार कर गया जो कुल 3.8 ट्रिलियन रुपए का था जो कि सितंबर 2020 में 3.2 ट्रिलियन रुपए का था।

प्रमुख बिंदु: 

  • अक्तूबर 2020 तक 189 बैंक NPCI द्वारा विकसित UPI प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे थे, जबकि अक्तूबर 2019 में 141  बैंक NPCI द्वारा विकसित UPI प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे थे।
  • पिछले आठ महीनों में UPI प्लेटफॉर्म में तीव्र वृद्धि हुई है क्योंकि नकदी के सीमित उपयोग ने उपयोगकर्त्ताओं और व्यवसायों को तेज़ी से ऑनलाइन भुगतान की ओर स्थानांतरित होने के लिये बाध्य किया है।
  • मई 2020 में पूर्ण लॉकडाउन के दौरान UPI के माध्यम से किये गए लेन-देन की संख्या 1234.5 मिलियन थी, जबकि जून 2020 और जुलाई 2020 में जब लॉकडाउन में थोड़ी छूट दी गई तब लेन-देन की संख्या क्रमशः 1336.9 मिलियन और 1497.3 मिलियन थी। 

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली

(National Payment Corporation of India- NPCI):

  • भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (NPCI) देश में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन के लिये एक समग्र संगठन है।
  • इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा भारत में भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत एक मज़बूत भुगतान और निपटान अवसंरचना के विकास हेतु स्थापित किया गया है।
  • इसे कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के प्रावधानों के तहत ‘गैर-लाभकारी संगठन’ के रूप में शामिल किया गया है।
  • NPCI की कुछ प्रमुख पहलें निम्नलिखित हैं:
  • एकीकृत भुगतान प्रणाली (United Payments Interface-UPI): यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके अंतर्गत एक मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से कई बैंक खातों का संचालन, विभिन्न बैंकों की विशेषताओं का समायोजन, निधियों का निर्बाध आवागमन एवं व्यापारिक भुगतान किया जा सकता है।
    • भीम एप (BHIM App): इसके ज़रिये लोग डिजिटल तरीके से पैसे भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं। यह UPI आधारित भुगतान प्रणाली पर कार्य करता है।
      • अन्य मोबाइल एप से इतर ‘भीम’ एप में भुगतान करने वाले व्यक्ति के मित्र, रिश्तेदार या किसी व्यापारी- जिसे भुगतान किया जाना है, को भुगतान प्राप्त करने के लिये भीम एप्लीकेशन पर होना अनिवार्य नहीं है। इसके माध्यम से भुगतान प्राप्त करने के लिये उन्हें सिर्फ एक बैंक खाते की ज़रूरत होगी। साथ ही आवश्यकता होने पर यह एप बिना इंटरनेट के भी काम करने में सक्षम है। 
  • भीम एप (BHIM App) की विशेषता:
  • तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service-IMPS): IMPS का इस्तेमाल 24*7 किया जा सकता है। यह सेवा ग्राहकों को बैंकों और RBI द्वारा अधिकृत प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (PPI) जारीकर्त्ताओं के माध्यम से तुरंत पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा देती है।
  • भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System-BBPS): BBPS भारतीय रिज़र्व बैंक की एक अवधारणात्मक प्रणाली है, जिसका संचालन NPCI द्वारा किया जाता है। यह प्रणाली सभी प्रकार के बिलों के लिये एक अंतिम भुगतान प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार यह देश भर के ग्राहकों को भुगतान अंतरण, विश्वसनीयता और सुरक्षा के साथ-साथ एक बेहतर एवं सुलभ बिल भुगतान सेवा उपलब्ध कराती है।
  • चेक ट्रंकेशन सिस्टम (Cheque Truncation System-CTS): CTS या ऑनलाइन इमेज-आधारित चेक क्लियरिंग सिस्टम, चेकों के तेज़ी से क्लियरिंग के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा शुरू किया गया एक चेक क्लियरिंग सिस्टम है। यह चेक के प्रत्यक्ष संचालन से संबद्ध लागत को समाप्त करता है।
  • नेशनल फाइनेंशियल स्विच (National Financial Switch-NFS)- NFS बैंकों के ATMs के इंटर-कनेक्टेड नेटवर्क द्वारा नागरिकों को किसी भी बैंक के ATM के माध्यम से लेन-देन की सुविधा उपलब्ध कराता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाकिस्तान का गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांतीय दर्जा

प्रिलिम्स के लिये

गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

पाकिस्तान द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांतीय दर्जा देने के निर्णय का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थायी प्रांतीय दर्जा देने के पाकिस्तान के निर्णय को भारत ने दृढ़ता से खारिज कर दिया।

Gilgit-Baltistan

प्रमुख बिंदु:

  • गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के विवादित क्षेत्रों में से एक है।
  • गिलगित-बाल्टिस्तान
    • यह केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के उत्तर-पश्चिम में उच्च भूमि पर स्थित क्षेत्र है।
    • यह रणनीतिक रूप से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन की सीमाओं पर स्थित है।
    • यद्यपि गिलगित-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर के पूर्ववर्ती रियासत का हिस्सा था, किंतु वर्ष 1947 में पाकिस्तान द्वारा समर्थित कबाइली सेना के आक्रमण के बाद 4 नवंबर, 1947 से यह क्षेत्र पाकिस्तान के नियंत्रण में है।
      • जम्मू-कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर,  1947 को भारत के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किये।
      • भारत ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में  पाकिस्तानी आक्रमण का मुद्दा उठाया।
      • जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान सेना को वापस हटाने तथा इस क्षेत्र में भारतीय सेना की संख्या को न्यूनतम करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके बाद वहाँ के लोगों की इच्छा जानने के लिये जनमत संग्रह आयोजन किया जाना था।
      • हालाँकि पाकिस्तान की सेनाएँ कभी वापस नहीं हुईं और यह दो देशों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है।
  • पृष्ठभूमि:
    • हाल ही में पाकिस्तान के एक प्रमुख सहयोगी देश, सऊदी अरब ने अपने नए बैंक नोट से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के नक्शे से हटा दिया, क्योंकि भारत ने अपनी क्षेत्रीय सीमाओं के गलत प्रदर्शन पर सऊदी अरब को सुधारात्मक कदम उठाने के लिये कहा।
    • जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति वापस लेने की पहली वर्षगाँठ पर पाकिस्तान सरकार ने एक नया "राजनीतिक मानचित्र" जारी किया जिसमें जम्मू और कश्मीर, लद्दाख तथा पश्चिमी गुजरात के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया था।
      • भारत सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि पाकिस्तान का तथाकथित नया राजनीतिक मानचित्र, “राजनीतिक गैर-बराबरी” की एक कवायद है, जो गुजरात, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर लगातार दावा कर रहा है
      • भारत ने यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि हास्यापद बयानों की न तो कानूनी वैधता है और न ही अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता भारत ने यह कहते हुए कदम पीछे खींच लिये कि पाकिस्तान का नया प्रयास केवल सीमा पार आतंकवाद द्वारा समर्थित क्षेत्रीय आंदोलन के साथ पाकिस्तान के दुस्साहस की वास्तविकता की पुष्टि करता है
    • गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की आधारभूत संरचना विकास योजना के केंद्र में है।
  • भारत का रुख:
    • भारत ने कहा कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू- कश्मीर और लद्दाख जिसमें गिलगित- बाल्टिस्तान भी शामिल है, पूरी तरह से कानूनी और अपरिवर्तनीय विलय के तहत भारत का अभिन्न अंग है।
    • गिलगित-बाल्टिस्तान को अपने पाँचवें प्रांत के रूप में शामिल करने के लिये पाकिस्तान द्वारा उठाया गया यह कदम सात दशकों से यहाँ रहने वाले लोगों के "मानव अधिकारों के उल्लंघन, शोषण और स्वतंत्रता पर पाबंदी को छुपा नहीं सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना

प्रिलिम्स के लिये

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना, राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड

मेन्स के लिये

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की चुनौतियाँ और इनके विकास हेतु सरकार द्वारा किये गए विभिन्न प्रयास

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) को 30 नवंबर तक विस्तारित करने का निर्णय लिया है, क्योंकि इस योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है।

प्रमुख बिंदु

  • वित्त मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) को 30 नवंबर, 2020 तक या इस योजना के तहत तीन लाख करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत होने के समय तक ( इनमें जो भी पहले हो) बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।

कारण

  • केंद्र सरकार द्वारा किये गए इस विस्तार का प्राथमिक उद्देश्य योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य को पूरा करना है। इसके अलावा त्योहार के मौजूदा सीज़न के दौरान मांग में बढ़ोतरी के मद्देनज़र भी इस प्रकार का निर्णय लिया गया है। 

लाभ

  • इस विस्तार के कारण ऋण लेने वाले ऐसे लोगों को भी इस योजना के तहत ऋण प्राप्त करने का एक अन्य अवसर उपलब्ध होगा जो अब तक इस योजना का लाभ नहीं प्राप्त कर सके हैं।

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS)

  • पृष्ठभूमि: आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) की शुरुआत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मई 2020 में कोरोना वायरस महामारी तथा देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न संकट को कम करने के लिये विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को क्रेडिट प्रदान करने हेतु आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के एक हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, जो कि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
  • उद्देश्य: वित्त मंत्री द्वारा घोषित इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), व्यावसायिक उद्यमों, तथा मुद्रा योजना (MUDRA Yojana) के उधारकर्त्ताओं को पूरी तरह से गारंटी एवं संपार्श्विक (Collateral) मुक्त अतिरिक्त ऋण प्रदान करना है।
    • इस योजना के तहत प्रदान की जाने वाली राशि 29 फरवरी, 2020 तक उनकी कुल बकाया राशि की  20 फीसदी होगी।
    • इस योजना के तहत 100 प्रतिशत संपार्श्विक (Collateral) मुक्त ऋण की गारंटी राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) द्वारा प्रदान की जा रही है, जबकि बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) योजना के तहत ऋण प्रदान करती हैं।
  • योग्यता: इस योजना के तहत वे उधारकर्त्ता ऋण प्राप्त करने के लिये पात्र होंगे जिनकी-
    • बकाया राशि 29 फरवरी, 2020 तक 50 करोड़ रुपए तक है। 
    • वार्षिक कारोबार 250 करोड़ रुपए तक है।
  • अवधि: योजना के तहत प्रदत्त ऋण की अवधि चार वर्ष है, जिसमें मूलधन को चुकाने के लिये एक वर्ष की स्थगन अवधि दी गई है।
  • ब्याज दर: इस योजना के तहत बैंकों द्वारा जारी किये गए ऋण पर 9.25% ब्याज और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFCs) द्वारा जारी ऋण पर 14% ब्याज लागू होगा।
  • मौजूदा स्थिति: इस योजना के तहत अभी तक 60.67 लाख लोगों के लिये 2.03 लाख करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है, जिसमें से 1.48 लाख करोड़ रुपए की राशि वितरित कर दी गई है।

राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC)

  • राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) की स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 28 मार्च, 2014 को 10 करोड़ रुपए की प्रदत्त पूंजी के साथ भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में की गई थी।
  • इस कंपनी के गठन का प्राथमिक उद्देश्य विभिन्न क्रेडिट गारंटी फंडों के लिये एक सामान्य ट्रस्टी कंपनी के रूप में कार्य करना है।
    • ऋण गारंटी कार्यक्रम उधारदाताओं के उधार जोखिम को साझा करने के लिये डिज़ाइन किये जाते हैं और इसके बदले संभावित उधारकर्त्ताओं को वित्त तक पहुँच की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्रोत: पी.आई.बी


जैव विविधता और पर्यावरण

रेलवे स्टेशन और प्रदूषण

प्रीलिम्स के लिये

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये: 

रेलवे स्टेशनों पर वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये एक आधुनिक पर्यावरण प्रबंधन योजना 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  (Central Pollution Control Board-CPCB) ने ज़ोर देकर कहा है कि रेल मंत्रालय प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये एक आधुनिक पर्यावरण प्रबंधन योजना तैयार करे।

प्रमुख बिंदु: 

  • CPCB ने रेलवे और राज्य सरकार/स्थानीय निकाय के अधिकारियों को मिलाकर एक संयुक्त समिति के गठन का आह्वान किया था ताकि बुनियादी नागरिक सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सके और क्लास-1 स्टेशनों पर पर्यावरण की स्थिति में सुधार किया जा सके। 
  • यह कदम CPCB द्वारा रेलवे मंत्रालय (Ministry of Railway) तथा आवास और शहरी विकास मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Development) के शीर्ष अधिकारियों को मिलाकर हाल ही में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक का अनुसरण करता है। रेलवे ने CPCB से अनुरोध किया कि वह रेलवे स्टेशनों की रेटिंग के आधार पर पर्यावरण प्रदर्शन के मसौदे के लिये अलग-अलग घटकों/मापदंडों का वेटेज नियत करे, जो वर्तमान में CPCB द्वारा समीक्षा के अधीन हैं।
  • हालाँकि CPCB ने देश भर में मूल्यांकन के लिये चयनित 720 स्टेशनों पर वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये एक आधुनिक पर्यावरणीय योजना विकसित करने पर ज़ोर दिया है। 
  • सभी मेट्रो स्टेशनों के पर्यावरण मूल्यांकन और प्रबंधन के लिये एक अलग खाका तैयार किया जाएगा।

प्रदूषण की चिंता:

  • पर्यावरण मापदंडों की खराब गुणवत्ता, विशेष रूप से प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर शोर का स्तर चिंता का विषय रहा है। 
  • पिछले दो वर्षों में चुनिंदा स्टेशनों पर केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों द्वारा किये गए संयुक्त निरीक्षण में पता चला कि उनमें से अधिकांश ने CPCB के विभिन्न वैधानिक नियमों के तहत ग्रीन मानदंडों का अनुपालन नहीं किया। 
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा इन स्टेशनों को जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974; वायु (वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आवश्यक मंज़ूरी नहीं मिली थी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:

(Central Pollution Control Board):

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 में किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

आगे की राह:

CPCB द्वारा उठाए गए इस कदम के साथ-साथ  भारत में  वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से स्थायी तौर पर राहत प्रदान करने वाले उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम केवल सरकार पर न छोड़कर इसमें प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सहयोग देना होगा क्योंकि बिना जन-सहयोग के इसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक विनिर्माण में बढ़ोतरी

प्रिलिम्स के लिये

क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI)

मेन्स के लिये

क्रय प्रबंधक सूचकांक में बढ़ोतरी का कारण और इसके निहितार्थ, विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) द्वारा जारी मासिक सर्वेक्षण के अनुसार, अक्तूबर 2020 में विनिर्माण क्षेत्र के ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (Purchasing Manager's Index- PMI) में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • सूचकांक के मुताबिक, भारत में विनिर्माण उत्पादन गत 13 वर्षों के अपने सबसे उच्च स्तर पर पहुँच गया है और इसमें नाटकीय रूप से सुधार देखा गया है।
  • भारत ने औद्योगिक उत्पादन में वर्ष 2007 के बाद से अब तक सबसे अधिक तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज की है, जबकि बिक्री में वर्ष 2008 के बाद से सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई है।
  • ध्यातव्य है कि लगातार 32 महीने तक विस्तार के पश्चात् अप्रैल माह में सूचकांक में संकुचन की स्थिति शुरू हो गई थी, इसके बाद मई माह में यह सूचकांक 30.8 अंक पर पहुँच गया। हालाँकि बीते तीन महीनों में सूचकांक पुनः विस्तार की स्थिति में आ गया है।
    • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) में 50 से अधिक अंक विस्तार का संकेत देते हैं, जबकि 50 से कम अंक संकुचन का संकेत देते हैं।

कारण

  • कोरोना वायरस संबंधी प्रतिबंधों में निरंतर छूट, बेहतर बाज़ार स्थिति और मांग में बढ़ोतरी से निर्माताओं को अक्तूबर माह में नया काम प्राप्त करने में मदद मिली है, जिससे उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई है।
  • कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में तेज़ी के संकेत मुख्य तौर पर त्योहार के सीज़न के कारण दिखाई दे रहे हैं, जिसका अर्थ है कि यह बढ़ोतरी अस्थायी भी हो सकती है।

निहितार्थ

  • अक्तूबर माह के क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) संबंधी आँकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि भारत के औद्योगिक क्षेत्र का उत्पादन मौजूदा वित्तीय वर्ष के शुरुआती महीनों में कोरोना वायरस महामारी के कारण दर्ज किये गए संकुचन के प्रभाव से उभर रहा है।
  • यह तथ्य इस धारणा को प्रबल करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभाव से पहले की तुलना में और अधिक तेज़ी से उभर सकती है। 

चिंताएँ

  • जहाँ एक ओर औद्योगिक क्षेत्रों के उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, वहीं दूसरी ओर रोज़गार के क्षेत्र में अभी भी कोई सुधार देखने को नहीं मिला है। 

क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI)

  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) विनिर्माण और सेवा क्षेत्र से संबंधित व्यावसायिक गतिविधि का एक प्रमुख संकेतक है। इसे सामान्यतः प्रत्येक माह की शुरुआत में पिछले माह के लिये जारी किया जाता है, इसलिये इसे देश की आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है। 
    • इस सूचकांक का निर्धारण एक सर्वेक्षण आधारित प्रणाली के माध्यम से किया जाता है।
  • इसकी गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिये अलग-अलग की जाती है, जिसके बाद एक समग्र सूचकांक का निर्माण किया जाता है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) में 0 से 100 तक अंक होते हैं और 50 से ऊपर के अंक व्यावसायिक गतिविधि में विस्तार या विकास को प्रदर्शित करते हैं, जबकि 50 से नीचे के अंक संकुचन (गिरावट) को दर्शाते हैं।

क्रय प्रबंधक सूचकांक का महत्त्व

  • विभिन्न अर्थशास्त्री क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) द्वारा मापी गई विनिर्माण वृद्धि को औद्योगिक उत्पादन का एक अच्छा संकेतक मानते हैं, जिसके लिये आधिकारिक आँकड़े बाद में सरकार द्वारा जारी किये जाते हैं।
  • कई देशों के केंद्रीय बैंक भी अपनी ब्याज दरों के निर्धारण और नीति निर्माण से संबंधित निर्णय लेने के लिये इस सूचकांक का प्रयोग करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘प्लेटफॉर्म वर्क’

प्रिलिम्स के लिये:

पब्लिक  इन्फ्रास्ट्रक्चर, गिग इकॉनमी

मेन्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 के मुख्य प्रावधान 

चर्चा में क्यों?

भारतीय कानून में पहली बार सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 में प्लेटफॉर्म वर्क (Platform Work) को पारंपरिक रोजगार श्रेणी से पृथक परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • पृष्ठभूमि:
    • श्रम को संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत शामिल किया गया है। देश के पुराने श्रम कानूनों को सरलीकृत करने एवं श्रमिकों के हितों के साथ समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिये हाल ही में, संसद द्वारा औद्योगिक संबंधों पर व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य करने की स्थिति के संदर्भ में तीन श्रम संहिताओं/कोड को पारित किया गया।
    • ये श्रम कोड भारत में श्रम संबंधों पर एक परिवर्तनकारी प्रभाव डाल सकते हैं। कोड ऑन वेजेस एक्ट- 2019 (Code on Wages Act- 2019) के साथ श्रम पर ये  संहिता केंद्रीय और राज्य कानूनों को एकसाथ कर व्यवसाय के संचालन को आसान बना सकती हैं।
  • प्लेटफॉर्म वर्क: 
    • प्लेटफॉर्म वर्क के माध्यम से एक ऐसी कार्य व्यवस्था को इंगित किया जाता है जसमें  कर्मचारी-नियोक्ता के पारंपरिक संबंध (Traditional Employer-Employee Relationship) से  हटकर संगठन या व्यक्ति विशिष्ट की समस्याओं को हल करने या विशिष्ट सेवाओं या किसी अन्य ऐसी गतिविधियों को संपन्न करने के लिये अन्य संगठनों या व्यक्तियों का उपयोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है जिन्हें भुगतान के बदले, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।
  • प्लेटफॉर्म वर्क का महत्व:
    • प्लेटफॉर्म वर्क श्रमिकों को सुगमता से कार्य की पहुँच तक स्वामित्व प्रदान करता है।
    • महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं के वितरण में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • यह एक रोज़गार गहन क्षेत्र है।
    • शहरीकरण की तेज़ गति के कारण विकास के लिये यह एक संभावित क्षेत्र है।
  • वैश्विक प्रयास: 
    प्लेटफॉर्म श्रमिकों के अधिकारों के लिये चल रही वैश्विक बातचीत प्लेटफॉर्म श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार के आसपास ही केंद्रित रही है।
    • ओंटारियो और कैलिफोर्निया के श्रम कानूनों में किये गए संशोधन और अन्य नए  संशोधन प्लेटफार्म वर्कर्स को कर्मचारी का दर्जा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जिनमें श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी लाभों की गारंटी देने का प्रयास किया गया है।

इस क्षेत्र से संबंधित मुद्दे: 

  • प्लेटफॉर्म वर्क को लेकर रोज़गार की स्थिति के संदर्भ में असंवेदनशीलता इस कारण से देखी जाती है क्योंकि जब प्लेटफॉर्म वर्क, श्रमिकों को कार्य की डिलीवरी के लिये लचीलापन और स्वामित्व प्रदान करता है, तब भी इन कार्यों को नियंत्रित  वायर्ड (Control Wired) तंत्र द्वारा बड़े पैमाने पर नियंत्रित किया जाता है।
    • यह कार्य का प्रति इकाई मूल्य निर्धारण, कार्य आवंटन एवं कार्य के घंटों को प्रभावित करता है।
    •  इसके अलावा, राइड शेयरिंग और फूड डिलीवरी जैसे ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म कार्य वाहनों की मौजूदा पहुँच पर निर्भर करते हैं।
  • प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था में प्रवेश करने के लिये श्रमिक गहन ऋण योजनाओं (Intensive Loan Schemes) पर निर्भर होते हैं, जिन्हें अक्सर प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर कंपनियों (Platform Aggregator Companies) द्वारा यह सुविधा प्रदान की जाती है।
    • इसके परिणामस्वरूप वित्तीय दायित्वों से संचालित प्लेटफॉर्म कंपनियों पर निर्भरता कम होती जाती है, जिससे मध्यम-अवधि के निवेश चक्र में लचीलेपन और स्वामित्व में कमी देखने को मिलती है।
  • हालाँकि इसके विपरीत यह भी देखने को मिलता है कि पूंजी तक बुनियादी पहुँच वाले श्रमिकों की विशिष्ट श्रेणियों के लिये, मंच का लचीलापन एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण/बिंदु के रूप में कार्य करता है।
  • संहिता में केंद्र सरकार, प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर्स और श्रमिकों की संयुक्त ज़िम्मेदारी के रूप में बुनियादी कल्याण उपायों का प्रावधान किया गया है।
    • हालाँकि संहिता में इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया कि कल्याण के किस हिस्से/भाग को वितरित करने के लिये कौन-सा हितधारक (Stakeholder) ज़िम्मेदार है।
    • कल्याणकारी सेवाओं को उपलब्ध कराए जाने के दौरान उनके तारतम्यता क्रम को बनाए रखने के लिये राज्य, कंपनियों और श्रमिकों द्वारा एक त्रिपक्षीय प्रयास, यह पहचानने के लिये कि श्रमिक कहाँ लचीलेपन के स्पेक्ट्रम पर आते हैं, प्लेटफॉर्म मुख्य रूप से कंपनियों पर निर्भर करता है।
  • कार्यबल में संकुचन गिग अर्थव्यवस्था (Gig Economy) को बढ़ावा देता है।
    • गिग अर्थव्यवस्था: गिग इकोनॉमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली का समर्थन करती है जिसमें सामान्यत: कोई भी पद स्थायी नहीं होता है एवं संगठन द्वारा अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं पर स्वतंत्र श्रमिकों को नियुक्त किया जाता है।

गिग कार्य और इसकी जटिल शर्तें:

  • महामारी के दौरान प्लेटफॉर्म श्रमिकों की भूमिका ने प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर कंपनियों और राज्य को अधिक मज़बूत ज़िम्मेदारी देने के संदर्भ में एक मज़बूत उदाहरण प्रस्तुत किया है।
  • प्लेटफॉर्म श्रमिकों द्वारा महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं के वितरण का कार्य व्यक्तिगत जोखिम पर किया गया।
  • महामारी से प्रेरित वित्तीय संकट के बावजूद प्लेटफॉर्म कंपनियों को बचाए रखने के लिये प्लेटफॉर्म श्रमिक ज़िम्मेदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहे।
  • इनके द्वारा पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (Public Infrastructures) के रूप में मांग-संचालित एग्रीगेटर्स (Demand-Driven Aggregators) को बनाए रखने में अपनी भूमिका को पूर्ण रूप से सार्थक किया गया।
  • प्लेटफॉर्म श्रमिकों पर कंपनियों की निर्भरता कल्याणकारी उपायों को वितरित करने के लिये सार्वजनिक और निजी संस्थानों द्वारा संयुक्त रूप से ग्रहण की गई ज़िम्मेदारी को पूरा करती है।

आगे की राह:

गिग इकॉनमी (Gig Economy) में कार्य की विषमता (Heterogeneity) सामाजिक-कानूनी स्वीकार्यता के माध्यम से प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये आगे का मार्ग प्रशस्त करती है जो सामाजिक सेवाओं के वितरण के लिये राज्य और प्लेटफॉर्म कंपनियों के लिये एक संयुक्त जवाबदेही का निर्धारण करती है। 

स्रोत: द हिंदू


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