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डेली न्यूज़

  • 02 Nov, 2020
  • 36 min read
भारतीय राजनीति

झारखंड का प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति घोटाला

प्रिलिम्स के लिये: 

प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल

मेन्स के लिये: 

आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली में अनियमितता

चर्चा में क्यों?

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ समाचार पत्र द्वारा की गई एक जाँच में पता चला है कि झारखंड में केंद्र द्वारा वित्तपोषित छात्रवृत्ति योजना के तहत गरीब छात्रों को वितरित की जाने वाली छात्रवृत्ति में बैंक कर्मचारियों, बिचौलियों, विद्यालय एवं सरकारी कर्मचारियों द्वारा पैसे की उगाही की जा रही है।  

प्रमुख बिंदु:

  • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना (Pre-matric Scholarship Scheme) अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म से संबंधित 1 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले परिवार के छात्र शामिल हैं, की मदद करने के लिये है।
    • छात्रवृत्ति के लिये वही छात्र पात्र हैं जो अपनी कक्षा की परीक्षा में कम-से-कम 50% अंक हासिल करते हैं। 
  • यह छात्रवृत्ति प्रत्येक वर्ष दो चरणों में प्रदान की जाती है:
    • कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को प्रतिवर्ष 1000 रुपए मिलते हैं। 
    • कक्षा 6 से 10 के छात्रों को प्रतिवर्ष 10700 रुपए मिलते हैं। (यदि वह हॉस्टल में रहता है) या घर से स्कूल आने वाले को प्रतिवर्ष 5700 रुपए मिलते हैं।
  • हालाँकि बिचौलिये, स्कूल-मालिक, बैंकिंग संप्रेषक और सरकारी अधिकारी एक-दूसरे की मिलीभगत से छात्रवृत्ति के अधिकांश पैसों का घोटाला करते हैं।

छात्रवृत्ति के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया क्या है और खाते में पैसा कब जमा किया जाता है?

  • इस छात्रवृत्ति योजना के तहत योग्य छात्रों को राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (National Scholarship Portal- NSP) पर पंजीकरण करने और अन्य दस्तावेज़ों के साथ शैक्षिक दस्तावेज़, बैंक खाता विवरण और आधार संख्या जमा करने की आवश्यकता होती है।
  • अल्पसंख्यक छात्रों के लिये यह छात्रवृत्ति योजना प्रत्येक वर्ष अगस्त से नवंबर तक खुली रहती है अर्थात् इसे प्रत्येक वर्ष लागू किया जाता है। इस वर्ष यह 30 नवंबर तक खुली रहेगी। 
  • इस योजना के तहत लाभ लेने की प्रक्रिया केवल ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म पर ही उपलब्ध है और कोई भी राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल पर या NSP के मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से नए सिरे से या नवीकरण छात्रवृत्ति के लिये आवेदन कर सकता है। छात्रवृत्ति का संवितरण वर्ष में एक बार होता है, आमतौर पर अप्रैल या मई में।
  • कोई भी छात्र अपने बैंक खाता नंबर या एप्लीकेशन आईडी के माध्यम से लोक वित्त प्रबंधन प्रणाली सॉफ्टवेयर के माध्यम से भुगतान को ट्रैक कर सकता है।
  • चूँकि अधिकांश छात्र ऑनलाइन प्रक्रिया से अनजान हैं, इसलिये विद्यालय उनके आवेदन को भरता है और कुछ मामलों में बिचौलिये भी इस प्रक्रिया को पूरा करते हैं।

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल

(National Scholarship Portal- NSP):

  • NSP एक ‘वन-स्टॉप’ समाधान है जिसके माध्यम से विभिन्न सेवाओं जैसे- छात्र आवेदन, आवेदन रसीद, सत्यापन आदि द्वारा छात्रों को छात्रवृत्ति के वितरण की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल को डिजिटल इंडिया के तहत मिशन मोड प्रोजेक्ट (MMP) के रूप में शुरू किया गया है।
  • इसका उद्देश्य बगैर किसी अनियमितता के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से पात्र आवेदकों को सीधे उनके खाते में छात्रवृत्ति के प्रभावी वितरण के लिये एक 'स्मार्ट' (SMART) [सरलीकृत (Simplified), मिशन-उन्मुख (Mission-oriented), जवाबदेह (Accountable), उत्तरदायी (Responsive) एवं पारदर्शी (Transparent)] प्रणाली प्रदान करना है।

प्रत्यक्ष लाभ अंतरण में अनियमितता:

(Direct Benefit Transfer) 

  • बिचौलिये, बैंक कर्मचारियों के साथ मिलकर छात्रों की उंगलियों के निशान के माध्यम से खाते की आधार-सक्षम लेन-देन की प्रक्रिया को संपन्न कराते हैं किंतु छात्र अपने खातों में आने वाली वास्तविक राशि के बारे में भी नहीं जानते हैं। उन्हें सिर्फ नकद राशि का एक अंश सौंप दिया जाता है।

आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली की कमज़ोरियाँ:

  • यह घोटाला आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली की कमज़ोरियों का एक और उदाहरण है। किसी-न-किसी तरीके से गरीब लोगों का फिंगरप्रिंट लेकर भ्रष्ट व्यावसायिक संप्रेषकों द्वारा उनकी नियमित मज़दूरी, पेंशन एवं छात्रवृत्ति लूट ली जाती है।

सत्यापन के लिये कोई अन्य विकल्प:

  • पात्र लाभार्थियों के सत्यापन के लिये कई चरण हैं। छात्र को छात्रवृत्ति के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिये संस्थान/विद्यालय को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना चाहिये जो NSP पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराए।
  • आवेदन को विद्यालय/संस्थान स्तर पर और फिर गृह ज़िला या निवास राज्य स्तर पर सत्यापित किया जाना चाहिये।
  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय छात्रवृत्ति राशि तभी जारी करेगा जब आवेदन की जाँच एवं सत्यापन सभी अधिकारियों द्वारा अनुमोदित हो।
  • यदि आवेदन को किसी भी कारण से संबंधित अधिकारियों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है तो आवेदन करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलेगी।

क्या केवल छात्रों के पैसों के साथ अनियमितता की जाती है?

  • छात्रों की छात्रवृत्ति के अलावा जो पैसा परिवार के किसी सदस्य द्वारा खाड़ी देशों में काम करते हुए अपने परिवारों को भेजा जाता है उसमें भी अनियमितता पाई गई है। अर्थात् आधा पैसा बिचौलियों के पास जाता है।      

झारखंड में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा कितने पैसे का वितरण किया जाता है?

  • वर्ष 2019-20 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने बताया कि उसने प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत झारखंड को 61 करोड़ रुपए का भुगतान किया। 
  • मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 203,628 छात्रों ने आवेदन किया और 84,133 छात्रों को  छात्रवृत्ति प्रदान की गई।
  • वर्ष 2018-19 में झारखंड को 34.61 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया किंतु इसी वर्ष 166,423 छात्रों ने आवेदन किया और केवल 50,466 छात्रों को छात्रवृत्ति मिली।

गौरतलब है कि पूरे भारत में शैक्षणिक वर्ष 2019-20 हेतु प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिये 1423.89 करोड़ रुपए का वितरण किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल

मेन्स के लिये:

‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय (The Ministry of Home Affairs- MHA) ने सभी राज्यों को ‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ (National Cybercrime Reporting Portal)- www.cybercrime.gov.in पर प्राप्त शिकायतों की जाँच करने के बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के रूप में उनका पंजीकरण करने के लिये कहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • मंत्रालय के पास उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, ‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ पर पंजीकृत कुल शिकायतों में से केवल 2.5% को ही एफआईआर के रूप में बदला जाता है।
  • MHA के इस निर्देश का उद्देश्य ‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ के माध्यम से इंटरनेट पर "गैर-कानूनी सामग्री" के निषेध के लिये ‘साइबर क्राइम वॉलंटियर्स’ (Cybercrime Volunteers) के समूह को प्रोत्साहित करना है।
  • वेबसाइट के अनुसार, अवैध/गैर-कानूनी ऑनलाइन सामग्री की पहचान, रिपोर्टिंग और उसे हटाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सुविधा के लिये गैर-कानूनी सामग्री को चिह्नित करने हेतु ‘साइबर क्राइम वॉलंटियर्स’ के रूप में पंजीकरण के लिये अच्छे नागरिकों का स्वागत किया जाएगा।
  • गैर-कानूनी सामग्री को ऐसी सामग्री के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्यों की सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के विरुद्ध कार्य करती है तथा यह सांप्रदायिक स्वभाव को बिगाड़ने, सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी, बाल उत्पीड़न से संबंधित होती है।
  • ‘साइबर क्राइम वॉलंटियर्स’ के रूप में सूचीबद्ध होने के लिये इच्छुक नागरिक को अपना फोटोग्राफ, नाम और पते का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।

पंजीकृत शिकायतों का एफआईआर के रूप में पंजीकृत न होना:

  • वर्ष 2019 में ‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ की शुरुआत के बाद से इस पर 2 लाख से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन एफआईआर केवल 5,000 मामलों की दर्ज की गई है।
  • एफआईआर में शिकायतों के रूपांतरण की दर बहुत कम है। उदाहरणस्वरूप जुलाई में 30,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं परंतु इनमें से केवल 273 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई।
  • वर्ष 2020 में जनवरी-सितंबर तक बाल पोर्नोग्राफी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों की कुल संख्या 13,244 थी।
  • 4 फरवरी, 2020 को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा राज्यसभा में दी गई सूचना के अनुसार, 30 अगस्त, 2019 से 30 जनवरी, 2020 तक पोर्टल पर 33,152 साइबर क्राइम की घटनाएँ दर्ज की गईं, जहाँ संबंधित कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा 790 एफआईआर दर्ज की गई थीं। 

साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में पिछले वर्ष की तुलना में पंजीकृत साइबर अपराधों की संख्या में 63.5% की वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2019 में वर्ष 2018 के 27,248 मामलों की तुलना में साइबर अपराध के तहत कुल 44,546 मामले दर्ज किये गए।
  • वर्ष 2019 में साइबर अपराध के 60.4% मामले (44,546 मामलों में से 26,891) धोखाधड़ी से संबंधित, 5.1% (2,266 मामले) यौन शोषण और 4.2% (1,874 मामले) विवादों से संबंधित दर्ज किये गए।
  • इस पोर्टल के माध्यम से केवल दिल्ली में वित्तीय साइबर अपराध के शिकार लोगों के लिये एक हेल्पलाइन शुरू की गई है, जो 155260 नंबर पर या www.cybercrime.gov.in पर घटना की रिपोर्ट कर सकते हैं।
  • गृह मंत्रालय के अनुसार, शिकायत प्राप्त होने पर नामित पुलिस अधिकारी इस मामले की पुष्टि करने के बाद संबंधित बैंक और वित्तीय मध्यस्थ या भुगतान वॉलेट इत्यादि को साइबर धोखाधड़ी में शामिल धन को अवरुद्ध करने के लिये रिपोर्ट करेगा।
  • इस सुविधा के उपयोग से वित्तीय साइबर धोखाधड़ी के शिकार लोगों को अपना धन प्राप्त करने में और पुलिस को साइबर अपराधी की पहचान करने में मदद मिलेगी तथा उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकेगी।

‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’

(National Cybercrime Reporting Portal):

  • ‘राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ को 30 अगस्त, 2019 को लोगों को एक केंद्रीकृत मंच पर सभी प्रकार के साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने में मदद के लिये लॉन्च किया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश पर सितंबर, 2018 में शुरू किये गए पोर्टल का एक पूर्व संस्करण, केवल बाल पोर्नोग्राफी, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न से संबंधित अपराधों की शिकायत के लिये प्रारंभ किया गया था।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

16 साइकी: एक रहस्यमयी क्षुद्रग्रह

प्रिलिम्स के लिये

नासा (NASA), हबल स्पेस टेलीस्कोप (HST), 16 साइकी क्षुद्रग्रह, मिशन साइकी

मेन्स के लिये

16 साइकी क्षुद्रग्रह संबंधी मुख्य बिंदु और इसके अध्ययन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद क्षुद्रग्रह ‘16 साइकी’ (16 Psyche) पूरी तरह से धातु (Metal) से बना हो सकता है और इसकी अनुमानित कीमत पृथ्वी की समग्र अर्थव्यवस्था से भी कई गुना अधिक है।

प्रमुख बिंदु

  • नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप (HST) से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस रहस्यमय क्षुद्रग्रह की सतह पर पृथ्वी के कोर के समान लोहा और निकेल (Nickel) की मौजूदगी हो सकती है।

‘16 साइकी’ के बारे में

  • पृथ्वी से लगभग 370 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘16 साइकी’ हमारे सौरमंडल की क्षुद्रग्रह बेल्ट (Asteroid Belt) में सबसे बड़े खगोलीय निकायों में से एक है।
  • नासा के मुताबिक, आलू के जैसे दिखने वाला इस क्षुद्रग्रह का व्यास लगभग 140 मील है।
  • खोज
    • इस रहस्यमयी क्षुद्रग्रह की खोज इतालवी खगोलशास्त्री एनीबेल डी गैस्पारिस द्वारा 17 मार्च, 1852 को की गई थी और इसका नाम ग्रीक की प्राचीन आत्मा की देवी साइकी (Psyche) के नाम पर रखा गया था। चूँकि यह वैज्ञानिकों द्वारा खोजा जाने वाला 16वाँ क्षुद्रग्रह है, इसलिये इसके नाम के आगे 16 जोड़ा गया है।
  • अधिकांश क्षुद्रग्रहों (Asteroids) के विपरीत, जो कि चट्टानों या बर्फ से बने होते हैं, वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह एक बहुत बड़ा धातु निकाय है जिसे पूर्व के किसी ग्रह का कोर माना जा रहा है, जो कि पूर्णतः ग्रह के रूप में परिवर्तित होने में सफल नहीं हो पाया था।

‘16 साइकी’ का हालिया अध्ययन

  • नवीनतम अध्ययन में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्त्ताओं ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के माध्यम से क्षुद्रग्रह ‘16 साइकी’ के रोटेशन के दौरान इसके दो विशिष्ट बिंदुओं का अध्ययन किया ताकि इसका समग्र रूप से मूल्यांकन किया जा सके।
  • इस अध्ययन में पहली बार ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का पराबैंगनी अवलोकन (Ultraviolet Observation) भी किया गया है, जिससे पहली बार इस क्षुद्रग्रह की संरचना की एक तस्वीर प्राप्त की जा सकी है।
  • अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि जिस तरह ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह से पराबैंगनी प्रकाश परावर्तित हुआ वह उसी प्रकार था जिस तरह से सूर्य का प्रकाश लोहे से परावार्तित होता है, हालाँकि शोधकर्त्ताओं का मत है कि यदि इस क्षुद्रग्रह पर केवल 10 प्रतिशत लोहा भी उपस्थित होगा तो भी पराबैंगनी प्रकाश का परावर्तन ऐसा ही होगा।
  • ध्यातव्य है कि धातु के क्षुद्रग्रह आमतौर पर सौरमंडल में नहीं पाए जाते हैं और इसलिये वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का अध्ययन किसी भी ग्रह के भीतर की वास्तविकता को जानने में काफी मदद कर सकता है।

‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का वास्तविक मूल्य

  • नासा के वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह तकरीबन पूरी तरह से लोहा, निकेल और कई अन्य दुर्लभ खनिज जैसे- सोना, प्लैटिनम, कोबाल्ट और इरिडियम आदि से मिलकर बना है। 
  • ऐसे में नासा की गणना के अनुसार, यदि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह को किसी भी तरह पृथ्वी पर लाया जाता है तो इसमें मौजूद धातु की कीमत ही अकेले 10000 क्वाड्रिलियन डॉलर से अधिक होगी, जो कि पृथ्वी की संपूर्ण अर्थव्यवस्था से काफी अधिक है।
    • हालाँकि नासा अथवा किसी अन्य अंतरिक्ष एजेंसी के पास अभी तक ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जिसके माध्यम से इस विशाल क्षुद्रग्रह को पृथ्वी पर लाया जा सके और न ही कोई अंतरिक्ष एजेंसी ऐसी किसी परियोजना पर कार्य कर रही है।
  • प्रभाव: यदि धातु से निर्मित इस विशालकाय क्षुद्रग्रह को किसी तरह पृथ्वी पर लाया जाता है और इस पर मौजूद दुर्लभ संसाधनों का खनन किया जाता है तो इससे पृथ्वी के खनिज बाज़ार का पतन हो जाएगा और सभी धातुएँ तुलनात्मक रूप से कम कीमत पर मिलने लगेंगी, हालाँकि निकट भविष्य में ऐसा संभव नहीं है।

नासा का ‘साइकी मिशन’

  • नासा ने इस अद्भुत और रहस्यमयी क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने के लिये ‘साइकी मिशन’ की शुरुआत की है, जिसके तहत नासा द्वारा वर्ष 2022 में एक मानवरहित अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा, जो कि काफी नज़दीक से इस क्षुद्रग्रह का अध्ययन कर इसकी संरचना और इसके उद्गम को जानने का प्रयास करेगा।
  • नासा द्वारा लॉन्च किया जाने वाला मानवरहित अंतरिक्षयान वर्ष 2026 में इस ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के पास पहुँचेगा और फिर तकरीबन 21 महीनों तक ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का चक्कर लगाएगा। ‘साइकी मिशन’ का प्राथमिक उद्देश्य धातु से निर्मित इस क्षुद्रग्रह की तस्वीर खींचना है, क्योंकि वैज्ञानिकों के पास अभी तक इस क्षुद्रग्रह की कोई वास्तविक तस्वीर उपलब्ध नहीं है।
    • इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक यह जानने का भी प्रयास करेंगे कि क्या यह क्षुद्रग्रह वास्तव में किसी पूर्व ग्रह का हिस्सा है अथवा नहीं। साथ ही एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिक इस क्षुद्रग्रह की आयु और उत्पत्ति का भी पता लगाएंगे।

‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के अध्ययन का महत्त्व

  • ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने से पृथ्वी और पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के कोर की उत्पत्ति के बारे में पता चल सकेगा। इस क्षुद्रग्रह का अध्ययन हमें यह जानने में मदद कर सकता है कि किसी ग्रह के भीतर का हिस्सा वास्तव में किस प्रकार का होता है।
  • चूँकि हम पृथ्वी के कोर में नहीं जा सकते, इसलिये ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के माध्यम से इसे जानने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हो सकता है।
    • ज्ञात हो कि पृथ्वी का कोर लगभग 3,000 किलोमीटर की गहराई पर स्थित है और शोधकर्त्ता केवल 12 किलोमीटर तक ही पहुँच सके हैं। वहीं पृथ्वी के कोर का तापमान लगभग 5,000oC है, इसलिये वहाँ पहुँचना लगभग असंभव है।

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

जीएसटी संग्रहण में बढ़ोतरी

प्रिलिम्स के लिये

वस्तु एवं सेवा कर, क्षतिपूर्ति उपकर

मेन्स के लिये

GST क्षतिपूर्ति का मुद्दा और जीएसटी संग्रहण में बढ़ोतरी का कारण

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अक्तूबर 2020 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रहण 1.05 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है, जो कि फरवरी 2020 के बाद इस वर्ष सबसे अधिक कर राजस्व है।

प्रमुख बिंदु

  • अक्तूबर 2020 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) के रूप में एकत्र किया गया कुल कर राजस्व अक्तूबर 2019 में एकत्र किये गए कुल राजस्व से 10 प्रतिशत अधिक है।
  • केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अक्तूबर माह में अर्जित कुल राजस्व क्रमशः 44,285 करोड़ रुपए और 44,839 करोड़ रुपए है।
  • राज्यों में आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने इस वर्ष अक्तूबर माह में बीते वर्ष इसी अवधि की तुलना में जीएसटी संग्रह में सबसे अधिक 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, जिसके बाद झारखंड (23 प्रतिशत) और राजस्थान (22 प्रतिशत) का स्थान है।
  • जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी का पैटर्न औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों में काफी मिश्रित रूप में देखने को मिला और जहाँ गुजरात तथा तमिलनाडु में क्रमशः 15 प्रतिशत और 13 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई है, वहीं महाराष्ट्र में यह बढ़ोतरी केवल 5 प्रतिशत रही।
  • अक्तूबर 2019 की तुलना में अक्तूबर 2020 में राजधानी दिल्ली में जीएसटी संग्रह में 8 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।

GST-collection

कारण

  • कई अर्थशास्त्रियों ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह के इस मौजूदा पैटर्न की स्थिरता को लेकर चिंता ज़ाहिर की है, क्योंकि उनका मानना है कि राजस्व में हो रही बढ़ोतरी का मुख्य कारण त्योहार का सीज़न है और उन्होंने इस बात को लेकर आशंका जताई है कि जब यह सीज़न समाप्त होगा तो राजस्व कर संग्रह के मामले में पहले जैसी स्थिति में आ सकती है।

निहितार्थ

  • सरकार द्वारा मौजूदा वित्तीय वर्ष (वर्ष 2020-21) में पहली बार वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह का आँकड़ों का 1 लाख रुपए के पार जाने को अर्थव्यवस्था में सुधार के एक संकेत के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि इससे पूर्व पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था।
  • यदि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कर संग्रहण में वृद्धि इसी प्रकार जारी रहती है तो राज्यों के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) मुआवज़े में अपेक्षित कमी 2.35 लाख करोड़ रुपए के मौजूदा अनुमान से कम हो सकती है।

जीएसटी (GST) उपकर संग्रह

  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) अपनाने के लिये राज्यों को क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु प्रयोग होने वाला जीएसटी (GST) उपकर संग्रह 8,011 करोड़ रुपए तक पहुँच गया है, जिसमें माल के आयात पर एकत्रित किये गए 932 करोड़ रुपए भी शामिल हैं।
  • यह बीते वर्ष अक्तूबर माह की तुलना में 5 प्रतिशत और बीते माह की तुलना में 12.5 प्रतिशत ​​अधिक है।

क्षतिपूर्ति उपकर

नियम के अनुसार, वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन शुरू होने के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14 प्रतिशत से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है।

  • क्षतिपूर्ति उपकर एक ऐसा उपकर है जिसे 1 जुलाई, 2022 तक चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं पर संग्रहीत किया जाएगा, ताकि राज्यों को क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जा सके।
  • संग्रहण के बाद केंद्र सरकार इसे राज्यों को वितरित कर देती है।

आगे की राह

  • सरकार द्वारा जीएसटी संग्रहण से संबंधित इन आँकड़ों को आर्थिक सुधार के एक संकेतक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, हालाँकि कई जानकार यह मान रहे हैं कि इस संबंध में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पूर्व सरकार को आगामी महीनों के आँकड़ों का भी इंतज़ार कर लेना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय प्रेस संस्थान

प्रिलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय प्रेस संस्थान

मेन्स के लिये

पत्रकारों के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकने के लिये विभिन्न उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रेस संस्थान ( International Press Institute-IPI) ने इस बात को उजागर किया है कि पत्रकारों के खिलाफ होने वाले अपराधों में वृद्धि जारी है क्योंकि सरकारें इन मामलों की जाँच करने में विफल रही हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्येक वर्ष 2 नवंबर को  ‘पत्रकारों के खिलाफ अपराधों की समाप्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (International Day to End Impunity for Crimes against Journalists) मनाया जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2013 के महासभा प्रस्ताव में इस दिन की घोषणा की थी।
    • इसने सदस्य देशों से आग्रह किया कि वे असुरक्षा की संस्कृति का सामना करने के लिये निश्चित उपायों को लागू करें।
    • 2 नवंबर, 2013 को माली में दो फ्राँसीसी पत्रकारों की हत्या की याद में इस तारीख को चुना गया था।
  • IPI संपादकों, मीडिया अधिकारियों और अग्रणी पत्रकारों का एक वियना-आधारित वैश्विक नेटवर्क है जो गुणवत्ता, स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिये प्रयास करता है।

गठन:

  • वर्ष 1950 में प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने तथा पत्रकारिता की प्रथा को सुधारने हेतु 15 देशों के 34 संपादकों ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में एकत्रित होकर इस वैश्विक संगठन का गठन किया।
    • वर्ष 2020 में इसकी 70वीं वर्षगाँठ है।
  • मूल सचिवालय वर्ष 1951 में ज़्यूरिख़ (स्विट्ज़रलैंड) में स्थापित किया गया था, जिसे वर्ष 1976 में लंदन और फिर वर्ष 1992 में वियना में स्थानांतरित कर दिया गया।

उद्देश्य:

  • उन स्थितियों को बढ़ावा देना जो पत्रकारिता को अपने सार्वजनिक कार्य को पूरा करने की अनुमति देती हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है मीडिया के हस्तक्षेप से मुक्त और प्रतिशोध के डर के बिना इसकी संचालन क्षमता को बनाए रखना।
  • जहाँ कहीं भी उन्हें धमकी दी जाती हो, वहाँ उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करना और खबरों का मुक्त प्रवाह बनाए रखना।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

रुपए का अवमूल्यन

प्रिलिम्स के लिये: 

रुपए का अवमूल्यन

मेन्स के लिये: 

रुपए के मूल्य में डॉलर के मुकाबले गिरावट का प्रमुख कारण      

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए का एक्सचेंज रेट गिरकर 74 के स्तर पर पहुँच गया

प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 16 पैसे की गिरावट के साथ एक महीने के सबसे निचले स्तर ( 73.87)  पर पहुँच गया है।
  • इस अवमूल्यन का प्रमुख कारण निवेशकों द्वारा अमेरिकी डॉलर में निवेश को प्राथमिकता देना  है।
    • जोखिम से बचने के लिये निवेशक अज्ञात जोखिमों के साथ उच्च रिटर्न की जगह ज्ञात जोखिमों के साथ कम रिटर्न को पसंद करता है।
  • COVID-19 मामलों में वृद्धि के कारण अधिकांश देशों ने लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है, जिससे अमेरिकी डॉलर न केवल रुपए के मुकाबले बल्कि अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले भी मज़बूत हुआ है।
  • यूरोप में बढ़ रहे COVID-19 मामलों ने बाज़ारों में इन आशंकाओं को जन्म दिया है कि लॉकडाउन पहले से ही कमज़ोर आर्थिक सुधार को और प्रभावित करेगा।

मुद्रा का अभिमूल्यन और अवमूल्यन

(Appreciation and Depreciation of Currency)

  • लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
  • मुद्रा अभिमूल्यन : यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के  मूल्य में वृद्धि है।
    • सरकार की नीति, ब्याज दरों, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
    • मुद्रा अभिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।
  • मुद्रा अवमूल्यन: यह एक लचीली विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
    • आर्थिक बुनियादी संरचना, राजनीतिक अस्थिरता, या जोखिम से बचने के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो सकता है।
    • मुद्रा अवमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा संबंधित देश की वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है।

स्रोत: द हिंदू


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