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डेली न्यूज़

  • 31 Oct, 2020
  • 44 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP)

मेन्स के लिये:

मौजूदा बांधों और संबंधित परिसंपत्तियों की सुरक्षा और प्रदर्शन में स्थायी रूप से सुधार हेतु बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (The Cabinet Committee on Economic Affairs) ने विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank) द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project) के चरण-II और चरण-III को मंज़ूरी दे दी है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इस परियोजना की लागत 10,211 करोड़ रुपए है।
  • इस परियोजना को लागू करने की अवधि 10 वर्ष (अप्रैल, 2021 से मार्च, 2031) है और इसमें दो चरण शामिल हैं। प्रत्येक चरण छह वर्षों का होगा। जिसमें दो वर्षों की ओवरलैपिंग (Overlapping) अवधि शामिल है। 
  •  कुल परियोजना लागत में बाहरी वित्तीय निधि 7,000 करोड़ रुपए है और शेष 3,211 करोड़ रुपए, संबंधित कार्यान्वयन एजेंसियों (Implementing Agencies) द्वारा वहन किये जाएंगे।
  • केंद्र सरकार का योगदान ऋण देयता के रूप में 1,024 करोड़ रुपए है और केंद्रीय घटक के हिस्से के रूप में प्रतिपक्ष निधि  (Counter-Part Funding) के अंतर्गत 285 करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।

उद्देश्य:

  • चयनित मौजूदा बांधों और संबंधित परिसंपत्तियों की सुरक्षा और प्रदर्शन में स्थायी रूप से सुधार करना। 
  • भाग लेने वाले राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर बांध सुरक्षा से संबंधित संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत करना, और
  • कुछ चयनित बांधों में वैकल्पिक साधनों का पता लगाना, ताकि बांध के स्थायी संचालन और रख-रखाव के लिये अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति हो सके।

प्रमुख घटक:

  • बांधों और संबंधित आश्रयों का पुनर्वास और सुधार
  • प्रतिभागी राज्यों और केंद्रीय एजेंसियों में बांध सुरक्षा संबंधित संस्थागत मज़बूती
  • कुछ चयनित बांधों में वैकल्पिक साधनों का पता लगाना, ताकि बांध के स्थायी संचालन और रख-रखाव के लिये अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति की जा सके, और
  • परियोजना प्रबंधन।

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति

प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होते हैं। विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं। इसके महत्त्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं:

(i) आर्थिक क्षेत्र में सरकारी गतिविधियों का निर्देशन और समन्वय करना।

(ii) देश में आर्थिक रुझानों की समीक्षा करना और सुसंगत तथा एकीकृत नीतिगत ढाँचा विकसित करना।

(iii) छोटे और सीमांत किसानों से संबंधित तथा ग्रामीण विकास से संबंधित गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करना।

(iv) संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के लिये मंत्रालयों के प्रस्तावों को शामिल कर औद्योगिक लाइसेंसिंग मामलों का निपटारा करना।

(v) विनिवेश से संबंधित मुद्दों पर विचार करना।

समिति को आवंटित अन्य कार्य इस प्रकार हैं:

(i) विश्व व्यापार संगठन से संबंधित मुद्दों पर विचार और फैसला करना है।

(ii) भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से संबंधित मुद्दों पर विचार करना।

(iii) सामान्य कीमतों की निगरानी करना, आवश्यक और कृषि वस्तुओं की उपलब्धता और निर्यात का आकलन करना तथा कुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये कदम उठाना।

बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना

  • मूल रूप से DRIP की कुल लागत 2100 करोड़ रुपए थी जिसमें राज्य का हिस्सा 1968 करोड़ रुपए और केंद्र का हिस्सा 132 करोड़ रुपए था।
  • प्रारंभ में यह परियोजना 6 वर्ष की अवधि के लिये थी। यह 18 अप्रैल, 2012 को प्रारंभ हुई और इसकी समाप्ति अवधि 30 जून, 2018 थी।
  • केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय तथा विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2017 में सैद्धांतिक रूप से परियोजना क्रियान्वयन को दो वर्षों का विस्तार देते हुए परियोजना समाप्ति की संशोधित तिथि को 30 जून, 2020 कर दिया गया।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रवाल भित्तियाँ और मुंबई तटीय सड़क परियोजना

प्रिलिम्स के लिये

मुंबई तटीय सड़क परियोजना, प्रवाल, प्रवाल भित्तियाँ

मेन्स के लिये

प्रवाल भित्तियों का महत्त्व और ‘कोरल ब्लीचिंग’ का खतरा

चर्चा में क्यों?

बृहन्मुंबई नगर निगम (Brihanmumbai Municipal Corporation-BMC) को 12,700 करोड़ रुपए की मुंबई तटीय सड़क परियोजना के लिये प्रवाल (Corals) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरित करने के लिये नागपुर के प्रधान महा वनसंरक्षक (वन्यजीव) से मंज़ूरी मिल गई है।

प्रमुख बिंदु

  • बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC), मरीन ड्राइव और मरीन लाइन को जोड़ने वाले राजकुमारी स्ट्रीट फ्लाईओवर से दक्षिण मुंबई के वर्ली तक 10.58 किलोमीटर की परियोजना को कार्यान्वित करने पर विचार कर रही है।
  • बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) का लक्ष्य आगामी माह में कुल 18 प्रवाल कॉलोनियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरित करना है।

क्या होती है प्रवाल?

प्रवाल (Corals) समुद्री पौधों की विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाला जेलिफिश और एनीमोन से संबंधित एक अकशेरुकी समुद्री (Invertebrate Animals) जीव होता है। 

  • यह एक सूक्ष्म जीव होता है, जो कि समूह में रहता है। चूना पत्थर (कैल्शियम कार्बोनेट) से निर्मित इसका निचला हिस्सा (जिसे कैलिकल्स भी कहते हैं) काफी कठोर होता है, जो कि प्रवाल भित्तियों की संरचना का निर्माण करता है।
  • प्रवाल भित्तियों का निर्माण तब शुरू होता है जब प्रवाल पॉलिप्स स्वयं को समुद्रतल पर मौजूद चट्टानों से जोड़ते हैं, फिर हज़ारों की संख्या में विभाजित हो जाते हैं। 
  • धीरे-धीरे कई सारे प्रवाल पॉलिप्स के कैलिकल्स एक दूसरे से जुड़ते हैं, एक कॉलोनी बनाते हैं। फिर जैसे-जैसे प्रवाल पॉलिप्स की ये कॉलोनियाँ अन्य कॉलोनियों के साथ जुड़ती हैं प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) का रूप ले लेती हैं।
    • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान की कुछ प्रवाल भित्तियों के निर्माण की शुरुआत तकरीबन 50 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई थी।
  • कुछ ऐसे प्रवाल भी होते हैं जो कॉलोनियों और भित्तियों में शामिल नहीं होते हैं, इन्हें ‘सॉफ्ट प्रवाल’ के रूप में जाना जाता है और ये समुद्र के नीचे झाड़ियों, घास और वृक्षों जैसे दिखाई देते हैं।

प्रवाल भित्तियों का महत्त्व

  • प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के नीचे एक प्रकार का शहर होता है, जो कि समुद्री जीवन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, प्रवाल भित्तियाँ, विश्व के आधे से अधिक मिलियन लोगों के लिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिये महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सबसे अधिक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक माना जाता है। यह न केवल अनेक प्रकार के जीवों एवं वनस्पतियों का आश्रय स्थल होता है, बल्कि इनका इस्तेमाल औषधियों में भी होता है। 
    • कैंसर, गठिया, बैक्टीरियल संक्रमण, वायरस और अन्य बीमारियों के संभावित इलाज के रूप में अब प्रवाल भित्तियों का भी परीक्षण किया जा रहा है।

प्रवाल भित्तियों के लिये खतरा

  • वर्तमान में जलवायु परिवर्तन प्रवाल पॉलिप्स और प्रवाल भित्तियों के लिये सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। विश्व भर में इस खतरे को ‘कोरल ब्लीचिंग’ (Coral Bleaching) अथवा प्रवाल विरंजन के रूप में देखा जा सकता है।
  • कोरल ब्लीचिंग’ के तहत जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं, क्योंकि प्रवाल भित्तियों को अपना विशिष्ट रंग इन्हीं शैवालों से मिलता है।
  • ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ‘ग्रेट बैरियर रीफ’, जहाँ विश्व की सबसे अधिक प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं, को तापमान में वृद्धि के कारण कुल छः बार ‘कोरल ब्लीचिंग’ की घटनाओं का सामना करना पड़ा है।

मुंबई में प्रवाल और प्रवाल भित्तियाँ

  • मुंबई में प्रवाल समुद्री जीवों की एक विशाल आबादी मौजूद है, मुंबई तट के किनारे पाए जाने वाले अधिकांश प्रवाल तेज़ी से विकसित होने वाले ‘सॉफ्ट प्रवाल’ हैं। 
  • वहीं प्रवालों की कुछ छोटी कॉलोनियों को मरीन ड्राइव, गीता नगर (कोलाबा), हाजी अली और वर्ली में पाया गया है।
  • बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) की मुंबई तटीय सड़क परियोजना क्षेत्र में समुद्री जैव विविधता का अध्ययन करने के लिये नियुक्त किये गए राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute Of Oceanography-NIO) ने वर्ली और हाजीपुर में छह प्रवाल प्रजातियों की पहचान की थी, साथ ही वर्ली में 0.251 वर्गमीटर और हाजी अली में 0.11 वर्गमीटर में फैली 18 प्रवाल कॉलोनियाँ भी पाई गई थीं।

कैसे होगा प्रवाल का स्थानांतरण?

  • प्रस्तावित योजना के अनुसार, हाजी अली की प्रवाल कॉलोनियों को मरीन लाइन्स के पास स्थानांतरित किया जाएगा, जबकि वर्ली में मौजूद प्रवाल कॉलोनियों को मुंबई तटीय सड़क परियोजना के निर्माण स्थल से कुछ दूरी पर स्थानांतरित किया जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि हस्तांतरण के बाद जीवन दर और हस्तांतरण के तरीके आदि का अध्ययन करने के लिये लक्षद्वीप, कच्छ और तमिलनाडु के समुद्री तटों पर पायलट प्रोजेक्ट किये जा रहे हैं।
  • इससे पूर्व महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले में तीन वर्षीय परियोजना के अंतर्गत प्रवाल के हिस्सों को नायलॉन के धागे की मदद से कंक्रीट फ्रेम से जोड़ा गया था और फिर समुद्रतल में उनकी वृद्धि के लिये उपयुक्त गहराई पर छोड़ दिया गया था।
  • अमेरिकी वैज्ञानिक एजेंसी, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार, प्रवाल की वृद्धि दर उनकी प्रजातियों पर निर्भर करती है। अध्ययन के अनुसार, प्रवाल की कुल प्रजातियाँ 10 सेंटीमीटर की दर से बढ़ती है, जबकि कुछ प्रवाल प्रजातियाँ 0.3 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ती हैं।

स्थानांतरण के दौरान जीवन दर

  • कुछ विशेषज्ञों का मत है कि प्रवाल कॉलोनियों के हस्तांतरण के दौरान उच्च जीवन दर प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक होता है कि उन प्रवाल कॉलोनियों को उसी तरह की पर्यावरणीय विशेषताओं में ले जाया जाए जहाँ वे पहले थीं, इस संबंध में समुद्र की गहराई, जल का प्रवाह और प्रकाश की मात्रा आदि काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
  • कई जानकारों ने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) को हाजी अली और वर्ली में मौजूद प्रवाल कॉलोनियों को मानसून के बाद किसी अन्य स्थान पर भेजने का सुझाव दिया है, जब प्रवाल अपेक्षाकृत अधिक स्वास्थ्य होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कमरे के तापमान पर अतिचालकता

प्रिलिम्स के लिये

अतिचालकता 

मेन्स के लिये

 कमरे के तापमान पर अतिचालकता के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी सामग्री बनाई है जो कमरे के तापमान पर अतिचालकता (Superconducting) का गुण प्रदर्शित करती है, हालाँकि यह केवल 267 गीगा पास्कल (GPa) के दाब पर काम करती है, जो पृथ्वी के केंद्र के लगभग तीन-चौथाई दबाव (360 GPa) के बराबर है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रयुक्त सामग्री (Material Used): कार्बन, हाइड्रोजन और सल्फर के मिश्रण को शोधकर्त्ताओं ने दो हीरों (DIAMONDS) के अतिसूक्ष्म नोक के बीच में रखा और रासायनिक प्रतिक्रिया जानने के लिये उस पर लेज़र प्रकाश का उपयोग किया।

प्रक्रिया (Process):

  • जब उन्होंने प्रयोगात्मक तापमान (Experimental Temperature) को कम किया, तो विद्युत धारा का प्रतिरोध शून्य हो गया, जो यह दर्शाता है कि नमूना (Sample) अतिचालक बन गया है।
  • अतिचालकता के लिये नमूने का संक्रमण 267 GPa पर लगभग 15°C के संक्रमण तापमान (Transition Temperature) में सबसे अच्छा हुआ।
  • सत्यापन (Verification): यह सत्यापित करने के लिये कि यह चरण वास्तव में एक सुपरकंडक्टर था, समूह ने पता लगाया कि सुपरकंडक्टर की यह चुंबकीय संवेदनशीलता प्रति-चुंबकीय (Diamagnet) थी।
  • शोधकर्त्ताओं ने कुछ सबूत भी पाए कि क्रिस्टल ने अपने चुंबकीय क्षेत्र को संक्रमण तापमान पर निष्कासित कर दिया, जो अतिचालकता का एक महत्त्वपूर्ण परीक्षण है।
  • इसे मैस्नर प्रभाव (Meissner Effect) भी कहा जाता है जिसका सीधा अर्थ है कि चुंबकीय लाइनें सुपरकंडक्टर्स से नहीं गुजरती हैं।

अतिचालक (Superconductors):

  • एक सुपरकंडक्टर ऐसी सामग्री है जो बिना किसी प्रतिरोध के एक परमाणु से दूसरे में बिजली या इलेक्ट्रॉनों  का संचालन कर सकती है।
  • इसका मतलब है कि "क्रांतिक तापमान" पर पहुंचने पर गर्मी, ध्वनि या ऊर्जा का कोई अन्य रूप उस सामग्री से मुक्त नहीं होगा।
    • सुपरकंडक्टर्स का क्रांतिक तापमान (Critical Temperature) वह तापमान होता है जिस पर धातु की विद्युत प्रतिरोधकता शून्य हो जाती है।
  • इसमें प्रमुख रूप से एल्युमीनियम, नाइओबियम, मैग्नीशियम डिबोराइड आदि शामिल हैं।

अनुप्रयोग:

  • इसका प्रयोग मैग्नेटिक रिज़ोनेंस इमेजिंग (Magnetic Resonance Imaging- MRI), मशीनों, बिजली लाइनों, शक्तिशाली अतिचालक चुम्बकत्व (Ultra Powerful Superconducting Magnets), मोबाइल-फोन टावरों में होता है ।
  • शोधकर्त्ता इसे पवन आधारित टरबाइन के लिये प्रयुक्त उच्च-प्रदर्शन जनरेटर में भी प्रयोग कर रहे हैं।

सीमाएँ:

  • इनकी उपयोगिता अभी भी ‘बल्की क्रायोजेनिक्स’ (Bulky Cryogenics- बहुत कम तापमान पर सामग्री के उत्पादन और व्यवहार) की आवश्यकता द्वारा सीमित है क्योंकि सामान्य सुपरकंडक्टर वायुमंडलीय दबावों पर काम करते हैं, लेकिन केवल तब तक जब तक कि उन्हें बहुत ठंडा रखा जाता है।
  • यहाँ तक ​​कि तांबे के ऑक्साइड आधारित सिरेमिक सामग्री (Ceramic Materials) जैसे सबसे परिष्कृत तत्त्व भी केवल -140°C से नीचे काम करते हैं।

अनुसंधान का महत्त्व:

  • यदि शोधकर्त्ता व्यापक दबाव पर सामग्री को स्थिर कर सकते हैं, तो कमरे के तापमान पर अतिचालकता के अनुप्रयोगों को प्राप्त किया जा सकता है

प्रतिचुंबकत्व (Diamagnetism)

  • जब इन पदार्थों को असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए तो ये पदार्थ अधिक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र से कम प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र की ओर गति करते हैं।
  • यह चुंबकत्व गैर-स्थायी है और केवल एक बाहरी क्षेत्र की उपस्थिति में रहता है।
  • प्रेरित चुंबकीय क्षण (magnetic moment) का परिमाण बहुत कम होता है और इसकी दिशा लागू क्षेत्र के विपरीत होती है।

मैस्नर प्रभाव (Meissner Effect)

  • जब कोई पदार्थ अपने क्रांतिक ताप से नीचे आकर अतिचालक अवस्था को प्राप्त होता है तो इसके अंदर चुंबकीय क्षेत्र शून्य हो जाता है। इसे मैस्नर  प्रभाव (Meissner effect) कहते हैं।
  • एक सुपरकंडक्टर के अंदर शून्य चुंबकीय क्षेत्र के लिये यह बाधा पूर्ण प्रतिचुंबकत्व से अलग है जो इसके शून्य विद्युत प्रतिरोध से उत्पन्न होगी।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व: उत्तराखंड

प्रिलिम्स के लिये

शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व, हाई कंज़र्वेशन वैल्यू

मेन्स के लिये

विस्तार परियोजना के निहितार्थ और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार से देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार के लिये शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व के संवेदनशील क्षेत्रों का प्रयोग न करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग द्वारा यह अवलोकन उत्तराखंड सरकार के उस प्रस्ताव के जवाब में किया गया है, जिसमें जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार के लिये देहरादून में 87 हेक्टेयर वन भूमि प्रदान करने की बात की गई थी।
  • वन संरक्षण प्रभाग के अनुसार, इस प्रस्ताव के तहत शामिल किया गया क्षेत्र ‘हाई कंज़र्वेशन वैल्यू’ (High Conservation Value) क्षेत्र है, और यदि हवाईअड्डे के विस्तार के लिये इसका प्रयोग किया जाता है तो इससे मौजूदा रनवे और नदी के बीच स्थित वनों का विखंडन हो सकता है।

हाई कंज़र्वेशन वैल्यू (High Conservation Value)

  • हाई कंज़र्वेशन वैल्यू क्षेत्र ऐसे प्राकृतिक क्षेत्र होते हैं, जो अपने उच्च जैविक, पारिस्थितिक, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक मूल्यों के कारण काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं, इसलिये इन क्षेत्रों की महत्ता बरकरार रखने हेतु इन्हें उचित रूप से प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है।

पृष्ठभूमि

  • हाल ही में उत्तराखंड मंत्रीमंडल ने चिनूक (Chinooks) हवाई जहाज़ के संचालन के लिये केदारनाथ मंदिर में एक हेलीपैड के विस्तार के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी। हालाँकि इस हेलीपैड का सर्दियों के मौसम में प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस दौरान यह क्षेत्र पूरी तरह से बर्फ से कवर हो जाता है। 
    • ऐसी स्थिति से निपटने के लिये राज्य सरकार देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार की योजना बना रही थी। रणनीतिक दृष्टिकोण के अलावा इस हवाईअड्डे के विस्तार का एक अन्य उद्देश्य इसे अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के रूप में पहचान प्रदान करना है।
  • विस्तार परियोजना के अंतर्गत हवाई अड्डे और पार्किंग क्षेत्र का विकास, तथा एक नया हवाई अड्डा यातायात नियंत्रण टॉवर का निर्माण करना शामिल है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये मौजूदा रनवे को 3.5 किमी तक विस्तारित किया जाएगा।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि हवाईअड्डे के विस्तार के लिये चुना गया क्षेत्र शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व का एक हिस्सा है और यह राजाजी नेशनल पार्क के 10 किलोमीटर के दायरे में आता है।

संबंधित चिंताएँ

  • कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह चिंता ज़ाहिर की है कि हवाईअड्डे के विस्तार से इसके आस-पास के वन क्षेत्रों में सैकड़ों वन्यजीव प्रजातियों पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • एक अनुमान के अनुसार, इस परियोजना के कारण आस-पास के क्षेत्रों में 10000 पेड़ काटे जा सकते हैं। भूकंप ज़ोनिंग मैप के अनुसार, उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से काफी संवेदनशील क्षेत्रों में आता है, और यदि यहाँ पेड़ उखाड़े जाते हैं तो इससे मिट्टी का क्षरण होगा, अनगिनत लोगों का जीवन खतरे में आ सकता है।
  • इस परियोजना से शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व में हाथियों का मुक्त आवागमन प्रभावित होगा।

शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व

  • शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व को वर्ष 2002 में ‘प्रोजेक्ट एलीफेंट’ के तहत देश का 11वाँ टाइगर रिज़र्व अधिसूचित किया गया था। 
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 1992 में हाथियों के आवास एवं गलियारों की सुरक्षा के लिये लॉन्च किया गया था।
  • कंसोरा-बड़कोट एलीफेंट गलियारा भी इसके पास स्थित है।
  • शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व को भारत में पाए जाने वाले हाथियों के सबसे उच्च घनत्त्व वाले एलीफेंट रिज़र्व में से एक माना जाता है।

आगे की राह

  • यद्यपि हवाईअड्डे के विस्तार की परियोजना रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकती है, किंतु यहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि शिवालिक एलीफेंट रिज़र्व उत्तराखंड का जैव विविधता हब है और यहाँ तमाम जानवर खासतौर पर हाथी और तेंदुए आदि निवास करते हैं।
  • इन कानूनों को पारित करने से पहले सरकार को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिये कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) और क्योटो प्रोटोकॉल जैसे वैश्विक जलवायु समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताएँ व्यक्त की हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कम नामांकन वाले विद्यालयों का विलय

प्रिलिम्स के लिये

साथ-ई परियोजना, शिक्षा का अधिकार 

मेन्स के लिये

शिक्षा क्षेत्र में सुधार

चर्चा में क्यों?

ऐसे समय में जब COVID-19 महामारी के बीच विद्यालयों को पुनः खोलने का विचार किया जा रहा है, ओडिशा सरकार ने कम नामांकन वाले 8000 विद्यालयों के विलय को पूरा करने के लिये 15 ज़िलों को नोटिस जारी किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ऐसे विद्यालय जिनमें कम नामांकन होता है उन्हें पास के एक बड़े विद्यालयों में विलय कर दिया जाता है जिन्हें ‘लीड स्कूल’ (Lead schools) कहा जाता है। 
  • विद्यालयों के विलय की यह प्रक्रिया ओडिशा सरकार के ‘स्कूल एंड मास एजुकेशन डिपार्टमेंट’ (Department of School and Mass Education) द्वारा मार्च में जारी एक नोटिस का अनुवर्ती स्वरूप है। जो महामारी व लॉकडाउन के कारण ठप हो गई थी।
    • मार्च 2020 में राज्य सरकार ने कम नामांकन वाले 11517 विद्यालयों के विलय की पहल की थी। इन विद्यालयों में 6350 प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं उच्च विद्यालय शामिल थे जिनमें 20 से कम छात्रों का नामांकन हुआ था जबकि 5177 विद्यालय ऐसे हैं, जिनमें 40 से कम छात्र हैं।
  • हालिया नोटिस हालाँकि केवल उन विद्यालयों के विलय में तेज़ी लाने का निर्देश देता है जिनमें 20 से कम छात्रों का नामांकन हुआ है।
  • पहले से सूचीबद्ध 6350 विद्यालयों के अलावा ओडिशा सरकार के ‘स्कूल एंड मास एजुकेशन डिपार्टमेंट’ ने विलय के लिये 20 से कम छात्रों वाले 2000 और विद्यालयों की पहचान की है।

‘सस्टनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफार्मिंग ह्यूमन कैपिटल इन एजुकेशन’ प्रोजेक्ट

[Sustainable Action for Transforming Human Capital in Education (SATH-E) Project]:

  • विद्यालयों का यह विलय नीति आयोग (NITI Aayog) के ‘सस्टनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफार्मिंग ह्यूमन कैपिटल इन एजुकेशन प्रोजेक्ट’ [(SATH-E) Project] के तहत किया जा रहा है और इसे विद्यालयों के समेकन एवं युक्तिकरण की संज्ञा दी गई है।

साथ-ई परियोजना [(SATH-E) Project]:

  • वर्ष 2017 में ओडिशा उन तीन राज्यों (अन्य दो राज्य झारखंडमध्य प्रदेश) में से एक था जिन्हें साथ-ई (SATH-E) परियोजना के तहत अपने स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्रों में सुधार हेतु सहायता प्रदान करने के लिये नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा चुना गया था।
  • इसका उद्देश्य प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय शिक्षा को लक्ष्य-संचालित अभ्यास के माध्यम से बदलना और शिक्षा के लिये रोल मॉडल राज्य बनाना है।
  • इस पहल का समापन वर्ष 2020 के शैक्षणिक वर्ष के अंत में होगा।
  • विद्यालयों का विलय साथ-ई (SATH-E) परियोजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किये गए उपायों में से एक है क्योंकि इस प्रक्रिया में शिक्षकों, पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और खेलने के उपकरण जैसे समेकित संसाधनों की सहायता के लिये अधिकृत किया जाता है।

विलय के बाद:

  • ‘स्कूल एंड मास एजुकेशन डिपार्टमेंट’ के अनुसार, जो छात्र दूर से विद्यालय की यात्रा करेंगे उन्हें 20 रुपए दैनिक भत्ता प्रदान किया जाएगा और विद्यालय बंद होने से प्रभावित प्रत्येक छात्र को लीड स्कूल में प्रवेश पर 3000 रुपए का एकमुश्त सुविधा भत्ता प्रदान किया जाएगा।
  • यदि ‘लीड स्कूल’ से दूरी 1 किमी. से अधिक है तो छात्रों को शिक्षा के अधिकार (Right To Education- RTE) मानदंडों के अनुसार परिवहन भत्ता प्रदान किया जाएगा।
  • बंद होने वाले विद्यालयों के सभी हेड मास्टर/शिक्षक/कर्मचारियों (मिड-डे मील के रसोईये सहित) की सेवा शर्तों में बदलाव किये बिना लीड स्कूल भेजा जाएगा।
  • विद्यालयों के विलय से संबंधित यदि वास्तविक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं तो ज़िला कलेक्टरों को विलय रद्द करने के लिये अधिकृत किया गया है।
  • इस तरह के विद्यालय बंद होने के बाद विद्यालय से संबंधित भवन एवं अन्य बुनियादी ढाँचे को पंचायती राज एवं पेयजल विभाग को सौंप दिया जाएगा। 

विद्यालयों के विलय से लाभ:

  • विद्यालयों का समेकन छात्रों के लिये विद्यालयों को आकांक्षी (Aspirational) बना देगा, इसके परिणामस्वरूप  छात्र-शिक्षक अनुपात (Pupil-Teacher Ratio) में सुधार होगा। 
  • बेहतर बुनियादी ढाँचा सुविधाएँ, अतिरिक्त TLM (Teaching Learning Materials) सुविधाएँ, ई-लर्निंग एवं सह-पाठयक्रम सुविधाओं के साथ बेहतर शैक्षणिक वातावरण का विकास होगा।
  • इससे शिक्षकों पर प्रशासनिक बोझ में कमी के कारण शिक्षकों एवं छात्रों के लिये उपलब्ध शिक्षण एवं सीखने के समय में भी सुधार होगा।

सरकार के निर्णय का विरोध:

  • राज्य भर में माता-पिता एवं कार्यकर्त्ताओं ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। 
  • कार्यकर्त्ताओं का तर्क: कार्यकर्त्ताओं ने तर्क दिया है कि विद्यालयों को बंद करना या विलय करना RTE अधिनियम की धारा 3 व 8 का उल्लंघन है।
    • कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि चुने गए विद्यालयों में से अधिकांश विद्यालय पहाड़ी इलाकों के आदिवासी क्षेत्रों से संबंधित हैं। एक गाँव में विद्यालयों को बंद करने से ड्रॉपआउट दर में वृद्धि होगी क्योंकि छात्रों को विद्यालय जाने के लिये दूर की यात्रा करना संभव नहीं होगा। विद्यालयों को बंद करने से पहले भौगोलिक बाधाओं पर भी विचार किया जाना चाहिये।
      • उदाहरण: देवगढ़ ज़िले के पुडापाड़ा (Pudapada) गाँव के एकमात्र प्राथमिक विद्यालय को दूसरे विद्यालय में विलय करने का निर्णय लिया गया। 
  • माता-पिता का तर्क: माता-पिता का कहना है कि हममें से अधिकांश अपने बच्चों को दादा-दादी के पास छोड़कर काम के लिये चले जाते हैं। गाँव में एक विद्यालय होने से यह सुनिश्चित होता है कि बच्चे नियमित रूप से कक्षाओं में भाग लेंगे। यदि विद्यालय दूर होगा तो छात्रों के लिये स्वयं यात्रा करना संभव नहीं होगा।
    • माता-पिता इस बात से भी चिंतित हैं कि अगर उनके बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं तो बच्चों को मिड-डे मील से भी वंचित कर दिया जाएगा।

ओडिशा में शिक्षा की स्थिति:

  • विद्यालयों को समेकित करने का निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब ओडिशा के विद्यालयों में छात्रों के नामांकन में गिरावट जारी है जहाँ करोड़ों रुपए मिड-डे मील, मुफ्त ड्रेस और मुफ्त पाठ्यपुस्तकों के तहत सरकारी विद्यालयों में प्रवेश हेतु बच्चों को प्रेरित करने के लिये खर्च किये जाते हैं। वहीं निजी विद्यालयों में नामांकन बढ़ रहा है।  
  • सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों के खाली पड़े पदों ने शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है।
  • पिछले महीने ओडिशा के विद्यालय एवं जन शिक्षा मंत्री ने विधानसभा को बताया कि राज्य के 46,332 प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में से 18589 में हेडमास्टर नहीं हैं। 8076 हाई स्कूलों में 11588 सहायक शिक्षकों के पद रिक्त हैं।
  • नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग’ (NCERT) द्वारा वर्ष 2018 में किये गए ‘नेशनल अचीवमेंट सर्वे’ (NAS) में देखा गया कि ओडिशा में केवल 53% छात्र ही बुनियादी दक्षताओं के आधार पर प्रश्नों का सही उत्तर दे पाए।
  • इसी तरह ग्रामीण संदर्भ में असर (ASER), 2018 की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि कक्षा 5 के केवल 33.1% छात्र 10 व 99 के बीच अंकगणतीय संख्या पहचान सकते हैं जबकि सिर्फ 24.5% छात्र संख्या को घटाना जानते हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020

प्रिलिम्स के लिये

पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020

मेन्स के लिये

भारत के राज्यों में गवर्नेंस की स्थिति  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘पब्लिक अफेयर्स सेंटर’ (Public Affairs Centre) द्वारा जारी किये गए पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020 (Public Affairs Index- PAI), 2020 में केरल को बड़े राज्यों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ शासित (Best-Governed) राज्य घोषित किया गया जबकि उत्तर प्रदेश निचले पायदान पर रहा।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में शहर-आधारित गैर लाभकारी संगठन (City-based Not-for-Profit Organisation)  ‘पब्लिक अफेयर्स सेंटर’ (Public Affairs Centre) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि राज्यों को सतत् विकास (Sustainable Development) के संदर्भ में एक समग्र सूचकांक के आधार पर शासन प्रदर्शन (Governance Performance) में स्थान दिया गया।

बड़े राज्यों की श्रेणी: 

  • दक्षिण भारत के निम्नलिखित चार राज्य शासन की दृष्टि से बड़े राज्य की श्रेणी में पहले चार स्थान पर मौजूद हैं।

क्रमांक

राज्य

PAI सूचकांक बिंदु 

1.

केरल 

1.388

2.

तमिलनाडु

0.912

3.

आंध्र प्रदेश

0.531

4.

कर्नाटक

0.468

  • बड़े राज्यों की श्रेणी में उत्तर प्रदेश (-1.461), ओडिशा (-1.201) और बिहार (-1.158) पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020 की रैंकिंग में सबसे निचले स्थान पर थे।

Overall-Ranking

  • पिछले वर्ष की तुलना में इस बार तेलंगाना (0.388) ने सातवें स्थान से छठे स्थान पर आकर 18 बड़े राज्यों में अपना स्थान बना लिया है।
  • PAI सूचकांक-2019 में, तेलंगाना सातवें स्थान पर था। जहाँ तेलंगाना को समता (Equity) मापक में सबसे खराब घोषित किया गया था।
    • 'अभिव्यक्ति एवं जवाबदेही' (Voice and Accountability) और 'कानून का शासन' (Rule of Law) में तेलंगाना की खराब स्थिति ने भी इसकी निचली रैंकिंग में एक भूमिका निभाई थी।

छोटे राज्यों की श्रेणी:

Overall-Ranking-small-state

  • छोटे राज्यों की श्रेणी में गोवा 1.745 अंकों के साथ पहले स्थान पर है जबकि मेघालय (0.797) और हिमाचल प्रदेश (0.725) क्रमशः दूसरे एवं तीसरे स्थान पर मौजूद हैं।
  • नकारात्मक अंकों के साथ सबसे खराब प्रदर्शन मणिपुर (-0.363), दिल्ली (-0.289) और उत्तराखंड (-0.277) का रहा है।

केंद्र शासित प्रदेशों की श्रेणी:

Overall-Ranking-UT

  • चंडीगढ़ 1.05 अंकों के साथ केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणी में शीर्ष है, इसके बाद पुडुचेरी (0.52) और लक्षद्वीप (0.003) का स्थान है।
  • सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में दादर एवं नगर हवेली (-0.69), जम्मू एवं कश्मीर (-0.50), अंडमान और निकोबार (-0.30) शामिल हैं।

पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020 के मापक: 

  • PAI के अनुसार, पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020 में समता (Equity), वृद्धि (Growth) और संधारणीयता (Sustainability) के तीन स्तंभों द्वारा परिभाषित सतत् विकास (Sustainable Development) के संदर्भ में शासन के प्रदर्शन का विश्लेषण किया जाता है।
  • इन तीन आयामों के आधार पर समग्र सूचकांक का निर्माण किया गया है। तीनों आयामों में से प्रत्येक को निम्नलिखित पाँच ‘गवर्नेंस प्राक्सिस थीम’ (Governance Praxis Themes) द्वारा परिचालित किया जाता है जो विकास के परिणामों की गति एवं दिशा को प्रभावित करते हैं।
    • अभिव्यक्ति एवं जवाबदेही (Voice and Accountability)
    • सरकारी प्रभावशीलता (Government Effectiveness)
    • कानून का नियम (Rule of Law)
    • नियामक गुणवत्ता (Regulatory Quality)
    • भ्रष्टाचार पर नियंत्रण (Control of Corruption) 
  • इसके अतिरिक्त पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स-2020 के समग्र सूचकांक में 50 घटक संकेतकों व 13 सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को भी सम्मिलित किया जाता है जो राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये प्रासंगिक हैं।

निष्कर्ष:

  • यदि इस सूचकांक को व्यापक रूप से देखा जाए तो दक्षिणी राज्यों ने अपने उत्तरी समकक्षों की तुलना में समता (Equity), वृद्धि (Growth) और संधारणीयता (Sustainability) में बेहतर प्रदर्शन किया है।

स्रोत: द हिंदू


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