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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व व्यापार संगठन और अमेरिका विवाद

  • 11 Jan 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

वर्तमान में अमेरिका तथा चीन के मध्य जारी व्यापार युद्ध के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका द्वारा विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अपीलीय निकाय (Appellate Body) की कार्यपद्धति को प्रभावित किया जा रहा है। WTO का अपीलीय निकाय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित विवादों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका निभाता है।

विश्व व्यापार संगठन:

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO), विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 1995 में मराकेश समझौते (Marrakesh Agreement) के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
  • 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना।
  • सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministrial Conference) इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।

WTO की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • WTO की स्थापना की भूमिका वर्ष 1944 में आयोजित ब्रेटनवुड्स सम्मेलन (Bretton Woods Conference) से जुड़ी है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वैश्विक वित्तीय प्रणाली की आधारशिला रखी। इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) और विश्व बैंक (World Bank) की स्थापना की गई।
  • ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में एक पूरक संस्था की स्थापना के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (International Trade Organization- ITO) की स्थापना का सुझाव दिया गया था जिसका कार्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को लागू करना था। लेकिन कुछ मतभेदों की वजह से इसकी स्थापना नहीं हो सकी।
  • इसी दौरान वर्ष 1947 में जिनेवा में GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) नामक समझौते पर 23 देशों ने हस्ताक्षर किये। यह एक वैधानिक समझौता है जिसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना तथा इसमें आने वाली बाधाओं को कम या समाप्त करना है।
  • WTO के निर्माण से पहले तक GATT कोई संस्था न होकर एक बहुपक्षीय उपकरण (Multilateral Instument) था जिसने केवल वस्तु व्यापार (Goods Trade) से संबंधित नियम बनाए थे। लेकिन सेवाओं (Services) और बौद्धिक संपत्ति (Intellectual Properties) के व्यापार के संबंध में इसमें कोई प्रावधान नहीं था।
  • GATT की स्थापना के बाद से 1995 तक इसके सदस्य देशों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में टैरिफ कटौती तथा व्यापार को अनुकूल बनाने के लिये 8 बैठकें हुईं जिन्हें बहुपक्षीय व्यापार समझौते का दौर (Multilateral Trade Negotiations Rounds) के नाम से जाना जाता है।
  • वर्ष 1986-94 तक चले उरुग्वे राउंड (Uruguay Round) के दौरान WTO की स्थापना का निर्णय लिया गया।
  • उरुग्वे राउंड तक GATT में 123 देश शामिल हो गए थे, जबकि वर्ष 1947 में जिनेवा में हुई 23 देशों की प्रारंभिक बैठक में भारत शामिल था।
  • GATT के विपरीत WTO को एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का दर्जा दिया गया तथा इसके अधिकार क्षेत्र में सेवाओं और बौद्धिक संपत्ति से संबंधित मामलों को भी शामिल किया गया।
  • इसके अलावा GATT में विवाद निपटारा प्रणाली कमज़ोर थी जिसके स्थान पर WTO में दो स्तरीय विवाद निपटारा प्रणाली (Dispute Settlement System) की स्थापना की गई।

WTO का अपीलीय निकाय (Appellate Body):

  • वैश्विक व्यापार संबंधी जटिल विवादों के समाधान के लिये WTO में एक मज़बूत दो-स्तरीय विवाद निपटारा प्रणाली की स्थापना की गई। इसके निचले स्तर पर विवाद निपटारा पैनल (Dispute Settlement Panel) है तथा ऊपरी स्तर पर अपीलीय निकाय है।
  • अपीलीय निकाय विवाद निपटारा प्रणाली का मुख्य ढाँचा है जिसमें सात सदस्य होते हैं।
  • प्रारंभिक स्तर पर किसी व्यापार संबंधी विवाद का मामला विवाद निपटारा पैनल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जो इस संबंध में निर्णय देता है।
  • पैनल द्वारा दिये गए किसी निर्णय के विरुद्ध अपीलीय निकाय में अपील की जा सकती है। ऊपरी स्तर पर स्थित होने के कारण अपीलीय निकाय पैनल द्वारा दिये गए निर्णयों को बनाए रख सकता है, उसमें बदलाव कर सकता है या निरस्त कर सकता है।
  • अपीलीय निकाय द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम होता है तथा उसे 30 दिनों के भीतर लागू करना अनिवार्य होता है।
  • अपीलीय निकाय के निर्णय को लागू न करने वाले सदस्य देश पर WTO द्वारा प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  • पैनल तथा अपीलीय निकाय ने अभी तक लगभग 200 से अधिक मामलों में निर्णय दिये हैं जिनमें विभिन्न उत्पादों के संबंध में नवीकरणीय उर्जा पर सब्सिडी आदि शामिल है।
  • व्यापार राहत के लिये किये गए उपाय जैसे- काउंटरवेलिंग ड्यूटी (Countervailing Duties) तथा एंटी-डंपिंग उपाय (Anti-Dumping Measures) और अमेरिका द्वारा प्रयोग की जाने वाली ज़ीरोइंग मेथडोलॉजी (Zeroing Methodology) जैसे मामले WTO में उत्पन्न विवाद के मुख्य कारण हैं।
  • WTO के अंतर्गत अपीलीय निकाय की स्थापना ने नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को विश्वसनीयता, सुरक्षा तथा पूर्वानुमेयता (Predictability) प्रदान की है।

काउंटरवेलिंग ड्यूटी (Countervailing Duty):

  • वह शुल्क जो कि आयातित वस्तुओं पर सब्सिडी के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिये लगाया जाता है ताकि घरेलू उत्पादों की रक्षा की जा सके, उन्हें काउंटरवेलिंग शुल्क कहते हैं।
  • उदाहरण- कोई विदेशी उत्पादक सब्सिडी के कारण अपने उत्पादित वस्तुओं को कम कीमत पर निर्यात करता है जिसकी वज़ह से वे उत्पाद घरेलू बाज़ार में उपलब्ध वस्तुओं की तुलना में सस्ते होते हैं तथा उनकी मांग बढ़ जाती है। अतः सरकारें घरेलू वस्तुओं की मांग बनाए रखने के लिये ऐसी वस्तुओं के आयात पर काउंटरवेलिंग शुल्क लगाती हैं।

एंटी-डंपिंग ड्यूटी (Anti-Dumping Duty):

  • यह एक संरक्षणवादी शुल्क है जिसे घरेलू सरकार उन वस्तुओं के आयात पर लगाती है जिनकी कीमत उचित बाज़ार कीमतों से काफी कम होती है।
  • डंपिंग एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई कंपनी किसी उत्पाद का निर्यात अपने घरेलू बाज़ार की कीमतों से कम कीमत पर करती है ताकि विदेशी बाज़ार में उनकी मांग बनी रहे।
  • इससे संरक्षण हेतु कई देश उन उत्पादों पर टैरिफ लगाते हैं जिनके बारे उनकी राय होती है कि वे उत्पाद उनके घरेलू बाज़ार में डंप (सस्ती कीमत पर बेचना) किये जा रहे हैं।

ज़ीरोइंग मेथडोलॉजी (Zeroing Methodology):

  • यह अमेरिका द्वारा डंपिंग को रोकने के लिये प्रयोग की जाने वाली विधि है जिसके माध्यम से अमेरिका अपने घरेलू बाज़ार में विदेशी वस्तुओं के आयात को नियंत्रित कर रहा है।

अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय के कार्य में अवरोध:

  • अपीलीय निकाय की प्रभावी और सुचारु कार्यप्रणाली अमेरिका की एकतरफा व्यापार नीतियों को लागू करने की राह में अवरोध उत्पन्न कर रही है। इसके अलावा अमेरिका की कई नीतियाँ जैसे- काउंटरवेलिंग ड्यूटी एवं एंटी-डंपिंग उपाय WTO समझौते के मुख्य प्रावधानों के विरुद्ध हैं।
  • इसलिये अमेरिका अपीलीय निकाय के क्रियान्वयन को बाधित करने के लिये इसके कोष (Fund) में कटौती तथा इसकी रिक्तियों को भरने में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
  • वर्तमान में इसमें केवल 1 सदस्य मौजूद है तथा 6 पद खाली हैं। ध्यातव्य है कि अपीलीय निकाय में कुल सात सदस्य होते हैं और किसी मामले पर निर्णय लेने के लिये कम-से-कम 3 सदस्यों का उपस्थित होना अनिवार्य है।

अमेरिकी हस्तक्षेप का कारण:

  • अपीलीय निकाय की निष्पक्ष तथा स्वतंत्र कार्यप्रणाली विभिन्न व्यापार मामलों में अमेरिकी हितों के लिये बाधक बन रही है। हालाँकि जहाँ अमेरिका अपने पक्ष में लिये गए निर्णयों को स्वीकार करता है, वहीं अमेरिकी व्यापार हितों को प्रभावित करने वाले फैसलों पर विरोध व्यक्त करता है।
  • अमेरिका ने अपीलीय निकाय पर उन मामलों में विवाद निपटारा समझौते (Dispute Settlement Understanding- DSU) के प्रावधानों का पालन न करने का आरोप लगाया है जिनमें अमेरिका शामिल है। इसके अलावा अमेरिका का कहना है कि अपीलीय निकाय 90 दिनों की समय-सीमा के अंदर निर्णय देने में असफल रहा है।
  • अमेरिका के अनुसार, अपीलीय निकाय के फैसले काउंटरवेलिंग (Anti-Subsidy) और ज़ीरोइंग मेथडोलॉजी के आधार पर एंटी-डंपिंग उपायों से संबंधित मामलों में DSU का पालन करने में विफल रहे हैं।
  • इसके अलावा अमेरिका का मानना है कि अपीलीय निकाय के कुछ सदस्यों का व्यवहार अमेरिका के प्रति भेदभावपूर्ण तथा DSU के प्रावधानों के खिलाफ है।
  • इसके अलावा अमेरिका का कहना है कि अपीलीय निकाय अपने मूल कर्त्तव्यों से विचलित हो गया है।

अमेरिकी रवैये के प्रति अन्य देशों की प्रतिक्रिया:

  • WTO के अन्य सदस्य देश अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय पर लगाए गए इस आरोप से सहमत नहीं हैं। अपीलीय निकाय पर अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों की जाँच हेतु WTO की महापरिषद (General Council) की बैठक में इसके सदस्य देशों द्वारा एक समन्वयक (Facilitator) नियुक्त किया गया।
  • नियुक्त किये गए समन्वयक डेविड वॉकर WTO के विवाद निपटारा निकाय के अध्यक्ष तथा WTO में न्यूज़ीलैंड के स्थायी मिशन के राजदूत हैं। इस मामले पर सदस्य देशों के साथ कई दौर की चर्चा के बाद उन्होंने एक निर्णय मसौदा तैयार किया जिसमें अपीलीय निकाय की कार्यशैली को उन्नत बनाने तथा इसके रिक्त पदों को तुरंत भरने का सुझाव दिया।
  • समन्वयक के इस मसौदे को सभी देशों द्वारा स्वीकार किया गया लेकिन WTO में अमेरिका के प्रतिनिधि ने मसौदे को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि यह अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय की कार्यशैली पर लगाए गए मुद्दों का समाधान करने में असफल है।
  • चीन ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अपीलीय निकाय, जो कि WTO के विवाद निपटारा तंत्र का प्रमुख अंग है, की वर्तमान विफलता यह प्रदर्शित करती है कि शीघ्र ही इसका महत्त्व समाप्त हो जाएगा।
  • भारत ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि WTO की विवाद निपटारा प्रणाली वैश्विक स्तर के बहुपक्षीय व्यापार में निहित विवादों के निपटारे में प्रभावी रही है तथा इसने अनुचित व्यापार व्यवहार (Unfair Trade Practices) में कमी तथा नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को मज़बूती प्रदान की है।
  • भारत ने कहा कि यदि WTO के सदस्य आपसी सहयोग द्वारा अपीलीय निकाय की रिक्तियों पर चल रहे व्यवधान को समाप्त नहीं करते तो जल्द ही हम इस संस्था को खोने जा रहे हैं जिसने इसके सदस्यों के हितों की रक्षा की है।

अमेरिका के इस एकपक्षीय व्यवहार का प्रभाव:

  • अपीलीय निकाय की कार्यप्रणाली में व्यवधान से सर्वाधिक नुकसान गरीब और विकासशील देशों को होगा जो अपने अधिकारों तथा हितों की रक्षा हेतु राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
  • अपीलीय निकाय की कार्यपद्धति को निष्प्रभावी बनाना वर्तमान वैश्विक राजनीति में एकपक्षीयता (Unilateralism) तथा संरक्षणवाद (Protectionism) के बढ़ते प्रभावों को प्रदर्शित करता है।
  • अमेरिका द्वारा किया जाने वाला यह व्यवहार अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। साथ ही इससे ज्ञात होता है कि आर्थिक व राजनैतिक रूप से शक्तिशाली कुछ देशों का इन संस्थाओं पर अत्यधिक प्रभाव है।
  • भविष्य में अपीलीय निकाय की अनुपलब्धता, वर्ष 1947 के GATT समझौते के नियमों को समाप्त करते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में अनिश्चितता तथा जंगल राज का निर्माण करेगी।
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