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डेली न्यूज़

  • 04 Nov, 2020
  • 39 min read
सामाजिक न्याय

चावल के फोर्टिफिकेशन पर केंद्र प्रायोजित योजना

प्रिलिम्स के लिये:

फूड फोर्टिफिकेशन, फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK)

मेन्स के लिये:

चावल के फोर्टिफिकेशन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा चावल के फोर्टिफिकेशन संबंधी योजना का विस्तार 112 आकांक्षी ज़िलों तक करने का निर्णय लिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • फूड फोर्टिफिकेशन के माध्यम से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से संबंधित मुद्दों को संबोधित किया जाता है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि चावल की खपत वाले देशों की आबादी में सामान्यतः: विटामिन A की कमी, प्रोटीन तथा ऊर्जा आधारित कुपोषण, जन्म के समय बच्चों का कम वज़न, शिशु मृत्यु दर की प्रबलता देखने को मिलती है।

फोर्टिफाइड चावल:

  • चावल के फोर्टिफिकेशन में चावल को पीसकर पाउडर तैयार कर  इसमें पोषक तत्त्वों का मिश्रण किया जाता है। इस फोर्टिफाइड चावल के मिश्रण को पुन: चावल के आकार में बदला में जा सकता है, जिसे ‘फोर्टिफाइड राइस कर्नेल’ (FRK) कहा जाता है। 
  • इस फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK) को सामान्य चावल के साथ 1: 100 के अनुपात में मिश्रित किया जाता है तथा इसके बाद इसे ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ के तहत बिक्री के लिये जारी कर दिया जाता है। 

चावल के फोर्टिफिकेशन पर केंद्र प्रायोजित योजना:

  • चावल के फोर्टिफिकेशन पर इस केंद्र प्रायोजित योजना को फरवरी 2019 में मंज़ूरी दी गई थी।
  • योजना के तहत तीन वर्ष की अवधि के लिये 174.6 करोड़ रुपए का कुल बजट परिव्यय आवंटित किया गया था। 
    • केंद्र प्रायोजित योजनाओं से तात्पर्य ऐसी योजनाओं से है, जिनमें योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु वित्त की व्यवस्था केंद्र तथा राज्य द्वारा मिलकर की जाती है।
  • योजना को पंद्रह राज्यों में शुरू किया जाना था, जहाँ प्रत्येक राज्य को कम-से-कम एक ज़िले की पहचान योजना के लाभार्थी के रूप में करनी थी।
    • हालाँकि अभी तक योजना के तहत केवल पाँच राज्यों (आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़) ने योजना के तहत चुने गए ज़िलों में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया है। 
    • शेष 10 राज्यों द्वारा यद्यपि योजना के तहत लाभार्थी ज़िलों की पहचान कर ली गई है लेकिन इन राज्यों द्वारा अभी तक फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू नहीं किया गया है। 

फूड फोर्टिफिकेशन (Food Fortification): 

  • फूड फोर्टिफिकेशन चावल, दूध, नमक, आटा आदि खाद्य पदार्थों में लौह, आयोडिन, जिंक, विटामिन A एवं D जैसे प्रमुख खनिज पदार्थ एवं विटामिन जोड़ने अथवा वृद्धि करने की प्रक्रिया है।
  •  'भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण' (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा अक्तूबर 2016 में 'खाद्य सुरक्षा और मानक' (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम’ {Food Safety and Standards (Fortification of Foods) Regulations}, 2016 के तहत गेहूँ का आटा और चावल (आयरन, विटामिन बी- 12 और फोलिक एसिड के साथ), दूध और खाद्य तेल (विटामिन ए और डी के साथ), डबल फोर्टिफाइड सॉल्ट (आयोडिन और आयरन के साथ) के वितरण को मंज़ूरी दी गई थी।
    • बाद में सरकार द्वारा इसके स्थान पर 'खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम', 2018 {Food Safety and Standards (Fortification of Foods) Regulations} को अधिसूचित किया गया।
  •  फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों की पहचान करने के लिये '+ F’ लोगो अधिसूचित किया गया है।

महत्त्व:

  • फोर्टिफाइड चावल का वितरण 'सार्वजनिक वितरण प्रणाली' (PDS), 'समेकित बाल विकास सेवा' (ICDS) और 'मिड-डे मील' कार्यक्रमों के तहत किया जाएगा, जिससे देश में कुपोषण की समस्या को दूर करने में मदद मिलेगी। 
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक’- 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। योजना के कार्यान्वयन से स्थायी/क्रोनिक कुपोषण को कम करने में मदद मिलेगी। 
  • क्रोनिक कुपोषण आमतौर पर गरीब, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, कमज़ोर मातृ स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ा होता है। 
  • भारत ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लिये एक कार्य-योजना विकसित की है। योजना के कार्यान्वयन से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। 

चुनौतियाँ:

  • योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK) की आपूर्ति बढ़ाने की आवश्यकता होगी। 
  • फोर्टिफाइड राइस कर्नेल की वर्तमान में उपलब्धता मात्र 15,000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है। जबकि योजना के तहत 112 आकांक्षी ज़िलों को कवर करने के लिये लगभग 1.3 लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK) की आवश्यकता होगी।
  • आज देश में लगभग 28,000 चावल मिलें हैं, जिन्हें फोर्टिफाइड चावल तैयार करने के लिये आवश्यक सम्मिश्रण मशीनों आदि से लैस करने की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

  • केंद्र सरकार को विभिन्न हितधारकों यथा- राज्य सरकारों, नीति आयोग, FSSAI, भारतीय खाद्य निगम, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा गैर-सरकारी संगठनों से विचार-विमर्श करते हुए योजना के क्रियान्वयन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये ताकि निर्धारित समयावधि तक फोर्टिफाइड चावल की खरीद और आपूर्ति की जा सके।

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और खाड़ी देश

प्रिलिम्स के लिये

खाड़ी सहयोग परिषद, प्रवासी भारतीय बीमा योजना, भारतीय सामुदायिक कल्याण कोष

मेन्स के लिये

भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंध, भारत के लिये खाड़ी देशों का महत्त्व, खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों की कार्य स्थिति

चर्चा में क्यों?

भारत ने खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC) के सदस्य देशों से उन भारतीयों को वापसी की सुविधा प्रदान करने का आग्रह किया है, जो महामारी से संबंधित प्रतिबंधों में छूट मिलने के पश्चात् अब पुनः कार्य शुरू करना चाहते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों के साथ आयोजित एक रणनीतिक वार्ता को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उल्लेख किया कि बड़ी संख्या में भारतीय कामगार और पेशेवर अपना कार्य पुनः शुरू करने के लिये खाड़ी देशों में लौटने के इच्छुक हैं।
  • इस दौरान भारत ने खाड़ी देशों को खाद्य पदार्थों, दवाओं और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखने का आश्वासन भी दिया।
    • कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद से बीते कुछ महीनों में कई भारतीय नागरिक खाड़ी देशों से वापस भारत लौट आए हैं।

खाड़ी देश और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)

  • सामान्यतः जिन देशों की सीमा फारस की खाड़ी के साथ मिलती है, उन्हें खाड़ी देश के रूप में संबोधित किया जाता है। जब खाड़ी देशों की बात की जाती है तो इसमें मुख्यतः कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन को शामिल किया जाता है।
  • ज्ञात हो कि ये 6 देश खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के संस्थापक सदस्य हैं।
  • यद्यपि ईरान व इराक भी फारस की खाड़ी के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं, किंतु वे इस परिषद के सदस्य देश नहीं बन पाए हैं।

Gulf-Cooperation-Council

खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासी

  • आँकड़ों की मानें तो भारत, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की उत्पत्ति का सबसे बड़ा स्रोत है, साथ ही भारत द्वारा प्रेषण (Remittances) के माध्यम से भी सबसे अधिक धनराशि प्राप्त की जाती है।
  • विदेश मंत्रालय के मुताबिक, लगभग आठ मिलियन से अधिक भारतीय पश्चिम एशिया में रहते और कार्य करते हैं, जिनमें से अधिकांश भारतीय, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों जैसे-, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई में रहते हैं, और 40 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि प्रेषण के माध्यम से भारत को भेजते हैं।
  • खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में भारतीय कामगारों की महत्ता का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन देशों में प्रवासी कामगारों का 30 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारतीय कामगारों का है। इस तरह ये प्रवासी कामगार न केवल प्रेषण के माध्यम से भारत के लिये आय के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि ये खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारतीय प्रवासियों से संबंधित चिंता

  • यद्यपि खाड़ी देश भारतीय कामगारों और पेशेवरों के लिये एक प्रमुख स्थान है, किंतु इन देशों की रोज़गार प्रणाली के कारण यहाँ प्रवासी श्रमिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे शोषण के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं।
    • खाड़ी देशों में प्रचलित ‘कफाला प्रणाली’ (Kafala System) के तहत प्रवासी श्रमिकों के आव्रजन और रोज़गार की स्थिति के संबंध में पूरा अधिकार निजी नियोक्ता को दिया गया है, जिसके कारण कई बार निजी नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के शोषण की खबरें सामने आती हैं।
  • कई खाड़ी देशों ने अपने यहाँ रोज़गार की स्थिति में सुधार करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें वर्ष 2019 में मज़दूरी संरक्षण प्रणाली को लागू करना और विभिन्न भेदभाव-रोधी नियमों को जारी करना शामिल है।

भारत के लिये खाड़ी क्षेत्र का महत्त्व

  • भारत के लिये सदैव ही खाड़ी क्षेत्र का एक विशिष्ट राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक महत्त्व रहा है। खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देश अपने आर्थिक एकीकरण प्रयासों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जिससे भारत के लिये व्यापार, निवेश, ऊर्जा, श्रमशक्ति जैसे क्षेत्रों में सहयोग के महत्त्वपूर्ण अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध पिछले कुछ वर्षों में काफी मज़बूत हुए हैं। भारत ने वर्ष 2019 में सऊदी अरब के साथ एक रणनीतिक परिषद के गठन हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।
    • भारतीय कंपनियों की प्रौद्योगिकी, निर्माण, आतिथ्य और वित्त समेत विभिन्न क्षेत्रों में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों में सक्रिय उपस्थिति है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) वित्तीय वर्ष 2018-19 में लगभग 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, जिसमें तेल आयात की हिस्सेदारी काफी अधिक है।
    • GCC के सदस्य देश, भारत की तेल संबंधी आवश्यकताओं के लगभग 34 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति करते हैं, हालाँकि बीते कुछ वर्षों में भारत की तेल संबंधी आवश्यकताओं के लिये खाड़ी देशों पर निर्भरता काफी कम हुई है, क्योंकि भारत ने नाइजीरिया, अमेरिका और इराक जैसे अन्य आपूर्तिकर्त्ताओं का ओर रुख किया है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब भारत के दो प्रमुख व्यापारिक भागीदार देश हैं, जिनका वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार क्रमशः 60 बिलियन डॉलर और 34 बिलियन डॉलर के आस-पास है।
  • इसके अलावा खाड़ी क्षेत्र भारत के विकास की अहम ज़रूरतों जैसे- ऊर्जा संसाधन, कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये निवेश के मौके और लाखों लोगों को नौकरी के भरपूर अवसर देता है।
  • जहाँ एक ओर ईरान भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक पहुँचने का रास्ता उपलब्ध कराता है, तो वहीं ओमान पश्चिम हिंद महासागर तक पहुँचने का मार्ग प्रदान करता है।     

महामारी और भारत-खाड़ी देशों के संबंध

  • भारत के लिये खाड़ी देशों की महत्ता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन देशों में कोरोना वायरस महामारी का प्रसार भारत के लिये एक गंभीर चिंता का विषय है।
  • इस वर्ष की शुरुआत से ही खाड़ी देश कोरोना वायरस महामारी और तेल की कीमतों में गिरावट की दोहरी मार झेल रहे हैं तथा कुछ ही समय पहले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत बीते 17 वर्ष के अपने निचले स्तर पर पहुँच गई थी। इससे उन खाड़ी देशों की राजकोषीय स्थिति पर काफी प्रभाव पड़ा है, जो अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये मुख्यतः तेल राजस्व पर निर्भर हैं।
  • ऐसी स्थिति में कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस महामारी के कारण खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हो सकती है और यहाँ मंदी जैसी स्थिति देखी जा सकती है तथा यदि ऐसा होता है तो इससे इन देशों में कार्य कर रहे प्रवासी श्रमिकों पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
    • इस परिस्थिति में भारतीय प्रवासी श्रमिक कोरोना वायरस से संक्रमित होने के जोखिम के अलावा अपने रोज़गार को लेकर भी खतरे का सामना कर रहे हैं।
  • महामारी और आर्थिक मंदी के कारण भारत वापस लौटने वाले लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था में समाहित करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
    • जो लोग वापस भारत लौट रहे हैं उनसे संक्रमण की दर में बढ़ोतरी की संभावना भी काफी बढ़ गई है, जिसका मुख्य उदाहरण केरल में देखा जा सकता है, जहाँ महामारी के शुरुआती दौर में संक्रमण को रोकने में काफी सफलता मिली थी, किंतु जब प्रवासी श्रमिक केरल वापस लौटने लगे, तो संक्रमण की दर में भी बढ़ोतरी होने लगी।
  • भारत विश्व में प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है और वर्ष 2018 में भारत ने प्रेषण के रूप में तकरीबन 79 बिलियन डॉलर की राशि प्राप्त थी, जिसमें आधे से अधिक धन खाड़ी देशों से आया था। इस तरह इन देशों में आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने से भारत को प्रेषण से मिलने वाली आय में भी कमी आएगी।
  • यदि महामारी की स्थिति लंबे समय तक जारी रहती है तो यह खाड़ी देशों को अपने कार्यबल की राष्ट्रीयकरण की नीति को सख्ती से लागू करने के लिये प्रेरित करेगा और भविष्य में भारतीय श्रमिकों के लिये इन देशों में काम खोजना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • वैश्विक महामारी के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति भी बाधित हो सकती है तथा इसका सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि भारत सबसे ज़्यादा कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से ही करता है।

आगे की राह

  • खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय श्रमिकों के रोज़गार के खतरे को देखते हुए भारत को कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये अपने उपायों के समर्थन में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों को पूर्ण सहयोग का आश्वासन देना होगा। 
  • विदेशों में खासतौर पर खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय प्रवासी श्रमिकों की सहायता और स्वच्छता, भोजन एवं स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं जैसे- प्रवासी भारतीय बीमा योजना और भारतीय सामुदायिक कल्याण कोष आदि का उपयोग किया जा सकता है।
  • भारत को इस संकट से बाहर निकलने के बाद अपनी ‘एक्ट वेस्ट नीति’ को विस्तार देना चाहिये।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

टेली-लॉ कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये

टेली-लॉ कार्यक्रम, कॉमन सर्विस सेंटर, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण

मेन्स के लिये

टेली-लॉ कार्यक्रम और मौजूदा समय में इसकी प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के न्याय विभाग द्वारा शुरू किये गए ‘टेली-लॉ कार्यक्रम’ ने 30 अक्तूबर, 2020 तक 4 लाख लाभार्थियों को कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के माध्यम से कानूनी सलाह प्रदान करने का नया रिकॉर्ड स्थापित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2017 में कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद से अप्रैल 2020 तक जहाँ कुल 1.95 लाख लोगों को सलाह दी गई वहीं मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले सात महीनों के दौरान 2.05 लाख लोगों को कानूनी सलाह प्रदान की गई, जिसका अर्थ है कि देशव्यापी लॉकडाउन अवधि के दौरान लोगों ने इस कार्यक्रम का काफी उपयोग किया है।

टेली-लॉ कार्यक्रम

  • विशेषता: वर्ष 2017 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों और नागरिकों हेतु कानूनी सहायता को सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
    • इस कार्यक्रम के तहत कानूनी जानकारी और सलाह के वितरण के लिये संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
    • इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत के स्तर पर स्थापित कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) पर लोग टेली-लॉ नामक पोर्टल के माध्यम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये वकीलों से कानूनी सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
    • इस तरह यह कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या टेलीफोन के माध्यम से वकीलों और नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।
    • यह सेवा ग्रामीण क्षेत्रों में कॉमन सर्विस सेंटरों के पास मौजूद अवसंरचना का उपयोग कर ग्रामीण लोगों को उनके घर पर ही कानूनी सेवा प्रदान करने का प्रयास करती है।
    • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा सभी राज्यों की राजधानियों में वकीलों का एक पैनल उपलब्ध कराएगा, जो आवेदकों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये कानूनी सलाह और परामर्श प्रदान करेंगे।
  • उद्देश्य: भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया विज़न’ (Digital India Vision) के माध्यम से ‘स्वदेशी’ डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग कर ‘सभी के लिये न्याय’ को वास्तविकता प्रदान करना और सभी की न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • महत्त्व: टेली लॉ सेवा किसी भी व्यक्ति को कीमती समय और धन बर्बाद किये बिना कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाती है।
    • यह सेवा वंचित वर्ग के समूह के लिये पूर्णतः मुफ्त है, जबकि अन्य लोगों को इस सेवा का लाभ प्राप्त करने के लिये 30 रुपए प्रदान करने होंगे।

संबंधित कानूनी प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (A) के अनुसार, ‘राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायतंत्र इस प्रकार से काम करें कि सभी को न्याय का समान अवसर मिले एवं आर्थिक या किसी अन्य कारण से कोई नागरिक न्याय प्राप्ति से वंचित न रह जाए। इसके लिये राज्य निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।’
  • अनुच्छेद 14 और 22 (1) भी विधि के समक्ष समता सुनिश्चित करने का प्रावधान करते हैं।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)

  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नालसा (National Legal Services Authority-NALSA) का गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत समाज के कमज़ोर वर्गों को नि:शुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये और विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिये लोक अदालतों का आयोजन करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यों में कानूनी साक्षरता प्रदान करना, जागरूकता फैलाना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना शामिल हैं।
  • भारत का मुख्य न्यायाधीश इसका मुख्य संरक्षक होता है है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय का द्वितीय वरिष्ठ न्यायाधीश प्राधिकरण का कार्यकारी अध्यक्ष होता है।

स्रोत: पी.आई.बी


भूगोल

राष्ट्रीय मानसून मिशन का मूल्यांकन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानसून मिशन

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय मानसून मिशन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्‍वी विज्ञान’ केंद्रीय मंत्री द्वारा ‘राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद’ (National Council of Applied Economic Research- NCAER) की वार्षिक रिपोर्ट जारी की गई। 

प्रमुख बिंदु?

  • NCAER नई दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र तथा गैर-लाभकारी थिंक टैंक है, जो आर्थिक नीतिगत अनुसंधान की दिशा में कार्य करता है। यह रिपोर्ट, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित किये गए एक अध्ययन पर आधारित है।
  • NCAER की रिपोर्ट, ‘राष्ट्रीय मानसून मिशन’ (National Monsoon Mission) और ‘उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग’ (High Performance Computing- HPC) में निवेश के आर्थिक लाभों का अनुमान लगाने पर केंद्रित है।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:

  • रिपोर्ट NMM तथा HPC में किये गए निवेश के आर्थिक लाभ का आकलन करती है। जिसमें निम्नलिखित तथ्यों को उजागर किया गया है:

निवेश की तुलना में व्यापक लाभ:

  • भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय मानसून मिशन' (NMM) और 'उच्च निष्पादन कम्प्यूटिंग' (HPC) सुविधाओं की स्थापना पर लगभग 1000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है, जबकि कृषि परिवारों, किसानों और पशुपालकों को कुल 13,331 करोड़ रुपए का वार्षिक आर्थिक लाभ हुआ है। अगले पाँच वर्षों में यह 48,056 करोड़ रुपए तक रहने का अनुमान है।

आर्थिक लाभ का आकलन:

  • आर्थिक लाभ का निर्धारण, 'वर्षा आधारित क्षेत्रों' में किसानों की आय, मौसमी पूर्वानुमान से पशुधन मालिकों और मछुआरों को हुए लाभ के आधार पर किया गया है। 

प्रमुख लाभार्थी:

  • रिपोर्ट के अनुसार, मौसम पूर्वानुमान से संबंध में सटीक एडवाइज़री जारी करने से 98% किसानों को लाभ हुआ है। किसानों को इससे फसल प्रतिरूप में बदलाव, जल प्रबंधन, फसल की कटाई, बुवाई, जुताई के समय में परिवर्तन, कीटनाशकों का प्रयोग तथा सिंचाई आदि के संबंध में सही निर्णय करने में मदद मिली है। 
  • 'संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र' (Potential Fishing Zone- PFZ) के संबंध में सफल एडवाइज़री जारी करने के परिणामस्वरूप अतिरिक्त मत्स्यन में मदद मिली है। 82% मछुआरों द्वारा समुद्र में मत्स्यन के लिये जाने से पूर्व 'ओशन स्टेट फोरकास्ट' (OSF) की एडवाइज़री का इस्तेमाल किया गया है।
  • 76% पशुधन मालिकों द्वारा मौसमी बीमारी के खिलाफ पशुधन के टीकाकरण, चारा प्रबंधन आदि में मौसम संबंधी सूचनाओं का प्रयोग किया गया है।

राष्ट्रीय मानसून मिशन (National Monsoon Mission):

  • इसे वर्ष 2012 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • भारत की अर्थव्यवस्था के लिये मानसून हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है। वर्तमान मानसून पूर्वानुमान की क्षमता पर्याप्त नहीं हैं। 
  • मिशन के तहत मानसून पूर्वानुमान शोध कार्यों में अनुसंधानकर्त्ताओं का समर्थन किया जाएगा तथा ‘गतिशील मानसून पूर्वानुमान’ (Dynamic Monsoon Forecast) मॉडल के विकास पर बल दिया जा रहा है।
  • मिशन जलवायवीय अवलोकन कार्यक्रमों का भी समर्थन करेगा, ताकि जलवायविक प्रक्रियाओं की बेहतर समझ विकसित हो सके।

उद्देश्य:

  • मौसमी और अंतर-मौसमी मानसून पूर्वानुमान में सुधार करना।
  • मध्यम श्रेणी के मौसमी पूर्वानुमान में सुधार करना।

 भागीदार संस्थान:

  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे।
  • राष्ट्रीय मध्यम श्रेणी के मौसम पूर्वानुमान केंद्र, नोएडा।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग, नई दिल्ली।

‘उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग’

(High-performance Computing- HPC): 

  • सुपरकंप्यूटर, उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग (HPC) का भौतिक मूर्त रूप हैं, जो संगठनों को उन समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाता है, जिन्हें नियमित कंप्यूटर के साथ हल किया जाना असंभव है।
  • इस दिशा में भारत सरकार द्वारा मार्च 2015 में सात वर्षों की अवधि के लिये 4,500 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ की घोषणा की गई थी।

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और यूएई के बीच 8वीं उच्च स्तरीय बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

मेन्स के लिये:

 भारत-यूएई प्रगाढ़ होते संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत द्वारा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ निवेश बढ़ाने के लिये 8वीं उच्च स्तरीय बैठक (संयुक्त कार्यदल) आयोजित की गई। COVID-19 महामारी के मद्देनज़र यह बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये आयोजित की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त कार्यदल (Joint Task Force):
    • दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये संयुक्त कार्यदल का गठन वर्ष 2012 में किया गया था। 
    • इस कार्यदल की सफलता का ही परिणाम था कि जनवरी 2017 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने समग्र रणनीतिक साझेदारी समझौता (Comprehensive Strategic Partnership Agreement) किया था।  
  • इस अवसर पर भारत और यूएई ने व्यापार एवं आर्थिक समझौतों को विस्तार देने के बीच आ रही बाधाओं पर भी चर्चा की। इसके तहत एंटी डंपिंग शुल्क, टैरिफ और नियामक प्रतिबंध जैसी बाधाओं पर दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भी बातचीत की।
  • संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने उन क्षेत्रों की पहचान की है जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण साबित होंगे।
    • नागरिक उड्डयन क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मानते हुए दोनों देशों ने आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ाने पर सहमति जताई है। 
    • दोनों देशों के नागरिक उड्डयन नियामक (Civil Aviation Authorities) इस दिशा में प्राथमिकता के साथ कार्य करेंगे। इसके जरिये दोनों देशों के बीच ‘एयर ट्रांसपोर्ट ऑपरेशन’ (Air Transport Operations) सुलभ करना एक अहम उद्देश्य होगा।
  • ‘यूएई स्पेशल डेस्क’ [UAE special desk (‘Plus UAE’)] और ‘फॉस्ट ट्रैक मैकेनिज़्म’ (Fast Track Mechanism): 
    • दोनों देशों ने वर्ष 2018 में बनाई गई ‘यूएई स्पेशल डेस्क’ और ‘फॉस्ट ट्रैक मैकेनिज़्म’ की भी समीक्षा की है। जिसका उद्देश्य भारत में यूएई द्वारा निवेश बढ़ाने और निवेशकों की समस्याओं को दूर करना है। 

प्लस यूएई (Plus UAE):

  • ‘प्लस यूएई’ (Plus UAE) एक व्यापारिक परामर्शदाता है जो अबू धाबी (संयुक्त अरब अमीरात) में स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निवेशकों के लिये नए व्यापारिक उपक्रम स्थापित करने में मदद करता है। इसके साथ प्लस यूएई (Plus UAE) दुबई में व्यावसायिक सेवाएँ प्रदान करता है।
  • गौरतलब है कि भारत ने यूएई के अतिरिक्त इटली के साथ भी निवेश प्रस्तावों को सुविधाजनक बनाने के लिये दोनों देशों की कंपनियों एवं निवेशकों के लिये एक फास्ट-ट्रैक प्रणाली (Fast-track System) स्थापित की है।
  • यूएई द्वारा गठित निधि कोष:  
    • इस बैठक में भारत में निवेश के लिये यूएई द्वारा गठित किये गए निधि कोष के बारे में  भी चर्चा की गई। जिसकी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा बनाए गए विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक नियम- 2019 (Foreign Portfolio Investor Regulations 2019) के आधार पर समीक्षा भी की गई। 
    • भारतीय पक्ष यूएई-आधारित निधियों के भारत में सीधे निवेश की सुविधा और उस संबंध में पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधानों की मांग करने के उद्देश्य से इन मुद्दों पर ध्यान देने के लिये सहमत हुआ।
  • अन्य क्षेत्रों में भागीदारी:  
    • दोनों देशों ने स्वास्थ्य सेवाओं, फॉर्मास्युटिकल, मोबिलिटी और लॉज़िस्टिक, खाद्य एवं कृषि, ऊर्जा, उपयोगी सेवाएँ सहित दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की है।

भारत-यूएई संबंधों पर एक नज़र:

  • भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने वर्ष 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित किये। UAE ने वर्ष 1972 में दिल्ली में अपना दूतावास खोला और भारत ने वर्ष 1973 में अबू धाबी में अपना दूतावास खोला।   
  • 1970 के दशक में भारत-यूएई का व्यापार 180 मिलियन यूएस डॉलर प्रति वर्ष था वर्तमान में यह $60 बिलियन यूएस डॉलर के आसपास है, वर्ष 2018-19 में यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।
  • इसके अलावा यूएई वर्ष 2018-19 में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य था।
  • वर्ष 2018 के दौरान भारत-यूएई के मध्य गैर-तेल व्यापार $36 बिलियन के साथ यूएई, भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
  • भारत में यूएई का निवेश लगभग 13-14 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, यह भारत के लिये 10वाँ सबसे बड़ा FDI निवेशक है।
  • संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय निवेश का अनुमान लगभग 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। 

निष्कर्ष:

  • उल्लेखनीय है कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच साझेदारी बढ़ाने में संयुक्त कार्यदल एक अहम भूमिका निभा रहा है। पिछले 8 वर्षों में संयुक्त कार्यदल के प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्तमान में दोनों देशों के संबंध इतने मज़बूत हुए हैं।
  • तेज़ी से विकास करते भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ विकास की असीम संभावनाएँ मौजूद हैं। यूएई, भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में लगातार निवेश कर रहा है और भारत के विकास का अहम भागीदार भी है। भारत हमेशा से यूएई के निवेश को उच्च प्राथमिकता देता है और वहाँ के निवेशकों के लिये अनुकूल माहौल बनाने के अहम कदम उठाता है। 

स्रोत: पीआईबी


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