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संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र

  • 18 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र, INCOIS, ओशनसैट सैटेलाइट, सागरीय बायोम

मेन्स के लिये:

भारत में मत्स्यन

चर्चा में क्यों?

‘भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र’ (The Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS), हैदराबाद ने सूचना दी है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization- ISRO) के ओशनसैट सैटेलाइट (Oceansat Satellite) के आँकड़ों का प्रयोग ‘संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र’ (Potential Fishing Zone- PFZ) संबंधी एडवाज़री (Advisories) तैयार करने में किया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • ISRO ने वर्ष 2002 में ही PFZ एडवाज़री जारी करने संबंधी परिचालन सेवा को विकसित कर ली थी।
  • सेवा प्रदान करने में इसरो के ओशनसैट -2 उपग्रह से प्राप्त क्लोरोफिल सांद्रता एवं ‘नेशनल ओशनिक एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Oceanic Atmospheric Administration-NOAA) द्वारा समुद्र सतह के तापमान (Sea Surface Temperatures- SST) पर एकत्रित किये गए डेटा का उपयोग किया जाता है।

तकनीक की कार्यप्रणाली:

  • सैटेलाइट के माध्यम से ‘ओशन कलर मॉनीटर’ (Ocean Colour Monitor- OCM) द्वारा क्लोरोफिल की सांद्रता एवं एडवांस्ड वेरी हाई रेज़ोल्यूशन रेडियोमीटर (Advanced Very High Resolution Radiometer- AVHRR) से सागरीय सतह के तापमान (SST) का मापन किया जाता है।

PFZ क्षेत्र:

  • PFZ क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में पेलेजिक जीवों (Pelagic) तथा ‘वाटर कॉलम हैबिटैट’ (Water Column habitat) का प्रतिशत अधिक होता है।

सागरीय पर्यावरणीय की दशाओं के आधार पर सागरीय बायोम को 2 भागों में विभाजित किया जाता है-

1. पेलेजिक ज़ोन: पैलेजिक ज़ोन का विस्तार सागरीय बायोम में सर्वाधिक है। इसे दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • प्रकाशिक बायोम: उपरी 200 मीटर तक सागरीय जल
  • अप्रकाशित बायोम: 200 मीटर से नीचे का सागरीय जल

2. बेन्थिक:

  • सागरीय ढालों पर पाया जाने वाला बायोम

पेलेजिक मछली (Pelagic Species):

  • पेलेजिक ज़ोन में रहने वाली मछलियों को उनके आवास स्थान के आधार पर पेलेजिक मछली कहा जाता है। यथा- एंकोवी, सार्डिन।

जल स्तंभ आवास (Water Column Habitat):

  • यह लंबवत सागरीय प्रकोष्ट होता है जिसका निर्धारण इसकी भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के आधार पर किया जाता है।
  • तथा जल के रासायनिक और भौतिक गुणों में अंतर मछली वितरण सहित पानी के स्तंभ के जैविक घटकों को प्रभावित करता है।

तकनीक का लाभ:

  • ‘नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार अंतरिक्ष आधारित इस सेवा से डीज़ल की खपत में कमी होने से कार्बन के उत्सर्जन में भी कमी आई है, जो 36,200 करोड़ रुपए के कार्बन क्रेडिट के समतुल्य (Carbon Credit Equivalent) है।
  • एक अन्य अध्ययन के अनुसार, 32 मछली पकड़ने वाली नौकाओं से लगभग 70,000 लीटर डीज़ल की बचत होती है।

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS):

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
  • INCOIS का मुख्य अधिदेश महासागर का अवलोकन कर इससे संबंधित जानकारियों को जनसामान्य के लिये सुलभ बनाना है।
  • INCOIS का मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA):

  • वैज्ञानिक शुद्धता की संस्कृति को बढ़ावा देकर जीवन और संपत्ति की सुरक्षा करने के लिये अमेरिका के वाणिज्य विभाग के अंतर्गत वर्ष 1970 में नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की स्थापना हुई थी।
  • NOAA का उद्देश्य जलवायु, मौसम, महासागरों और तटीय स्थितियों में परिवर्तन को समझना तथा उनकी भविष्यवाणी करना है।

ओशनसैट- 2 (Oceansat- 2):

  • यह IRS प्रकार का मिशन है जिसे 23 सितंबर, 2009 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C14 द्वारा लॉन्च किया गया।
  • इसमें 3 पेलोड शामिल थे:
    • महासागर कलर मॉनीटर (OCM)
    • Ku-बैंड पेंसिल बीम स्कैटरोमीटर (SCAT)
    • वायुमंडलीय ध्वनि वातावरण प्रच्छादन (Radio Occultation Sounder for Atmosphere- ROSA)।

स्रोत: PIB

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