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झारखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 08 Sep 2025
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झारखंड Switch to English

झारखंड में पैक्स का डिजिटलीकरण

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने घोषणा की है कि डिजिटलीकरण अभियान के दूसरे चरण के अंतर्गत वह झारखंड की 1,297 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) का कंप्यूटरीकरण करेगा।

मुख्य बिंदु

  • पृष्ठभूमि
    • सहकारिता मंत्रालय की केंद्र-प्रायोजित डिजिटलीकरण परियोजना ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को आर्थिक तथा सामाजिक गतिविधियों के केंद्र में परिवर्तित करने हेतु कार्य कर रही है।
    • राज्य में कुल 4,454 PACS हैं, जो ग्रामीण समुदायों की सेवा करने वाली प्राथमिक स्तर की सहकारी ऋण संस्थाओं के रूप में कार्य करती हैं।
    • परियोजना के प्रथम चरण में नाबार्ड ने 1,500 PACS का सफलतापूर्वक डिजिटलीकरण किया है।
  • कंप्यूटरीकृत PACS की विशेषताएँ:
    • आधुनिक PACS को हार्डवेयर और विशेष सॉफ़्टवेयर दोनों से सुसज्जित किया जा रहा है, जिससे राष्ट्रीय ग्रिड के साथ एकीकरण सुनिश्चित होगा।
    • इससे वे विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम होंगे, जिनमें शामिल हैं:
  • नाबार्ड की भूमिका:
    • नाबार्ड ने ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (RIDF) के अंतर्गत 100 करोड़ रुपये का कोष स्थापित किया है, जिसका उपयोग भंडारण सुविधाओं और संबंधित बुनियादी ढाँचे के निर्माण में किया जाएगा
    • PACS कंप्यूटरीकरण की नोडल एजेंसी के रूप में नाबार्ड निम्न दायित्व भी निभा रहा है
    • नए डिजिटल सिस्टम के उपयोग में कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना।
    • निरंतर तकनीकी सहायता प्रदान करना।
    • बुनियादी ढाँचे के विकास को सुविधाजनक बनाना।

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) 

  • नाबार्ड एक विकास बैंक है जो प्राथमिक तौर पर देश के ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह कृषि और ग्रामीण विकास हेतु वित्तपोषण प्रदान करने वाला शीर्ष बैंकिंग संस्थान है।
  • नाबार्ड एक वैधानिक निकाय है, जिसे राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के अंतर्गत वर्ष 1982 में स्थापित किया गया।
  • इसका मुख्यालय मुंबई (देश की वित्तीय राजधानी) में स्थित है।
  • कृषि के अतिरिक्त, नाबार्ड लघु उद्योगों, कुटीर उद्योगों तथा ग्रामीण परियोजनाओं के विकास के लिये भी उत्तरदायी है।

प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS)

  • ये मूलतः ऋण समितियाँ हैं, जो संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।
  • PACS प्राथमिक स्तर की सहकारी ऋण संस्थाएँ हैं, जो किसानों को सुलभ ऋण, बैंकिंग सेवाएँ और कृषि सहायता प्रदान करती हैं। 
  • ये ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) और राज्य सहकारी बैंकों (SSB) के साथ भारत की त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना का आधार बनाती हैं।
  • 1.08 लाख PACS में से लगभग 63,000 कंप्यूटरीकरण के उन्नत चरण में हैं तथा सरकार का लक्ष्य उनमें से 80,000 को पूर्णतः डिजिटल बनाना है।


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