भारतीय अर्थव्यवस्था
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम: आर्थिक समृद्धि के स्तंभ
- 13 Jun 2025
- 28 min read
यह एडिटोरियल 10/06/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Enduring growth of the MSME credit landscape” पर आधारित है। इस लेख में भारत के MSME क्षेत्र की मज़बूत वृद्धि को रेखांकित करता है, जिसे ऋण प्रवाह में 13% की वृद्धि से दर्शाया गया है, वहीं यह सीमित ऋण सुगम्यता और विनियामक बाधाओं जैसी निरंतर चुनौतियों को भी उजागर करता है जो त्वरित नीतिगत सुधारों की माँग करती हैं।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का MSME क्षेत्र, मुद्रा योजना, पीएम विश्वकर्मा योजना, SFURTI (पारंपरिक उद्योगों के निधि पुनरुद्धार की योजना), राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, उद्योग 4.0, आर्थिक सर्वेक्षण, GEM (सरकारी ई-मार्केटप्लेस) मेन्स के लिये:भारत की आर्थिक संवृद्धि को गति देने में MSME की भूमिका, भारत के MSME क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
भारत का MSME क्षेत्र तीव्र गति से प्रगति कर रहा है, जहाँ ऋण प्रवृत्ति में वार्षिक 13% की वृद्धि दर्ज की गयी है और यह वृद्धि स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ चुके हैं। इस वृद्धि को नये उधारकर्त्ताओं की मज़बूत माँग से बल मिला है, जो कुल नये ऋणों के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं। इस उत्साहजनक प्रवृत्ति के बावजूद, MSME क्षेत्र अब भी औपचारिक ऋण की सीमित उपलब्धता और जटिल नियामक प्रक्रियाओं जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों से जूझ रहा है। भारत के लिये आवश्यक है कि यह इन संरचनात्मक समस्याओं का समाधान शीघ्रतापूर्वक समग्र नीतिगत सुधारों तथा व्यवसाय-हितैषी प्रक्रियाओं के सरलीकरण के माध्यम से करे, ताकि MSME क्षेत्र सतत् आर्थिक विकास की रीढ़ के रूप में प्रभावी रूप से स्थापित हो सके।
भारत का MSME क्षेत्र किस प्रकार भारत की आर्थिक संवृद्धि को गति दे रहा है?
- रोज़गार सृजन और नौकरियों का निर्माण: MSME भारत में सबसे बड़े रोज़गार प्रदाता हैं, जो कार्यबल में लगभग 60% का योगदान करते हैं।
- अनुमानतः 7.34 करोड़ MSME के साथ, यह क्षेत्र भारत की युवा, विस्तारित श्रम शक्ति को समाहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अकेले प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) ने सत्र 2023-24 में 89,118 उद्यमों को समर्थन दिया, जिससे 7.1 लाख से अधिक नौकरियों का सृजन हुआ।
- निर्यात और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा: MSME क्षेत्र भारत के निर्यात प्रदर्शन का एक प्रमुख चालक है, जिसने सत्र 2024-25 तक भारत के कुल निर्यात में 45.79% का योगदान दिया है।
- वैश्विक व्यापार में उनकी बढ़ती भागीदारी भारत के व्यापार संतुलन को सुधारने तथा वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी स्थिति को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- एक प्रमुख नीतिगत पहल, सार्वजनिक क्रय नीति ने MSME की सरकारी खरीद तक पहुँच को बढ़ाया है तथा निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा दिया है।
- वित्तीय समावेशन और ऋण सुलभता: MSME के लिये ऋण सुगम्यता सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक है, लेकिन मुद्रा योजना और ऋण गारंटी कोष (CGTMSE) जैसी हालिया सरकारी पहल इस अंतर को समाप्त कर रही हैं।
- मुद्रा ऋण योजना ने MSME को 5.41 लाख करोड़ रुपए (वित्त वर्ष 24) वितरित किये हैं, जिससे व्यवसायों को विस्तार और नवाचार करने में सशक्त बनाया गया है।
- संपार्श्विक-मुक्त ऋण की पेशकश और ऋण गारंटी का विस्तार करके, ये उपाय MSME को अत्यंत आवश्यक वित्त समर्थन प्रदान करते हैं।
- मुद्रा ऋण योजना ने MSME को 5.41 लाख करोड़ रुपए (वित्त वर्ष 24) वितरित किये हैं, जिससे व्यवसायों को विस्तार और नवाचार करने में सशक्त बनाया गया है।
- डिजिटल परिवर्तन और प्रौद्योगिकी का अंगीकरण: यह क्षेत्र डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जो दक्षता और बाज़ार पहुँच में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- लगभग 72% MSME अब डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता देते हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है और लेन-देन लागत कम होती है।
- UPI इकोसिस्टम ने वर्ष 2024 में 23.48 लाख करोड़ रुपए मूल्य के लेन-देन संसाधित किये, जो इस क्षेत्र की बढ़ती डिजिटल भागीदारी और भविष्य में विकास की इसकी क्षमता को दर्शाता है।
- लगभग 72% MSME अब डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता देते हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है और लेन-देन लागत कम होती है।
- सरकारी सहायता और नीतिगत सुधार: सरकार ने MSME के लिये अपने आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, विकास को समर्थन देने के लिये वित्त वर्ष 2026 में 23,168 करोड़ रुपए का बजट आवंटन किया गया है।
- निवेश और टर्नओवर सीमा बढ़ाने तथा प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना शुरू करने जैसे सुधारों से कारीगरों, विशेषकर महिलाओं एवं ग्रामीण उद्यमियों को विशेष सहायता मिलेगी।
- क्षेत्रीय विकास और समावेशी वृद्धि: MSME क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
- SFURTI (पारंपरिक उद्योगों के निधि पुनरुद्धार की योजना) जैसी योजनाओं ने पारंपरिक क्षेत्रों में बदलाव लाकर ग्रामीण कारीगरों की उत्पादकता बढ़ाई है।
- इसके अलावा, अकेले जम्मू और कश्मीर ने PMEGP के तहत 3.56 लाख नौकरियाँ उत्पन्न कीं, जिससे क्षेत्रीय असमानताओं में काफी कमी आई।
- संवहनीयता और हरित पहल: संवहनीयता MSME विकास के लिये केंद्रीय बन रही है, हरित प्रौद्योगिकी के अंगीकरण और पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण में तेज़ी आ रही है।
- आत्मनिर्भर भारत ने MSME को सौर ऊर्जा, EV बैटरी और पवन टर्बाइन में स्वच्छ तकनीक पहल सहित हरित विनिर्माण प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रोत्साहित किया है।
- राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का ध्यान स्वच्छ प्रौद्योगिकी, जैसे सौर PV सेल और EV बैटरी पर केंद्रित है।
भारत के MSME क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच: MSME के लिये सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों में से एक औपचारिक ऋण तक उनकी सीमित पहुँच है, जो उनके विस्तार की क्षमता को बाधित करती है।
- यद्यपि मुद्रा योजना और CGTMSE जैसी योजनाओं ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान की है, फिर भी बड़ी संख्या में MSME अभी भी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं।
- केवल 2.5 करोड़ MSME (कुल 6.3 करोड़ में से) ने औपचारिक ऋण स्रोतों तक पहुँच बनाई है।
- यद्यपि मुद्रा योजना और CGTMSE जैसी योजनाओं ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान की है, फिर भी बड़ी संख्या में MSME अभी भी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं।
- विनियामक और अनुपालन बोझ: MSME क्षेत्र को विशेष रूप से छोटे उद्यमों के लिये महत्त्वपूर्ण विनियामक और अनुपालन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- कर, श्रम और पर्यावरण संबंधी नियमों की जटिलता के कारण प्रायः MSME पर उच्च अनुपालन लागत एवं प्रक्रियागत विलंब का बोझ पड़ता है।
- ये चुनौतियाँ विशेष रूप से ऑटो कम्पोनेंट्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे विनिर्माण क्षेत्रों में गंभीर हैं, जहाँ कड़े मानकों की आवश्यकता होती है।
- MSME ने उच्च अनुपालन लागत को वैश्विक बाज़ारों में उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा बताया है।
- कर, श्रम और पर्यावरण संबंधी नियमों की जटिलता के कारण प्रायः MSME पर उच्च अनुपालन लागत एवं प्रक्रियागत विलंब का बोझ पड़ता है।
- कुशल श्रम की कमी: कुशल श्रम की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है, विशेष रूप से श्रम-गहन क्षेत्रों जैसे वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण और रक्षा उपकरण में।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, उद्योग की ज़रूरतों और उपलब्ध कौशल के बीच असंगतता, MSME में उत्पादकता एवं नवाचार को सीमित करता है।
- लगभग 25% MSME कुशल श्रमिकों की कमी को एक महत्त्वपूर्ण चुनौती मानते हैं, विशेष रूप से वस्त्र और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में।
- PMEGP और अन्य योजनाओं का उद्देश्य इस समस्या का समाधान करना है, लेकिन कौशल अंतराल अभी भी काफी बड़ा है, जो MSME के विकास में बाधा डाल रहा है।
- तकनीकी अंतर और डिजिटल डिवाइड: यद्यपि MSME तेज़ी से डिजिटल भुगतान को अपना रहे हैं, वे अभी भी उद्योग 4.0, AI और स्वचालन जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने में पीछे हैं।
- तकनीकी अवसंरचना की कमी तथा किफायती अनुसंधान एवं विकास तक सीमित पहुँच के कारण MSME को उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने में बाधा आती है।
- यद्यपि 90% MSME ने डिजिटल भुगतान का अंगीकरण कर लिया है, केवल 18% डिजिटल ऋण प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं और केवल 13% ही ग्राहकों तक पहुँचने के लिये सक्रिय रूप से डिजिटल मार्केटिंग या ई-कॉमर्स का उपयोग करते हैं।
- अनुसंधान एवं विकास तथा तकनीकी अवसंरचना में सीमित निवेश MSME की कुशलतापूर्वक विस्तार करने की क्षमता में बाधा डालता है।
- बाज़ार तक पहुँच और प्रतिस्पर्द्धा: बड़े भागीदारों से प्रतिस्पर्द्धा और विपणन विशेषज्ञता की कमी के कारण MSME को बड़े, उच्च मूल्य वाले बाज़ारों तक पहुँचने में संघर्ष करना पड़ता है।
- यह विशेष रूप से निर्यात क्षेत्र में स्पष्ट है, जहाँ सशक्त प्रदर्शन के बावजूद MSME भारत के कुल निर्यात में 45.79% का योगदान करते हैं, फिर भी कई इकाइयाँ वैश्विक दिग्गज कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा झेलती हैं।
- उद्यम पोर्टल पर 5.7 करोड़ पंजीकरण होने के बावजूद, इस क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पहुँच अब भी सीमित बनी हुई है।
- यह विशेष रूप से निर्यात क्षेत्र में स्पष्ट है, जहाँ सशक्त प्रदर्शन के बावजूद MSME भारत के कुल निर्यात में 45.79% का योगदान करते हैं, फिर भी कई इकाइयाँ वैश्विक दिग्गज कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा झेलती हैं।
- अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और रसद: खराब सड़कें, अपर्याप्त बिजली आपूर्ति और अविश्वसनीय रसद सहित बुनियादी अवसंरचना की बाधाएँ MSME उत्पादकता को प्रभावित करती रहती हैं।
- ये मुद्दे ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रमुख हैं, जहाँ MSME को परिवहन एवं कच्चे माल की खरीद में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे परिचालन लागत में काफी वृद्धि होती है।
- भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 14-18% (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23) होने का अनुमान है, जो 8% के वैश्विक बेंचमार्क से लगभग दोगुना है। यह स्थिति संरचनात्मक अक्षमताओं को एक गंभीर समस्या के रूप में प्रस्तुत करती है।
- उद्यमिता में लैंगिक असमानताएँ: यद्यपि सरकार ने महिला उद्यमियों को समर्थन देने के लिये पहल की है, फिर भी उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें ऋण तक सीमित पहुँच, बाज़ार संपर्क एवं व्यावसायिक नेटवर्क शामिल हैं।
- महिलाओं के नेतृत्व वाले MSME कुल MSME उद्यमों का 26.2% हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें पुरुषों की तुलना में ऋण तक पहुँच में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- ASUSE (2023-24) के अनुसार, अब महिला-नेतृत्व के लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्यम (MSME) स्वामित्व वाले उद्यमों का 26.2% हिस्सा हैं। हालाँकि इनमें से 76% को ऋण सुलभ है, फिर भी 41% उद्यमों ने सीमित वित्तपोषण और तीव्र प्रतिस्पर्द्धा को अपनी वृद्धि के प्रमुख अवरोधों के रूप में चिह्नित किया है।
भारत के MSME क्षेत्र की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- नियामक कार्यढाँचे का सरलीकरण: भारत को MSME पर अनुपालन बोझ को कम करने के लिये नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना होगा।
- इसमें कर दाखिल करने को सरल बनाना, प्रक्रियागत विलंब को कम करना और एकल खिड़की निकासी प्रणाली बनाना शामिल है।
- एक-क्लिक अनुपालन प्लेटफॉर्म शुरू करने और नियमित सरकारी समन्वय के लिये डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाने से MSME को अधिक कुशलतापूर्वक अनुपालन करने में सहायता मिलेगी।
- डिजिटल ऋण के माध्यम से वित्तीय सहायता को सुदृढ़ करना: ऋण सुगम्यता और सामर्थ्य MSME के लिये प्रमुख बाधाएँ बनी हुई हैं।
- डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना और ऋण प्रदान करने में NBFC (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करना MSME को सशक्त करेगा, विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
- संपार्श्विक-मुक्त ऋण की पेशकश और ऋण गारंटी निधि का विस्तार वित्तीय लचीलापन प्रदान करेगा, साथ ही MSME में नवाचार को भी बढ़ावा देगा।
- कौशल एवं कार्यबल विकास पहल: MSME के लिये प्रतिस्पर्द्धी बने रहने हेतु कौशल अंतर को भरना आवश्यक है।
- सरकार को स्वचालन, AI और डेटा एनालिटिक्स सहित उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एकीकृत करना चाहिये।
- निजी क्षेत्र की कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी करके अनुकूलित कौशल विकास कार्यक्रम बनाने से कार्यबल को क्षेत्र की उभरती जरूरतों के अनुरूप बनाया जा सकेगा।
- इससे MSME में उत्पादकता और नवाचार को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
- MSME के लिये ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग को बढ़ावा देना: बाज़ार पहुँच बढ़ाने के लिये MSME को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और डिजिटल मार्केटिंग टूल अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- MSME को ऑनलाइन स्टोर स्थापित करने या GEM (सरकारी ई-मार्केटप्लेस) जैसे बड़े डिजिटल मार्केटप्लेस के साथ एकीकृत करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने से MSME को घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिल सकती है।
- इस परिवर्तन के लिये डिजिटल प्रशिक्षण का समर्थन और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का विकास महत्त्वपूर्ण है।
- उन्नत अवसंरचना विकास: MSME के समक्ष आने वाली अवसंरचना संबंधी बाधाओं को दूर करना, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महत्त्वपूर्ण है।
- सरकार को वंचित क्षेत्रों में औद्योगिक पार्क, लॉजिस्टिक्स हब और सामान्य सुविधा केंद्र (CFC) विकसित करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, परिवहन नेटवर्क और बिजली आपूर्ति विश्वसनीयता में सुधार से परिचालन लागत कम होगी तथा वैश्विक बाज़ारों में MSME की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
- महिला उद्यमियों के लिये केंद्रित नीति: MSME क्षेत्र में महिला उद्यमियों को वित्तीय प्रोत्साहन, नेटवर्किंग के अवसर और मार्गदर्शन प्रदान करने वाली लक्षित योजनाओं की आवश्यकता है।
- इसमें महिलाओं के समक्ष आने वाली विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिये बढ़ी हुई ऋण गारंटी, विशेष ऋण उत्पाद और क्षमता निर्माण कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
- महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने से आर्थिक समावेशिता और क्षेत्र के समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान मिल सकता है।
- हरित एवं संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना: भारत को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके और पर्यावरण ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करके MSME को हरित प्रौद्योगिकियों और संधारणीय उत्पादन विधियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- आयात प्रतिस्थापन पर लक्षित नीतियाँ, जैसे टिकाऊ सामग्रियों के स्थानीय स्रोत के लिये समर्थन, MSME को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार प्रथाओं की ओर संक्रमण में भी मदद करेगी।
- इससे MSME न केवल वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप कार्य कर सकेंगे, बल्कि आयात पर उनकी निर्भरता भी कम होगी।
- क्षेत्र-विशिष्ट ऋण कार्यक्रम: NITI आयोग की सिफारिशों के अनुसार, वस्त्र, रक्षा विनिर्माण और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट ऋण कार्यक्रम स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
- इन कार्यक्रमों को विशेष रूप से इन उच्च विकास वाले क्षेत्रों में MSME के लिये कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और बाज़ार अभिगम जैसी चुनौतियों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इस तरह के विशेष वित्तपोषण से उनकी उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- बेहतर बाज़ार आसूचना और निर्यात सहायता: MSME निर्यात को बढ़ावा देने के लिये, भारत को बाज़ार आसूचना कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये जो वैश्विक बाज़ार के रुझान, व्यापार बाधाओं और उपभोक्ता वरीयताओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करते हैं।
- MSME क्लस्टरों में समर्पित निर्यात सहायता प्रकोष्ठों की स्थापना के साथ-साथ निर्यात प्रक्रियाओं में MSME को प्रशिक्षण देने से यह सुनिश्चित होगा कि वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बेहतर ढंग से शामिल होने के लिये तैयार हैं।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी MSME को निर्यात अनुपालन और विनियमनों को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित करने में सहायता कर सकती है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान निकायों के सहयोग से नवाचार केंद्रों का निर्माण MSME के लिये अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच को सब्सिडी देना तथा अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने वाले MSME को कर प्रोत्साहन प्रदान करना नवाचार को प्रोत्साहित करेगा।
- इसके अतिरिक्त, अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को सुविधाजनक बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि MSME उत्पादन दक्षता और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकें।
- कानूनी और बौद्धिक संपदा समर्थन में सुधार: नवाचार को बढ़ावा देने के लिये MSME के लिये IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) समर्थन को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
- सरकारी एजेंसियों को MSME को उनकी बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिये रियायती IPR पंजीकरण और कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- पेटेंट अधिकारों, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट पर प्रशिक्षण प्रदान करने से MSME को अपने नवाचारों की रक्षा करने तथा क्षेत्र में अधिक रचनात्मक उपक्रमों को प्रोत्साहित करने में भी सशक्त बनाया जाएगा।
निष्कर्ष:
भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने तक की यात्रा में, भारत का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र अभूतपूर्व वृद्धि की क्षमता रखता है। वित्तीय सुगम्यता व कौशल की कमी और नियामकीय जटिलताओं जैसी चुनौतियों का समाधान करके, ये उद्यम नवाचार तथा बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन के प्रमुख वाहक बन सकते हैं। इन व्यवसायों को डिजिटल उपकरणों, लक्षित ऋण योजनाओं तथा उन्नत बुनियादी अवसंरचना से सशक्त बनाना, उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा। समावेशिता और संधारणीयता को केंद्र में रखकर, MSME वास्तव में भारत की भावी समृद्धि की रीढ़ बन सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की आर्थिक वृद्धि और रोज़गार सृजन को गति देने में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। MSME के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं तथा इन चुनौतियों का समाधान करने और क्षेत्र में सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकार की नीतियों को किस प्रकार बेहतर बनाया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सरकार के समावेशी विकास के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 3. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |