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राजस्थान

दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण राजस्थान में भारी वर्षा

  • 23 Jun 2025
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सक्रिय दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभाव में आ गया है, जिसके फलस्वरूप राज्य के विभिन्न भागों में विस्तृत एवं तीव्र वर्षा दर्ज की गई है।

  • टोंक ज़िले के निवाई में राज्य में सर्वाधिक 165 मिमी वर्षा दर्ज की गई।

मुख्य बिंदु

  • राजस्थान में वर्षा वितरण: 
    • राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा वितरण में उल्लेखनीय भिन्नता देखने को मिलती है।
      • पूर्वी राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 64.9 सेमी होती है, जबकि पश्चिमी राजस्थान में यह घटकर 32.7 सेमी रह जाती है।
    • राजस्थान के पूर्वी भाग में पश्चिमी भाग की तुलना में काफी अधिक वर्षा होती है तथा राज्य की कुल वार्षिक वर्षा में दक्षिण-पश्चिमी मानसून का योगदान लगभग 91% होता है।
    • पश्चिमी राजस्थान मुख्यतः शुष्क और अर्द्ध-शुष्क परिस्थितियों से युक्त है, जिसमें उत्तर-पश्चिमी भाग सर्वाधिक शुष्क है।
      • जैसलमेर को राज्य का सबसे शुष्क ज़िला माना जाता है, जहाँ वार्षिक वर्षा 100 मिमी से भी कम होती है।
    • दक्षिणी राजस्थान में राज्य की सर्वाधिक वर्षा दर्ज की जाती है, विशेष रूप से झालावाड़ और बांसवाड़ा जैसे ज़िलों में।
      • झालावाड़ राजस्थान के सभी ज़िलों में सर्वाधिक औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है।
    • अरावली पर्वतमाला का प्रभाव: अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी ढलानों, जैसे पाली और जालौर ज़िलों में पश्चिमी राजस्थान के अन्य भागों की तुलना में अधिक वर्षा होती है।
  • ऋतुओं के अनुसार भिन्नता:
    • मानसून ऋतु (जून से सितंबर): कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 90% इसी ऋतु में होता है।
    • शीत ऋतु (जनवरी और फरवरी): स्थानीय मौसम की स्थिति के कारण मामूली वर्षा होती है।
    • उत्तर-मानसून ऋतु: कुल वार्षिक वर्षा में इसका योगदान बहुत कम होता है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त वर्षा मौसमी है, जो जून और सितंबर के मध्य होती है।
  • मानसून के गठन को प्रभावित करने वाले कारक:
    • विभेदक तापन एवं शीतलन: स्थल, जल की अपेक्षा अधिक तेज़ी से गर्म होता है, जिससे भारत के ऊपर निम्न दबाव तथा आस-पास के समुद्री क्षेत्रों पर उच्च दबाव का क्षेत्र निर्मित होता है।
    • अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ): यह एक निम्न दबाव पट्टी है, जहाँ उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं।
    • मेडागास्कर के पूर्व में उच्च दबाव क्षेत्र: यह उच्च दबाव क्षेत्र हिंद महासागर में लगभग 20° दक्षिण अक्षांश पर स्थित होता है।
    • तिब्बती पठार का तापन: ग्रीष्म ऋतु में तीव्र तापन के कारण ऊपर की ओर तीव्र गतिशील हवाएँ चलती हैं, जिससे उच्च ऊँचाई पर निम्न दबाव क्षेत्र बनता है।
    • जेट स्ट्रीम: ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी जेट स्ट्रीम, हिमालय के उत्तर की ओर स्थित हो जाती है।
    • दक्षिणी दोलन (SO): यह प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच वायुदाब का आवधिक उलटाव है, जो मानसून के स्वरूप को प्रभावित करता है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून का तंत्र और प्रारंभ:
    • ITCZ की गति: यह सूर्य की गति के साथ उत्तर की ओर स्थानांतरित होता है।
    • हवा की दिशा: दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ भूमध्य रेखा को पार करती हैं और कोरिओलिस बल के प्रभाव से दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं में परिवर्तित हो जाती हैं।
    • मानसून गर्त: जुलाई में ITCZ, 20°-25° उत्तर अक्षांश तक पहुँच जाता है, जो सिंधु-गंगा के मैदान पर स्थित होता है।
      दो मुख्य शाखाएँ: अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा
  • मानसून में अवरोध: मानसून के दौरान वर्षा निरंतर नहीं होतीमानसून गर्त की स्थिति में बदलाव के कारण शुष्क अवधियाँ (अवरोध) उत्पन्न होती हैं।

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