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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    किस प्रकार अवैध रेत खनन नदियों की पारिस्थितिकी व जनजीवन को प्रभावित कर रहा है आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा रेत खनन दिशा-निर्देशों के मुख्य बिंदुओं की व्याख्या कीजिये।

    27 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • अपने उत्तर की शुरुआत बालू की उपयोगिता बताते हुए करें।
    • बालू खनन एवं उसके घटकों की चर्चा करें।
    • अवैध बालू खनन का नदी के पारिस्थितिकी तंत्र तथा लोगों के जन-जीवन पर प्रभाव को लिखें।
    • बालू खनन के दिशा-निर्देशों को रेखाकिंत करें तथा अंत में निष्कर्ष लिखें।

    बालू हमारे पर्यावरण के संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण खनिज है। यह ज्वारीय तरंगों तथा तूफानों के समक्ष प्रतिरोधी का कार्य करती है। यह कई जलीय तथा उभयचर प्राणियों के लिये आवास तथा प्रजनन का स्थान प्रदान करती है, जिसके कारण बालू तथा मिट्टी का खनन पर्यावरण के लिये समस्या बन गई है, क्योंकि बढ़ते औद्योगीकरण तथा निर्माण कार्यों के कारण बालू की मांग बढ़ती जा रही है। परंतु मुख्य चिंता का विषय कई राज्यों में अनियंत्रित, बेहिसाब तथा अवैध बालू खनन है जो कि नदी के पारिस्थितिक तंत्र तथा लोगों के जनजीवन को प्रभावित कर रहा है।

    अवैध खनन से देश के बहुमूल्य खनिजों की क्षति होती है तथा बदले में यह गंभीर स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएँ उत्पन्न करता है। अवैध खनन की गतिविधियों में शामिल हैं: 1- बिना लाइसेंस के खनन करना 2- लाइसेंस प्राप्त क्षेत्र से बाहर खनन करना 3- स्वीकृत मात्रा से अधिक खनिजों का उत्खनन 4- लाइसेंस का नवीकरण लंबित होने के बावजूद खनन करना। 

    नदी धारा के साथ-साथ अत्यधिक बालू तथा बजरी का खनन नदी के क्षरण का कारण बन सकता है। यह जलधारा के तल को गहरा कर देता है, जिसके कारण तटों का कटाव बढ़ सकता है। धारा की तली तथा तटों से बालू हटने के कारण नदियों तथा ज्वारनदमुख की गहराई बढ़ जाएगी जो नदी के मुहानों तथा तटीय प्रवेशिकाओं को विस्तारित करेगी। इसके कारण नजदीकी समुद्र से खारे पानी का प्रवेश भी हो सकता है। अत्यधिक खनन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि का प्रभाव नदियों के ऊपर अधिक पड़ेगा। अत्यधिक बालू खनन पुलों, तटों तथा नजदीकी संरचनाओं के लिये खतरा पैदा कर सकता है। यह संलग्न भूमिगत जल परितंत्र को भी प्रभावित करता है। 

    अत्यधिक धारारेखीय बालू खनन के कारण जलीय तथा तटवर्ती आवासों को नुकसान पहुँचता है। इसके प्रभाव में नदी तल का क्षरण, नदी तल का कठोर हो जाना, नदी तल के समीप जलस्तर में कमी होना तथा जलग्रीवा की अस्थिरता इत्यादि शामिल हैं। लगातार खनन नदी तल को पूर्ण रूप से खनन की गहराई तक क्षरित कर सकता है। बालू खनन के कारण गाडि़यों की आवाजाही अधिक होती है, जो कि पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। अनियोजित तरीके से एकत्रीकरण तथा अनियंत्रित रूप से फेंकना भी जल की गुणवत्ता को खराब कर सकता है जो कि जलशोधन इकाइयों की लागत में वृद्धि करेगा तथा जलीय जीवन को प्रदूषित करेगा। 

    चूँकि अवैध बालू खनन निकटवर्ती गाँवों के कई लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है, अतः कई बार बालू माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करना मुश्किल होता है। पूरे क्रियाकलाप में बड़ी मात्र में काला धन लगा होता है। 

    बालू खनन के विनियमन की चुनौती को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने धारणीय दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

    इसमें नदी के बालू का धारणीय रूप से खनन सुनिश्चित करने के लिये एक विस्तृत कार्यक्रम की बात की गई है। लघु खनिजों जिसमें बालू तथा बजरी भी शामिल है, के लिये 5 एकड़ तक के खनन लीज के लिये पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाले ज़िला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा दी जाएगी। 

    व्यक्तिगत उपयोग तथा छोटे स्तर पर परंपरागत व्यावसायिक कार्यों के लिये कुम्हारों इत्यादि को पर्यावरण मंज़ूरी से छूट दी गई है। 

    बाढ़ के बाद खेतों में जमा बालू हटाने को खनन कार्य नहीं माना जाएगा तथा इसके लिये किसी पर्यावरण मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होगी। 

    खनिजों के संरक्षण के लिये आवश्यक उपायों की पहचान करना, अवैध खनन के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाना तथा वैज्ञानिक खनन पद्धति की पहचान करना इत्यादि। 

    निष्कर्षः 
    इन दिशा-निर्देशों का मूल उद्देश्य खनिजों का संरक्षण, अवैध खनन की रोकथाम के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाना, बालू और बजरी को कानूनी रूप से पर्यावरण हेतु धारणीय और सामाजिक रूप से उत्तरदायी तरीके से सुनिश्चित करना, निकाले गए खनिज की निगरानी व परिवहन की प्रभावशीलता में सुधार करना, नदी की साम्यावस्था एवं इसके प्राकृतिक पर्यावरण के लिये पारिस्थितिकी तंत्र के जीर्णोद्धार तथा प्रवाह को सुनिश्चित करना, तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों तथा आवास की पुर्नस्थापना और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया को मुख्यधारा में शामिल करना है। दिशा-निर्देश आशाजनक प्रकृति के हैं। इनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राजनीतिक मशीनरी की इच्छाशक्ति, सख्त विनियमन के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है। 

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