इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में लोकसभा व विधानसभाओं के साथ-साथ चुनाव के पक्ष व विपक्ष में दिये जाने वाले विभिन्न तर्कों की चर्चा करते हुए इसकी व्यवहार्यता के संबंध में अपना मत प्रकट करें।

    07 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा: 

    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाने के पक्ष व विपक्ष में दिये जाने वाले तर्कों की जाँच करें।
    • साथ-साथ चुनाव कराए जाने में आने वाली व्यावहारिक समस्यों की चर्चा करें।
    • एक बेहतर निष्कर्ष के साथ उत्तर समाप्त करें।

    भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाने के संबंध में समय-समय पर विभिन्न मत प्रकट किये जाते रहे हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा भी लोकसभा, विधानसभा, तथा स्थानीय निकाय के चुनाव साथ-साथ कराये जाने की बात कही गयी तो यह मुद्दा एक बार पुनः जोर पकड़ता नज़र आ रहा है। परंतु किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले हमें इसके पक्ष-विपक्ष में दिये जाने वाले तर्कों की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिये 

    पक्ष:

    • एक साथ चुनाव शासन में निरंतरता, स्थिरता और दक्षता सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
    • चुनावी आदर्श आचार संहिता के कारण विकासात्मक कार्य  दुष्प्रभावित होते हैं और बार-बार चुनाव के कारण कई बार नीतिगत पक्षाघात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 
    • इससे भ्रष्टाचार को नियंत्रण करने में भी बहुत हद तक सहायता मिलेगी। वस्तुतः वर्तमान में भारत में चुनाव भ्रष्टाचार व काले धन का एक प्रमुख स्रोत है।
    • लगातार व बार-बार चुनाव के कारण ज़िला प्रशासन अत्यधिक व्यस्त रहता है। कई हितधारकों, यथा- शिक्षक, सुरक्षाकर्मी आदि के चुनाव में भागीदारी से उनका सामान्य कार्य प्रभावित होता है।
    • बार-बार चुनाव मानव व वित्तीय संसाधनों पर अत्यधिक बोझ डालता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिये इन संसाधनों की हानि अत्यधिक महत्त्व रखती है ।
    • इसके अतिरिक्त चुनावी रैलियों के कारण आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिये जाति और धर्म जैसे मुद्दों को बढ़ावा दिया जाता है जिससे समाज में जाति व धर्म आधारित खाइयाँ चौड़ी होती हैं ।

    विपक्ष:

    • साथ-साथ चुनाव भारत के संघीय भावना के विरुद्ध हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। राष्ट्रीय मुद्दों के कारण संभव है कि स्थानीय विकासात्मक मुद्दे पीछे छूट जाएँ।
    • कई बार किसी विशेष व्यक्ति के प्रभाव में जनमत प्रभावित हो सकता है, जो संविधान की मूल भावना ( संसदीय व संघात्मक व्यवस्था ) के विरुद्ध होगा।
    • राज्य सरकारों के विरुद्ध उत्पन्न होने वाली चुनावी लहर करिश्माई व्यक्तित्व व मजबूत केंद्र सरकार के प्रभाव में बेअसर सिद्ध हो सकती है।
    • भारत जैसे विविधतामूलक देश में साथ-साथ चुनाव विविधता को अस्वीकार करने के समान होगा।

    एक साथ इतने बड़े स्तर पर चुनाव करवाने में कई व्यावहारिक समस्याएं भी उत्त्पन्न हो सकती हैं, जैसे:

    a) संविधान संशोधन की आवश्यकता, क्योंकि कई राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के कार्यकाल में काफी अंतर है। साथ ही बिना अविश्वास प्रस्ताव व कार्यकाल की समाप्ति के किसी सदन को भंग करना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध होगा।
    b) पुनः यदि किसी/ किन्हीं राज्य विधानसभाओं का समय से पूर्व विघटन हो जाता है तो क्या यह अगले चुनाव तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहेगा?क्या यह एक प्रकार से राज्य की जनता को पूर्ण बहुमत वाली सरकार न चुनने का दंड देने के सामान न होगा?
    c) यदि केंद्र सरकार बीच में ही लोकसभा में अपना बहुमत खो देती है, जबकि अन्य 29 राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार हो, तो उनका क्या होगा? 

    इस प्रकार की कई अन्य व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं जो एक साथ चुनाव के विचार पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित करती हैं। फिर भारत जैसे विविधतामूलक राष्ट्र में एक साथ चुनाव प्रकारांतर से लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत प्रतीत होता है । 1967 तक का साथ-साथ चुनाव मूल रूप से एकदलीय वर्चस्व के कारण था न कि इसे डिॆज़ाईन किया गया था और अब पुनः वापस लौटना बहुत व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2