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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘राष्ट्रसंघ’ की विफलता में उसकी ‘सफलताओं’ को नहीं नकारा जा सकता है। इस आलोक में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नियमन के लिये प्रथम विश्वयुद्ध उपरांत बने राष्ट्रसंघ की सफलताओं का उल्लेख करें।

    08 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नियमन के लिये प्रथम विश्वयुद्ध उपरांत राष्ट्रसंघ की स्थापना एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह पेरिस शांति सम्मेलन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। अपने जीवनकाल के प्रारंभ से ही राष्ट्रसंघ ने अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव में वृद्धि करना, युद्ध के कारणों को मिटाना तथा विश्व में शांति स्थापित रखने के अपने मुख्य उद्देश्यों के अनुरूप कार्य किया। उसके समक्ष अनेक अंतर्राष्ट्रीय विवाद आए और कुछ हद तक वह उनको सुलझाने में भी सफल रहा। छोटे-छोटे राज्यों के झगड़ों को हल करने में राष्ट्रसंघ को पर्याप्त सफलता मिली। जैसे-

    • 1922 ई. में आलैण्ड के टापुओं पर अधिकार करने के संबंध में स्वीडन और फिनलैंड में झगड़ा उपस्थित हुआ। राष्ट्रसंघ ने ये द्वीप फिनलैण्ड को दिलवा दिये। एक अंतर्राष्ट्रीय संधि के द्वारा इन द्वीपों को तटस्थ घोषित किया गया।
    • 1921 ई. में यूनान तथा युगोस्लाविया के मध्य अल्बेनिया की सीमा के विषय में विवाद प्रारंभ हुआ, परंतु राष्ट्रसंघ ने शांतिपूर्ण ढंग से झगड़े का निपटारा कर दिया। 
    • 1923 ई. में लेटेशिया नगर के संबंध में झगड़ा प्रारंभ हुआ। 1922 ई. में इस नगर पर से पेरू का अधिकार समाप्त करके कोलम्बिया का अधिकार कायम कराया गया था। परंतु, 1923 ई. में पेरू ने लेटेशिया पर अधिकार करने के लिये अपनी सेनाएँ भेज दीं। राष्ट्रसंघ ने मध्यस्थता करके लेटेशिया पुनः कोलम्बिया को दिलवा दिया। 
    • 1923 ई. में पोलैण्ड और चेकोस्लोवाकिया में सीमा संबंधी झगड़ा आरंभ हुआ, जिसे शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में राष्ट्रसंघ सफल रहा।
    • 1923 ई. में हंगरी और रूमानिया के मध्य सीमा संबंधी विवादों का निपटारा भी राष्ट्रसंघ ने सफलतापूर्वक किया।
    • 1925 ई. में सीमा-संबंधी विवाद के कारण यूनान ने बुल्गारिया पर आक्रमण कर दिया राष्ट्रसंघ ने यूनान को आर्थिक बहिष्कार की धमकी दी, जिससे डरकर यूनान ने युद्ध बंद कर दिया तथा अपनी सेनाएँ वापस बुला ली। इन उपलब्धियों से राष्ट्रसंघ की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई।

    1922 ई. से 1930 ई. की अवधि में राष्ट्रसंघ अपनी उन्नति के चरम शिखर पर था। लेकिन, उसके तुरंत बाद उसके पतन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। शस्त्रास्त्रों की होड़ को नियंत्रित करने के लिये राष्ट्रसंघ ने अनेकानेक प्रयत्न किये, लेकिन इस क्षेत्र में उसे  लेशमात्र भी सफलता नहीं मिली। कोई भी बड़ा राज्य इस मामले में सहयोग करने को तैयार न था और जब जेनेवा में निरस्त्रीकरण सम्मेलन समाप्त हुआ तो पुनः राष्ट्रों के मध्य शस्त्रीकरण की घोर प्रतिस्पर्धा चल पड़ी जिसने अंतर्राष्ट्रीय वातावरण को दूषित कर द्वितीय विश्वयुद्ध के मार्ग को प्रशस्त किया। 

    परंतु, अपनी इस विफलता के बावजूद जिस प्रकार राष्ट्रसंघ ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक शांति-संस्थापक के रूप में, सौहार्द को बढ़ाने में तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि के लिये अपने कार्यों में जो सफलताएँ प्राप्त की, उन्हें नकारा नहीं जा सकता। 

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