इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्तमान परिस्थितियों में शंघाई सहयोग संगठन से भारत को भले ही सीमित लाभ हुआ हो किंतु इसके दीर्घकालिक लाभ को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। स्पष्ट करें।

    20 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • शंघाई सहयोग संगठन में भारत के शामिल की पृष्ठभूमि।
    • भारत के लिये शंघाई सहयोग संगठन का महत्त्व।
    • भारत के लिये शंघाई सहयोग संगठन के महत्त्व को सीमित करने वाले बिंदु।
    • निष्कर्ष।

    जून 2017 को कज़ाखस्तान की राजधानी अस्ताना में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 17वें शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को इस संगठन के पूर्ण कालिक सदस्य देश के रूप में दर्जा प्रदान किया गया था। चीन के वर्चस्व वाले SCO में भारत के प्रवेश को एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया। भारत के प्रवेश से इस संगठन को अखिल एशियाई स्वरूप प्रदान करने तथा क्षेत्रीय भू-राजनीति एवं व्यापार संबंधित अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों और वार्त्ताओं में अधिक विकास हो पाएगा।

    भारत के लिये SCO का महत्त्व:

    • SCO का पूर्णकालिक सदस्य बनने से मध्य एशिया में भारत की स्थिति मजबूत होगी। इसके माध्यम से इस क्षेत्र के एकीकरण, कनेक्टिविटी एवं स्थिरता में वृद्धि की भारत के प्रयासों को बल मिलेगा।
    • SCO के विभिन्न देशों में तेल और प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडार हैं। अतः पूर्णकालिक सदस्यता के माध्यम से मध्य एशिया की प्रमुख गैस और तेल अन्वेषण परियोजनाओं तक भारत की पहुँच संभव होगी।
    • SCO के सदस्य के रूप में भारत को आतंकवाद से निपटने और इस क्षेत्र में सुरक्षा और रक्षा से संबंधित मुद्दों पर एक ठोस कार्यवाही करने के लिये दबाव बनाने में मदद मिलेगी। आतंकवाद के विरुद्ध भारत के संघर्ष में SCO और उसके ‘रीजनल एंटी-टेररिज्म स्ट्रक्चर’ का सहयोग अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।

    हालाँकि, कई विद्वानों का मानना है कि इसका अधिदेश, संरचना तथा वर्तमान परिदृश्य भारत के लिये SCO के महत्त्व को सीमित करता है। इसके पीछे जो तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं, वो निम्नलिखित हैं-

    • आतंकवाद के मुद्दे पर चीन का पाकिस्तान के समान ही भारत से अलग दृष्टिकोण है। इसलिये संभव है कि SCO की सदस्यता, इस संदर्भ में भारत की चिंता को हल करने में उतनी सहायक न हो सके।
    • भारत, कनेक्टिविटी से संबंधित चीन के महत्त्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हुआ है। इसके साथ ही, चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को लेकर भी भारत की आपत्तियाँ हैं। मध्य एशियाई देश तथा रूस, चीन के कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के पक्ष में हैं। पूरी संभावनाएँ हैं कि चीन, SCO को अपनी विशाल कनेक्टिविटी तथा बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के एक साधन के रूप में इस्तेमाल करे। इस प्रकार, वह भारत पर अधिक कूटनीतिक दबाव डालने का प्रयास करेगा।
    • रूस और चीन का SCO के संदर्भ में साझा दृष्टिकोण अपने में एक ‘नई व्यवस्था (New Order)’ की ओर संकेत करता है। यह स्पष्ट रूप से पश्चिमी जगत को लक्षित करता है। परिणामस्वरूप, SCO को प्रायः “एंटी-नाटो” कहा जाता है अर्थात् माना जाता है कि इसका उद्देश्य अमेरिका और यूरोप की शक्ति को संतुलित करना है। अतः यह अमेरिका के साथ भारत के घनिष्ठ सैन्य संबंधों से सामंजस्य स्थापित करने के दृष्टिकोण से बेमेल सा प्रतीत हो रहा है।

    यह संभव है वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में SCO की पूर्ण सदस्यता के लाभ सीमित हों। तथापि इसके दीर्घकालिक लाभ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि भारत लंबे समय से यह सदस्यता प्राप्त करना चाहता था। चतुराईपूर्ण कूटनीति और दृढ़ कार्यवाही के माध्यम से भारत इन सीमाओं का मुकाबला कर सकता है तथा सदस्यता को एक अवसर के रूप में परिवर्तित कर सकता है। इस अर्थ में, SCO भारत को उसके प्रभाव का विस्तार करने के लिये एक और माध्यम उपलब्ध कराता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow