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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न 1. मुगल काल में फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय कला परंपराओं का अभूतपूर्व समन्वय हुआ। मुगल संरक्षण ने भारत में दृश्य और प्रदर्शन कलाओं के विकास को किस प्रकार प्रभावित किया, परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    03 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • मुगल सांस्कृतिक संरक्षण के दौरान फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय तत्त्वों के सम्मिश्रण का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • परीक्षण कीजिये कि मुगल संरक्षण ने भारत में दृश्य और प्रदर्शन कलाओं के विकास को किस प्रकार प्रभावित किया।
    • अंत में, इसकी विरासत और भारतीय कला एवं संस्कृति पर दीर्घकालिक प्रभाव की चर्चा कीजिये।

    परिचय:

    मुगल काल (वर्ष 1526–वर्ष 1857) भारत के सांस्कृतिक इतिहास में एक विशिष्ट चरण के रूप में उभरा, जिसे फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय कला परंपराओं के असाधारण संगम ने विशेष रूप दिया। दूरदर्शी संरक्षण के माध्यम से, मुगल सम्राटों ने भारत की दृश्य और मंचीय कलाओं को रूपांतरित किया, जिससे एक अनूठे इंडो-फारसी सौंदर्यशास्त्र की उत्पत्ति हुई, जिसने उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक पहचान को परिभाषित किया।

    मुख्य भाग:

    दृश्य कला: शैलियों का मिश्रण

    • चित्रकला: हुमायूँ और अकबर के समय में, फारसी कलाकारों जैसे मीर सैयद अली और अब्दुस समद ने मुगल लघुचित्रकला शैली की नींव रखी।
      • अकबर की शिल्पशाला में फारसी कलाकारों और भारतीय चित्रकारों, दोनों को नियुक्त किया गया था तथा उन्होंने हमज़ानामा और अकबरनामा जैसी उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण किया, जिनमें फारसी परिशुद्धता को भारतीय प्रकृतिवाद के साथ मिश्रित किया गया था।
      • जहाँगीर के शासनकाल के दौरान चित्रकला में नई परिष्कृतता आई– चित्रों, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को सजीव यथार्थवाद के साथ चित्रित किया गया।
      • शाहजहाँ के अधीन, सुंदरता (Elegance) और समरूपता (Symmetry) का प्रभुत्व रहा, जो दरबारी परिष्कार को दर्शाता है।
    • स्थापत्य कला: मुगल स्थापत्य कला सांस्कृतिक समन्वय की दृश्य अभिव्यक्ति बन गई।
      • हुमायूँ का मकबरा (दिल्ली) ने भारतीय परिवेश में फारसी चारबाग शैली की शुरुआत की।
      • अकबर का फतेहपुर सीकरी राजपूती और इस्लामी रूपांकनों का समन्वय प्रस्तुत करता है, जो शाही समावेशिता का प्रतीक है।
      • ताजमहल इंडो-इस्लामिक कला की पराकाष्ठा, फारसी ज्यामिति, मध्य एशियाई गुंबदों और भारतीय शिल्पकला का पूर्ण सामंजस्य के साथ संयोजन है।
      • इस संश्लेषण (fusion) ने बाद की वास्तुशिल्प शैलियों, राजपूत महलों से लेकर औपनिवेशिक इंडो-सारासेनिक इमारतों तक, सभी को प्रभावित किया।
    • सज़ावटी कला: मुगल दरबारों ने विलासितापूर्ण शिल्पों के विकास को सशक्तीकरण प्रदान किया — जड़ाई कार्य (पिएत्रा ड्यूरा), वस्त्र, सुलेख तथा आभूषण निर्माण ने अत्यधिक प्रगति की।
      • फारसी सुलेख कला का भारतीय पुष्प डिज़ाइनों के साथ मिश्रण हुआ, जो ताजमहल और एतमाद-उद्-दौला के मकबरे के शिलालेखों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

    प्रदर्शन कलाएँ: ध्वनि और लय का सामंजस्य

    • संगीत: मुगल संरक्षण ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया। बादशाह अकबर के दरबारी संगीतकार तानसेन ने फारसी और भारतीय रागों का समन्वय किया, जिससे ग्वालियर घराने का उदय हुआ।
      • बाद के शासकों ने ध्रुपद एवं ख्याल को बढ़ावा दिया और इस अवधि के दौरान सितार एवं तबला जैसे वाद्ययंत्र विकसित हुए।
    • नृत्य और रंगमंच: यद्यपि (कुछ हद तक) नियंत्रित, मुगल दरबारों ने कथक को प्रभावित किया, जिसने फारसी दरबारी नज़ाकत (grace) और कथात्मक तत्त्वों को समाहित किया।
      • महफिल और नक्काल परंपराएँ भारतीय-फारसी प्रदर्शन संस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं।

    निष्कर्ष

    मुगल काल भारत की साझी संस्कृति (गंगा-जमुनी तहज़ीब) का प्रतीक था, जहाँ विविध कलात्मक परंपराएँ एक साझा सौंदर्यबोध में समाहित थीं। अपने संरक्षण के माध्यम से, मुगलों ने न केवल कलाओं को समृद्ध किया, बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक विरासत भी गढ़ी, जो आज भी भारतीय कला, वास्तुकला और संगीत को प्रेरित करती है।

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