- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
प्रश्न: “औपचारिक मान्यता के बिना संवाद” अफगानिस्तान में तालिबान-नेतृत्व वाले शासन के प्रति भारत के दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है। भारत की इस नीति का उसके सुरक्षा, आर्थिक तथा नैतिक हितों के संदर्भ में समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
28 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के प्रति भारत के दृष्टिकोण का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- इस नीति का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
औपचारिक मान्यता के बिना संवाद/सहभागिता, अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के प्रति भारत के संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण को सटीक रूप से दर्शाती है। भारत ने यद्यपि तालिबान को आधिकारिक मान्यता देने से परहेज़ किया है, फिर भी वह अपनी सुरक्षा, आर्थिक और नैतिक हितों की रक्षा के लिये सीमित राजनयिक एवं मानवीय संवाद/सहभागिता जारी रखे हुए है। यह नीति रणनीतिक आवश्यकता और नैतिक संयम के बीच संतुलन को दर्शाती है।
मुख्य भाग:
भारत के सुरक्षा हित
- रणनीतिक भू-राजनीतिक साझेदारी: भारत अफगानिस्तान को क्षेत्रीय सुरक्षा और विरोधी प्रभावों (विशेष रूप से पाकिस्तान के) का मुकाबला करने के लिये महत्त्वपूर्ण मानता है।
- अफगान-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट ने पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव के प्रतिकार के रूप में तालिबान के साथ संवाद हेतु भारत की रणनीतिक गणना को प्रभावित किया।
- 1990 के दशक में उत्तरी गठबंधन को भारत का समर्थन और अफगानिस्तान के सबसे बड़े क्षेत्रीय विकास भागीदारों में से एक के रूप में इसकी भूमिका एक दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- आतंकवाद-रोधी सहयोग: वर्ष 2001 के बाद, भारत ने अफगानिस्तान को आतंकवाद का गढ़ बनने से रोकने के लिये अफगान सुरक्षा बलों के क्षमता निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- तालिबान-नेतृत्व वाली अफगान सरकार द्वारा हाल ही में भारत के विरुद्ध अफगान भूमि के उपयोग की अनुमति न देने का संकल्प बदलती वास्तविकताओं के बीच विकसित हो रहे आतंकवाद-रोधी सहयोग का संकेत देती है।
- राजनीतिक बदलावों के बीच कूटनीतिक जुड़ाव: तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के साथ भारत की हालिया कूटनीतिक पहल, जिसमें उसके काबुल मिशन को पूर्ण दूतावास का दर्जा देना और तालिबान राजनयिकों की मेज़बानी करना शामिल है, उस व्यावहारिक कूटनीति को दर्शाती है जो ज़मीनी वास्तविकताओं के साथ मान्यता संबंधी हिचकिचाहट को संतुलित करती है।
- भारत-अफगानिस्तान संबंध चीन के बढ़ते मध्य एशियाई प्रभाव और पाकिस्तान की अस्थिरकारी गतिविधियों का प्रतिकार करते हैं।
- हार्ट ऑफ एशिया– इस्तांबुल प्रक्रिया जैसे क्षेत्रीय मंचों में भारत की भागीदारी राजनीतिक सहयोग एवं क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका को और मज़बूत करती है।
- सुरक्षा चिंताएँ: कूटनीतिक जुड़ाव के बावजूद, आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
- लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी समूहों के साथ तालिबान के ऐतिहासिक संबंध, अफगानिस्तान के भारत-विरोधी आतंकवादियों के लिये एक सुरक्षित पनाहगाह बनने की आशंकाएँ बढ़ाते हैं।
- विश्व के सबसे बड़े अफीम उत्पादक के रूप में अफगानिस्तान की स्थिति, जो गोल्डन क्रीसेंट (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) का केंद्र है, क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा देती है।
भारत के आर्थिक हित
- आर्थिक और व्यापारिक संपर्क: अफगानिस्तान की खनिज संपदा का मूल्य 1-3 ट्रिलियन डॉलर के बीच है, इसलिये भारत के लिये खनन और व्यापार में आर्थिक अवसर हैं।
- यह भारत को क्षेत्रीय मंचों और चाबहार बंदरगाह (ईरान-अफगानिस्तान-भारत गलियारा) जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में भाग लेने में सक्षम बनाता है ताकि पाकिस्तान को दरकिनार करके व्यापार को सुगम बनाया जा सके।
- विकास और पुनर्निर्माण में योगदान की सुरक्षा: भारत ने बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में भारी निवेश किया है: सलमा बाँध, ज़रंज-डेलाराम राजमार्ग (पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए रणनीतिक व्यापार मार्ग), काबुल का संसद भवन, अस्पताल और बिजली सब-स्टेशन, जो अफगान विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को एक सॉफ्ट पावर के रूप में दर्शाता है।
- भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति, चाबहार बंदरगाह परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) के लिये एक स्थिर अफगानिस्तान आवश्यक है।
- आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना संबंधी चुनौतियाँ: अफगानिस्तान विश्व के सबसे अविकसित देशों में से एक बना हुआ है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भारत की कई निवेश परियोजनाओं (जैसे: सलमा बाँध और काबुल संसद) में बाधा डालती हैं।
- साथ ही अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती भूमिका, जिसमें तालिबान के साथ वार्ता और बुनियादी अवसंरचना में निवेश शामिल हैं, भारत के लिये एक रणनीतिक चुनौती पेश करती है।
नैतिक और मानवीय आयाम
- मूल्यों और यथार्थवाद में संतुलन: भारत अफगान लोगों के लिये मानवीय सहायता सुनिश्चित करते हुए लोकतांत्रिक और मानवाधिकार सिद्धांतों को बनाए रखने की दुविधा का सामना कर रहा है।
- तालिबान को मान्यता देना लैंगिक समानता और समावेशी शासन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के विपरीत होगा।
- अफगान महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिये समर्थन: हालाँकि भारत महिलाओं के लिये शिक्षा और अधिकारों की अनुशंसा करता रहता है, लेकिन औपचारिक मान्यता का अभाव अफगानिस्तान में मानवाधिकार सुधारों को प्रभावित करने की उसकी क्षमता को सीमित करता है।
- वर्ष 2025 में तालिबान की भारत यात्रा के दौरान महिला पत्रकारों को शामिल न करने की आलोचना हुई, लेकिन इसने कूटनीति के साथ नैतिक चिंताओं को संतुलित करने की भारत की चुनौती को भी रेखांकित किया।
- नैतिक नेतृत्व: भारत का सतर्क रुख एक जिम्मेदार लोकतंत्र के रूप में उसकी वैश्विक छवि के अनुरूप है, जो एक दमनकारी शासन को वैध ठहराए बिना सहानुभूति दिखाता है।
अफगानिस्तान के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये भारत के रणनीतिक कदम
- पूर्ण मान्यता को बरकरार रखते हुए राजनयिक जुड़ाव: भारत को तत्काल राजनीतिक मान्यता दिये बिना आधिकारिक चैनलों (पूर्ण दूतावास, नियमित राजनयिक आदान-प्रदान) को बनाए रखना और गहरा करना जारी रखना चाहिये।
- लक्षित विकास और मानवीय कूटनीति का विस्तार: भारत को क्षमता निर्माण सहायता, बुनियादी अवसंरचना में सहयोग और राजनयिक जुड़ाव का विस्तार करके बढ़ते चीनी प्रभाव का मुकाबला करना जारी रखना चाहिये, रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिये। यह सिद्धांत भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों, जैसे ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ में रेखांकित है।
- आतंकवाद-रोधी सहयोग को मज़बूत करना: वर्ष 2011 के रणनीतिक साझेदारी समझौते से प्रेरणा लेते हुए, भारत को अफगान सुरक्षा क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों का समर्थन जारी रखना चाहिये, जो आतंकवाद-रोधी सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को दर्शाते हों।
- सुरक्षित आर्थिक संपर्क और भू-आर्थिक विकल्प: वैकल्पिक मार्गों एवं परियोजनाओं के माध्यम से व्यापार और निवेश का विस्तार करना चाहिये जो शत्रुतापूर्ण पारगमन को दरकिनार करते हैं तथा स्पष्ट सुरक्षा उपायों के साथ संसाधन-क्षेत्र साझेदारी को आगे बढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, चाबहार बंदरगाह के उपयोग के माध्यम से आर्थिक जुड़ाव, भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर (2025) का पुनः आरंभ, आदि।
- बोझ एवं वैधता साझा करने के लिये बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग: समन्वित सहायता, आतंकवाद-रोधी और पुनर्निर्माण योजनाओं के लिये हार्ट ऑफ एशिया, SCO, मॉस्को फॉर्मेट, संयुक्त राष्ट्र एवं साझेदार देशों (ईरान, मध्य एशियाई राज्य) के माध्यम से कार्य करना चाहिये।
- सामाजिक, लैंगिक और मानवाधिकार संबंधी चिंताओं की अनुशंसा: भारत की सहभागिता रणनीति उन देशों के प्रति यूरोपीय संघ (EU) की सतर्क कूटनीति के समान हो सकती है जो अधिनायकवादी शासन के अंतर्गत हैं, जहाँ सहायता सुधारात्मक नीतियों पर आधारित होती है।
- साथ ही भारत को छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मीडिया/संचार अभिगम्यता का विस्तार जारी रखना चाहिये जो आम अफगानों तक पहुँचे।
निष्कर्ष:
भारत-अफगानिस्तान संबंध आज रणनीतिक व्यावहारिकता और गहरे ऐतिहासिक संबंधों के समन्वय को प्रतिबिंबित करते हैं। जैसा कि विदेश नीति विशेषज्ञ हर्ष पंत ने कहा है, “सहभागिता का अर्थ समर्थन नहीं होता”, जो भारत की उस सूक्ष्म संतुलन-स्थिति को रेखांकित करता है, जिसमें वह अपने नैतिक सरोकारों और यथार्थवादी राजनीति (रियलपॉलिटिक) के बीच संतुलन बनाए रखता है। आगे का मार्ग धैर्यपूर्ण तथा सिद्धांतनिष्ठ सहभागिता, सुदृढ़ मानवीय सहायता और बहुपक्षीय सहयोग की अपेक्षा करता है ताकि भारत अपने हितों की रक्षा करते हुए अफगानिस्तान की शांति एवं प्रगति में योगदान दे सके
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print