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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित उद्धरण आपको क्या संदेश देता है?
    “हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।” — स्वामी विवेकानंद। (150 शब्द)

    23 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • स्वामी विवेकानंद के उद्धरण के सार की व्याख्या से उत्तर लेखन आरंभ कीजिये।
    • उद्धरण के प्रमुख घटकों की व्याख्या कीजिये।
    • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस उद्धरण की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिये।
    • चिंतन एवं दृष्टि के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    स्वामी विवेकानंद का यह गहन कथन शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य— केवल ज्ञान का संचार नहीं, बल्कि नैतिक चरित्र का निर्माण, मानसिक दृढ़ता, बौद्धिक विकास तथा आत्मनिर्भरता का सृजन, को अभिव्यक्त करता है। वर्तमान समय में, जब शिक्षा को प्रायः केवल रोज़गार या रटने की प्रक्रिया से जोड़कर देखा जाता है, विवेकानंद का यह दृष्टिकोण स्मरण कराता है कि शिक्षा का लक्ष्य ऐसे सशक्त, नैतिक एवं प्रबुद्ध व्यक्तियों का निर्माण होना चाहिये जो समाज के लिये सार्थक योगदान दे सकें।

    मुख्य भाग:

    • चरित्र-निर्माण – नैतिकता की आधारशिला
      • सच्चे अर्थों में शिक्षा का उद्देश्य सत्यनिष्ठा, सहानुभूति और नैतिक साहस का विकास करना है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार चरित्र ही समस्त प्रगति का आधार है।
      • एक चरित्रवान व्यक्ति दबाव की स्थिति में भी सत्य और न्याय का पालन करता है।
      • उदाहरणतः महात्मा गांधी ने ‘नैतिक निर्माण’ को ‘नई तालीम’ (बुनियादी शिक्षा) का मूल उद्देश्य माना, जिसका लक्ष्य आत्म-अनुशासन और नैतिक जागरूकता का विकास था।
      • समकालीन भारत में, जहाँ भ्रष्टाचार और नैतिक पतन की चर्चाएँ प्रायः होती हैं, मूल्य-आधारित शिक्षा को पाठ्यक्रम में समाविष्ट करना सत्यनिष्ठ एवं उत्तरदायी नागरिकों के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है।
    • मानसिक शक्ति – धैर्य और अंतःसाहस
      • शिक्षा का उद्देश्य मानसिक दृढ़ता अर्थात् चुनौतियों का सामना करने और नैतिक विश्वास के साथ निर्णय लेने की क्षमता, का भी विकास होना चाहिये।
      • लोक प्रशासन में अधिकारी अनेक बार राजनीतिक दबाव और नैतिक कर्त्तव्य के मध्य द्वंद्व का सामना करते हैं। मानसिक रूप से सशक्त व्यक्ति ही विपरीत परिस्थितियों में भी संवैधानिक मूल्यों का पालन कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये, ‘मेट्रो मैन ऑफ इंडिया’ ई. श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो जैसी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में अडिग नैतिकता और मानसिक दृढ़ता का परिचय दिया तथा भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वयं को दूर रखा।
      • ऐसे उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि शिक्षा यदि मानसिक दृढ़ता को पोषित करे तो वह सार्वजनिक सेवा में नैतिक उत्कृष्टता का मार्ग प्रशस्त करती है।
    • बुद्धि-विस्तार – सूचना से प्रज्ञा तक
      • शिक्षा को रटने की सीमा से आगे बढ़कर समालोचनात्मक चिंतन, सृजनशीलता और समस्या-समाधान की क्षमता विकसित करनी चाहिये।
      • वास्तविक बौद्धिक विकास जिज्ञासा, तर्कपूर्ण अन्वेषण और विविध विचारों के प्रति समावेशन से उत्पन्न होता है।
      • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के शैक्षणिक दर्शन ‘करके सीखने’ (Learning by doing) की अवधारणा पर आधारित थे, जिससे नवोन्मेष और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके।
      • आज की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) इसी आदर्श को आगे बढ़ाते हुए बहुविषयी और अनुभवात्मक शिक्षा के माध्यम से बुद्धि-विस्तार पर बल देती है।
    • आत्मनिर्भरता – अपने पैरों पर खड़े होना
      • स्वामी विवेकानंद का मानना ​​था कि शिक्षा का सर्वोच्च लक्ष्य भौतिक और नैतिक दोनों तरह से आत्मनिर्भरता है।
      • एक शिक्षित व्यक्ति को केवल रोज़गार की तलाश नहीं करनी चाहिये, बल्कि उसे अपनी नियति स्वयं गढ़ने वाला बनना चाहिये तथा आत्मविश्वास और कौशल का भी सृजन करना चाहिये।
      • स्किल इंडिया मिशन, स्टार्ट-अप इंडिया और आत्मनिर्भर भारत युवाओं में उद्यमिता एवं आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करके इस दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हैं।

    निष्कर्ष:

    स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। प्रतिस्पर्द्धा और भौतिकवाद के युग में, शिक्षा को बौद्धिक उत्कृष्टता एवं नैतिक चेतना के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। सच्ची शिक्षा ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करती है जो विचारों में प्रखर, चरित्र में दृढ़ और कर्म में आत्मनिर्भर हों। जब शिक्षा मन एवं आत्मा दोनों का पोषण करती है, तो यह व्यक्तिगत विकास और राष्ट्रीय प्रगति का सबसे शक्तिशाली साधन बन जाती है।

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