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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “नैतिक निरपेक्षवाद कठोरता को जन्म दे सकती है, जबकि नैतिक सापेक्षवाद अन्याय को उचित ठहरा सकता है। नैतिक निर्णय लेने में इन दोनों के बीच संतुलन आवश्यक है।” उपयुक्त उदाहरण देकर इसकी पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)

    23 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैतिक निरपेक्षवाद और नैतिक सापेक्षवाद का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • नैतिक निरपेक्षवाद और नैतिक सापेक्षवाद की विशेषताओं एवं सीमाओं की विवेचना कीजिये।
    • नैतिक निर्णय लेने में एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।
    • संतुलित दृष्टिकोण के उपयुक्त उदाहरण देकर इसकी पुष्टि कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    नैतिक निर्णय-निर्माण प्रायः दो चरम सीमाओं के मध्य होता है — मोरल एब्सोलूटिज़्म (नैतिक निरपेक्षवाद) और मोरल रिलेटिविज़्म (नैतिक सापेक्षवाद)। नैतिक निरपेक्षवाद यह मानती है कि सत्य, न्याय, और अहिंसा जैसे कुछ नैतिक सिद्धांत सार्वभौमिक एवं अपरिवर्तनीय हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। इसके विपरीत, नैतिक सापेक्षवाद का यह दृष्टिकोण है कि नैतिकता सांस्कृतिक मानदंडों, सामाजिक मूल्यों या विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यदि इन दोनों विचारों की अतिवादिता हो, तो नैतिक तर्क का संतुलन बिगड़ सकता है, जिसके लिये एक संतुलित, प्रासंगिक और सैद्धांतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

    मुख्य भाग:

    मोरल एब्सोलूटिज़्म (नैतिक निरपेक्षवाद)

    • विशिष्टता:
      • यह उचित और अनुचित के निश्चित मानक स्थापित कर नैतिक स्पष्टता तथा स्थिरता प्रदान करती है।
      • इसमें नैतिक मानदंडों के तहत सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार कर समानता के आधार पर न्याय एवं निष्पक्षता को प्रोत्साहित किया जाता है।
      • इससे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक रक्षा सुनिश्चित होती है — जैसे दासता का उन्मूलन या यातना का प्रतिषेध, चाहे कोई संस्कृति इसे उचित ठहराए या नहीं।
    • सीमाएँ:
      • यह तब कठोर और असंवेदनशील हो सकती है जब परिस्थिति, मानवीय पीड़ा या संदर्भ की उपेक्षा करते हुए नियमों को अंधानुकरण से लागू किया जाये।
      • शासन में नैतिक दुविधाओं के लिये प्रायः सख्त नियमों के पालन के बजाय विवेक की आवश्यकता होती है।
        उदाहरण: एक पुलिस अधिकारी जो लॉकडाउन नियमों को सख्ती से लागू करता है और भोजन की तलाश में एक गरीब मज़दूर को दंडित करता है, तो वह कानून का पालन तो कर रहा है, परंतु करुणा की उपेक्षा कर रहा होता है, जिससे नैतिक आनुपातिकता विफल हो जाती है।

    मोरल रिलेटिविज़्म (नैतिक सापेक्षवाद)

    • विशिष्टता
      • भारत जैसे बहुलवादी समाजों में सहिष्णुता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है।
      • जहाँ परिस्थितिजन्य वास्तविकताएँ कठोर संहिताओं से अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं, वहाँ यह संदर्भ-आधारित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
      • यह प्रशासनिक और सामाजिक विवादों में व्यावहारिकता का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
    • सीमाएँ:
      • यह नैतिक अनुज्ञेयता या अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकता है, जिससे उचित और अनुचित के मापदंड अस्थिर हो जाते हैं।
      • इसका दुरुपयोग अनैतिक आचरण को उचित ठहराने के लिये किया जा सकता है — जैसे भ्रष्टाचार या वंशवाद को ‘स्थानीय प्रथा’ बताकर वैध ठहराना।
      • उदाहरण: यदि कोई प्रशासक त्योहारों पर उपहार स्वीकार कर यह कहे कि यह ‘प्रथागत’ है, तो वह नैतिक सापेक्षवाद को दर्शाता है और नैतिक समझौते को उचित ठहरा रहा होता है।


    संतुलित नैतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता

    • नैतिक शासन के लिये आवश्यक है कि सार्वभौमिक नैतिक मूल्य कार्यों का मार्गदर्शन करें, पर उनका प्रयोग संदर्भ की संवेदनशीलता के साथ किया जाए।
    • लोक सेवकों को ऐसी दुविधाओं का सामना करना पड़ता है जहाँ सिद्धांत और करुणा दोनों दाँव पर होते हैं। अतः मध्यम मार्ग ही ऐसा उपाय है जो कठोरता के बिना नैतिक अखंडता को बनाए रखता है।
    • यह दृष्टिकोण अरस्तू के “Doctrine of the Mean” तथा गांधीवादी नैतिकता के अनुरूप है, जो सत्य और अहिंसा को करुणा एवं विवेक के साथ लागू करने पर बल देता है।
    • संतुलित दृष्टिकोण में नैतिक निर्णय-निर्माण का अर्थ है — प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों का तर्क, संवेदना और अंतःकरण के माध्यम से संतुलन करना, जिससे न तो नैतिक कठोरता रह जाए एवं न ही नैतिक अराजकता।
    • उदाहरण:
      • एक ज़िला अधिकारी द्वारा बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में अतिक्रमणकारी को अस्थायी राहत देना — विधि एवं मानवीय संवेदना दोनों का संतुलन दर्शाता है।
      • एक सैन्य अधिकारी द्वारा प्रति-विद्रोह अभियान में कर्त्तव्य या राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किये बिना नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
      • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मानवाधिकार सिद्धांतों का पालन करते हुए सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करना भी इस संतुलित नैतिकता का उदाहरण है।

    निष्कर्ष:

    नैतिक निरपेक्षवाद नैतिक निरंतरता सुनिश्चित करती है, परंतु हठधर्मिता का जोखिम रखती है। वहीं नैतिक सापेक्षवाद अनुकूलनशीलता प्रदान करती है, परंतु अन्याय का खतरा उत्पन्न करती है। अतः सच्ची नैतिकता दोनों के सामंजस्य में निहित है — जहाँ सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों का प्रयोग संदर्भ-संवेदनशील विवेक के साथ किया जाए। सहानुभूति और तर्क से निर्देशित संतुलित नैतिक दृष्टिकोण ही ऐसे निर्णयों का आधार बन सकता है जो सैद्धांतिक भी हों तथा मानवीय भी एवं शासन के नैतिक भाव को सशक्त बनाते हों।

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