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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “प्रशासन में नैतिक दुविधाएँ अपरिहार्य हैं, लेकिन नैतिक निर्णय लेना अपरिहार्य है।” नैतिक तर्क और संघर्ष समाधान के संदर्भ में व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)

    16 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • नैतिक द्वंद्वों और नैतिक निर्णय लेने का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • नैतिक तर्क और संघर्ष समाधान के संदर्भ में व्याख्या कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    नैतिक दुविधाएँ लोक प्रशासन का एक अंतर्निहित अंग हैं। ये तब उत्पन्न होती हैं जब एक लोक सेवक को परस्पर विरोधी कर्त्तव्यों, प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों या विविध हितधारकों की अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है। यद्यपि ऐसे द्वंद्व अनिवार्य हैं, फिर भी नैतिक निर्णय-निर्माण अपरिहार्य है, क्योंकि प्रशासक पर जनविश्वास, उत्तरदायित्व एवं निष्पक्षता बनाए रखने का दायित्व होता है।

    मुख्य भाग:

    प्रशासनिक निर्णय लेने में नैतिक तर्क

    • नैतिक तर्क वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से प्रशासक नैतिक विकल्पों का मूल्यांकन करते हैं तथा परिणामों का अनुमान लगाते हैं। इसमें चिंतन शामिल होता है कि क्या उचित, न्यायसंगत और जनहित में है।
    • प्रमुख दृष्टिकोणों में शामिल हैं:
    • कर्त्तव्यनिष्ठ दृष्टिकोण (Deontological Approach): निर्णय नियमों, कर्त्तव्यों और विधिक प्रावधानों द्वारा निर्देशित होते हैं। उदाहरण के लिये, शिकायत दर्ज करते समय राजनीतिक दबाव के आगे झुकने से इनकार करने वाला पुलिस अधिकारी अपने कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करता है।
    • उपयोगितावादी दृष्टिकोण (Utilitarian Approach): विकल्पों का उद्देश्य समग्र सार्वजनिक हित को अधिकतम करना होता है। बाढ़ के दौरान, सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों को सबसे पहले राहत आवंटित करना उपयोगितावादी तर्क को दर्शाता है।   
    • सद्गुण आधारित दृष्टिकोण (Virtue Ethics): निर्णय ईमानदारी, सहानुभूति और निष्पक्षता जैसे नैतिक गुणों से प्रेरित होते हैं। उदाहरण के लिये एक स्वास्थ्य अधिकारी, राजनीतिक प्रभाव की परवाह किये बिना, सभी वर्गों को समान टीका वितरण सुनिश्चित करता है, जो सदाचार नैतिकता का प्रदर्शन करता है।
    • ये कार्यढाँचे प्रशासकों को जटिल परिस्थितियों से निपटने और नैतिक रूप से उचित निर्णय लेने में सहायता करते हैं।

    नैतिक द्वंद्वों में संघर्ष समाधान

    • नैतिक द्वंद्व प्रायः हितधारकों, विधिक प्रावधानों और संस्थागत उद्देश्यों के बीच संघर्ष उत्पन्न करते हैं। 
    • प्रभावी संघर्ष समाधान जनविश्वास बनाये रखने हेतु आवश्यक है—
      • पारदर्शिता: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के बारे में खुला संचार संदेह को कम करता है।
        • उदाहरण: सरकारी सब्सिडी के लिये आवंटन मानदंड प्रकाशित करने से विश्वसनीयता बढ़ती है।
      • परामर्श और विचार-विमर्श: सहकर्मियों, विशेषज्ञों और नैतिक समितियों को शामिल करने से प्रतिस्पर्द्धी हितों में संतुलन बनाने में सहायता मिलती है। 
        • उदाहरण: शहरी विकास परियोजनाओं के दौरान, स्थानीय प्रतिनिधियों को शामिल करने से यह सुनिश्चित होता है कि परियोजना पर्यावरणीय और सामाजिक सरोकारों का सम्मान करती है।
      • जनहित को प्राथमिकता देना: नैतिक निर्णय लेने के लिये सामाजिक कल्याण को व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ से ऊपर रखना आवश्यक है।
        • उदाहरण: संवेदनशील स्वास्थ्य डेटा के उपयोग में, अधिकारियों को निजता संबंधी चिंताओं और जनसुरक्षा की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है।

    निष्कर्ष:

    नैतिक द्वंद्व प्रशासन का स्वाभाविक परिणाम हैं, जो राजनीतिक दबाव, संसाधनों की कमी और सामाजिक विविधता के अंतर्संबंध से उत्पन्न होती हैं। परंतु नैतिक निर्णय-निर्माण अनिवार्य है, क्योंकि यह उत्तरदायित्व, संस्थागत वैधता और लोकतांत्रिक शासन की अखंडता को सुनिश्चित करता है। नैतिक तर्क-वितर्क, विवेकपूर्ण विचार-विमर्श और संरचित संघर्ष समाधान के माध्यम से प्रशासक न्याय, सत्यनिष्ठा एवं जनविश्वास को सुदृढ़ रख सकते हैं।

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