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प्रश्न :
प्रश्न 1. शास्त्रीय नृत्य शैली भक्ति, कथावाचन और सौंदर्यबोध के भंडार हैं। नाट्य शास्त्र के संदर्भ में इस कथन की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)
01 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली और नाट्य शास्त्र के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- शास्त्रीय नृत्य शैलियों को भक्ति, कथावाचन और सौंदर्यबोध के भंडार के रूप में तर्क दीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय शास्त्रीय नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह भक्ति, कथा-वाचन और सौंदर्य-बोध का अद्वितीय संगम है। महर्षि भरत द्वारा रचित ‘नाट्यशास्त्र’ ने नृत्य को व्यवस्थित रूप से संहिताबद्ध किया और इसे आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक साधन के रूप में प्रतिष्ठित किया।
मुख्य भाग:
शास्त्रीय नृत्य:
- भक्ति का भंडार:
- नाट्य को पाँचवाँ वेद माना जाता था, जिसकी रचना ब्रह्मा ने आध्यात्मिक सत्यों को सार्वभौमिक रूप से संप्रेषित करने के लिये की थी, जिसमें विद्वानों के दायरे से परे अर्थात् सभी वर्गों के लोग भी शामिल हैं।
- भरतनाट्यम, ओडिसी और कुचिपुड़ी जैसे शास्त्रीय नृत्य महाकाव्यों, पुराणों एवं दिव्य लीलाओं के प्रसंगों का नाट्य रूपांतरण करते हैं, जो कलाकारों और दर्शकों दोनों में भक्ति-भाव जागृत करते हैं।
- भक्ति को अभिनय— नेत्र, मुखाभिव्यक्ति और मुद्राओं (प्रतीकात्मक हस्त मुद्राएँ) के माध्यम से भी व्यक्त किया जाता है, जो दर्शकों को मौखिक समझ से परे आध्यात्मिक तल्लीनता की अनुभूति कराता है।
- कथा-वाचन का भंडार:
- नृत्य नृत्त (लयात्मक गतियाँ), नृत्य (भावप्रधान नृत्य) और नाट्य (नाटकीय अभिनय) के माध्यम से एक कथात्मक माध्यम के रूप में कार्य करता है।
- रस-भाव सिद्धांत प्रभावी भावनात्मक संचार सुनिश्चित करता है: भाव (कलाकारों की भावनात्मक अवस्थाएँ) दर्शकों में रस (सौंदर्यात्मक अनुभूति) का आभास कराता है।
- रामायण, महाभारत और कृष्ण-लीला जैसी जटिल कथाओं का संप्रेषण नृत्य, संगीत एवं भाव-भंगिमाओं का उपयोग करके सटीकता के साथ अभिनीत किया जाता है, जिससे यह परंपरा मौखिक व प्रदर्शन कलाओं का जीवंत भंडार बनी रहती है।
- सौंदर्यशास्त्र का भण्डार:
- नाट्यशास्त्र में 108 करणा (नृत्य-गतियाँ), अंग की गतिविधियाँ, मुखाभिव्यक्ति और हस्त-मुद्राओं का विस्तृत निरूपण है, जो सौंदर्यात्मकता को सुदृढ़ बनाता है।
- भावात्मक कला में स्थायीभाव (स्थिरभाव ), व्यभिचारी भाव (क्षणिक भाव) और सात्विक भाव (मानसिक-शारीरिक अवस्थाएँ) शामिल हैं, जो वांछित रस में परिणत होते हैं।
- संगीत (राग और ताल) और वाद्ययंत्र (मृदंगम, वीणा आदि) संपूर्ण प्रस्तुति को लयबद्ध एवं मधुर सामंजस्य को बढ़ाते हैं, जिससे समग्र सौंदर्यात्मक अनुभव में वृद्धि होती है।
- तांडव (गतिशील, पुरुषोचित) और लास्य (सुंदर, स्त्रीलिंग) जैसी शैलियाँ शास्त्रीय नृत्य में सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति की विविधता और बहुमुखी प्रतिभा का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
- तांडव (ऊर्जावान, पुरुषोचित) और लास्य (कोमल, स्त्रैण) जैसी शैलियाँ सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति की विविधता एवं गहराई का दिग्दर्शन कराती हैं।
निष्कर्ष:
नाट्य शास्त्र द्वारा निर्देशित शास्त्रीय नृत्य सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक समृद्धि का माध्यम है। इसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है कि “नृत्य भक्ति की मौन वाणी है, हमारी विरासत की जीवंत कथा है और आत्मा का दृष्टिगोचर गीत है।”
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