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प्रश्न :
प्रश्न. “लोक सेवा में सच्ची लैंगिक समानता न केवल तब प्राप्त होती है जब महिलाएँ प्रशासनिक व्यवस्था में प्रवेश करती हैं, बल्कि तब भी प्राप्त होती है जब प्रशासनिक व्यवस्था स्वयं सत्यनिष्ठा के मानकों से समझौता किये बिना उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप ढलती है।” प्रशासन में महिला अधिकारियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिये और उनकी दक्षता बढ़ाने तथा सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये। (150 शब्द)
21 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- लोक सेवाओं में सच्ची लैंगिक समानता की आवश्यकता का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- प्रशासन में महिला अधिकारियों के सामने आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिये।
- उनकी कार्यकुशलता बढ़ाने और शुचिता बनाए रखने के लिये सुधार सुझाइए।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।
परिचय:
लोकसेवा में लैंगिक समानता केवल संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसा वातावरण बनाने में निहित है जो सक्षम प्रणाली प्रदान करे। वास्तविक समानता तब प्राप्त होती है जब प्रशासनिक ढाँचा महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप होता है, जिससे वे दक्षतापूर्वक कार्य कर सकें और साथ ही शुचिता, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा बनाए रख सकें।
मुख्य भाग:
महिला अधिकारियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- संरचनात्मक बाधाएँ:
- सीमित लैंगिक-संवेदनशील मानव संसाधन नीतियाँ।
- कठोर स्थानांतरण नीतियाँ, बाल देखभाल सहायता का अभाव, तथा लैंगिक-अनुकूल बुनियादी ढाँचे का अभाव व्यावहारिक बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- उदाहरण के लिये, महिला IPS अधिकारियों को प्रायः पर्याप्त आवास या चिकित्सा सुविधाओं के बिना दूरदराज़ के स्थानों पर तैनात होने पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- कार्यस्थल पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता:
- महिला अधिकारियों के बारे में प्रायः यह धारणा होती है कि वे स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक कल्याण जैसे "सॉफ्ट" विभागों के लिये अधिक उपयुक्त होती हैं, जबकि कानून प्रवर्तन, वित्त या बुनियादी ढाँचे के विभागों के लिये उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
- तिहाड़ जेल में किरण बेदी की तैनाती ने यह दर्शाया कि किस प्रकार महिला प्रशासक तथाकथित "कठिन" क्षेत्रों में भी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं।
- परिचालन और क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों या संघर्ष क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी चिंताएँ।
- उदाहरण: रेमा राजेश्वरी, IPS, ने तेलंगाना की साइबर अपराध और मानव तस्करी विरोधी इकाइयों में काम किया, और प्रणालीगत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- पेशेवर चुनौतियाँ:
- महिला अधिकारियों पर कभी-कभी पुरुष-प्रधान नेटवर्क में “समायोजन” करने का दबाव डाला जाता है।
- सीमित मार्गदर्शन और वरिष्ठ नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की कम उपस्थिति, कॅरियर की प्रगति में बाधा डालती है।
- IAS और IPS के उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व दशकों से सेवा में रहने के बावजूद अनुपातिक रूप से कम है।
- कार्य संतुलन:
- प्रशासन और घरेलू देखभाल की दोहरी ज़िम्मेदारी।
- संसदीय समिति की समीक्षा के दौरान विभिन्न महिला अधिकारियों ने अपनी नियुक्तियों में संस्थागत बाल देखभाल सहायता की कमी को उज़ागर किया है।
शुचिता पर प्रभाव
- सुरक्षा या पारिवारिक प्रतिबंधों के कारण कठिन पदों से परहेज करना काडर वितरण में निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
- स्वतंत्रता से समझौता करने का सामाजिक दबाव सत्यनिष्ठा को कम करता है।
- अधिक बोझ से कार्यकुशलता कम हो जाती है, तथा अप्रत्यक्ष रूप से सेवा वितरण पर प्रभाव पड़ता है।
दक्षता बढ़ाने और शुचिता बनाए रखने के लिये सुधार
- नीति और संरचनात्मक सुधार
- लचीले कार्य घंटे, बच्चों की देखभाल में सहायता, तथा रीजनल पोस्टिंग तक समान पहुँच।
- उदाहरण: केरल सरकार की जेंडर बजट पहल लैंगिक-संवेदनशील नीति ढाँचे के लिये एक अनुकरणीय मॉडल प्रदान करती है।
- कार्यस्थल संस्कृति:
- LBSNAA और पुलिस अकादमियों में प्रशिक्षण में लैंगिक-संवेदनशीलता मॉड्यूल।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 का सख्ती से प्रवर्तन।
- परिचालनात्मक समर्थन:
- दूरस्थ क्षेत्रों में सुरक्षित आवास और स्वच्छता सुविधाएँ।
- उदाहरण: नवजोत खोसा, IAS, ने चक्रवात-प्रवण केरल में उचित सुरक्षा और रसद सहायता के साथ काम किया, जिससे यह साबित हुआ कि महिला अधिकारी संकट का प्रभावी ढंग से नेतृत्व कर सकती हैं।
- नैतिक सुदृढ़ीकरण
- सिविल सेवाओं की आचार संहिता में लैंगिक न्याय को एकीकृत करना।
- अरुणा सुंदरराजन, IAS जैसी वरिष्ठ महिला अधिकारियों के नेतृत्व में मेंटरशिप कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, जिन्होंने डिजिटल गवर्नेंस में कैडरों को सलाह दी।
- सामाजिक उपाय
- पितृत्व अवकाश और साझा देखभाल को बढ़ावा देना।
- सफल महिला प्रशासकों को सार्वजनिक मान्यता देकर रूढ़िवादिता को बदला जा सकता है।
निष्कर्ष:
जैसा कि यूनाइटेड नेशन वूमेन ने सही कहा है, "लैंगिक समानता एक विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।" लोक प्रशासन के लिये इसका अर्थ है, सांकेतिक प्रतिनिधित्व से आगे बढ़कर महिलाओं की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित करना। महिला प्रशासकों को जब समान अवसर दिये जाते हैं तो वे शासन की समावेशिता, दक्षता और नैतिक ढाँचे को मज़बूत बनाती हैं।
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