- फ़िल्टर करें :
- अर्थव्यवस्था
- विज्ञान-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण
- आंतरिक सुरक्षा
- आपदा प्रबंधन
-
प्रश्न :
प्रश्न. समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये कि भारत में जलवायु परिवर्तन किस प्रकार बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित कर रहा है। साथ ही यह भी मूल्यांकन कीजिये कि भारत की आपदा प्रबंधन रूपरेखा इन घटनाओं से निपटने के लिये कितनी सक्षम है। (250 शब्द)
06 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- क्लाउडबर्स्ट अर्थात् बादल फटने को परिभाषित कीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि जलवायु परिवर्तन भारत में बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को किस प्रकार बदल रहा है।
- भारत के आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे की तैयारियों का आकलन कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, क्लाउडबर्स्ट अर्थात् बादल फटने की परिभाषा उस स्थिति को संदर्भित करती है जब 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तेज़ हवाओं और तड़ित झंझा के साथ प्रति घंटे 100 मिमी. से अधिक वर्षा होती है। ये घटनाएँ मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों, विशेषकर हिमालय में होती हैं। हाल के वर्षों में इनकी आवृत्ति और तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन एवं वायुमंडलीय अस्थिरता में बढ़ोत्तरी है।
मुख्य भाग:
क्लाउडबर्स्ट/बादल फटने पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- बढ़ी हुई आवृत्ति और तीव्रता:
- बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण, वायुमंडल में अधिक आर्द्रता हो सकती है, जिससे अल्पकालिक वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
- क्लॉज़ियस-क्लैपेरॉन सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक 1°C तापमान वृद्धि पर वायुमंडल की नमी धारण क्षमता लगभग 7% बढ़ जाती है, जिससे क्लाउडबर्स्ट (बादल फटने) की तीव्रता को बल मिलता है।
- हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है:
- उत्तराखंड में चमोली और रुद्रप्रयाग (2023) में बादल फटने/क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ हुईं, जिसके बाद अगस्त 2025 में उत्तरकाशी में भी गंभीर घटना दर्ज की गई।
- हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और मंडी क्षेत्रों में वर्ष 2022 और 2023 में क्लाउडबर्स्ट के कारण भीषण बाढ़ आई।
- बदलते भौगोलिक पैटर्न:
- जहाँ पहले यह घटनाएँ केवल हिमालयी राज्यों तक सीमित थीं, अब महाराष्ट्र, तेलंगाना और केरल जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में भी स्थानीय क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ सामने आ रही हैं।
- वैज्ञानिक प्रमाण:
- IMD, IPCC (AR6) और CPCB की रिपोर्टें भारत में बढ़ते तापमान और चरम मौसमी घटनाओं के बीच सीधा संबंध दर्शाती हैं।
- IPCC के अनुसार दक्षिण एशिया (विशेषकर भारत) में जलवायु परिवर्तन के तीव्र होने के साथ-साथ अधिक बार और अधिक तीव्र वर्षा घटनाएँ देखने को मिलेंगी।
भारत के आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे की तैयारी
- सशक्त पक्ष:
- NDMA की दिशानिर्देश (2010) क्लाउडबर्स्ट की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किये गये हैं, जो प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, खतरे का मानचित्रण और सामुदायिक तैयारी पर ज़ोर देते हैं।
- IMD की डॉप्लर रडार प्रणाली तथा उपग्रह आधारित निगरानी प्रणाली गंभीर मौसम की स्थिति को ट्रैक करने में सहायता करती है, यद्यपि इसमें कुछ सीमाएँ हैं।
- राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) आपदा के बाद राहत एवं बचाव कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
- आपदा मित्र जैसी पहलें आपदा संभावित क्षेत्रों में सामुदायिक स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देती हैं।
- कमियाँ और चुनौतियाँ:
- पूर्वानुमान की सीमाएँ: क्लाउडबर्स्ट अत्यंत स्थानीयकृत घटनाएँ होती हैं और वर्तमान मौसम मॉडल इतने सूक्ष्म नहीं हैं कि सटीक पूर्वानुमान दे सकें।
- अपर्याप्त अवसंरचना: अनेक पहाड़ी और दूरदराज़ क्षेत्रों में वास्तविक समय पर मौसम निगरानी के लिये मौसम केंद्र और स्वचालित उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।
- भूमि उपयोग कुप्रबंधन: पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण कार्य क्लाउडबर्स्ट के प्रभाव को और गंभीर बना देता है, जैसा कि जोशीमठ एवं केदारनाथ में देखा गया।
- सामुदायिक तैयारी की कमी: स्थानीय आबादी प्रायः आपातकालीन प्रतिक्रिया की जानकारी और प्रशिक्षण से वंचित रहती है, जिससे इन घटनाओं में जनहानि की आशंका बढ़ जाती है।
आगे की राह
- बेहतर पूर्वानुमान और प्रसार के लिये AI एवं मशीन लर्निंग का उपयोग करके पूर्वानुमान प्रणालियों को उन्नत किया जाना चाहिये।
- बादल फटने की आशंका वाले क्षेत्रों में अधिक स्वचालित मौसम केंद्र और रीयल-टाइम अलर्ट सिस्टम स्थापित किये जाने चाहिये।
- पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि उपयोग नियमों को लागू किया जाना चाहिये और जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- राज्य आपदा प्रबंधन योजनाओं (SDMP) में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीतियों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- नियमित अभ्यास, प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय-आधारित आपदा मोचन तैयारियों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
जे.सी. पंत समिति ने अनुशंसित किया था कि भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली को एक प्रतिक्रियात्मक मॉडल से एक समग्र, सक्रिय और समन्वित प्रणाली में परिवर्तित किया जाये। तकनीक, शासन और सामुदायिक सहभागिता के समन्वय से ही भारत जलवायु-अनिश्चित भविष्य में इस प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print