- फ़िल्टर करें :
- अर्थव्यवस्था
- विज्ञान-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण
- आंतरिक सुरक्षा
- आपदा प्रबंधन
-
प्रश्न :
प्रश्न ."भारत में आपदाएँ प्रायः केवल प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम नहीं होतीं, बल्कि वे विकास संबंधी विकल्पों का परिणाम भी होती हैं।" परीक्षण कीजिये कि अनियोजित शहरीकरण ने आपदा जोखिम को बढ़ाने में किस प्रकार योगदान दिया है। (250 शब्द)
16 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- शहरीकरण के बढ़ते स्तर और उससे जुड़ी आपदाओं की समस्याओं की संक्षिप्त चर्चा कीजिये।
- अव्यवस्थित शहरीकरण के कारण आपदा जोखिम किस प्रकार बढ़ता है, इस संदर्भ में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
- सतत् शहरीकरण को बढ़ावा देने और आपदा जोखिम को घटाने के उपायों का सुझाव दीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में, पिछले कुछ दशकों में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ा है और अब 34% से भी अधिक आबादी शहरों में रहती है। हालाँकि, इस अनियोजित शहरीकरण ने गंभीर कमज़ोरियों को जन्म दिया है, जिससे आपदा जोखिम बढ़ गए हैं।
- भारत में कई आपदाएँ केवल प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम होने के बजाय, अकुशल शहरी नियोजन, बुनियादी अवसंरचना की कमी एवं पर्यावरणीय क्षरण के कारण और भी गंभीर हो जाती हैं, जिससे शहरी क्षेत्र चरम मौसमी घटनाओं, बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाते हैं।
मुख्य भाग:
अनियोजित शहरीकरण के कारण आपदा जोखिम में वृद्धि:
- नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव और अत्यधिक हीट वेव्स: दिल्ली जैसे शहरों में अनियोजित शहरीकरण ने नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव को बहुत गंभीर बना दिया है, जहाँ बसे हुए क्षेत्र अपने ग्रामीण परिवेश की तुलना में अधिक गर्म हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2024 में, दिल्ली में 49.9°C तापमान दर्ज किया गया और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने वर्ष 2000-2020 के दौरान हीट वेव्स वाले दिनों में वृद्धि दर्ज की।
- बाढ़ और जल निकासी तंत्र का विफल होना: अनियोजित शहरी विस्तार के कारण शहरों में सड़कों और भवनों के पक्के निर्माणों ने वर्षा जल के प्राकृतिक अवशोषण को बाधित किया है।
- बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के व्यापक शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित अत्यधिक वर्षा ने बेंगलुरु एवं चेन्नई जैसे शहरी क्षेत्रों को बार-बार होने वाली बाढ़ के प्रति अत्यधिक सुभेद्य बना दिया है।
- तटीय भेद्यता और समुद्र-स्तर में वृद्धि: भारत के विशाल तटीय क्षेत्र, जैसे मुंबई और कोच्चि, समुद्र-स्तर में वृद्धि, तटीय अपरदन और लवण जल की अंतर्विष्टि के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं।
- इन क्षेत्रों में अनियंत्रित नगरीकरण ने मैन्ग्रोव वनों का विनाश किया है, जो चक्रवातीय तूफानों और तटीय क्षरण के प्रति प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते थे।
- वर्ष 2019 के 'चक्रवात वायु' और वर्ष 2023 के 'चक्रवात बिपरजॉय' ने हज़ारों लोगों को विस्थापित किया तथा अधोसंरचना को व्यापक क्षति पहुँचाई।
- तटीय क्षेत्रों में अंधाधुंध बंदरगाह विस्तार और रेत खनन जैसी गतिविधियाँ प्राकृतिक सुरक्षा-प्रणालियों को कमज़ोर कर रही हैं।
- जल संकट और सूखे की स्थिति: अनियोजित शहरीकरण शहरों में जल संकट को और बढ़ा देता है। भूजल के अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और अकुशल जल प्रबंधन प्रणालियों के कारण चेन्नई एवं बंगलुरु जैसे शहरों में जल संकट उत्पन्न हो गया है।
- भूजल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई है (विशेषकर पंजाब में) और जल आपूर्ति प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ा है, जिससे शुष्क मौसम में जल संकट उत्पन्न हो गया है।
- भूकंपीय क्षेत्रों में भूकंप का खतरा: भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण जोखिम: कई शहरी क्षेत्र, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी राज्यों में, भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं।
- परंतु इन क्षेत्रों में बिना नियमन और भवन संहिताओं के उल्लंघन के साथ किये गये अनौपचारिक निर्माण, बड़े पैमाने पर क्षति की आशंका को और बढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये सिक्किम में, जहाँ वर्ष 2023 में ग्लेशियल लेक बर्स्ट की घटना में भारी बाढ़ एवं जनहानि हुई, जिसमें अस्थिर भूमि पर अनियोजित शहरीकरण ने क्षति को और गंभीर बना दिया।
- पर्यावरणीय तनाव और संसाधन प्रबंधन चुनौतियाँ: भारत के शहरी केंद्र भी बढ़ते पर्यावरणीय तनावों का सामना कर रहे हैं, जिनमें प्रदूषण, अपशिष्ट कुप्रबंधन एवं अपर्याप्त अपशिष्ट निपटान प्रणालियाँ शामिल हैं, जिसने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपदाओं के प्रभावों को और बढ़ा दिया है।
- ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रदूषण नियंत्रण उपायों का अभाव इन चुनौतियों को और बढ़ा देता है।
- दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहर लगातार वायु एवं जल प्रदूषण का सामना कर रहे हैं, जो लू व बाढ़ जैसी आपदाओं के दौरान जन स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
सतत् शहरीकरण को बढ़ावा देने और आपदा जोखिम को कम करने हेतु उपाय
- एकीकृत शहरी नियोजन और क्षेत्र निर्धारण नियम:
- शहरी विकास की योजना इस तरह से बननी चाहिये कि वह न केवल पर्यावरण के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों (जैसे: बाढ़ मैदान, समुद्री तट, ढाल प्रवणता वाले क्षेत्र) की रक्षा करे बल्कि आपदाओं के प्रति मज़बूत अवसंरचना को भी प्राथमिकता दे।
- क्षेत्र निर्धारण के नियमों के माध्यम से उन स्थानों पर निर्माण कार्य रोका जाना चाहिये जो बाढ़ या भूकंप जैसी आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं।
- हरित अवसंरचना और शहरी पारितंत्र सेवाएँ:
- शहरी वनों, पार्कों और ग्रीन रूफ्स को बढ़ावा देकर हरित आवरण में वृद्धि, नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव को महत्त्वपूर्ण रूप से कम कर सकती है तथा शहरों में तापमान कम कर सकती है, जिससे हीट वेव्स का प्रभाव कम हो सकता है।
- वर्षा जल संचयन, आर्द्रभूमि पुनर्भरण और शहरी जल निकायों का निर्माण, स्टॉर्मवाटर प्रबंधन को बेहतर बना सकता है, जिससे अकुशल जल निकासी के कारण शहरी बाढ़ का जोखिम कम हो सकता है।
- सड़कों और फुटपाथों के लिये पारगम्य सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि बेहतर जल अवशोषण हो और जलभराव कम हो।
- जलवायु-अनुकूल अवसंरचना और निर्माण डिज़ाइन:
- आपदा-प्रतिरोधी निर्माण मानकों को भवन डिज़ाइनों में शामिल किया जाना चाहिये। शहरी क्षेत्रों को बाढ़, हीट-वेव्स और चक्रवात जैसी चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिये जलवायु-प्रतिरोधी सामग्रियों को अपनाना चाहिये।
- अतिवृष्टि की घटनाओं से निपटने के लिये डिज़ाइन की गई ऊँची सड़कों, बाढ़-रोधी अवरोधों, स्टॉर्म-वाटर ड्रेन्स में निवेश करके शहरी बाढ़ के खतरे को कम किया जा सकता है।
- सतत् गतिशीलता और कार्बन उत्सर्जन में कमी:
- सार्वजनिक परिवहन और गैर-मोटर चालित परिवहन (पैदल चलना, साइकिल चलाना) को बढ़ावा देने से शहरी कार्बन उत्सर्जन एवं वायु प्रदूषण में कमी आ सकती है, जो भीषण गर्मी के दौरान एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों और कार-मुक्त क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने से वायु प्रदूषण कम हो सकता है तथा स्वच्छ, स्वस्थ शहरों के निर्माण में योगदान मिल सकता है।
- स्मार्ट यातायात प्रबंधन और वाहनों की भीड़भाड़ में कमी भी शहरी तनाव को कम करने एवं समग्र अनुकूलन बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण:
- घरेलू और सामुदायिक स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण एवं खाद बनाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि लैंडफिल पर बोझ कम किया जा सके, जो प्रायः प्रदूषण व अग्निकांड के खतरों का स्रोत होते हैं।
- अपशिष्ट न्यूनीकरण और संसाधन दक्षता सुनिश्चित करने तथा पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
जैसा कि जॉन एफ. कैनेडी ने एक बार कहा था, "छत की मरम्मत का समय तब होता है जब सूरज चमक रहा हो।"
भारत को बढ़ते जोखिमों को कम करने और अपनी बढ़ती शहरी आबादी को प्राकृतिक आपदाओं के मंडराते खतरे से बचाने के लिये सतत् शहरी नियोजन, आपदा-रोधी बुनियादी अवसंरचना और पर्यावरण प्रबंधन में निवेश करना चाहिये।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print