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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. "स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है"। भारत के उभरते सुरक्षा परिदृश्य के संदर्भ में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    16 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के महत्त्व को रेखांकित करते हुए किसी हालिया घटना का उल्लेख कीजिये।
    • स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के पक्ष में तर्क देते हुए भारत की सामरिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने में इसकी भूमिका को स्पष्ट कीजिये तथा इससे जुड़े प्रमुख मुद्दों की विवेचना कीजिये।
    • स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने हेतु उपयुक्त उपायों का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के प्रयुत्तर में चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की रक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भरता के महत्त्व को रेखांकित करता है। इस दौरान स्वदेशी रूप से विकसित युद्धक प्लेटफॉर्म LCH प्रचण्ड की तैनाती ने यह स्पष्ट कर दिया कि किस प्रकार स्वदेशी रक्षा तकनीक संकट की घड़ी में भारत की परिचालन स्वायत्तता को मज़बूत बनाती है।

    मुख्य भाग: 

    स्वदेशी रक्षा तकनीक: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने में भूमिका

    • विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता में कमी: स्वदेशी रक्षा तकनीक भारत को महत्त्वपूर्ण सैन्य उपकरणों के लिये विदेशों पर निर्भरता कम करने में सक्षम बनाती है।
      • यह एक उभरते सुरक्षा परिदृश्य में आवश्यक है जहाँ भू-राजनीतिक तनाव आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं, जैसा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान देखा गया था, जिससे आयुध प्रणालियों की आपूर्ति प्रभावित हुई।
      • उदाहरण के लिये तेजस लड़ाकू विमान और ATAGS तोप प्रणाली यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत संकट के समय रणनीतिक संसाधनों के लिये विदेशी देशों पर निर्भर न रहे।
      • 'SPRINT' योजना का उद्देश्य घरेलू कंपनियों द्वारा विशिष्ट रक्षा तकनीकों के विकास को बढ़ावा देना है।
    • संकट के दौरान परिचालन निरंतरता: पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे गतिरोध जैसी उच्च-दाँव वाली स्थितियों में, रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता उसे आयातित आपूर्ति की प्रतीक्षा किये बिना या अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण विलंब का सामना किये बिना सैन्य अभियान जारी रखने में सक्षम बनाती है।
      • स्वदेशी प्लेटफॉर्म जैसे: INS विक्रांत (विमानवाहक पोत) और आकाश मिसाइल सिस्टम भारत को तेज़ी से एवं स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत होती है।
    • उन्नत तकनीकी क्षमता और नवाचार: स्वदेशी रक्षा नवाचार भारत को AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और मानवरहित प्रणालियों जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करने में सहायता करता है।
      • भारत की iDEX पहल ने अनुसंधान एवं विकास में योगदान देने वाले 619 स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत को उपभोक्ता के बजाय एक तकनीकी महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ने में सहायता मिली है।
      • साथ ही, रक्षा उत्पादन विभाग द्वारा विकसित SRIJAN पोर्टल का उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देना है।
    • वैश्विक रक्षा कूटनीति को सुदृढ़ करना: स्वदेशी रक्षा तकनीकों को विकसित करके, भारत वैश्विक क्षेत्र में एक विश्वसनीय रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है।
      • BrahMos मिसाइल और तेजस जैसे रक्षा उपकरण रक्षा कूटनीति में भारत के प्रभाव को बढ़ाते हैं तथा अमेरिका, फ्राँस एवं दक्षिण पूर्व एशिया जैसे देशों के साथ उसके संबंधों को मज़बूत करते हैं।
      • रक्षा निर्यात का यह विस्तार न केवल भारत की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करता है, बल्कि इसकी सॉफ्ट पावर को भी बढ़ाता है, जो तेज़ी से बहुध्रुवीय होते विश्व के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा: स्वदेशी रक्षा उत्पादन आर्थिक विकास में, विशेष रूप से अविकसित क्षेत्रों में, महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
      • उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में भारत के रक्षा गलियारे रोज़गार सृजन एवं एयरोस्पेस, धातु विज्ञान एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने में सहायता कर रहे हैं।

    स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी से जुड़ी समस्याएँ और समाधान: 

    • तकनीकी अंतराल: उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, भारत को एयरो-इंजन, सेमीकंडक्टर और उन्नत रडार प्रणालियों जैसी महत्त्वपूर्ण तकनीकों के विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • यह भारत के पूर्ण आत्मनिर्भरता के लक्ष्य में बाधा डालता है, क्योंकि लड़ाकू जेट इंजन जैसे रणनीतिक प्लेटफॉर्म अभी भी विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं से प्राप्त किये जा रहे हैं।
    • निजी क्षेत्र की न्यून भागीदारी: हालाँकि सरकार ने निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी पर ज़ोर दिया है, लेकिन निजी कंपनियाँ कुल रक्षा उत्पादन में केवल 21% का योगदान देती हैं, जिससे नवाचार, प्रतिस्पर्द्धा और उन्नत प्रौद्योगिकी निर्माण का विस्तार सीमित हो रहा है।
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास में अपर्याप्त निवेश: कुछ प्रगति के बावजूद, रक्षा अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किये जाने वाले सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिशत वैश्विक मानकों से कम बना हुआ है।
      • यह अपर्याप्त वित्त पोषण भारत की अगली पीढ़ी की सैन्य तकनीकों को विकसित करने की क्षमता को सीमित करता है।
    • निर्यात बाज़ार में प्रभाव: भारत के रक्षा निर्यात में वृद्धि तो हो रही है, लेकिन अमेरिका, रूस और चीन जैसे स्थापित देशों से प्रतिस्पर्द्धा के कारण प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रभावी होने में अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे भारत के रक्षा क्षेत्र की विकास क्षमता सीमित हो रही है।

    स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने के उपाय:

    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास निवेश को मज़बूत करना: भारत को रक्षा क्षेत्र में अपने अनुसंधान एवं विकास खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य कुल रक्षा बजट का कम से कम 3-5% होना चाहिये।
      • DRDO, निजी उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, हाइपरसोनिक्स एवं निर्देशित ऊर्जा हथियारों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • निजी क्षेत्र और MSME की भागीदारी बढ़ाना: स्वदेशी उत्पादन की पूरी क्षमता का सदुपयोग करने के लिये, भारत को निजी फर्मों और MSME के तीव्र प्रवेश के लिये खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
      • द्रुत अनुमोदन, प्रोत्साहन और परीक्षण एवं प्रमाणन तक आसान अभिगम प्रदान करने से एक अधिक प्रतिस्पर्द्धी, नवोन्मेषी रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता मिलेगी।
    • रक्षा खरीद प्रणाली में सुधार: तेज़ खरीद समयसीमा और सरल अनुमोदन सुनिश्चित करने के लिये रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) में सुधार किया जाना चाहिये।
      • एकल-खिड़की मंज़ूरी प्रणाली, निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी ला सकती है, जिससे महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का समय पर समावेश सुनिश्चित हो सकता है।
    • रक्षा निर्यात रणनीति का विस्तार: भारत को अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे नए क्षेत्रों का अभिनिर्धारण करके अपने रक्षा निर्यात बाज़ारों में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
      • राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने और रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेने से वैश्विक बाज़ारों तक अभिगम आसान होगा, जिससे भारत को वर्ष 2029 तक रक्षा निर्यात में ₹50,000 करोड़ के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
    • परीक्षण और प्रमाणन अवसंरचना में वृद्धि: स्वदेशी उत्पादन में तेज़ी लाने के लिये भारत को अपनी परीक्षण सुविधाओं का विस्तार और आधुनिकीकरण करना चाहिये, विशेष रूप से UAV, AI-संचालित प्रणालियों एवं मिसाइल प्रौद्योगिकियों जैसे अत्याधुनिक प्लेटफॉर्मों के लिये।
      • रक्षा गलियारों में कुशल दोहरे उपयोग वाली परीक्षण अवसंरचना बनाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का लाभ उठाया जा सकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत का स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी पर ज़ोर, अस्थिर वैश्विक परिवेश में अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने और रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 

    जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि "वास्तविक सुरक्षा दूसरों पर निर्भरता में नहीं, बल्कि अपने भीतर विकसित की गई शक्ति में निहित है।" 

    यह आत्मनिर्भरता रक्षा और वैश्विक प्रभाव, दोनों ही क्षेत्रों में भारत के भविष्य की आधारशिला है।

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