ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "हिमालय केवल एक भौगोलिक विशेषता नहीं है, बल्कि एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र है, जो पर्यावरण, जैव विविधता और आजीविका के लिये अत्यंत आवश्यक है।" चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    25 Jun, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के महत्त्व की संक्षेप में चर्चा कर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • इस बात पर तर्क दीजिये कि पर्यावरण, जैव विविधता और आजीविका को बनाए रखने के लिये यह क्यों महत्त्वपूर्ण है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को बढ़ाने के लिये चुनौतियों और उपायों के बारे में जानकारी देकर उत्तर को समाप्त कीजिये।

    परिचय:

    “हिमालय केवल पर्वत शृंखला नहीं है, यह हमारे जल, संस्कृति और जलवायु की जड़ें हैं”। जल के भंडार के रूप में कार्य करने से लेकर अद्वितीय प्रजातियों के लिये विविध आवास प्रदान करने तक, हिमालय केवल एक भौगोलिक अवरोध नहीं, बल्कि एक ऐसा जीवन्त पारिस्थितिक तंत्र हैं जो जीवन और समृद्धि को संजोए हुए हैं।

    मुख्य भाग:

    पर्यावरण को बनाये रखने के लिये महत्त्वपूर्ण:

    • जलवायु विनियमन और मानसून सहायता: हिमालय ठंडी मध्य एशियाई हवाओं को रोककर जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इस प्रकार यह पूरे क्षेत्र को ठंडे रेगिस्तान में बदलने से रोकता है।
      • इसके अतिरिक्त, पर्वत शृंखला नमी से भरी मानसूनी हवाओं को रोकती है, जिससे भारत में मानसूनी बारिश होती है, जो कृषि के लिये अत्यंत आवश्यक है।
      • इस प्रणाली में कोई भी व्यवधान, जैसे कि हिमनदों का पिघलना या वनों की कटाई, सीधे तौर पर मानसून के पैटर्न को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप अनियमित मौसम और सूखा जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं।
    • जल आपूर्ति और जल विज्ञान संबंधी महत्त्व: हिमालय गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत है, जो सिंचाई, पेयजल और जल विद्युत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
      • ये नदियाँ उपजाऊ मैदानों की मिट्टी को भी समृद्ध करती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता सुनिश्चित होती है।

    जैव विविधता को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण:

    • जैवविविधता हॉटस्पॉट: हिमालय में लगभग 3,160 दुर्लभ और स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें पारंपरिक चिकित्सा के लिये महत्त्वपूर्ण मूल्य वाले औषधीय पौधे भी शामिल हैं।
      • इस क्षेत्र में हिम तेंदुआ, लाल पांडा और हिमालयी ताहर जैसे अद्वितीय वन्यजीव भी पाए जाते हैं, जो इसे विश्व के जैवविविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक बनाते हैं।
      • उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर अल्पाइन घास के मैदानों तक के विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों में वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की समृद्ध विविधता पाई जाती है, जो इस क्षेत्र को वैश्विक जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण बनाती है।
    • पारिस्थितिक सेवाएँ और कार्बन पृथक्करण: हिमालय के वन महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जो बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करते हैं।
      • इनका संरक्षण क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन और वैश्विक पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है।

    आजीविका को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण:

    • कृषि और जल निर्भरता: उपजाऊ मिट्टी और हिमालय की नदियों का पानी उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कृषि को सहायता प्रदान करते हैं।
      • लाखों किसान चावल, गेहूँ और गन्ना जैसी फसलों के लिये हिमालय से प्राप्त जल और उपजाऊ भूमि पर निर्भर हैं।
      • उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में कृषि पद्धतियाँ उस क्षेत्र के पिघले हुए हिमनदों से प्रभावित मौसमी चक्रों से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
    • पारिस्थितिकी पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था: हिमालय पारिस्थितिकी पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र है, जो केदारनाथ, बद्रीनाथ और शिमला जैसे स्थलों पर प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।
      • पर्यटन क्षेत्र न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन देता है बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर भी प्रदान करता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् प्रथाएँ: हिमालयी क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन, विशेषकर जल विद्युत के लिये अपार संभावनाएँ हैं।
      • नदियों और झरनों की प्रचुरता के कारण, जलविद्युत इस क्षेत्र के लिये एक स्थायी ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकता है।
      • अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य पहले से ही लोहित बेसिन में 13,000 मेगावाट जलविद्युत समझौते जैसी परियोजनाओं के माध्यम से इस क्षमता का दोहन कर रहे हैं, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं और स्थानीय विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।

    निष्कर्ष:

    हिमालय पर्यावरण, जैव विविधता और लाखों आजीविकाओं का समर्थन करने वाला एक महत्त्वपूर्ण जीवित पारिस्थितिकी तंत्र है। हालाँकि, जलवायु-जनित आपदाएँ, असंवहनीय विकास और जैवविविधता हानि जैसी चुनौतियाँ इसकी समुत्थानशीलता को खतरे में डालती हैं। इनसे निपटने के लिये एक संतुलित और सतत् दृष्टिकोण आवश्यक है। हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन अनुसंधान को बढ़ावा देने एवं सतत् विकास का मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2