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प्रश्न :
प्रश्न . संगठित अपराध और आतंकवाद संयुक्त रूप से भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है। इस गठजोड़ की प्रकृति एवं आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिये इसके निहितार्थों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
04 Jun, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संगठित अपराध और आतंकवाद की अवधारणाओं का परिचय दीजिये और बताएँ कि किस प्रकार यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है।
- कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों के लिये इससे उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिये, तथा इस समूह (नेक्सस) से निपटने के लिये सुझाए गए उपायों पर भी प्रकाश डालिये।
- उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
संगठित अपराध में लाभ के लिये अवैध गतिविधियों में शामिल संरचित समूह शामिल होते हैं, जबकि आतंकवाद वैचारिक या राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हिंसा का उपयोग करता है। यह आपस में मिलकर एक खतरनाक समूह (नेक्सस) बनाते है जहाँ आतंकवादी आपराधिक नेटवर्क के माध्यम से संचालन को वित्तपोषित करते हैं। यह मिश्रित खतरा पहचान, कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों के प्रयासों को जटिल बना देता है।
मुख्य भाग:
संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच निर्मित समूह (नेक्सस) की प्रकृति:
- साझा वित्तीय हित: संगठित अपराध आतंकवाद को धन मुहैया कराता है, जैसे कि ड्रग तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, जबरन वसूली और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के माध्यम से।
- उदाहरण के लिये, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में उल्फा (ULFA) जैसे उग्रवादी समूह अपनी गतिविधियों को चलाने के लिये जबरन वसूली और सीमा पार तस्करी का सहारा लेते हैं।
- वैश्विक स्तर पर, लश्कर-ए-तैयबा (LET) और जैश-ए-मोहम्मद (JEM) जैसे आतंकवादी समूहों को अक्सर हवाला लेनदेन और आपराधिक सिंडिकेटों द्वारा सुगमतापूर्वक की जाने वाली मादक पदार्थों की तस्करी से धन प्राप्त होता है ।
- उदाहरण के लिये, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में उल्फा (ULFA) जैसे उग्रवादी समूह अपनी गतिविधियों को चलाने के लिये जबरन वसूली और सीमा पार तस्करी का सहारा लेते हैं।
- संचालनात्मक सहजीवन: अपराध सिंडिकेट और आतंकी संगठन अक्सर एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं। अपराध समूह आतंकवादियों को हथियारों की तस्करी, नकली मुद्रा और विस्फोटकों के परिवहन जैसी लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करते हैं। बदले में आतंकवादी अवैध वस्तुओं की आवाजाही में सहायता या सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- उदाहरणस्वरूप, दाऊद इब्राहिम के नेतृत्व वाला डी-कंपनी, जिसने कथित रूप से 1993 के बॉम्बे विस्फोटों जैसे आतंकी कृत्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।
- यह आतंकवादी समूह जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में भी देखा जाता है, जहाँ स्थानीय अपराध नेटवर्क सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देते हैं तथा चरमपंथ के प्रसार में सहायता करते हैं।
- उदाहरणस्वरूप, दाऊद इब्राहिम के नेतृत्व वाला डी-कंपनी, जिसने कथित रूप से 1993 के बॉम्बे विस्फोटों जैसे आतंकी कृत्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।
- भर्ती और कट्टरता: आतंकवादी समूह अक्सर हाशिए पर पड़े समुदायों से भर्ती करते हैं और आपराधिक संगठन आतंकवादी संगठनों के लिये भर्ती का स्रोत हो सकते हैं। यह संबंध कश्मीर स्थित आतंकवादी समूहों में देखा जाता है, जहाँ स्थानीय आपराधिक तत्व युवाओं को कट्टरपंथी बनाने में भूमिका निभाते हैं।
आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिये निहितार्थ:
- खुफिया जानकारी जुटाने में जटिलता: गुप्त संबंध और उन्नत प्रौद्योगिकी (धन शोधन के लिये क्रिप्टोकरेंसी) का उपयोग अधिकारियों के लिये आपराधिक समूहों और आतंकवादी नेटवर्क के बीच अंतर करना मुश्किल बना देता है।
- कानूनी और न्यायिक चुनौतियाँ: मौजूदा कानूनी ढाँचे अक्सर इन अपराधों की अंतर्राष्ट्रीय और संकर प्रकृति को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहते हैं।
- भारत में संगठित अपराध से निपटने के लिये एक समर्पित राष्ट्रीय कानून का अभाव है, NSA (1980) और NDPS अधिनियम (1985) जैसे मौजूदा कानून संगठित आपराधिक नेटवर्क को लक्षित करने के बजाय व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- NIA, IB और सीमा सुरक्षा बलों के बीच अंतर-एजेंसी समन्वय महत्त्वपूर्ण हो जाता है, लेकिन अक्सर क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- हिंसा और अस्थिरता: जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में संगठित अपराध और आतंकवाद का प्रभाव बढ़ता है, ये राज्य की संस्थाओं को भ्रष्टाचार और दबाव के माध्यम से कमज़ोर कर देते हैं। इससे कानून प्रवर्तन और आतंकवाद विरोधी प्रयासों की प्रभावशीलता घटती है।
- उदाहरण के लिये, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों की दोहरी चुनौती भारत की आंतरिक सुरक्षा बलों पर अत्यधिक दबाव डालती है।
- संसाधनों का विचलन: संगठित अपराध से निपटने के अतिरिक्त बोझ के कारण सरकार के आतंकवाद-रोधी संसाधन अक्सर कम पड़ जाते हैं। संसाधनों का यह विचलन आतंकवाद-रोधी अभियानों की दक्षता और प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिये सुझाए गए उपाय:
- इंटेलिजेंस फ्यूजन सेंटर: संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच के संबंधों से निपटने के लिये विशेष इकाइयों की स्थापना की जानी चाहिये, जो संचालन को सुव्यवस्थित और खुफिया जानकारी साझा कर सके।
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: भारत को संगठित अपराध-आतंकवाद संबंधों की जटिलताओं को दूर करने के लिये अपने कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये, जिसमें तेजी से कानूनी कार्यवाही और इंटरपोल जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ बेहतर समन्वय शामिल है।
- वित्तीय जांच इकाइयाँ: गैर-कानूनी वित्तपोषण को ट्रैक करने के लिये फोरेंसिक अकाउंटिंग और डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करते हुए, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग नेटवर्क को लक्षित करने के लिये इन इकाइयों को सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- सामरिक सीमा प्रबंधन: भारत की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, जो गोल्डन क्रेसेंट और गोल्डन ट्राएंगल जैसे मादक पदार्थों के उत्पादन क्षेत्रों के निकट है, उन्नत निगरानी तकनीकों और नियमित गश्त के माध्यम से सीमा सुरक्षा को मज़बूत करना अवैध वस्तुओं की आवाजाही को रोकने के लिये आवश्यक है।
निष्कर्ष:
एक समग्र दृष्टिकोण, जिसमें खुफिया जानकारी साझा करने को मज़बूत करना, विभिन्न एजेंसियों के बीच सहयोग को बेहतर बनाना, विधायी ढाँचे को सशक्त करना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है, इस खतरनाक समूह को तोड़ने के लिये अत्यंत आवश्यक है। केवल समन्वित और बहुआयामी रणनीतियों के माध्यम से ही भारत इन खतरों से प्रभावी ढंग से निपट सकता है और दीर्घकालिक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
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