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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न . अंतरिक्ष के व्यावसायीकरण और बढ़ती निजी भागीदारी ने एक नई अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है। भारत के लिये इसके महत्त्व की विवेचना कीजिये तथा विकसित हो रहे इस पारिस्थितिकी तंत्र में ISRO की भूमिका को भी रेखांकित कीजिये। (250 शब्द)

    28 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को परिभाषित कीजिये और विवेचना कीजिये कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार- 2020 ने निजी भागीदारी को किस प्रकार सक्षम किया है।
    • भारत के लिये इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये, ISRO की भूमिका को रेखांकित करते हुए इसके समक्ष आने वाली चुनौतियों के साथ-साथ आवश्यक उपायों का बी परीक्षण कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग तेज़ी से बढ़ते व्यावसायीकरण और निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ विकसित हो रहा है, जिससे एक गतिशील नई अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल रहा है। इस प्रवृत्ति के अनुरूप, भारत के वर्ष 2020 अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों ने निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को सक्षम किया, जिससे विकास में तीव्रता आई, नवाचार को बढ़ावा मिला तथा रणनीतिक और आर्थिक क्षमताओं को मज़बूती मिली।

    मुख्य भाग:

    भारत के लिये नई अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का महत्त्व:

    • आर्थिक विकास और बाज़ार विस्तार: भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र अगले पाँच वर्षों में लगभग 48% की CAGR से बढ़ने का अनुमान है, जिसका लक्ष्य 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मार्केट साइज़ तक विस्तार करना है।
      • यह क्षेत्र निजी निवेश को आकर्षित कर रहा है, MGF-कवच जैसे उद्यम पूंजी कोष ने पिछले तीन वर्षों में 2,500 करोड़ रुपए जुटाए हैं, जिससे नवाचार एवं घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिला है।
    • आयात निर्भरता में कमी: वर्तमान में, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी घटकों (जैसे: इलेक्ट्रॉनिक्स, कार्बन फाइबर और सोलर सेल) के लिये भारत की आयात लागत इस क्षेत्र में उसके निर्यात आय से बारह गुना अधिक है।
      • स्वदेशी अंतरिक्ष स्टार्टअप और निजी भागीदारों को बढ़ावा देने से इस निर्भरता को कम किया जा सकता है, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सकता है तथा आत्मनिर्भरता का निर्माण किया जा सकता है।
    • मांग-संचालित मॉडल की ओर बदलाव: सरकार के नेतृत्व वाले मिशनों पर केंद्रित पारंपरिक आपूर्ति-संचालित मॉडल के विपरीत, निजी भागीदारी एक मांग-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाती है, जहाँ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियाँ सीधे वाणिज्यिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं, जिसमें स्मार्ट शहरों एवं परिशुद्ध कृषि के लिये उपग्रह डेटा का उपयोग भी शामिल है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: SpaceX और ब्लू ओरिजिन जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने लागत एवं समय में भारी कटौती करके अंतरिक्ष तक अभिगम में क्रांतिकारी बदलाव किया है।
      • POEM कार्यक्रम जैसी पहलों के साथ PSLV प्रक्षेपणों पर स्टार्टअप पेलोड में वृद्धि (वर्ष 2022 में 6 से वर्ष 2024 में 24 तक), भारत स्वयं को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में स्थापित कर रहा है।
    • सामाजिक और रणनीतिक लाभ: निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने, आपदा मोचन हेतु तैयारी और पर्यावरणीय निगरानी जैसी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने वाले नवीन समाधान विकसित होते हैं।
      • इससे ISRO को उच्चस्तरीय सामरिक और अंतर-ग्रहीय अनुसंधान पर भी ध्यान केंद्रित करने में मदद मिल रही है।

    विकासशील पारिस्थितिकी तंत्र में ISRO की भूमिका:

    • उत्प्रेरक और सुविधाकर्त्ता: ISRO, IN-SPACe के माध्यम से, निजी क्षेत्र को बुनियादी अवसंरचना और विनियामक सहायता तक अभिगम की सुविधा प्रदान करता है। यह स्टार्टअप और SME को स्वतंत्र रूप से एंड-टू-एंड अंतरिक्ष गतिविधियों को अंतिम रूप देने में सक्षम बनाता है।
    • विनियामक और सक्षमकर्त्ता: ISRO और अंतरिक्ष विभाग (DoS) अंतरिक्ष संसाधनों के सुरक्षित व कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये विनियामक के रूप में कार्य करते हैं
      • भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2023 जैसी स्पष्ट नीतियों के माध्यम से गैर-सरकारी निजी संस्थाओं (NGPE) को बढ़ावा दिया गया, जो स्वचालित मार्ग के तहत उपग्रह निर्माण और संचालन में 74% FDI की अनुमति देता है।
    • सहयोग और साझेदारी: ISRO प्रौद्योगिकी विकास और वाणिज्यिक उत्पादन के लिये निजी कंपनियों के साथ साझेदारी करता है, जिसका उदाहरण NSIL, HAL, L&T तथा स्काईरूट एयरोस्पेस व अग्निकुल कॉसमॉस जैसे स्टार्टअप हैं, जिन्होंने भारत का पहला निजी रॉकेट लॉन्च करने जैसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
    • क्षमता निर्माण: ISRO अटल इनोवेशन मिशन के ATL स्पेस चैलेंज, अंतरिक्ष तकनीक इनक्यूबेटर और IN-SPACe के माध्यम से सेवानिवृत्त विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन जैसी पहलों के माध्यम से निजी अंतरिक्ष विकास का समर्थन करता है।
      • यह प्रक्षेपण वाहनों और ग्राउंड स्टेशनों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना तक भी पहुँच प्रदान करता है।
    • मुख्य अनुसंधान पर ध्यान: निजी भागीदारों को वाणिज्यिक प्रक्षेपण और उपग्रह उत्पादन के प्रबंधन में सक्षम बनाकर, ISRO अंतर-ग्रहीय मिशनों, गहन अंतरिक्ष अन्वेषण एवं रणनीतिक प्रक्षेपणों में उन्नत अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे भारत का अंतरिक्ष नेतृत्व बढ़ सकता है।

    स्टार्टअप और निजी भागीदारी को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ:

    • नियामक बाधाएँ: अनुमोदन में ओवरलैपिंग और स्वतंत्र नियामक का अभाव; ISRO ऑपरेटर एवं नियामक दोनों के रूप में कार्य करता है।
    • उच्च जोखिम एवं अनिश्चितता: लंबी परिपक्वता अवधि और अनिश्चित बाज़ार निजी निवेश को बाधित करते हैं।
    • वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: भारतीय निवेशक अंतरिक्ष तकनीक जैसे जोखिम भरे क्षेत्रों की तुलना में 5G जैसे सुरक्षित क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे निजी वित्तपोषण सीमित हो जाता है।
      • ISRO का मामूली बजट, PM-किसान जैसी योजनाओं के एक चौथाई से भी कम है, जो इसके विकास को बाधित करता है।
    • आयात पर निर्भरता: भारत प्रायः उन्नत अंतरिक्ष-संबंधी सेवाओं और प्रौद्योगिकियों का आयात करता है, जबकि कम कौशल, कम मूल्य वाली वस्तुओं का निर्यात करता है या उन पर निर्भर रहता है, जिससे घरेलू उच्च मूल्य वाली क्षमताओं में अंतर उजागर होता है।
    • अंतरिक्ष मलबा एवं सुरक्षा चिंताएँ: निजी गतिविधियों में वृद्धि से विदेशी हस्तक्षेप और रणनीतिक खतरों जैसी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
      • अंतरिक्ष में बढ़ता मलबा उपग्रह सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है, क्योंकि टकराव से महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष परिसंपत्तियाँ नष्ट हो सकती हैं।

    आगे की राह:

    • अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये अधिनियम लागू करना: कानूनी स्पष्टता प्रदान करने और उद्योग के विकास को समर्थन देने के लिये एक समर्पित अंतरिक्ष गतिविधियाँ अधिनियम लागू किया जाना चाहिये।
    • मूल्य शृंखला मानचित्रण: अंतराल की पहचान करने, वैश्विक स्तर पर बेंचमार्क करने और बाज़ार संचालित समाधानों को आकार देने के लिये विभिन्न खंडों का विश्लेषण किया जाना चाहिये।
    • सरकारी सहायता: मांग को प्रोत्साहित करने और व्यापार मॉडल को मान्य करने के लिये स्टार्टअप को अनुबंध प्रदान किया जाना चाहिये। वित्तपोषण तंत्र को बेहतर बनाने के साथ ही निवेशकों के बीच जोखिम से बचने की प्रवृत्ति को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
    • क्षमता निर्माण: शैक्षणिक और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये, विशेष रूप से सिस्टम इंजीनियरिंग एवं अंतरिक्ष तकनीक में।
    • क्षेत्रगत तालमेल: विशेषज्ञता और बाज़ार अभिगम के लिये स्टार्टअप्स, ISRO और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • अतिरिक्त उपाय: प्रौद्योगिकी विकास निधि का विस्तार किया जाना चाहिये, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण शुरू किया जाना चाहिये तथा पूंजी तक पहुँच में सुधार किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण और निजी क्षेत्र की भागीदारी भारत के वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में उभरने के लिये महत्त्वपूर्ण है। सुविधाकर्त्ता, विनियामक और नवप्रवर्तक के रूप में ISRO की उभरती भूमिका एक जीवंत अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है जो राष्ट्र को आर्थिक, सामाजिक एवं रणनीतिक लाभ प्रदान करती है।

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