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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. शरणार्थियों और प्रवासन के प्रति भारत का दृष्टिकोण मानवीय सिद्धांतों द्वारा निर्देशित रहा है, लेकिन इसे व्यावहारिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। मानवीय चिंताओं और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    27 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • शरणार्थियों और प्रवासन के प्रति भारत के ऐतिहासिक एवं मानवीय दृष्टिकोण का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
    • भारत द्वारा अपनाए जाने वाले मानवीय सिद्धांतों पर चर्चा कीजिये, साथ ही प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए मुद्दे के प्रभावी समाधान के लिये उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    UNHCR के अनुसार, शरणार्थी वे व्यक्ति हैं जिन्हें उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपने देश से पलायन के लिये विवश होना पड़ता है। हालाँकि भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, लेकिन मानवीय आधार पर शरण चाहने वालों को आश्रय प्रदान करता है।

    मुख्य भाग

    भारत की शरणार्थी नीति में मानवीय सिद्धांत:

    • गैर-वापसी सिद्धांत: भारत गैर-वापसी (शरणार्थियों को बलपूर्वक उनके मूल देश वापस नहीं भेजना) के सिद्धांत का पालन करता है जो प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप है। भारत ने अपने बहुलवादी लोकाचार और ऐतिहासिक अनुभवों को दर्शाते हुए नैतिक एवं राजनीतिक विचारों के आधार पर शरण की पेशकश की है।
      • तिब्बती शरणार्थियों जैसे कई समूहों को दीर्घकालिक पुनर्वास अधिकार और संस्थागत समर्थन प्राप्त हुआ है।
      • इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के अंतर्गत शरणार्थियों के पुनर्वास और दीर्घकालिक वीज़ा (LTVs) की अनुमति में भारत की मानवीय दृष्टि स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
      • भारतीय न्यायपालिका ने भी संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अंतर्गत शरणार्थियों के अधिकारों की पुष्टि की है।

    मानवीय चिंताओं और राष्ट्रीय हितों में संतुलन स्थापित करने की चुनौतियाँ:

    • सुरक्षा चिंताएँ: शरणार्थियों की आमद, विशेष रूप से अफगानिस्तान और म्याँमार (रोहिंग्या) से, आतंकवादियों एवं संगठित अपराध द्वारा घुसपैठ की आशंकाएँ उत्पन्न होती हैं।
      • रोहिंग्या शरणार्थियों को नागरिकता या कानूनी दर्जा देने से सरकार का इनकार राष्ट्रीय सुरक्षा और जनांकिकीय परिवर्तनों (विशेषकर असम जैसे सीमावर्ती राज्यों में) के संबंध में चिंताओं का परिणाम है।
    • कानूनी शून्यता: भारत में शरणार्थियों से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून या नीति नहीं है, जिससे इस विषय में अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न शरणार्थी समूहों के साथ असंगत और तदर्थ उपायों के माध्यम से व्यवहार किया जाता है, जिससे प्रशासनिक प्रबंधन जटिल हो जाता है।
      • यद्यपि नई दिल्ली स्थित UNHCR कार्यालय और 'विदेशी (संशोधन) अधिनियम, 2019' जैसे कुछ तंत्र आंशिक समाधान प्रदान करते हैं, परंतु ये समस्याओं का समग्र समाधान नहीं हैं।
    • संसाधन और आर्थिक दबाव: बड़े पैमाने पर प्रवासन सीमित संसाधनों, बुनियादी अवसंरचना और रोज़गार के अवसरों पर दबाव डालता है, विशेषकर आर्थिक रूप से कमज़ोर क्षेत्रों में। कभी-कभी सार्वजनिक आक्रोश उत्पन्न होता है, जिससे सामाजिक तनाव एवं विदेशी लोगों के प्रति घृणा बढ़ती है, जिससे शरणार्थियों के एकीकरण पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिये, रोहिंग्या संकट।
    • कूटनीतिक संवेदनशीलताएँ: शरणार्थियों की स्थिति में प्रायः सीमा पार कूटनीतिक चुनौतियाँ शामिल होती हैं। उदाहरण के लिये, रोहिंग्या या श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को निर्वासित करना संवेदनशील द्विपक्षीय संबंधों से जुड़ा मामला है।
    • आंतरिक राजनीतिक दबाव: प्रवासन घरेलू राजनीति को प्रभावित करता है, विशेषकर असम जैसे राज्यों में, जहाँ पहचान और जनांकिकी संबंधी चिंताएँ राजनीतिक रूप से प्रभावित होती हैं। चुनावी राजनीति और स्थानीय भावनाओं के साथ शरणार्थी अधिकारों को संतुलित करना नीति निर्माण को जटिल बनाता है।

    मानवीय और राष्ट्रीय हितों में संतुलन

    • कानूनी स्पष्टता, अधिकार संरक्षण और सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून विकसित किया जाना आवश्यक है।
    • शरणार्थी प्रबंधन और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय के लिये संस्थागत क्षमता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
    • मानवीय प्रतिबद्धताओं से समझौता किये बिना वैध सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये सीमा प्रबंधन और सुरक्षा जाँच को सख्त किया जाना चाहिये।
    • शरणार्थी संकटों में साझा जिम्मेदारी के लिये SAARC और BIMSTEC जैसे कार्यढाँचों के भीतर क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • निर्भरता और सामाजिक तनाव को कम करने के लिये कौशल विकास एवं आजीविका सहायता के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारत की शरणार्थी और प्रवास नीति करुणा एवं व्यावहारिकता के बीच एक जटिल संतुलन का प्रतीक है। मानवीय मूल्यों को राष्ट्रीय हितों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये एक स्पष्ट कानूनी कार्यढाँचा तैयार करना, संस्थागत क्षमता को बढ़ाना और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक होगा।

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